हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
17 Aug 2025 10:00 AM IST

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (11 अगस्त, 2025 से 15 अगस्त, 2025) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
माता-पिता की निजता का अधिकार, संतान के पितृत्व जानने के अधिकार पर भारी: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने महत्त्वपूर्ण निर्णय में कहा कि कुछ परिस्थितियों में माता-पिता का निजता और गरिमा का अधिकार संतान के पितृत्व जानने के अधिकार पर हावी हो सकता है। अदालत ने DNA टेस्ट कराने के निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा लेकिन पुलिस की ज़बरदस्ती या बल प्रयोग की अनुमति देने वाले हिस्से को हटा दिया।
जस्टिस अर्चना पुरी ने कहा कि बच्चे को अपने पितृत्व की सच्चाई जानने का अधिकार है। विशेषकर तब जब पिता होने से इंकार किया गया हो। उन्होंने कहा कि न्याय के हित में यह आवश्यक है कि सत्य सामने आए, क्योंकि सत्य को स्थापित किया ही जा सकता है।
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DV Act की धारा 31 के तहत आपराधिक दायित्व तभी, जब धारा 12 से 23 के तहत पारित संरक्षण आदेश का उल्लंघन हो: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 (Domestic Violence Act) की धारा 31 के तहत आपराधिक कार्यवाही तभी शुरू हो सकती है, जब मजिस्ट्रेट द्वारा एक्ट की धारा 12 से 23 के अंतर्गत पारित संरक्षण आदेश या अंतरिम संरक्षण आदेश का उल्लंघन किया गया हो।
जस्टिस विनोद दिवाकर ने कहा, “यदि पहले से कोई संरक्षण आदेश पारित नहीं हुआ तो पुलिस को सीधे एक्ट की धारा 31 के तहत FIR दर्ज करने का अधिकार नहीं है। एक्ट की प्रक्रिया यह है कि पहले नागरिक कार्यवाही के तहत आदेश पारित हो और केवल उसके उल्लंघन पर ही आपराधिक दायित्व उत्पन्न होगा।”
केस टाइटल : सत्तार अहमद एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
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पत्नी का कभी-कभार शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना पति के साथ क्रूरता नहीं : मध्यप्रदेश हाईकोर्ट
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में यह टिप्पणी की कि पत्नी का कभी-कभार पति के साथ सहवास से इनकार करना हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13(1)(i-a) के तहत क्रूरता नहीं माना जा सकता, जब तक कि निरंतर रूप से दांपत्य संबंधों से इनकार न किया गया हो। जस्टिस विशाल धागट और जस्टिस रामकुमार चौबे की खंडपीठ ने यह कहते हुए पति द्वारा दायर प्रथम अपील को खारिज कर दिया कि फैमिली कोर्ट द्वारा तलाक याचिका को ठुकराना सही था।
केस टाइटल : जितेन्द्र जानी बनाम भूमि जानी
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3 लाख से 1 करोड़ तक के मूल्य वाले ट्रेडमार्क उल्लंघन विवादों की सुनवाई सिविल जज (सीनियर डिवीजन) करेंगे: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि राज्य में जहां किसी कमर्शियल विवाद का मूल्य 3 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये तक है, वहां सिविल जज (वरिष्ठ प्रभाग), जिसे सिविल कोर्ट के रूप में नामित किया गया है, उनको ट्रेडमार्क उल्लंघन के मामलों की सुनवाई करने का अधिकार है।
चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने यह निर्णय खाद्य उत्पाद कंपनी खेमका फूड प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर अपील स्वीकार करते हुए दिया। यह अपील 2024 में सिविल जज (वरिष्ठ प्रभाग)-प्रथम, जमशेदपुर द्वारा दिए गए उस आदेश के विरुद्ध थी, जिसमें वादपत्र यह कहते हुए लौटाने का निर्देश दिया गया कि इसे अधिकार क्षेत्र वाली अन्य अदालत में प्रस्तुत किया जाए।
केस टाइटल : खेमका फूड प्रोडक्ट्स प्रा. लि. बनाम आई.एस.डी.एस. प्रा. लि. एवं अन्य
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कॉन्ट्रैक्ट जॉब में मिली मातृत्व अवकाश रेगुलर नौकरी में भी जारी रहेगी: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि अनुबंध पर काम करने के दौरान स्वीकृत मातृत्व अवकाश को केवल इसलिए कम नहीं किया जा सकता क्योंकि उसने नियमितीकरण के समय मेडिकल फिटनेस प्रमाण पत्र जमा किया था। छुट्टी रद्द करने के राज्य के आदेश को रद्द करते हुए जस्टिस संदीप शर्मा ने टिप्पणी की कि, "मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट जमा करने से उत्तरदाताओं को याचिकाकर्ता को 21.8.2021 से 180 दिनों की अवधि के लिए दिए गए मातृत्व अवकाश को कम करने का कोई अधिकार नहीं मिल सकता था।
