हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
13 July 2025 4:30 AM

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (07 जुलाई, 2025 से 11 जुलाई, 2025) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
S.138 NI Act | स्वामित्व साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं दिया जाता है तो शिकायतकर्ता को आदाता नहीं माना जा सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि जब कोई शिकायतकर्ता किसी एकल स्वामित्व वाली संस्था का स्वामित्व साबित करने में विफल रहता है तो उसे परक्राम्य लिखत अधिनियम (NI Act) की धारा 138 के तहत आदाता या धारक नहीं माना जा सकता। न्यायालय ने कहा कि शिकायत दर्ज होने के बाद जारी किया गया मात्र अधिकार पत्र ही प्राधिकरण का पर्याप्त प्रमाण नहीं है।
जस्टिस राकेश कैंथला: "चूंकि वर्तमान मामले में यह दर्शाने के लिए कोई संतोषजनक सबूत पेश नहीं किया गया कि शिकायतकर्ता शिरगुल फिलिंग स्टेशन का मालिक है, इसलिए निचली अदालत ने सही ही माना था कि शिकायतकर्ता आदाता की परिभाषा में नहीं आता और वह NI Act की धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज करने का हकदार नहीं है।"
Case Name: Shirgul Filling Station V/s Kamal Sharma
केवल सरकारी और स्थानीय निकाय ही सार्वजनिक स्थानों पर मूर्तियां स्थापित करने के लिए अधिकृत: एमपी हाईकोर्ट
माकडोन में सार्वजनिक भूमि पर एक मूर्ति स्थापित करने के कथित अवैध प्रयास के खिलाफ एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि सरकार और स्थानीय निकायों के अलावा, किसी भी निजी व्यक्ति, धार्मिक संस्था, गैर सरकारी संगठन या संघ को सार्वजनिक स्थानों पर मूर्तियां स्थापित करने का अधिकार नहीं है।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
दंपत्ति के बीच वैवाहिक कलह पत्नी के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध स्थापित करने के लिए पर्याप्त नहीं: P&H हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पति को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में एक पत्नी की नियमित ज़मानत याचिका स्वीकार कर ली। न्यायालय ने कहा कि सिर्फ़ वैवाहिक कलह ही अपराध की श्रेणी में नहीं आता। आरोप लगाया गया था कि पति अपनी पत्नी से इसलिए नाराज़ रहता था क्योंकि वह कथित तौर पर किसी अन्य पुरुष के साथ संबंध रखती थी।
जस्टिस संदीप मौदगिल ने कहा, "जो भी हो, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि राज्य सरकार याचिकाकर्ता की ओर से तत्काल उकसावे या उकसावे को साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत पेश करने में विफल रही है, खासकर सुसाइड नोट के अभाव में। अन्य तर्कों के अनुसार, याचिकाकर्ता और मृतक के बीच ग़लतफ़हमी और कलह के कारण सीधे आरोप लगाए गए थे और अक्सर झगड़े होते थे, ये सिर्फ़ आईपीसी की धारा 306 के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं आते।"
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
विदेशी विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत नहीं होने वाली शादियां अमान्य नहीं हैं, बल्कि शासित पक्षों के पर्सनल लॉ के आधार पर वैध हो सकती हैं: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि विदेशी विवाह अधिनियम, 1969 के प्रावधानों की व्याख्या उद्देश्यपूर्ण और समावेशी तरीके से की जानी चाहिए, ताकि प्रक्रियागत अनियमितताओं के कारण वास्तविक संबंधों को कानूनी संरक्षण से वंचित न किया जाए।
जस्टिस रामचंद्र डी हुद्दार ने आगे स्पष्ट किया कि "भले ही कोई विवाह विदेशी विवाह अधिनियम, 1969 के तहत पंजीकृत न हो, फिर भी उसे अंतरिम उद्देश्यों के लिए भारतीय कानून के तहत वैध विवाह माना जा सकता है, खासकर जब विवाह का दावा करने वाला पक्ष फोटो, निवास प्रमाण, संयुक्त खाता या पत्राचार जैसे दस्तावेजों के साथ इसका समर्थन करता है।"
