बॉम्बे हाईकोर्ट का अहम फैसला: मात्र पिछड़ी जाति की मां से पालन-पोषण होने पर भी जातीय उत्पीड़न न झेलने पर आरक्षण का लाभ नहीं

Amir Ahmad

7 July 2025 12:53 PM IST

  • बॉम्बे हाईकोर्ट का अहम फैसला: मात्र पिछड़ी जाति की मां से पालन-पोषण होने पर भी जातीय उत्पीड़न न झेलने पर आरक्षण का लाभ नहीं

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक स्टूडेंट की याचिका खारिज करते हुए कहा कि यदि किसी अंतरजातीय विवाह से जन्मे बच्चे ने अपनी पिछड़ी जाति के माता-पिता के साथ रहते हुए भी कोई सामाजिक भेदभाव या अपमान का सामना नहीं किया है तो उसे उस जाति के तहत आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता।

    जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस डॉ. नीला गोखले की खंडपीठ ने सुजल मंगल बिरवडकर की याचिका खारिज की। याचिका में जिला जाति प्रमाण पत्र जांच समिति के 15 अप्रैल 2024 के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें याचिकाकर्ता को चांभार (अनुसूचित जाति) के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया गया था।

    याचिकाकर्ता के पिता हिंदू अगरी (गैर-एससी जाति) और मां चांभार (एससी जाति) समुदाय से हैं। 2016 में माता-पिता का तलाक हो गया, जिसके बाद सुजल ने अपनी मां का उपनाम अपनाया और खुद को चांभार के रूप में पहचानने लगा। हालांकि जांच समिति ने पाया कि याचिकाकर्ता ने कभी अपनी मां की जाति के कारण कोई सामाजिक अपमान या वंचना नहीं झेली।

    अदालत ने कहा,

    “भले ही याचिकाकर्ता का पालन-पोषण उसकी मां ने अकेले किया हो लेकिन उसके जीवन में किसी भी तरह की वंचना दिखाई नहीं देती। याचिकाकर्ता ने अपने पिता की ऊंची जाति का लाभ उठाया और स्कूली जीवन में उसकी जाति हिंदू अगरी दर्ज रही। उसकी मां मुंबई पोर्ट सेंट्रल पुलिस में कार्यरत रहीं। रिकॉर्ड में ऐसा कुछ नहीं है, जिससे यह साबित हो कि याचिकाकर्ता की मां को कोई ऐसा अपमान झेलना पड़ा हो, जिसका असर याचिकाकर्ता पर पड़ा हो।”

    अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता को अच्छी शिक्षा मिली, उसके साथ कोई भेदभाव नहीं हुआ और उसे जीवन में शुरू से ही बेहतर अवसर मिले।

    इस आधार पर अदालत ने याचिका खारिज कर दी।

    केस टाइटल: सुजल मंगल बिरवडकर बनाम महाराष्ट्र राज्य व अन्य [रिट याचिका क्र. 13016 / 2024]

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