DV Act की धारा 31 के तहत आपराधिक दायित्व तभी, जब धारा 12 से 23 के तहत पारित संरक्षण आदेश का उल्लंघन हो: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Amir Ahmad
16 Aug 2025 4:48 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 (Domestic Violence Act) की धारा 31 के तहत आपराधिक कार्यवाही तभी शुरू हो सकती है, जब मजिस्ट्रेट द्वारा एक्ट की धारा 12 से 23 के अंतर्गत पारित संरक्षण आदेश या अंतरिम संरक्षण आदेश का उल्लंघन किया गया हो।
जस्टिस विनोद दिवाकर ने कहा,
“यदि पहले से कोई संरक्षण आदेश पारित नहीं हुआ तो पुलिस को सीधे एक्ट की धारा 31 के तहत FIR दर्ज करने का अधिकार नहीं है। एक्ट की प्रक्रिया यह है कि पहले नागरिक कार्यवाही के तहत आदेश पारित हो और केवल उसके उल्लंघन पर ही आपराधिक दायित्व उत्पन्न होगा।”
मामला
आवेदकों ने एक्ट की धारा 31 के तहत दर्ज FIR को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। उन्होंने कहा कि FIR दर्ज करना विधि विरुद्ध है। दोनों पक्षकारों में पहले ही समझौता हो चुका है।
तत्कालीन एसीजेएम रामपुर से यह पूछा गया कि मामले में संज्ञान लेने का आधार क्या था।
जवाब में कहा गया कि पुलिस रिपोर्ट को CrPC की धारा 2(ड) के तहत शिकायत मानकर संज्ञान लिया गया।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि 2005 का यह अधिनियम विशेष कानून है। इसमें आईपीसी की तरह सीधे FIR दर्ज करने का प्रावधान नहीं है। इसमें केवल वही अपराध संज्ञेय है, जो संरक्षण आदेश का उल्लंघन हो।
अदालत ने कहा कि एक्ट की धारा 31 का उद्देश्य प्रतिवादी को संरक्षण आदेश की अवहेलना से रोकना है। यदि कोई संरक्षण आदेश अस्तित्व में ही नहीं है तो एक्ट की धारा 31 के तहत संज्ञेय अपराध नहीं बनता।
न्यायालय ने कहा,
“एक्ट की धारा 31 के तहत अपराध केवल तभी बनता है, जब मजिस्ट्रेट द्वारा पारित संरक्षण आदेश या अंतरिम संरक्षण आदेश का उल्लंघन हो। इसके अभाव में कोई संज्ञेय अपराध नहीं कहा जा सकता।”
अदालत ने कहा कि पुलिस रिपोर्ट को शिकायत मानना DV Act के अनुरूप नहीं था। एडिशनल जिला एवं सेशन जज, गाज़ियाबाद द्वारा दी गई व्याख्या को त्रुटिपूर्ण मानते हुए उन्हें भविष्य में सावधानी बरतने की चेतावनी दी।
न्यायालय ने पूरी कार्यवाही को निरस्त कर दिया और कहा कि यदि यह केवल तथ्यात्मक भूल होती तो विस्तृत आदेश देने की आवश्यकता नहीं थी, लेकिन सीनियर न्यायिक अधिकारी की त्रुटिपूर्ण व्याख्या ने विस्तृत आदेश देना अनिवार्य कर दिया।
केस टाइटल : सत्तार अहमद एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य

