Section 336(2) Municipalities Act | ट्रांसफर ऑर्डर के लिए अधिकारी की सहमति आवश्यक नहीं, प्रतिनियुक्ति से भिन्न: राजस्थान हाईकोर्ट
Shahadat
6 Oct 2025 8:31 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य नगर पालिका अधिनियम, 2009 की धारा 336(2) के अंतर्गत ट्रांसफर ऑर्डर प्रतिनियुक्ति के माध्यम से ट्रांसफर नहीं माना जा सकता, क्योंकि इस प्रावधान में अधिकारी की सहमति का प्रावधान नहीं है, जो प्रतिनियुक्ति के लिए आवश्यक है।
अदालत ने कहा कि धारा 336(2) के अंतर्गत आदेश जारी होने के बाद अधिकारी/कर्मचारी के पास स्थानांतरित स्थान पर कार्यभार ग्रहण करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता।
बता दें, धारा 336 किसी अधिकारी या सरकारी कर्मचारी के नगर पालिका से दूसरी नगर पालिका में ट्रांसफर से संबंधित है।
अधिनियम की धारा 336(2) में कहा गया कि नगर पालिका के किसी भी अधिकारी या कर्मचारी को राज्य सरकार द्वारा जयपुर विकास प्राधिकरण या जोधपुर विकास प्राधिकरण या राजस्थान आवासन मंडल या किसी नगर सुधार न्यास या किसी अन्य स्थानीय निकाय में ऐसे पद पर स्थानांतरित किया जा सकता है, जिसका वेतनमान स्थानांतरित किए जाने वाले अधिकारी या कर्मचारी के वेतनमान से कम न हो।
जस्टिस पुष्पेंद्र सिंह भाटी और जस्टिस संदीप तनेजा की खंडपीठ सिंगल जज के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उदयपुर विकास प्राधिकरण (UDA) के आयुक्त द्वारा अपीलकर्ता अधिकारी को UDA से उसके मूल विभाग में वापस भेजने के आदेश को बरकरार रखा गया। अपीलकर्ता को मूल रूप से 20.09.2023 को सरकार के स्थानीय स्वशासन विभाग द्वारा अधिनियम की धारा 336 के तहत नगर परिषद मकराना से UDA में ट्रांसफर किया गया।
सिंगल जज ने रिट याचिका यह कहते हुए खारिज की कि 20.09.2023 के आदेश द्वारा अपीलकर्ता का ट्रांसफर प्रतिनियुक्ति पर ट्रांसफर है। इस प्रकार आयुक्त यूडीए को उसे उसके मूल विभाग में वापस भेजने का अधिकार है।
हालांकि, खंडपीठ ने कहा:
“2009 के अधिनियम की धारा 336(2) का गहन अध्ययन करने पर पता चलता है कि इसमें किसी भी पक्ष, अर्थात् ऋणदाता नियोक्ता, ऋण लेने वाले नियोक्ता और संबंधित कर्मचारी की सहमति का प्रावधान नहीं है। जब राज्य सरकार उपरोक्त धारा में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए किसी नगरपालिका के अधिकारी या कर्मचारी का विकास प्राधिकरण में ट्रांसफर करने का आदेश जारी करती है तो संबंधित कर्मचारी के पास ट्रांसफर स्थान पर कार्यभार ग्रहण करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। यह धारा कर्मचारी का ट्रांसफर ऑर्डर जारी करने से पहले उसकी सहमति लेने का प्रावधान नहीं करती। इसलिए उसकी सहमति के अभाव में यह नहीं कहा जा सकता कि 2009 के अधिनियम की धारा 336(2) के तहत किया गया ट्रांसफर प्रतिनियुक्ति के माध्यम से ट्रांसफर होगा।”
इस पृष्ठभूमि में अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि वर्तमान मामले में अपीलकर्ता से कोई सहमति तब नहीं ली गई, जब उसका मूल रूप से UDA में ट्रांसफर किया गया। खंडपीठ ने आगे कहा कि उसके 20.09.2023 के ट्रांसफर ऑर्डर में भी यह उल्लेख नहीं है कि वह प्रतिनियुक्ति पर है।
अपीलकर्ता को स्थानीय स्वशासन विभाग में जूनियर लेखाकार के पद पर नियुक्त किया गया। अधिनियम की धारा 336 के तहत नगर परिषद से UDA में ट्रांसफर कर दिया गया। हालांकि, बाद में UDA ने उसे कार्यमुक्त कर दिया और उसके मूल विभाग में वापस भेज दिया।
इस आदेश को सिंगल जज के समक्ष चुनौती दी गई, जिसे यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि ट्रांसफर प्रतिनियुक्ति पर है, इसलिए UDA को उसे वापस भेजने का अधिकार है। इसलिए अदालत में अपील दायर की गई।
अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि अधिनियम की धारा 336 में "ट्रांसफर" शब्द का प्रयोग किया गया, न कि "प्रतिनियुक्ति", इसलिए अपीलकर्ता के ट्रांसफर को प्रतिनियुक्ति पर नहीं कहा जा सकता। इसके अलावा, यह भी प्रस्तुत किया गया कि प्रतिनियुक्ति में कर्मचारी की सहमति शामिल होती है, जो इस मामले में अनुपस्थित है।
तर्कों पर सुनवाई के बाद अदालत ने माना कि "प्रतिनियुक्ति" के अर्थ से संबंधित कानून सुस्थापित है। इसके तहत एक कर्मचारी को एक संगठन से दूसरे संगठन में स्वैच्छिक रूप से नियुक्त करना आवश्यक है। इसके लिए ऋणदाता नियोक्ता, ऋण लेने वाले नियोक्ता और संबंधित कर्मचारी के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते की आवश्यकता होती है।
अदालत ने कहा,
इसके अलावा, अदालत ने प्रतिवादी के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि चूंकि धारा 366 किसी कर्मचारी के प्रत्यावर्तन पर रोक नहीं लगाती, इसलिए ऐसा नहीं किया जा सकता। यह माना गया कि चूंकि धारा 336 के तहत किसी अधिकारी या सेवा को ट्रांसफर करने की शक्ति विशेष रूप से राज्य को प्रदान की गई, इसलिए पुनः ट्रांसफर/वापस बुलाने/वापस भेजने की शक्ति भी राज्य सरकार में निहित है।
तदनुसार, सिंगल जज और आयुक्त, UDA द्वारा पारित आदेश रद्द कर दिया गया और अपील स्वीकार कर ली गई।
Title: Ravindra Gurjar v State of Rajasthan & Anr.