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ग्राम पंचायत के नए प्रतिनिधि पुराने फैसले रद्द नहीं कर सकते: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट (नागपुर बेंच) ने माना है कि ग्रामपंचायत के निर्वाचित निकाय में बाद में बदलाव, अपने आप में, अपने पहले निकाय द्वारा पारित निर्णयों या प्रस्तावों को रद्द करने का औचित्य नहीं ठहराता है। ऐसा दृष्टिकोण स्थानीय प्रशासन की स्थिरता को कमजोर करेगा और पंचायती राज संस्थाओं के उद्देश्य के विपरीत है।
जस्टिस श्रीमती एमएस जावलकर और जस्टिस प्रवीण एस. पाटिल की खंडपीठ सिद्धार्थ ईश्वर मोटघरे द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला परिषद, वर्धा के 22 दिसंबर, 2023 के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसने ग्राम पंचायत अंतरगांव में एक चपरासी की भर्ती को रद्द कर दिया था। जून 2022 में नियुक्त और बाद में फरवरी 2023 में पुष्टि की गई याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि रद्दीकरण राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए एक सरकारी प्रस्ताव के गलत उपयोग पर आधारित था, जो ग्रामपंचायत कर्मचारियों पर लागू नहीं होता है।
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रोजगार अनुबंधों में सेवा समाप्ति के बाद के प्रतिबंधात्मक अनुबंध अनुबंध अधिनियम की धारा 27 के तहत अमान्य: दिल्ली हाईकोर्ट
जस्टिस जसमीत सिंह की दिल्ली हाईकोर्ट की पीठ ने माना कि रोजगार अनुबंधों में सेवा-पश्चात के प्रतिबंधात्मक अनुबंध, जो रोजगार समाप्ति के बाद प्रभावी होते हैं, अमान्य हैं और भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 (Contract Act) की धारा 27 के तहत प्रवर्तनीय नहीं हैं और संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) का उल्लंघन करते हैं।
न्यायालय ने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (Arbitration Act) की धारा 9 के तहत आवेदन में दिए गए निषेधाज्ञा रद्द की, जिसने प्रतिवादियों को उनके रोजगार अनुबंधों की समाप्ति के बाद प्रतिस्पर्धी व्यवसाय में संलग्न होने से रोक दिया।
Case Title: Neosky India Limited & Anr. v. Mr. Nagendran Kandasamy & Ors.
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[Section 223 BNSS] अभियुक्तों को सुने बिना ED की शिकायत पर संज्ञान नहीं लिया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि विशेष अदालत अभियुक्तों को सुनवाई का अवसर दिए बिना प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा दायर शिकायत पर संज्ञान नहीं ले सकती। जस्टिस रविंदर डुडेजा ने PMLA मामले में एक अभियुक्त की याचिका को खारिज करते हुए स्पेशल जज का आदेश रद्द कर दिया, जिसमें भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 223 के प्रावधान के तहत धन शोधन मामले में संज्ञान-पूर्व सुनवाई की मांग की गई।
न्यायालय ने कहा कि यह आदेश धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) के तहत दायर अभियोजन शिकायत पर BNSS की धारा 223 की प्रयोज्यता को समझने में विफल रहा।
Title: Lakshay Vij v. ED
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Delhi Judicial Services Rules | रिक्तियों के भरे जाने के बाद नियुक्त उम्मीदवार के त्यागपत्र देने पर भी प्रतीक्षा सूची में शामिल उम्मीदवार सेवा में शामिल नहीं हो सकता: हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि दिल्ली न्यायिक सेवा नियम 1970 के अनुसार, यदि न्यायिक अधिकारियों के सभी रिक्त पद शुरू में भर दिए जाते हैं। बाद में कोई नियुक्त जज त्यागपत्र दे देता है तो ऐसी रिक्तियों को नई रिक्तियां माना जाता है, जिन्हें प्रतीक्षा सूची में अगले स्थान पर मौजूद उम्मीदवार द्वारा नहीं भरा जा सकता।
जस्टिस सी. हरि शंकर और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने कहा, “नियम 18(vi) के अनुसार, नियम 18 के खंड (v) के आधार पर रिक्ति उत्पन्न होने की स्थिति में ही चयन सूची का उपयोग केवल नियुक्ति के उद्देश्य से किया जाएगा। दुर्भाग्य से, नियम 18(v) केवल उम्मीदवार द्वारा सेवा में शामिल न होने की बात करता है। किसी भी संभावित स्थिति की परिकल्पना नहीं करता है, जैसे कि त्यागपत्र, मृत्यु, उम्मीदवारी अवैध घोषित होने आदि के कारण सेवा में शामिल होने के बाद सीटें खाली हो सकती हैं।”
Case title: Aadya Antya v. High Court Of Delhi Through Registrar General
