बार एसोसिएशन के सदस्यों को हटाने को चुनौती देने वाली राज्य बार काउंसिल के समक्ष याचिका सुनवाई योग्य नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Amir Ahmad

6 Oct 2025 3:23 PM IST

  • बार एसोसिएशन के सदस्यों को हटाने को चुनौती देने वाली राज्य बार काउंसिल के समक्ष याचिका सुनवाई योग्य नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि एक बार एसोसिएशन के सदस्यों द्वारा अपने अवैध निष्कासन के खिलाफ उत्तर प्रदेश राज्य बार काउंसिल के समक्ष दायर याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

    जस्टिस सरल श्रीवास्तव और जस्टिस अमिताभ कुमार राय की खंडपीठ ने नरेश कुमार मिश्रा और तीन अन्य द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया, जिन्हें एकीकृत बार एसोसिएशन, माटी, कानपुर देहात की आम सभा के सदस्यों के पद से हटा दिया गया।

    याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट के समक्ष उत्तर प्रदेश राज्य बार काउंसिल (प्रतिवादी नंबर 1) द्वारा पारित उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें काउंसिल की एक समिति द्वारा उन्हें निष्कासित करने के बार एसोसिएशन के पूर्व निर्णय पर दी गई रोक को हटा दिया गया।

    संक्षेप में याचिकाकर्ताओं को बार एसोसिएशन के सदस्यों के पद से हटा दिया गया। अपने निष्कासन से व्यथित होकर उन्होंने राज्य बार काउंसिल का दरवाजा खटखटाया और आरोप लगाया कि उनका निष्कासन अवैध था।

    उनके आवेदन पर राज्य बार काउंसिल द्वारा गठित समिति ने शुरुआत में निष्कासन आदेश पर रोक लगा दी। अगले ही दिन काउंसिल ने 27 अगस्त, 2025 को पारित विवादित आदेश के माध्यम से स्थगन आदेश रद्द कर दिया।

    सुनवाई के दौरान पीठ ने याचिकाकर्ताओं के वकील से विशेष रूप से पूछा कि क्या कोई कानूनी प्रावधान है, जो उन्हें राज्य बार काउंसिल के समक्ष आवेदन दायर करने की अनुमति देता है।

    वकील ने कहा कि एडवोकेट एक्ट 1961 के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसके तहत उक्त आवेदन दायर किया जा सके, इसलिए याचिकाकर्ताओं ने गलत उपाय किया।

    इस स्वीकारोक्ति पर ध्यान देते हुए कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ताओं द्वारा राज्य बार काउंसिल के समक्ष दायर आवेदन गलत था और सुनवाई योग्य नहीं है। परिणामस्वरूप कोर्ट ने कहा इसके आधार पर शुरू की गई कोई भी कार्यवाही शून्य थी।

    अदालत ने कहा,

    "याचिकाकर्ताओं के वकील द्वारा उपरोक्त स्वीकारोक्ति के मद्देनजर प्रतिवादी नंबर 1 के समक्ष दायर याचिकाकर्ताओं का आवेदन सुनवाई योग्य नहीं है और गलत धारणा पर आधारित है। तदनुसार, प्रतिवादी नंबर 1 द्वारा याचिकाकर्ताओं के आवेदन के अनुसरण में शुरू की गई कोई भी कार्यवाही भी शून्य है।"

    परिणामस्वरूप पीठ ने राज्य बार काउंसिल द्वारा पारित विवादित आदेश रद्द कर दिया और याचिकाकर्ताओं के आवेदन को इस छूट के साथ खारिज कर दिया कि वे बार एसोसिएशन द्वारा पारित निष्कासन आदेश के विरुद्ध कानून के तहत उपलब्ध उचित उपाय अपना सकें।

    इन टिप्पणियों के साथ रिट याचिका को जुर्माना के संबंध में कोई आदेश दिए बिना खारिज कर दिया गया।

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