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गुजरात हाईकोर्ट ने 400 साल पुरानी मस्जिद के आंशिक विध्वंस पर रोक से किया इनकार, सड़क चौड़ीकरण परियोजना को दी हरी झंडी
गुजरात हाईकोर्ट ने शुक्रवार (3 अक्टूबर) को अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (AMC) की उस योजना पर रोक लगाने से इनकार किया, जिसमें सरसपुर स्थित लगभग 400 साल पुरानी मंचा मस्जिद के एक हिस्से को तोड़कर सड़क चौड़ीकरण किया जाना है।चीफ जस्टिस ए.एस. सुपेहिया और जस्टिस एल.एस. पीरजादा की खंडपीठ ने मुतवल्ली की अपील खारिज करते हुए कहा कि मस्जिद की मुख्य संरचना को तोड़ा नहीं जा रहा है। सड़क चौड़ीकरण के लिए मंदिर, मकान और व्यावसायिक संपत्तियां भी शामिल की गई हैं।मामलामुतवल्ली ने हाईकोर्ट में दलील दी थी कि मस्जिद...
भीमा कोरेगांव मामला: बॉम्बे हाईकोर्ट ने हनी बाबू की ज़मानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा
बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर हनी बाबू की ज़मानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया।बाबू पर एल्गार परिषद भीमा कोरेगांव मामले में कथित भूमिका के लिए मामला दर्ज किया गया।जस्टिस अजय गडकरी और जस्टिस रंजीत सिंह भोंसले की खंडपीठ ने बाबू द्वारा दायर ज़मानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया।जस्टिस गडकरी ने मामले को फैसले के लिए बंद करते हुए कहा,"हमें आदेश सुनाने में कुछ समय लग सकता है।"गौरतलब है कि स्पेशल कोर्ट के आदेश के खिलाफ बाबू की प्रारंभिक अपील हाईकोर्ट ने खारिज...
NDPS Act : चार्जशीट के साथ FSL रिपोर्ट न होने से जमानत का अधिकार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण अवलोकन में कहा है कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस अधिनियम (NDPA Act) के तहत दर्ज मामलों में विशेष रूप से जब व्यावसायिक मात्रा में मादक पदार्थ बरामद हुआ हो और NDPA Act की धारा 37 के तहत जमानत पर रोक लागू होती हो तो केवल चार्जशीट के साथ फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL) रिपोर्ट संलग्न न होने के कारण आरोपी को जमानत का अधिकार नहीं मिल जाता।जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की एकल पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए आरोपी की दूसरी जमानत याचिका खारिज कर दी। यह आरोपी नवंबर 2024...
पोस्ट-ग्रेजुएट डिप्लोमा प्रोमोशन के लिए पोस्ट-ग्रेजुएट डिग्री के बराबर नहीं: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि पोस्ट-ग्रेजुएट डिप्लोमा को पोस्ट-ग्रेजुएट डिग्री के समान नहीं माना जा सकता और ऐसे में मेडिकल एजुकेशन सर्विस रूल्स के तहत असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर प्रोमोशन का दावा डिप्लोमा धारक नहीं कर सकते।जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर और जस्टिस सुशील कु्करेजा की खंडपीठ ने कहा कि 1999 के हिमाचल प्रदेश मेडिकल एजुकेशन सर्विस रूल्स में कहीं भी पोस्ट-ग्रेजुएट डिप्लोमा का उल्लेख नहीं है। नियमों में पोस्ट-ग्रेजुएशन शब्द का आशय केवल पोस्ट-ग्रेजुएट डिग्री से ही लिया जाएगा।मामले में...