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
'SEBI की वार्षिक रिपोर्ट RTI की धारा 11 की प्रक्रिया के बिना सार्वजनिक नहीं की जा सकती': बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि RTI Act, 2005 के तहत एनएसई और बीएसई जैसे स्टॉक एक्सचेंजों सहित तीसरे पक्ष से संबंधित किसी भी जानकारी का खुलासा करने से पहले, संबंधित प्राधिकरण को अधिनियम की धारा 11 में निर्धारित अनिवार्य प्रक्रिया का सख्ती से पालन करना चाहिए।
जस्टिस एमएस सोनक और जस्टिस जितेंद्र जैन की खंडपीठ ने पारदर्शिता कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल द्वारा दायर एक आरटीआई आवेदन से उत्पन्न रिट याचिकाओं के एक बैच में यह फैसला सुनाया, जिसमें सेबी द्वारा जनहित निदेशकों की नियुक्ति और बीएसई, एनएसई और एमसीएक्स जैसे संस्थानों की निरीक्षण रिपोर्ट के बारे में जानकारी मांगी गई थी।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
रीति-रिवाजों, सहवास और बच्चे के जन्म द्वारा समर्थित विवाह को CrPC की धारा 125 के प्रयोजनों के लिए वैध विवाह माना जाना चाहिए: पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट ने कहा है कि जब कोई विवाह रीति-रिवाजों, सहवास, सामाजिक स्वीकृति और बच्चों के जन्म द्वारा मान्य हो, तो उसे धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण की मांग के लिए कानूनी रूप से वैध माना जाना चाहिए। जस्टिस बिबेक चौधरी की पीठ ने कहा कि इस तरह के विवाह की अवहेलना न केवल कानूनी रूप से अस्वीकार्य होगी, बल्कि समाज में एक प्रतिगामी संदेश भी भेजेगी, जिससे महिलाओं की गरिमा और ऐसे संबंधों से पैदा हुए बच्चों की सुरक्षा को ठेस पहुंचेगी।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
राजस्व अधिकारियों की ओर से की गई प्रक्रियात्मक चूक हिमाचल प्रदेश नौवहन नियमों के तहत प्राप्त मूल अधिकारों को विफल नहीं कर सकती: HP हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि राजस्व प्राधिकारी द्वारा की गई प्रक्रियात्मक चूक किसी पक्षकार को प्राप्त मूल अधिकारों को नष्ट नहीं कर सकती। न्यायालय ने कहा कि अभिलेखों को अद्यतन करने में राजस्व प्राधिकारियों की प्रक्रियात्मक चूक के कारण, याचिकाकर्ता, जो एक पूर्व सैनिक है, को हिमाचल प्रदेश नौवहन भूमि नियम, 1968 के तहत उसे आवंटित वन भूमि पर उसके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
किसी घटना या भारत का उल्लेख किए बिना केवल पाकिस्तान का समर्थन करना BNS की धारा 152 के अंतर्गत नहीं आता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि किसी घटना का उल्लेख किए बिना या भारत का नाम लिए बिना केवल पाकिस्तान का समर्थन करना, प्रथम दृष्टया, भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 के तहत अपराध नहीं बनता है, जो भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों को दंडित करती है। जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने यह टिप्पणी एक 18 वर्षीय लड़के [रियाज़] को ज़मानत देते हुए की। रियाज़ पर BNS की धारा 152 और धारा 196 के तहत कथित तौर पर एक इंस्टाग्राम स्टोरी पोस्ट करने का आरोप है।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
'सड़क बनाने के लिए मालिक की बात सुने बिना इमारत नहीं गिराई जा सकती': बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई नगर निगम अधिनियम, 1888 (MMC Act) की धारा 291 के तहत ग्रेटर मुंबई नगर निगम (MCGM) द्वारा नई सड़क लाइन (RL) की मंज़ूरी रद्द की। कोर्ट ने कहा है कि यह कदम बिना सोचे-समझे उठाया गया और ज़मीन मालिक के सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन है। चीफ जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस संदीप वी. मार्ने की खंडपीठ राघवेंद्र कंस्ट्रक्शन कंपनी प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसकी संपत्ति से होकर सड़क बनाने की मंज़ूरी देने के फैसले को चुनौती दी गई थी।
