'व्यभिचार करना' और 'व्यभिचार में रहना' अलग बातें हैं, केवल एक बार की चूक पर नहीं रोका जा सकता गुज़ारा भत्ता: पटना हाईकोर्ट
Shahadat
9 July 2025 5:13 AM

पटना हाईकोर्ट ने गुजारा भत्ता पाने के अधिकार का निर्धारण करने के लिए पत्नी द्वारा 'व्यभिचार करने' और 'व्यभिचार में रहने' के बीच अंतर स्पष्ट किया।
जस्टिस जितेंद्र कुमार ने कहा,
"व्यभिचार में रहना" आचरण के एक सतत क्रम को दर्शाता है, न कि अनैतिकता के छिटपुट कृत्यों को। सद्गुणों से एक या दो चूक व्यभिचार के कृत्य माने जाएंगे, लेकिन यह दर्शाने के लिए पर्याप्त नहीं होंगे कि महिला "व्यभिचार में रह रही थी"। केवल चूक, चाहे वह एक हो या दो और सामान्य जीवन में वापस लौट आना व्यभिचार में रहना नहीं कहा जा सकता। यदि चूक जारी रहती है। उसके बाद आगे व्यभिचारी जीवन व्यतीत किया जाता है तो महिला को "व्यभिचार में रह रही" कहा जा सकता है।"
इसके बाद एकल जज ने इस मामले में याचिकाकर्ता-पत्नी को गुजारा भत्ता देने की कार्यवाही शुरू की, जिसे फैमिली कोर्ट ने व्यभिचार के आधार पर राहत देने से इनकार कर दिया।
हाईकोर्ट ने पाया कि पति के इस दावे के समर्थन में कोई ठोस सबूत नहीं था कि उसकी पत्नी व्यभिचारी जीवन जीने के लिए किसी अन्य पुरुष के साथ भाग गई। बल्कि इस बात के प्रमाण मौजूद थे कि वह अपने बेटे के साथ अपने मायके में रह रही थी।
उसने पति के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि पत्नी को तीन तलाक कहकर तलाक दिया गया और कहा कि मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 तीन तलाक को अमान्य और अवैध घोषित करता है।
बहरहाल, न्यायालय ने मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम एवं अन्य (1985) का हवाला दिया, जहां सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि CrPC की धारा 125 धर्मनिरपेक्ष प्रकृति की है और एक मुस्लिम पति का तलाकशुदा पत्नी, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, उसको भरण-पोषण प्रदान करने का दायित्व पर्सनल लॉ से अप्रभावित है।
इसलिए न्यायालय ने फैमिली कोर्ट का आदेश खारिज किया, जिसमें पत्नी को भरण-पोषण देने से इनकार किया गया और कहा कि वह कानून के अनुसार भरण-पोषण पाने की हकदार है।
Case title: Babul Khatoon & Ors. v. State of Bihar & Ors.