रिटायरमेंट के बाद अनुशासनात्मक कार्यवाही अमान्य: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
Shahadat
7 Oct 2025 10:51 AM IST

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस संजय परिहार की खंडपीठ ने कहा कि रिटायरमेंट के बाद किसी सरकारी कर्मचारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती और पेंशन से वसूली तभी संभव है, जब लापरवाही या धोखाधड़ी के कारण सरकार को वित्तीय नुकसान पहुंचाने का कोई विशिष्ट आरोप विधिवत रूप से स्थापित और सिद्ध हो जाए।
पृष्ठभूमि तथ्य
याचिकाकर्ता को 11 नवंबर, 1990 को जम्मू-कश्मीर पुलिस में उप-निरीक्षक के पद पर नियुक्त किया गया था। 31 मार्च, 2000 को उन्हें निरीक्षक के पद पर पदोन्नत किया गया। बाद में 20 जुलाई, 2012 के सरकारी आदेश द्वारा उन्हें प्रभारी पुलिस उपाधीक्षक (डिप्टी एसपी) के पद पर नियुक्त किया गया।
2015 में अपनी सेवा के दौरान, पुलिस मुख्यालय को सूचना मिली कि याचिकाकर्ता जम्मू-कश्मीर सरकारी कर्मचारी (आचरण) नियम, 1971 के नियम 21(2) के तहत पूर्व अनुमति प्राप्त किए बिना जम्मू-कश्मीर क्रिकेट संघ (JKCA) में संयुक्त सचिव के पद पर कार्यरत था। यह भी ध्यान दिया गया कि उसे इस पद के लिए JKCA से 12,000 रुपये मासिक मानदेय मिलता था। एक विशिष्ट शिकायत भी प्राप्त हुई, जिसमें आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता JKCA से जुड़े होने के कारण सांबा में एसी एचजी के रूप में कार्य करते हुए अपने आधिकारिक कर्तव्यों की उपेक्षा कर रहा था।
पुलिस मुख्यालय ने याचिकाकर्ता से स्पष्टीकरण मांगा। उन्होंने 24 फ़रवरी, 2016 को कार्योत्तर अनुमति के लिए आवेदन किया। हालांकि, अनुमति नहीं दी गई। पुलिस महानिदेशक (DGP) ने जून 2018 में उनके विरुद्ध कदाचार के लिए विभागीय कार्यवाही शुरू करने की सिफ़ारिश की। याचिकाकर्ता 31 मई, 2021 को रिटायर हो गए। इसके बाद पुलिस मुख्यालय ने गृह विभाग को सिफ़ारिश की कि याचिकाकर्ता के विरुद्ध मामला बंद कर दिया जाए और पुलिस उपाधीक्षक के रूप में उनकी पदोन्नति को नियमित किया जाए। यह उद्धृत किया गया कि उन्हें नया सत्यनिष्ठा प्रमाणपत्र जारी किया गया।
हालांकि, गृह विभाग इस सिफ़ारिश से सहमत नहीं है। याचिकाकर्ता की रिटायरमेंट के बाद उसने एक ज्ञापन जारी किया, जिसमें जम्मू-कश्मीर सिविल सेवा (CCA) नियम, 1956 के तहत जांच शुरू की गई। याचिकाकर्ता को आरोप-पत्र दिया गया। जांच अधिकारी ने याचिकाकर्ता को आचरण नियमों के उल्लंघन का दोषी पाया। परिणामस्वरूप, सरकार ने JKCA से प्राप्त मानदेय राशि की वसूली उनकी पेंशन से करने का निर्देश दिया। व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाया।
ट्रिब्यूनल ने प्रतिवादियों द्वारा याचिकाकर्ता द्वारा JKCA से प्राप्त पारिश्रमिक को उसकी पेंशन से वसूलने की कार्रवाई को सही ठहराया। हालांकि, ट्रिब्यूनल ने उप-पुलिस अधीक्षक के पद पर नियमितीकरण के लिए याचिकाकर्ता की प्रार्थना स्वीकार की और सभी परिणामी लाभों सहित नियमितीकरण के लिए उसके मामले पर विचार करने हेतु आवश्यक निर्देश जारी किए।
इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने रिट याचिका दायर की।