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परिवार की जातिगत आपत्तियों के बावजूद शादी का वादा करके शारीरिक संबंध बनाना बेईमानी दर्शाता है और बलात्कार माना जाता है: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि यह जानते हुए कि शादी असंभव है, शुरू से ही शादी करने के झूठे वादे के आधार पर किसी महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाना बलात्कार का अपराध माना जाएगा।
जस्टिस स्वर्णकांत शर्मा ने कहा, "आरोपी द्वारा यह अच्छी तरह जानते हुए कि उसके परिवार में जातिगत कारणों से शादी संभव नहीं है, लंबे समय तक शारीरिक संबंध बनाए रखना दर्शाता है कि शादी का वादा बेईमानी से किया गया, केवल यौन लाभ प्राप्त करने के लिए। ऐसा वादा, जिसे शुरू से ही पूरा करने के इरादे के बिना किया गया हो, न्यायिक उदाहरणों के अनुसार IPC की धारा 376 के दायरे में आता है।"
Title: STATE (GOVT OF NCT OF DELHI) v. GAURANG KADYAN
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NCMEI के पास शैक्षणिक संस्थानों का अल्पसंख्यक दर्जा घोषित करने का विशेष अधिकार; 1999 का सरकारी आदेश अब प्रासंगिक नहीं रहा: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें ग्रेटर नोएडा स्थित शारदा विश्वविद्यालय को चल रही नीट काउंसलिंग में भाग लेने वाले कॉलेजों की सूची में शामिल करने के अनुरोध को खारिज कर दिया गया था। उत्तर प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण महानिदेशक (डीजीएमई) द्वारा पारित यह अस्वीकृति आदेश इस तथ्य पर आधारित था कि विश्वविद्यालय को दिया गया अल्पसंख्यक दर्जा 28 अगस्त, 1999 के सरकारी आदेश के अनुरूप नहीं था।
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मजिस्ट्रेट/सेशन कोर्ट डिफ़ॉल्ट बेल देने में सक्षम, भले ही नियमित जमानत याचिका हाईकोर्ट में लंबित हो: P&H हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि मजिस्ट्रेट या सत्र न्यायालय, जैसा भी मामला हो, किसी अभियुक्त को डिफ़ॉल्ट ज़मानत देने का अधिकार रखता है, भले ही नियमित ज़मानत आवेदन सत्र न्यायालय या उच्च न्यायालय में लंबित हो।
यह घटनाक्रम एक नियमित ज़मानत याचिका पर सुनवाई के दौरान सामने आया, जिसमें आवेदन के लंबित रहने के दौरान, अभियुक्त ने 3 महीने पूरे कर लिए थे और मजिस्ट्रेट ने सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत डिफ़ॉल्ट ज़मानत दे दी थी, जो धारा 187(3) बीएनएसएस के अनुरूप है।
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आरोपियों को 'एकल' जमानत पर रिहा करें; गिरफ्तारी के बिना आरोपपत्र दाखिल होने पर उन्हें हिरासत में न भेजें: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी की अदालतों को निर्देश दिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश की सभी निचली अदालतों के लिए एक समान निचली अदालती कार्यप्रणाली सुनिश्चित करने, अनुच्छेद 21 के तहत संवैधानिक गारंटियों को प्रभावी बनाने और इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के बाध्यकारी निर्देशों को लागू करने हेतु व्यापक निर्देश जारी किए हैं।
संविधान के अनुच्छेद 227 और धारा 528 BNSS के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए, जस्टिस विनोद दिवाकर की पीठ ने मंगलवार को निर्देश दिया कि उन सभी मामलों में जहां बिना गिरफ्तारी के आरोपपत्र दायर किया गया है, चाहे इसलिए कि जांच के दौरान हिरासत में पूछताछ प्रभावित नहीं हुई हो या अभियुक्त ने अनुच्छेद 226 या धारा 528 BNSS के तहत अग्रिम ज़मानत/सुरक्षा आदेश प्राप्त कर लिए हों।
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सत्र न्यायालय अग्रिम जमानत मांगने वाले अभियुक्तों को S.41A CrPC/S.35 BNSS के तहत राहत के लिए पुलिस के पास जाने से नहीं रोक सकता: पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट ने कहा कि सत्र न्यायालय अग्रिम ज़मानत चाहने वाले अभियुक्तों को S.41A CrPC/S.35 BNSS के तहत राहत के लिए पुलिस के पास जाने के लिए नहीं कह सकते। ऐसा करते हुए न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सक्षम न्यायालय अपने दरवाज़े बंद नहीं कर सकते और याचिकाकर्ताओं को उनकी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अन्य मंचों पर जाने के लिए नहीं कह सकते।