Case Title: Raghavendra Construction Company Pvt. Ltd. v. Municipal Commissioner & Ors. [Writ Petition No. 2207 of 2025]
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
ससुराल वालों को सौंपे गए सोने को वापस पाने के लिए विवाहित महिला को देना होगा सबूत? हाईकोर्ट ने किया फैसला
केरल हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अदालतें शादी के समय अपने ससुराल वालों को सौंपे गए सोने के आभूषणों का दावा करने वाली महिला से सख्त सबूत की मांग नहीं कर सकतीं। जस्टिस देवन रामचंद्रन और जस्टिस एम.बी. स्नेहलता की खंडपीठ ने कहा, “ज़्यादातर भारतीय घरों में, दुल्हन द्वारा अपने ससुराल वालों को सोने के आभूषण सौंपना वैवाहिक घर की चारदीवारी के भीतर होता है। नवविवाहित महिला अपने पति या ससुराल वालों को आभूषण सौंपते समय रसीद या स्वतंत्र गवाहों की मांग करने की स्थिति में नहीं होगी। ऐसे लेन-देन की घरेलू और अनौपचारिक प्रकृति के कारण वह सौंपे गए आभूषणों को साबित करने के लिए दस्तावेज़ या स्वतंत्र गवाह पेश करने की स्थिति में नहीं होगी।”
Case Title - X & Anr v Y
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
आपराधिक शिकायत शुरू करने के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का एआर अंतुले का फैसला रिट याचिकाओं पर लागू नहीं होता: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में रियल एस्टेट कंपनी मेसर्स आईआरईओ रेजिडेंसेज के खिलाफ अदालत की निगरानी में प्रवर्तन निदेशालय (ED) से जांच कराने की मांग वाली कई रिट याचिकाओं को जुर्माने के साथ खारिज कर दिया, जिसमें कथित तौर पर घर खरीदारों को धोखा देने और ₹4,000 करोड़ से अधिक की धनराशि की हेराफेरी करने का आरोप लगाया गया था। जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा ने कहा कि याचिकाकर्ता न तो घर खरीदार था और न ही कंपनी के कथित कृत्यों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित था।
Case title: Gulshan Babbar Advocate v. GNCTD (and batch)
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
दिल्ली में जारी OBC सर्टिफिकेट को 'माइग्रेंट' नहीं माना जा सकता, भले ही वह पिता के अन्य राज्य के सर्टिफिकेट पर आधारित हो: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में दिल्ली सरकार द्वारा एक उम्मीदवार को जारी OBC सर्टिफिकेट को केवल इसलिए 'माइग्रेंट' मानने से इनकार कर दिया, क्योंकि वह उसके पिता के उत्तर प्रदेश में जारी जाति सर्टिफिकेट के आधार पर बना था। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जब सर्टिफिकेट दिल्ली के अधिकारियों द्वारा जारी किया गया तो उसे माइग्रेंट प्रमाणपत्र नहीं कहा जा सकता।
केस टाइटल: GNCTD बनाम निशा.
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
'व्यभिचार करना' और 'व्यभिचार में रहना' अलग बातें हैं, केवल एक बार की चूक पर नहीं रोका जा सकता गुज़ारा भत्ता: पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट ने गुजारा भत्ता पाने के अधिकार का निर्धारण करने के लिए पत्नी द्वारा 'व्यभिचार करने' और 'व्यभिचार में रहने' के बीच अंतर स्पष्ट किया। जस्टिस जितेंद्र कुमार ने कहा, "व्यभिचार में रहना" आचरण के एक सतत क्रम को दर्शाता है, न कि अनैतिकता के छिटपुट कृत्यों को। सद्गुणों से एक या दो चूक व्यभिचार के कृत्य माने जाएंगे, लेकिन यह दर्शाने के लिए पर्याप्त नहीं होंगे कि महिला "व्यभिचार में रह रही थी"। केवल चूक, चाहे वह एक हो या दो और सामान्य जीवन में वापस लौट आना व्यभिचार में रहना नहीं कहा जा सकता। यदि चूक जारी रहती है। उसके बाद आगे व्यभिचारी जीवन व्यतीत किया जाता है तो महिला को "व्यभिचार में रह रही" कहा जा सकता है।"
Case title: Babul Khatoon & Ors. v. State of Bihar & Ors.