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उसकी सेवा के दौरान किए गए कदाचार के लिए उसकी रिटायरमेंट के बाद उसके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती। यह भी दलील दी गई कि उसकी पेंशन से मानदेय राशि की वसूली अवैध है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर सिविल सेवा विनियम, 1956 के अनुच्छेद 168-ए के प्रावधान लागू नहीं होते, क्योंकि याचिकाकर्ता द्वारा JKCA में संयुक्त सचिव का कार्यभार स्वीकार करने के कारण सरकारी खजाने को हुए नुकसान की पुष्टि नहीं हुई। इसके अलावा, याचिकाकर्ता को आरोप का बचाव करने का पर्याप्त अवसर नहीं दिया गया।
दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने दलील दी कि किसी रिटायर कर्मचारी के विरुद्ध कदाचार के लिए नियमित अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती। हालांकि, जम्मू-कश्मीर सिविल सेवा विनियम, 1956 के अनुच्छेद 168-ए के प्रावधान सरकार को किसी अधिकारी की पेंशन से किसी भी राशि की वसूली का आदेश देने का अधिकार देते हैं, यदि यह राशि उस अधिकारी की सेवा के दौरान लापरवाही या धोखाधड़ी के कारण सरकार को हुई हानि दर्शाती हो। यह भी दलील दी गई कि याचिकाकर्ता ने सरकार में एक पुलिस अधिकारी के रूप में अपने आधिकारिक कर्तव्यों की कीमत पर JKCA में संयुक्त सचिव का पद स्वीकार करके और मानदेय प्राप्त करके, सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाया।
कोर्ट के निष्कर्ष
कोर्ट ने पाया कि किसी रिटायर कर्मचारी के विरुद्ध सेवाकाल के दौरान किए गए कदाचार के लिए अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं की जा सकती, क्योंकि एक बार कर्मचारी की रिटायरमेंट हो जाने पर सक्षम प्राधिकारी जम्मू-कश्मीर सिविल सेवा (CCA) नियम, 1956 के तहत दंड लगाने का अधिकार खो देता है। यह माना गया कि याचिकाकर्ता के विरुद्ध रिटायरमेंट के बाद 1956 के नियम 33 के तहत शुरू की गई कार्यवाही अमान्य है।
यह भी कहा गया कि हालांकि, जम्मू-कश्मीर सिविल सेवा नियम, 1956 का अनुच्छेद 168-ए किसी अधिकारी की लापरवाही या धोखाधड़ी के कारण सरकार को हुए नुकसान की भरपाई उसकी पेंशन से करने की अनुमति देता है। कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता के विरुद्ध लगाए गए आरोपों में केवल आचरण नियमों के उल्लंघन के लिए कदाचार का आरोप लगाया गया। याचिकाकर्ता के विरुद्ध लापरवाही या धोखाधड़ी के माध्यम से सरकारी खजाने को कोई वित्तीय नुकसान पहुंचाने का कोई आरोप नहीं लगाया गया।
कोर्ट ने यह माना कि नुकसान पहुंचाने के आरोप पर जांच नहीं की गई, इसलिए याचिकाकर्ता को इस तरह के आरोप के विरुद्ध अपना बचाव करने का अवसर नहीं दिया गया। 16.11.2022 का सरकारी आदेश, जिसमें वसूली का निर्देश दिया गया, कायम नहीं रखा जा सका।
कोर्ट ने यह भी कहा कि कई अन्य सीनियर सिविल और पुलिस अधिकारी बिना अनुमति के खेल संघों में इसी तरह के पदों पर रहे हैं। हालांकि, केवल याचिकाकर्ता को ही दंडात्मक कार्रवाई के लिए चुना गया, जो एक भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण को उजागर करता है।
अतः यह निष्कर्ष निकाला गया कि रिटायरमेंट के बाद किसी सरकारी कर्मचारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती है। पेंशन से वसूली तब तक अस्वीकार्य है, जब तक कि लापरवाही या धोखाधड़ी से सरकार को हुई वित्तीय हानि का कोई विशिष्ट आरोप विधिवत रूप से तैयार और सिद्ध न हो जाए। ट्रिब्यूनल के निर्णय को जहां तक उसने याचिकाकर्ता की पेंशन से पारिश्रमिक की वसूली को बरकरार रखा, न्यायालय ने रद्द कर दिया। उपरोक्त टिप्पणियों के साथ याचिकाकर्ता उप-निरीक्षक द्वारा दायर रिट याचिका को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।
Case Name : Sudershan Mehta vs Union Territory of Jammu & Kashmir