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सिर्फ आधार, पैन और वोटर आईडी होना भारतीय नागरिकता का सबूत नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कथित बांग्लादेशी नागरिक को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था कि केवल आधार कार्ड, पैन कार्ड या मतदाता पहचान पत्र जैसे दस्तावेज होने से कोई व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं हो जाता है और संबंधित व्यक्ति को इन दस्तावेजों के सत्यापन को रिकॉर्ड में रखना होगा।
एक एकल कोर्ट ने याचिकाकर्ता को जमानत देने से इनकार कर दिया, जिसे पिछले साल ठाणे पुलिस ने इस आधार पर बुक किया था कि वह एक बांग्लादेशी नागरिक है और उसने भारतीय अधिकारियों को गुमराह किया और आधार कार्ड, पैन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र, आयकर रिकॉर्ड, गैस और बिजली कनेक्शन प्राप्त किए।
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'मुबारात' से तलाक के लिए लिखित समझौता जरूरी नहीं, मुस्लिम दंपति की मौखिक सहमति पर्याप्त: गुजरात हाईकोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि मुस्लिम कानून के तहत, जब कोई जोड़ा पारस्परिक रूप से अपनी शादी यानी मुबारत को भंग करने का फैसला करता है, तो वे लिखित समझौते के बिना आपसी मौखिक सहमति के माध्यम से ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं। मुस्लिम कानून के तहत मुबारत की प्रक्रिया पति और पत्नी के बीच आपसी सहमति के माध्यम से तलाक / अदालत पति और पत्नी द्वारा संयुक्त रूप से दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 19 अप्रैल के पारिवारिक अदालत के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें पारिवारिक मुकदमा इसे बनाए रखने योग्य नहीं मानते हुए खारिज कर दिया गया था। उन्होंने दावा किया कि परिवार अदालत ने यह घोषित करने में गलती की थी कि 'मुबारत' के माध्यम से पार्टियों की शादी का विघटन सुनवाई योग्य नहीं है।
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S.58 BNSS | गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश न होने पर आरोपी को जमानत दी जानी चाहिए: उड़ीसा हाईकोर्ट
उड़ीसा हाईकोर्ट ने दोहराया कि गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर पुलिस/जांच एजेंसी द्वारा किसी आरोपी को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश न करना गिरफ्तारी को ही अमान्य कर देगा, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 22(2) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 58 के तहत प्रदत्त सुरक्षा उपायों का उल्लंघन है। जस्टिस गौरीशंकर सतपथी की पीठ ने दो आरोपियों को जमानत पर रिहा करते हुए यह भी कहा कि इस तरह की चूक आरोपी के हित में है, जिसे तुरंत जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए।
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सेवा में दिव्यांग होने पर रिटायरमेंट आयु बढ़ाई जा सकती है: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि एक सरकारी कर्मचारी जो सेवा के दौरान बेंचमार्क विकलांगता प्राप्त करता है, वह राज्य की नीति के तहत विस्तारित सेवानिवृत्ति की आयु के लाभ का हकदार है, भले ही उसे विकलांग कोटा के तहत नियुक्त नहीं किया गया हो।
राज्य सरकार की दलील को खारिज करते हुए जस्टिस ज्योत्सना रेवाल दुआ ने कहा, 'केवल इसलिए कि कोई व्यक्ति सेवा के दौरान दिव्यांग है, उसे उस व्यक्ति के साथ भेदभाव करने का कोई वैध आधार नहीं मिलता है, जो शारीरिक रूप से अक्षम है और सेवानिवृत्ति की आयु तय करने के उद्देश्य से विकलांग कोटा के तहत सेवा में शामिल किया गया है'
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ठेका कर्मचारी को मातृत्व अवकाश न देना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत किसी अनुबंधित कर्मचारी को मातृत्व अवकाश नहीं देना उनके रोजगार की प्रकृति के आधार पर भेदभाव होगा और इस तरह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा जो कानून के समान संरक्षण की गारंटी देता है।
जस्टिस अमन चौधरी ने कहा, "मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961, भारत के संविधान के अनुच्छेद 39 और 42 के अनुरूप अधिनियमित गर्भावस्था और मातृत्व के दौरान कामकाजी महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया कानून का एक लाभकारी हिस्सा है। उनके बीच भेदभाव करना, उनकी नियुक्ति/नियुक्ति की प्रकृति के आधार पर, यह नियमित या अनुबंध पर होना भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा, जिसके द्वारा कानून के समक्ष समानता और कानूनों का समान संरक्षण सुनिश्चित किया जाता है।

