व्यस्कों का स्वेच्छा से वैवाहिक जीवन से बाहर यौन संबंध बनाना कोई अपराध नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट

Shahadat

26 March 2024 9:59 AM GMT

  • व्यस्कों का स्वेच्छा से वैवाहिक जीवन से बाहर यौन संबंध बनाना कोई अपराध नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि यदि दो व्यस्क स्वेच्छा से विवाहेतर यौन संबंध बनाते हैं तो कोई वैधानिक अपराध नहीं बनता।

    जस्टिस बीरेंद्र कुमार की पीठ ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि जब तक कोई अपने जीवनसाथी के जीवनकाल के दौरान शादी नहीं करता, केवल लिव-इन-रिलेशनशिप जैसे विवाह जैसे रिश्ते आईपीसी की धारा 494 के दायरे में नहीं आएंगे।

    एकल न्यायाधीश ने ये टिप्पणियां पति द्वारा दायर उस आवेदन को खारिज करते हुए कीं, जिसमें अदालत के उस आदेश को वापस लेने की मांग की गई, जिसमें उसकी पत्नी के अपहरण के आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर रद्द कर दी गई।

    मूलतः, संबंधित एफआईआर पति द्वारा दर्ज कराई गई। इसमें आरोप लगाया गया कि आरोपी व्यक्तियों ने उसकी पत्नी का अपहरण कर लिया। हालांकि, अदालत ने उक्त एफआईआर तब रद्द कर दी, जब उसकी पत्नी हलफनामे के साथ अदालत में पेश हुई। उक्त हलफनामा में उसने विशेष रूप से कहा कि किसी ने उसका अपहरण नहीं किया, बल्कि वह स्वेच्छा से आरोपी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में है।

    चूंकि पीड़िता ने खुद अदालत के सामने कहा कि उसका किसी ने अपहरण नहीं किया, इसलिए हाईकोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 366 के तहत कोई अपराध नहीं बनता। तदनुसार, एफआईआर रद्द कर दी गई।

    हालांकि, पति ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि चूंकि उसकी पत्नी ने स्वीकार किया कि वह आरोपी के साथ विवाहेतर संबंध में है, इसलिए आईपीसी की धारा 494 और 497 के तहत अपराध बनाया गया।

    पति की याचिका खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने एस खुशबू बनाम कन्नियाम्मल और अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2010 के फैसले को ध्यान में रखा, जिसमें माना गया कि जब व्यस्क स्वेच्छा से वैवाहिक जीवन के बाहर यौन संबंध बनाते हैं तो कोई वैधानिक अपराध नहीं होता है।

    न्यायालय ने यह भी देखा कि आईपीसी की धारा 497 के तहत व्यभिचार को जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ 2019 के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले ही रद्द कर दिया गया। इसलिए वर्तमान मामले में आईपीसी की धारा 494 के तहत कोई अपराध नहीं बनाया गया।

    कोर्ट ने टिप्पणी की,

    "...यह उन पक्षकारों का मामला नहीं है कि किसी ने पति या पत्नी के जीवनकाल के दौरान पुनर्विवाह किया। जब तक विवाह की वकालत नहीं की जाती और साबित नहीं किया जाता, तब तक लिव-इन-रिलेशनशिप जैसे विवाह जैसे संबंध आईपीसी की धारा 494 के तहत अपराध के दायरे में नहीं आएंगे।''

    इसके अलावा, यह देखते हुए कि आवेदक की पत्नी ने अन्य आरोपी व्यक्तियों के साथ मिलकर इस मामले में संयुक्त रूप से जवाब दायर किया, जिसमें उसने लगातार कहा कि उसने स्वेच्छा से घर छोड़ा और वह आरोपियों में से एक के साथ रिश्ते में है तो अदालत ने आवेदक की प्रार्थना में कोई योग्यता न पाते हुए याचिका खारिज कर दी।

    केस टाइटल- वाई और अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य

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