हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
31 March 2024 10:00 AM IST
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (25 मार्च, 2024 से 29 मार्च, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
लोकायुक्त और उपलोकायुक्त केवल सिफारिश करने वाले निकाय उन्हें जांच सौंपने का निर्देश नहीं दिया जा सकता: कर्नाटक हाइकोर्ट
कर्नाटक हाइकोर्ट ने माना कि राज्य सरकार के पास CCA नियम के नियम 14-ए के तहत कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के किसी कर्मचारी के संबंध में अनुशासनात्मक जांच का जिम्मा लोकायुक्त या उप-लोकायुक्त को सौंपने का अधिकार है। इसके अलावा इसने माना कि लोकायुक्त अधिनियम की धारा 12(3) के तहत रिपोर्ट बनाते समय लोकायुक्त द्वारा सरकार को यह सिफारिश कि जांच का जिम्मा उसे सौंपा जाए कायम नहीं रह सकती।
जस्टिस एन एस संजय गौड़ा की एकल पीठ ने कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में कार्यरत सीनियर पर्यावरण अधिकारी यतीश एम जी द्वारा दायर याचिका आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की।
केस टाइटल- यतीश एम जी और कर्नाटक राज्य और अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
[S.41A CrPC] केवल नोटिस जारी करना अग्रिम जमानत के लिए आवेदन के विरुद्ध बाधा नहीं बनेगा: आंध्र प्रदेश हाइकोर्ट
आंध्र प्रदेश हाइकोर्ट ने माना है कि सीआरपीसी की धारा 41-ए के तहत नोटिस जारी करना अग्रिम जमानत के लिए आवेदन के विरुद्ध बाधा नहीं बनेगा।
रामप्पा @ रमेश पुत्र धर्मन्ना बनाम कर्नाटक राज्य में पारित आदेश पर भरोसा करते हुए पीठ ने कहा, "याचिकाकर्ता के वकील द्वारा दिए गए उपरोक्त निर्णय के आलोक में यह न्यायालय मानता है कि गिरफ्तारी की आशंका है। यहां तक कि उपस्थिति के लिए नोटिस जारी करने के बाद भी यह नहीं कहा जा सकता कि अग्रिम जमानत आवेदन स्वीकार्य नहीं है।"
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
हिरासत के दौरान निलंबित किए गए कर्मचारी को किसी अनुशासनात्मक जांच के अभाव में बरी होने पर वेतन देने से इनकार नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि हिरासत की अवधि के दौरान निलंबित किए गए किसी कर्मचारी को निलंबन की अवधि के दौरान किसी भी अनुशासनात्मक जांच और जमानत के अभाव में बरी होने पर वेतन से वंचित नहीं किया जा सकता।
न्यायालय ने आगे कहा कि ऐसे कर्मचारी को, जिसे हिरासत की अवधि के दौरान निलंबित कर दिया गया, उसे यह साबित करना होगा कि वह उस अवधि के दौरान लाभकारी रूप से नियोजित नहीं था।
केस टाइटल: अनिल कुमार सिंह बनाम यूपी राज्य और 4 अन्य [WRIT - A नंबर - 11555/2021]
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
सरकारी कर्मचारी का ग्रहणाधिकार केवल तभी समाप्त होता है, जब उसे किसी अन्य पद पर नियुक्त किया जाता है या स्थायी रूप से नियुक्त किया जाता है: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट की जज जस्टिस गणेश राम मीना की एकल न्यायाधीश पीठ ने डॉ. शिव कुमार बनाम राजस्थान राज्य और अन्य के मामले में सिविल रिट याचिका पर फैसला करते हुए कहा कि किसी सरकारी कर्मचारी का ग्रहणाधिकार केवल तभी समाप्त होता है, जब उसे किसी अन्य पद पर स्थायी रूप से नियुक्त किया जाता है या स्थायी रूप से अवशोषित किया जाता है।
केस का नाम- डॉ. शिव कुमार बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
जिला रजिस्ट्रार अर्ध-न्यायिक अधिकारी हैं, वे सारांश कार्यवाही करके सेल्स डीड रद्द नहीं कर सकते: मद्रास हाइकोर्ट
मद्रास हाइकोर्ट ने हाल ही में देखा कि रजिस्ट्रेशन ऑफिसर या डिस्ट्रिक्ट रजिस्ट्रार अर्ध-न्यायिक अधिकारी हैं और उन्हें सारांश कार्यवाही के माध्यम से सेल्स डीड रद्द करने का अधिकार नहीं है।
जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और जस्टिस के राजशेखर की खंडपीठ ने कहा कि जिला रजिस्ट्रार के पास रजिस्ट्रेशन के दौरान गलतियों, चूक या उल्लंघन या अधिनियम के तहत प्रक्रियाओं के उल्लंघन के बारे में राय बनाने की शक्तियां हैं।
केस टाइटल- नेटवेंटेज टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड बनाम पंजीकरण और स्टाम्प महानिरीक्षक
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
भारतीय वन अधिनियम के तहत भूमि को आरक्षित वन घोषित करने वाली अधिसूचनाओं के खिलाफ निषेधाज्ञा का कोई मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि भारतीय वन अधिनियम, 1927 की धारा 4 और धारा 20 के तहत एक भूमि को आरक्षित वन क्षेत्र घोषित करने की अधिसूचना के खिलाफ उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम 1950 की धारा 229बी के तहत स्थायी निषेधाज्ञा का मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है।
जस्टिस रजनीश कुमार ने माना कि ऐसी अधिसूचनाओं को 1927 के अधिनियम में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार केवल वन बंदोबस्त अधिकारी के समक्ष चुनौती दी जा सकती है।
केस टाइटलः प्रभागीय वन अधिकारी उत्तरी खीरी बनाम सुरजन सिंह और अन्य [दूसरी अपील संख्या - 756, 1982]
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
UP Anti-Conversion Law लिव-इन रिलेशनशिप पर भी लागू: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में देखा कि ,, 2021 (UP 'Anti-Conversion' Law) न केवल विवाहों पर लागू होता है, बल्कि विवाह या लिव-इन रिलेशनशिप की प्रकृति के रिश्तों पर भी लागू होता है।
जस्टिस रेनू अग्रवाल की पीठ ने अंतरधार्मिक जोड़े (याचिकाकर्ताओं) द्वारा दायर सुरक्षा याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि दोनों ने 2021 अधिनियम के प्रावधानों के तहत किसी भी रूपांतरण के रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन नहीं किया।
केस टाइटल- मारिया जमील उर्फ रिया और अन्य बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य लाइव लॉ (एबी) 195/2024 [रिट - सी नंबर - 1067/2024]
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
अनुच्छेद 311(1) सरकारी कर्मचारियों को सुरक्षा की गारंटी देता है, जिसमें किसी भी प्रतिकूल कार्रवाई से पहले निष्पक्ष जांच का अधिकार भी शामिल: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने विश्वेश्वरैया प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद द्वारा एक सहायक प्रोफेसर पर लगाए गए अनिवार्य सेवानिवृत्ति के दंड को रद्द कर दिया है।
जस्टिस सचिन शंकर मगदुम की सिंगल जज बेंच ने डॉ योगानंद ए द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया और कहा, “अनुलग्नक-ए के अनुसार प्रतिवादी नंबर 2 द्वारा पारित अनिवार्य सेवानिवृत्ति का दंड रद्द किया जाता है। प्रतिवादी संख्या 3-अनुशासनात्मक प्राधिकारी को उपरोक्त निर्णय में माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने और भारत के संविधान के अनुच्छेद 311(1) का संज्ञान लेने और एक नया कारण बताओ जारी करने का निर्देश दिया जाता है।"
केस टाइटलः डॉ योगानंद ए और विश्वेश्वरैया टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी और अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
लोक अदालतें ऐसे किसी भी आवेदन पर विचार नहीं कर सकती हैं जहां न्यायिक आदेश पारित किए जाने की आवश्यकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना है कि लोक-अदालत द्वारा पारित एक आदेश समझौते को स्वीकार करने और वाद की डिक्री का निर्देश देने के लिए वैध नहीं है। जस्टिस वी श्रीशानंद की सिंगल जज बेंच ने पूजा द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया और तालुका कानूनी प्राधिकरण, सिंदगी (लोक अदालत) द्वारा पारित 27-10-2007 के समझौता डिक्री को रद्द कर दिया।