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पति से निर्माणाधीन फ्लैट के लिए किश्तें भरने को नहीं कहा जा सकता, न ही इसे 'साझा घर' कहा जा सकता है: बॉम्बे हाईकोर्ट
बंबई हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि निर्माणाधीन फ्लैट, भले ही पति-पत्नी के नाम पर संयुक्त रूप से रजिस्टर्ड हो, उसे घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम (PwDV) 2005 के तहत 'साझा घर' नहीं कहा जा सकता। इसलिए पति को ऐसे फ्लैट की किश्तें भरने का निर्देश नहीं दिया जा सकता। जस्टिस मंजूषा देशपांडे ने कहा कि विचाराधीन फ्लैट अभी भी निर्माणाधीन है और दंपति अभी तक उसमें नहीं रह रहे हैं।
Case Title: Srinwati Mukherji vs State of Maharashtra (Writ Petition 424 of 2025)
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
महिला वकीलों की शिकायतों पर POSH कानून लागू नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को अहम फैसला सुनाया कि कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न से संरक्षण कानून, 2013 (POSH Act) का प्रावधान महिला वकीलों द्वारा अन्य वकीलों के खिलाफ की गई यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर लागू नहीं होगा, क्योंकि बार काउंसिल और वकीलों के बीच कोई नियोक्ता-कर्मचारी (Employer-Employee) संबंध नहीं है।
चीफ जस्टिस आलोक आराध्ये और जस्टिस संदीप मर्ने की खंडपीठ ने साफ कहा, "POSH कानून तभी लागू होता है जब नियोक्ता-कर्मचारी का रिश्ता हो। वकील और बार काउंसिल के बीच ऐसा कोई संबंध नहीं है। इसलिए महिला वकीलों की ऐसी शिकायतें इस कानून के दायरे में नहीं आएंगी।"
केस टाइटल: UNS Women Legal Association बनाम अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
Railway Act | आश्रित के कानून उत्तराधिकारी मुआवजे के हकदार, भले ही मृतक के आश्रित की अपील के लंबित रहने के दौरान मृत्यु हो जाए: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि मृतक यात्री के आश्रित का कानूनी प्रतिनिधि रेलवे अधिनियम, 1989 के तहत मुआवजा पाने का हकदार है, भले ही कार्यवाही के दौरान आश्रित की मृत्यु हो जाए। कोर्ट ने कहा कि ऐसा मुआवजा मृतक आश्रित की संपत्ति का हिस्सा होता है और उनकी मृत्यु के साथ खत्म नहीं होता।
जस्टिस एनजे जमादार श्रीमती सोनल वैभव सावंत द्वारा दायर अपील पर फैसला कर रहे थे, जिनके पिता महादेव तांबे (अब मृत) ने मूल रूप से रेलवे दावा न्यायाधिकरण से रेलवे अधिनियम की धारा 124-ए के तहत मुआवजे की मांग की थी, जो 2011 में कथित ट्रेन दुर्घटना में उनके 25 वर्षीय बेटे अमित तांबे की मृत्यु के बाद हुआ था।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
बॉम्बे हाईकोर्ट का अहम फैसला: मात्र पिछड़ी जाति की मां से पालन-पोषण होने पर भी जातीय उत्पीड़न न झेलने पर आरक्षण का लाभ नहीं
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक स्टूडेंट की याचिका खारिज करते हुए कहा कि यदि किसी अंतरजातीय विवाह से जन्मे बच्चे ने अपनी पिछड़ी जाति के माता-पिता के साथ रहते हुए भी कोई सामाजिक भेदभाव या अपमान का सामना नहीं किया है तो उसे उस जाति के तहत आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता।
जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस डॉ. नीला गोखले की खंडपीठ ने सुजल मंगल बिरवडकर की याचिका खारिज की। याचिका में जिला जाति प्रमाण पत्र जांच समिति के 15 अप्रैल 2024 के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें याचिकाकर्ता को चांभार (अनुसूचित जाति) के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया गया था।
केस टाइटल: सुजल मंगल बिरवडकर बनाम महाराष्ट्र राज्य व अन्य [रिट याचिका क्र. 13016 / 2024]
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
जब तक ट्रायल कोर्ट तय नहीं कर लेता कि जांच में गड़बड़ी है या नहीं, तब तक हाईकोर्ट दोबारा जांच का आदेश नहीं दे सकता: J&K हाईकोर्ट
जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने एक रिट याचिका पर विचार करने से मना कर दिया, जिसमें कथित हमले और कपड़े उतारने के मामले में आरोपों की पुनः जांच या परिवर्तन की मांग की गई थी। साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता को निचली अदालत के समक्ष मौजूदा उपायों का उपयोग करने का निर्देश दिया।
जस्टिस संजय परिहार की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास निचली अदालत के समक्ष अपनी शिकायतें उठाने का पर्याप्त अवसर था, और जब तक कोई स्पष्ट त्रुटि या न्याय का हनन साबित नहीं हो जाता, तब तक रिट क्षेत्राधिकार का उपयोग नहीं किया जा सकता।