3 लाख से 1 करोड़ तक के मूल्य वाले ट्रेडमार्क उल्लंघन विवादों की सुनवाई सिविल जज (सीनियर डिवीजन) करेंगे: झारखंड हाईकोर्ट

Amir Ahmad

16 Aug 2025 12:54 PM IST

  • 3 लाख से 1 करोड़ तक के मूल्य वाले ट्रेडमार्क उल्लंघन विवादों की सुनवाई सिविल जज (सीनियर डिवीजन) करेंगे: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि राज्य में जहां किसी कमर्शियल विवाद का मूल्य 3 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये तक है, वहां सिविल जज (वरिष्ठ प्रभाग), जिसे सिविल कोर्ट के रूप में नामित किया गया है, उनको ट्रेडमार्क उल्लंघन के मामलों की सुनवाई करने का अधिकार है।

    चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने यह निर्णय खाद्य उत्पाद कंपनी खेमका फूड प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर अपील स्वीकार करते हुए दिया। यह अपील 2024 में सिविल जज (वरिष्ठ प्रभाग)-प्रथम, जमशेदपुर द्वारा दिए गए उस आदेश के विरुद्ध थी, जिसमें वादपत्र यह कहते हुए लौटाने का निर्देश दिया गया कि इसे अधिकार क्षेत्र वाली अन्य अदालत में प्रस्तुत किया जाए।

    संक्षेप में मामला

    अपीलकर्ता कंपनी का कारोबार वर्ष 1970 में प्रारम्भ हुआ वर्ष 1999 में इसका निगमकरण हुआ और वर्ष 2001 में इसने गेहूँ का आटा उत्पादन शुरू किया। कंपनी ने 'गृहस्थी भोग' नामक चिन्ह अपनाया और इसके पंजीकरण हेतु 2005, 2012 और 2014 में आवेदन किए किन्तु बाद में वे परित्यक्त हो गए।

    फरवरी, 2023 में कंपनी को ज्ञात हुआ कि प्रतिवादी संस्था गृहस्थी भोग नाम से आटा बेच रही है। इस पर 10 मार्च 2023 को उन्हें निषेध सूचना भेजी गई।

    अप्रैल, 2023 में कंपनी ने वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 की धारा 12(क) के अंतर्गत जिला विधिक सेवा प्राधिकरण जमशेदपुर में प्रार्थना पत्र दायर किया। किन्तु प्रतिवादियों ने मध्यस्थता से इंकार कर दिया और सचिव द्वारा असफलता प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया।

    इसके उपरान्त 14 अगस्त, 2023 को कंपनी ने ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 की धारा 134 के अंतर्गत सिविल जज (वरिष्ठ प्रभाग)-प्रथम सह वाणिज्यिक न्यायालय जमशेदपुर में वाद प्रस्तुत किया।

    प्रतिवादियों ने लिखित प्रतिवेदन देकर यह दावा किया कि वे वर्ष 2022 से इस नाम का प्रयोग कर रहे हैं। तत्पश्चात उन्होंने आवेदन देकर यह आपत्ति उठाई कि इस न्यायालय के पास अधिकार क्षेत्र नहीं है। उनका तर्क था कि इस प्रकार के वाद केवल एडिशनल जिला एवं सेशन जज अथवा न्यायिक आयुक्त ही सुन सकते हैं। 29 जुलाई, 2024 को निचली अदालत ने यह आपत्ति स्वीकार कर वादपत्र लौटा दिया।

    इस आदेश को चुनौती देते हुए कंपनी ने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया और कहा कि यह विवाद वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम की परिभाषा के अंतर्गत आता है। साथ ही 8 फरवरी, 2021 को राज्य सरकार द्वारा हाईकोर्ट की सहमति से जारी अधिसूचना में स्पष्ट किया गया कि 3 लाख से 1 करोड़ रुपये तक के वाणिज्यिक विवादों की सुनवाई सिविल जज (वरिष्ठ प्रभाग) करेंगे।

    हाईकोर्ट का निर्णय

    हाईकोर्ट ने कॉमर्शियल कोर्ट एक्ट तथा उसके 2018 के संशोधन का परीक्षण किया और कहा कि अब 3 लाख से 1 करोड़ रुपये तक के वाद भी इसकी परिधि में आते हैं तथा राज्य को यह अधिकार है कि वह जिला जज स्तर से नीचे की अदालतों को भी कॉमर्शियल कोर्ट के रूप में नामित करे।

    अदालत ने कहा,

    “संसद का उद्देश्य स्पष्ट था कि कॉमर्शियल कोर्ट का दायरा बढ़ाया जाए। चूंकि विवाद का निर्धारित मूल्य घटाया गया, इसलिए यह स्वाभाविक था कि जिला जज से नीचे की अदालतों को भी कॉमर्शियल कोर्ट घोषित किया जाए।”

    हाईकोर्ट ने यह भी पाया कि झारखंड में जारी अधिसूचना के अनुसार सिविल जज (वरिष्ठ प्रभाग) को कॉमर्शियल कोर्ट तथा जिला जज को वाणिज्यिक अपीलीय न्यायालय नामित किया गया।

    खंडपीठ ने यह टिप्पणी भी की कि निचली अदालत ने 'जिला कोर्ट' शब्द को केवल 'जिला जज' मानकर गंभीर त्रुटि की।

    खंडपीठ ने कहा,

    “ट्रेडमार्क एक्ट की धारा 134 स्पष्ट करती है कि वाद उस जिला कोर्ट में दायर किया जा सकता है, जिसके पास क्षेत्राधिकार है, न कि केवल जिला जज के समक्ष।”

    इस प्रकार, हाईकोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए 29 जुलाई, 2024 का आदेश निरस्त कर दिया तथा वाद को उसकी मूल स्थिति में बहाल करने का निर्देश दिया। साथ ही निचली अदालत को विधि के अनुसार कार्यवाही आगे बढ़ाने का आदेश दिया।

    केस टाइटल : खेमका फूड प्रोडक्ट्स प्रा. लि. बनाम आई.एस.डी.एस. प्रा. लि. एवं अन्य

    Next Story