इसमें कहा गया, "चूंकि सुलहकर्ताओं ने लोक-अदालत की अध्यक्षता करते हुए न्यायिक शक्तियों का प्रयोग किया है, इसलिए समझौते को स्वीकार करने और वाद की डिक्री का निर्देश देने में लोक अदालत द्वारा पारित आदेश को रद्द करने की आवश्यकता है क्योंकि यह कानून के स्थापित सिद्धांतों के खिलाफ है।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
निजी शिकायत का संज्ञान लेने के बाद भी अग्रिम जमानत आवेदन पर विचार किया जा सकता है: कर्नाटक हाइकोर्ट
न्यायालय ने निचली अदालत का आदेश खारिज कर दिया, जिसमें अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (Scheduled Castes/Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Act) के प्रावधानों के तहत आरोपित आरोपी द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका इस आधार पर खारिज कर दी गई कि शिकायत का संज्ञान पहले ही लिया जा चुका है।
जस्टिस मोहम्मद नवाज की एकल पीठ ने निचली अदालत के 9 फरवरी के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका स्वीकार कर ली और दो जमानतदारों के साथ 1,00,000 रुपये के बांड पर अग्रिम जमानत प्रदान की।
केस टाइटल- रामंजनेयुलु और अन्य तथा कर्नाटक राज्य और अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम| "लोक सेवक" की परिभाषा दायरे में निजी बैंक के अध्यक्ष, एमडी और कार्यकारी निदेशक भी: तेलंगाना हाईकोर्ट
तेलंगाना हाईकोर्ट ने माना कि एक निजी बैंक के अध्यक्ष, प्रबंध निदेशक और कार्यकारी निदेशक भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत परिभाषित 'लोक सेवक' की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं और निचली अदालत द्वारा अभियुक्त की स्वीकार की गई डिस्चार्ज याचिको रद्द करते हुए रिविजन का आदेश दिया।
यह आदेश जस्टिस ईवी वेणुगोपाल ने सीबीआई की ओर से दायर याचिका पर दिया, जिसने सीबीआई विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी थी। सीबीआई विशेष जज की ओर से दिए गए आदेश के बाद उत्तरदाताओं/अभियुक्तों को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 के तहत दंडनीय अपराध से बरी कर दिया गया था, यह मानते हुए कि वे अधिनियम के अनुसार लोक सेवक नहीं थे।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
सीआरपीसी की धारा 195(1)(b)(ii) उन मामलों में एफआईआर दर्ज करने पर रोक नहीं लगाती, जहां दस्तावेजों में कथित जालसाजी अदालत के बाहर हुई हो: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 195 (1)(b)(ii) ऐसे मामले में एफआईआर दर्ज करने पर रोक नहीं लगाती, जहां अदालत के बाहर दस्तावेज़ में कथित जालसाजी की गई हो। उसके बाद किसी न्यायालय में लंबित मामले की न्यायिक कार्यवाही में कथित जाली दस्तावेज़ दायर किया गया हो।
संदर्भ के लिए सीआरपीसी की धारा 195(1)(b)(ii) में प्रावधान है कि कोई भी अदालत जालसाजी आदि के अपराधों का संज्ञान नहीं लेगी, जब ऐसा अपराध किसी कार्यवाही में प्रस्तुत या साक्ष्य के रूप में दिए गए दस्तावेज़ के संबंध में किया गया हो।
केस टाइटल- विश्वनाथ बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 2 अन्य लाइव लॉ (एबी) 194/2024 [आपराधिक संशोधन नंबर- 185/2023]
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
एडिशनल चीफ मेडिकल ऑफिसर को PCPNDT Act के तहत किसी भी अपराध के लिए शिकायत दर्ज करने का कोई अधिकार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि एडिशनल चीफ मेडिकल ऑफिसर उपयुक्त प्राधिकारी नहीं है और उसके पास गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन पर प्रतिबंध) अधिनियम, 1994 के प्रावधानों के तहत किए गए किसी भी कथित अपराध के लिए शिकायत दर्ज करने का कोई अधिकार नहीं है।
जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने 1994 के अधिनियम की धारा 28 और धारा 17 (1) और (2) के आदेश पर विचार करते हुए यह बात कही। संदर्भ के लिए, धारा 28 अदालतों को उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा की गई शिकायत को छोड़कर अधिनियम के तहत किसी अपराध का संज्ञान लेने से रोकती है। धारा 17 एक 'उचित प्राधिकारी' की नियुक्ति के तरीके का प्रावधान करती है।
केस टाइटल- डॉ. विनोद कुमार बस्सी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य। लाइव लॉ (एबी) 193/2024 [धारा 482 नंबर - 2998/2014 के तहत आवेदन]
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
सीआरपीसी की धारा 144 के तहत कोई निषेधाज्ञा नहीं होने पर पुलिस के खिलाफ लोगों का इकट्ठा होना, प्रदर्शन करना अपराध नहीं: मद्रास हाइकोर्ट
मद्रास हाइकोर्ट ने हाल ही में टिप्पणी की कि जब सीआरपीसी की धारा 144 के तहत कोई निषेधाज्ञा नहीं है तो कुछ लोगों का पुलिस के खिलाफ इकट्ठा होना और प्रदर्शन करना कोई अवैधानिक बात नहीं है और यह कोई अपराध नहीं है।
जस्टिस एम ढांडापानी ने पुलिस की बर्बरता के कारण सिलंबरासन नामक व्यक्ति की मौत के मामले में पुलिस की निष्क्रियता के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों के समूह के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने की मांग करने वाली याचिका पर यह टिप्पणी की।
केस टाइटल- साइमन और अन्य बनाम राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
अनुसूचित जाति समुदाय का सदस्य होने के कारण पक्षपात का सामना कर रहे बच्चे को केवल इसलिए कम्यूनिटी सर्टिफिकेट देने से मना नहीं किया जा सकता, कि माता-पिता ने अंतर-धार्मिक विवाह किया: केरल हाइकोर्ट
केरल हाइकोर्ट ने कहा कि अंतर-धार्मिक विवाह से पैदा हुए बच्चे को अनुसूचित जाति कम्यूनिटी सर्टिफिकेट देने से केवल इसलिए मना नहीं किया जा सकता, क्योंकि उसके पिता ईसाई थे और उन्होंने हिंदू समुदाय में धर्म परिवर्तन नहीं किया। बच्चे की मां पुलया समुदाय से है और उसने अपनी नाबालिग बेटी को शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए कम्यूनिटी सर्टिफिकेट जारी न करने के खिलाफ हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
जस्टिस देवन रामचंद्रन ने कहा कि किसी विशेष समुदाय के सदस्य द्वारा सामना किए जाने वाले अपमान और सामाजिक बाधाएं उस समुदाय का कास्ट सर्टिफिकेट देने या न देने का निर्णायक कारक होनी चाहिए।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
पत्नी को भरण-पोषण के अधिकार से वंचित करने के लिए सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका दायर करते समय या उसके आसपास अडल्ट्री में होना चाहिए: एमपी हाइकोर्ट
मध्य प्रदेश हाइकोर्ट ने हाल ही में कहा कि पत्नी को अडल्ट्री के आधार पर भरण-पोषण पाने से केवल तभी वंचित किया जा सकता है, जब वह वास्तव में सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण के लिए आवेदन करने के समय या उसके आसपास अडल्ट्री में रह रही हो।
जस्टिस प्रकाश चंद्र गुप्ता की पीठ ने कहा कि पत्नी द्वारा अडल्ट्री के कृत्य निरंतर होने चाहिए। इसे साबित करने की जिम्मेदारी पति पर है, जिससे वह सीआरपीसी की धारा 125(4) के अनुसार पत्नी को भरण-पोषण पाने से वंचित कर सके।
केस टाइटल - आरकेए बनाम डीए
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
