[S.41A CrPC] केवल नोटिस जारी करना अग्रिम जमानत के लिए आवेदन के विरुद्ध बाधा नहीं बनेगा: आंध्र प्रदेश हाइकोर्ट
Amir Ahmad
30 March 2024 12:38 PM IST
आंध्र प्रदेश हाइकोर्ट ने माना है कि सीआरपीसी की धारा 41-ए के तहत नोटिस जारी करना अग्रिम जमानत के लिए आवेदन के विरुद्ध बाधा नहीं बनेगा।
रामप्पा @ रमेश पुत्र धर्मन्ना बनाम कर्नाटक राज्य में पारित आदेश पर भरोसा करते हुए पीठ ने कहा,
"याचिकाकर्ता के वकील द्वारा दिए गए उपरोक्त निर्णय के आलोक में यह न्यायालय मानता है कि गिरफ्तारी की आशंका है। यहां तक कि उपस्थिति के लिए नोटिस जारी करने के बाद भी यह नहीं कहा जा सकता कि अग्रिम जमानत आवेदन स्वीकार्य नहीं है।"
जस्टिस टी. मल्लिकार्जुन राव ने यह आदेश उदय भूषण नामक व्यक्ति द्वारा दायर आपराधिक याचिका पर पारित किया, जिसके खिलाफ फरवरी में एफआईआर दर्ज की गई थी। उक्त एफआईआर में आरोप लगाया गया कि उसने अपने बेटे के साथ मिलकर वास्तविक शिकायतकर्ता का रूप धारण किया और वाईएसआर परिवार विशेष रूप से वाईएस शर्मिला और वाईएस सुनीता के खिलाफ फेसबुक पर अपमानजनक सामग्री पोस्ट की।
यह आरोप लगाया गया कि आरोपी ने राजनीतिक प्रतिशोध लेने के लिए वास्तविक शिकायतकर्ता का रूप धारण किया, क्योंकि आरोपी विपक्षी पार्टी के समर्थक हैं और शिकायतकर्ता सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस पार्टी से है।
उपर्युक्त एफआईआर की पूर्व सूचना के आधार पर अग्रिम जमानत की मांग करते हुए आपराधिक याचिका दायर की गई।
अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि 41-ए नोटिस जारी करने का उद्देश्य अनुचित गिरफ्तारी के डर को खत्म करना और एक बार 41-ए नोटिस जारी होने के बाद अग्रिम जमानत जारी करना निरर्थक होगा।
दूसरी ओर आरोपी ने तर्क दिया कि 41-ए नोटिस जारी होने के बाद भी आरोपी को 41ए (4) के अनुसार गिरफ्तार किया जा सकता है। इसके अलावा सीआरपीसी के तहत कोई विशेष प्रतिबंध नहीं है कि 41ए नोटिस जारी होने के बाद अग्रिम जमानत नहीं मांगी जा सकती।
सबसे पहले यह तर्क दिया गया कि इन अपराधों के लिए 7 साल से कम की सजा निर्धारित है। इस प्रकार यह अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य के फैसले के दायरे में आता है।
याचिकाकर्ता/आरोपी की ओर से वकील ने तर्क दिया कि जब आरोपी पुलिवेंदुला पुलिस स्टेशन पहुंचे तो वहां मौजूद शिकायतकर्ता ने उन्हें हत्या करवाने की धमकी दी। इसलिए अगर आरोपी चाहता भी तो वह जान के डर से 41-ए की शर्तों का पालन नहीं कर सकता।
दोनों पक्षकारों को सुनने के बाद पीठ ने कहा,
"यहां प्रस्तुत किए गए तर्कों और याचिकाकर्ता की स्वास्थ्य स्थिति को ध्यान में रखते हुए, चूंकि याचिकाकर्ता के विरुद्ध लगाए गए अपराध सात वर्ष से कम कारावास से दंडनीय हैं। इसलिए यह न्यायालय याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत देने के लिए इच्छुक है।”
आरोपी को संबंधित एसएचओ के समक्ष उपस्थित होने और 20,000/- रुपये का बांड भरने तथा 3 महीने के लिए हर पखवाड़े में एक बार कडप्पा के पुलिस अधीक्षक के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया गया।
इसके साथ ही याचिका स्वीकार कर ली गई।