ZP Election Rules 1994 | COVID के दौरान वर्चुअल उपस्थिति में याचिका का वर्चुअल रूप से दाखिल होना नियम 4(3) का पर्याप्त अनुपालन: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Shahadat
5 Oct 2025 9:05 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि यदि कोई चुनाव याचिका याचिकाकर्ता द्वारा स्वयं ई-फाइल की जाती है और COVID-19 के दौरान याचिका प्रस्तुत करते समय याचिकाकर्ता अपने वकील के साथ कोर्ट के समक्ष वर्चुअल रूप से उपस्थित होता है तो यह उत्तर प्रदेश जिला पंचायत (सदस्यता से संबंधित चुनावी विवादों का निपटारा) नियम, 1994 के नियम 4(3) का 'पर्याप्त अनुपालन' माना जाएगा, जिसके अनुसार चुनाव याचिका व्यक्तिगत रूप से प्रस्तुत की जानी आवश्यक है।
जस्टिस मनीष कुमार निगम की पीठ ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता ने स्वयं अपनी ई-मेल आईडी से याचिका दायर की और उक्त ई-याचिका पर विचार करते समय जिला जज ने याचिकाकर्ता की वर्चुअल उपस्थिति का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है तो यह नहीं कहा जा सकता कि वह व्यक्तिगत रूप से उपस्थित नहीं है।
संक्षेप में मामला
बता दें, कोर्ट मुज़फ़्फ़रनगर के एक वार्ड के ज़िला पंचायत चुनावों से संबंधित रिट याचिका पर विचार कर रहा था। चुनाव 19 अप्रैल, 2021 को हुए और मतगणना 3 मई, 2021 को पूरी हुई, जिसमें याचिकाकर्ता (वीरपाल) को विजेता घोषित किया गया।
चुनावों में दूसरा स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिवादी नंबर 1 (प्रभात तोमर) ने विभिन्न आधारों पर उत्तर प्रदेश क्षेत्र पंचायत और ज़िला पंचायत अधिनियम, 1961 की धारा 27 उपखंड 2 (क) (ख) के साथ 1994 के नियम 4 के तहत एक चुनाव याचिका दायर की।
इसके बाद निर्वाचित उम्मीदवार (वीरपाल) ने चुनाव याचिका खारिज करने के लिए सीपीसी के आदेश VII नियम 11 के तहत आवेदन दायर किया। जब इस वर्ष मई में मुज़फ़्फ़रनगर के एडिशनल ज़िला जज ने इसे खारिज कर दिया तो उन्होंने वर्तमान रिट याचिका के साथ हाईकोर्ट का रुख किया।
तर्क
याचिकाकर्ता वीरपाल ने हाईकोर्ट में तर्क दिया कि 1994 के नियमों के नियम 4(3) के अनुसार चुनाव याचिका "याचिकाकर्ता द्वारा व्यक्तिगत रूप से प्रस्तुत की जानी चाहिए"। चूंकि चुनाव याचिका स्वयं याचिकाकर्ता द्वारा नहीं, बल्कि वकील के माध्यम से भौतिक रूप से दायर की गई, इसलिए इसे अस्वीकार किया जाना चाहिए।
यह भी तर्क दिया गया कि दलीलें अस्पष्ट हैं, उनमें ठोस विवरण का अभाव है और सक्रिय जांच की आवश्यकता है।
याचिकाकर्ता का यह तर्क था कि याचिका में उन मतों (मतपत्रों) के बारे में कोई विवरण नहीं दिया गया, जिनके बारे में चुनाव याचिकाकर्ता के पक्ष में कथित तौर पर डाले जाने का आरोप लगाया गया। हालांकि, जिनका श्रेय वर्तमान याचिकाकर्ता को दिया गया।
इन दलीलों के जवाब में मूल चुनाव याचिकाकर्ता (तोमर) के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिका 2 जून, 2021 को COVID प्रतिबंधों के दौरान दायर की गई, जब भौतिक और इलेक्ट्रॉनिक दोनों तरीकों से दाखिल करने की अनुमति थी।
यह प्रस्तुत किया गया कि जहां एक कॉपी वकील के माध्यम से फिजिकल रूप से दायर की गई, वहीं चुनाव याचिकाकर्ता ने सामान्य नियम (सिविल), 1957 के नियम 13 के तहत आवेदन के साथ अपनी ईमेल आईडी से ईमेल द्वारा भी याचिका दायर की।
महत्वपूर्ण बात यह है कि पीठ को यह भी अवगत कराया गया कि जब 2 जून, 2021 को जिला जज द्वारा मामले की वर्चुअल सुनवाई की गई थी तो चुनाव याचिकाकर्ता अपने वकील के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से व्यक्तिगत रूप से उपस्थित थे, जिसे आदेश में ही दर्ज किया गया।
इसके अलावा, यह भी प्रस्तुत किया गया कि अधिनियम, 1961 के तहत दायर याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत आवश्यक सामग्री विवरण प्रस्तुत करने की कोई आवश्यकता नहीं है। केवल यह आवश्यकता है कि चुनाव याचिका में चुनौती के आधार का उल्लेख किया जाना चाहिए।
हाईकोर्ट की टिप्पणियां
पीठ ने नियम, 1994 के नियम 4 के उप-नियम 3 का उल्लेख करते हुए कहा कि इसमें यह अनिवार्य किया गया है कि उप-नियम 1 या उप-नियम 2 के अंतर्गत प्रत्येक याचिका याचिकाकर्ता द्वारा व्यक्तिगत रूप से प्रस्तुत की जाएगी।
यह देखते हुए कि मूल चुनाव याचिका COVID महामारी के कारण उत्पन्न असाधारण स्थिति में वर्चुअल रूप से दायर की गई, अदालत ने चुनाव याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए तर्क से सहमति जताते हुए हाईकोर्ट ने इस प्रकार टिप्पणी की:
"यदि याचिका ई-मोड के माध्यम से प्रस्तुत की जाती है और जब याचिका वर्चुअल रूप से ली जाती है तो यदि याचिकाकर्ता याचिका की सुनवाई के समय वर्चुअल रूप से उपस्थित होता है तो यह नियम, 1994 के नियम 4 के उप-नियम 3 का पर्याप्त अनुपालन होगा, क्योंकि अनिवार्य प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि चुनाव याचिका किसी धोखेबाज़ द्वारा नहीं, बल्कि किसी वास्तविक व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत की गई।"
याचिका में अस्पष्टता से संबंधित दूसरे तर्क पर अदालत ने माना कि यद्यपि मतगणना के संबंध में अनुच्छेद 8-14 में दिए गए कथनों में विवरण का अभाव हो सकता है, चुनाव याचिका में "प्रतिवादी की पीठ पीछे" की गई पुनर्गणना को भी चुनौती दी गई, जिसके लिए पर्याप्त दलीलें दी गईं।
इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा कि आदेश VII नियम 11 सीपीसी के तहत किसी वादपत्र या चुनाव याचिका आंशिक रूप से खारिज नहीं की जा सकती।
इस प्रकार, यह निष्कर्ष निकालते हुए कि नियम 4(3) का "पर्याप्त अनुपालन" किया गया और चुनाव न्यायाधिकरण ने आदेश VII नियम 11 सीपीसी के तहत आवेदन खारिज करने में कोई गलती नहीं की, हाईकोर्ट ने रिट याचिका खारिज की।
Case title - Veerpal vs. Prabhat Tomar And 13 Others