व्यस्कों का स्वेच्छा से वैवाहिक जीवन से बाहर यौन संबंध बनाना कोई अपराध नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि यदि दो व्यस्क स्वेच्छा से विवाहेतर यौन संबंध बनाते हैं तो कोई वैधानिक अपराध नहीं बनता। जस्टिस बीरेंद्र कुमार की पीठ ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि जब तक कोई अपने जीवनसाथी के जीवनकाल के दौरान शादी नहीं करता, केवल लिव-इन-रिलेशनशिप जैसे विवाह जैसे रिश्ते आईपीसी की धारा 494 के दायरे में नहीं आएंगे।
एकल न्यायाधीश ने ये टिप्पणियां पति द्वारा दायर उस आवेदन को खारिज करते हुए कीं, जिसमें अदालत के उस आदेश को वापस लेने की मांग की गई, जिसमें उसकी पत्नी के अपहरण के आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर रद्द कर दी गई।
केस टाइटल- वाई और अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
लखनऊ में वकीलों द्वारा हड़पने की कथित घटना की जांच पुलिस आयुक्त करेंगे: इलाहाबाद हाईकोर्ट का संयुक्त सचिव को निर्देश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संयुक्त पुलिस आयुक्त (कानून एवं व्यवस्था), पुलिस आयुक्तालय, लखनऊ को 50-60 वकीलों द्वारा संपत्ति हड़पने के आरोपों की जांच करने और अदालत में सीलबंद कवर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस नरेंद्र कुमार जौहरी की खंडपीठ ने पुष्कल यादव द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया, जिसमें दावा किया गया कि उनकी संपत्ति 50-60 लोगों द्वारा हड़प ली गई, जो वकील की वर्दी पहनकर आए थे।
केस टाइटल - पुष्कल यादव बनाम यूपी राज्य के माध्यम से. प्रिं. सचिव. होम लको. और अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
[O.6 R.1 CPC] प्रतिवादी को साक्ष्य में दर्ज दस्तावेज़ के सामने आने पर खामियों को भरने के लिए दलीलों में देरी से संशोधन करने से रोका गया: पटना हाइकोर्ट
पटना हाइकोर्ट ने सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश VI नियम 1 के प्रावधान पर अपने विचार-विमर्श में कहा कि यदि प्रतिवादियों को उनके साक्ष्य प्रस्तुत करने के दौरान कोई दस्तावेज मिलता है तो उन्हें अपने मामले में कमियों को दूर करने के लिए अपनी दलीलों में संशोधन करने का अधिकार नहीं दिया जाएगा।
इस मामले की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस अरुण कुमार झा ने कहा, "यदि प्रतिवादियों के लिए साक्ष्य दर्ज किए जाने के दौरान कोई दस्तावेज आया और प्रतिवादियों को उससे सामना कराया जाता है तो इससे प्रतिवादियों को अपने मामले में कमी को पूरा करने के लिए अपनी दलीलों में संशोधन करने का अधिकार नहीं मिलता। इसके अलावा संशोधन काफी देरी से पेश किया गया और आदेश VI नियम 1 का प्रावधान स्पष्ट रूप से ट्रायल शुरू होने के बाद और जब कोई उचित परिश्रम नहीं दिखाया गया तो ऐसे संशोधन पर रोक लगाता है।”
केस टाइटल: शिब्जी पंडित सिंह बनाम मंजू देवी एवं अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
पत्नी द्वारा खुलेआम पति को अपमानित करना, उसे नपुंसक कहना मानसिक क्रूरता: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि परिवार के सदस्यों के सामने पत्नी द्वारा खुलेआम अपमानित किया जाना और नपुंसक कहा जाना पति के लिए मानसिक क्रूरता पैदा करने वाला अपमानजनक कृत्य है। जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 (1) (आईए) के तहत पत्नी द्वारा क्रूरता के आधार पर पति को तलाक देते हुए यह टिप्पणी की।
खंडपीठ ने कहा, ''...हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि दूसरों के सामने अपनी पत्नी द्वारा खुले तौर पर अपमानित किया जाना, नपुंसक कहा जाना और प्रतिवादी (पत्नी) द्वारा परिवार के सदस्यों की उपस्थिति में अपने यौन जीवन पर चर्चा करना, केवल यही कहा जा सकता है कि यह अपीलकर्ता (पति) को अपमानित करने का कृत्य मानसिक क्रूरता का कारण बनता है।"
केस टाइटल: एक्स वी. वाई