चीफ जस्टिस बीआर गवई मॉरीशस के तीन दिवसीय आधिकारिक दौरे पर, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और चीफ जस्टिस से की मुलाकात
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई मॉरीशस की चीफ जस्टिस रेहाना बीबी मुंगली-गुलबुल के निमंत्रण पर तीन दिवसीय आधिकारिक दौरे पर मॉरीशस पहुंचे।चीफ जस्टिस गवई अपने परिवार के साथ मॉरीशस स्थित महात्मा गांधी संस्थान (MGI) में गांधी जयंती समारोह में शामिल हुए और महात्मा गांधी की जयंती पर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की। MGI, भारत और मॉरीशस की एक संयुक्त पहल है, जो भारतीय संस्कृति और विरासत को बढ़ावा देने के लिए काम करती है।अपनी यात्रा के दौरान, चीफ जस्टिस गवई ने राष्ट्रपति धर्मबीर गोखूल से मुलाकात की और...
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1982 के हत्याकांड में दोषसिद्धि का फैसला वापस लेने की 30 से अधिक वर्षों से फरार आरोपी की याचिका खारिज की
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में 1982 के हत्याकांड के संबंध में आरोपी (हाईकोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता) की दोषसिद्धि की पुष्टि करने वाले इस वर्ष मार्च में पारित अपने फैसले को वापस लेने की मांग वाली याचिका खारिज की।जस्टिस विवेक कुमार बिड़ला और जस्टिस प्रवीण कुमार गिरि की खंडपीठ ने कहा कि CrPC की धारा 362 के तहत इस आवेदन पर रोक है, जो आपराधिक अदालतों को लिपिकीय या अंकगणितीय त्रुटियों को ठीक करने के अलावा हस्ताक्षरित निर्णयों की समीक्षा या परिवर्तन करने से रोकती है।अदालत ने आरोपी-अपीलकर्ता के आचरण पर भी...
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 40 साल पुराने हत्या केस में आरोपी को बरी किया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1984 के चर्चित हत्या मामले में लगभग चार दशक बाद बचे हुए एकमात्र आरोपी सुरेश को बरी किया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा और घटनाक्रम में गंभीर विरोधाभास पाए गए।मामला मथुरा का है, जहां 17 सितम्बर 1984 को चरन सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। FIR में आरोप लगाया गया कि ज़मीन विवाद के चलते छह लोग जिनमें मृतक के भाई और भतीजे भी शामिल थे, हथियारों के साथ पहुंचे और गोलीबारी की। 1986 में सेशन कोर्ट ने सभी आरोपियों को उम्रकैद की सज़ा...
लिव-इन पार्टनर से भरण-पोषण का हक़ नहीं, जब उसी पर लगाया हो रेप का आरोप: जम्मू-कश्मीर-लद्दाख हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने अहम फैसले में स्पष्ट किया कि कोई महिला अपने लिव-इन पार्टनर से भरण-पोषण की मांग नहीं कर सकती यदि उसने उसी पर रेप का आरोप लगाया हो और उसे दोषी ठहराया गया हो।जस्टिस विनोद चटर्जी कौल की पीठ ने प्रिंसिपल सेशन जज कठुआ का आदेश बरकरार रखा, जिसमें मजिस्ट्रेट द्वारा महिला को दी गई अंतरिम भरण-पोषण राशि को रद्द कर दिया गया था।महिला का कहना था कि वह 10 वर्षों तक प्रतिवादी के साथ रही एक बच्चा भी हुआ और विवाह का आश्वासन दिया गया लेकिन शादी नहीं हुई। उसने दलील दी कि लंबे समय...
विवाह का अपरिवर्तनीय विघटन: पति-पत्नी का अधिकार या अदालत का विशेषाधिकार?
"एक विवाह जो सभी उद्देश्यों के लिए समाप्त हो चुका है, उसे न्यायिक निर्णय द्वारा पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता।" - नवीन कोहली बनाम नीलू कोहली (2006) 4 SCC 558, 62सुप्रीम कोर्ट का यह अवलोकन भारतीय पारिवारिक कानून में सबसे अधिक बहस वाले मुद्दों में से एक को आकार दे रहा है: क्या विवाह का अपरिवर्तनीय विघटन (आईबीएम) को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत तलाक के लिए एक वैधानिक आधार के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए, या क्या यह केवल संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत न्यायालय की असाधारण शक्ति के माध्यम से...
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखनऊ के एक पार्क में अवैध अतिक्रमण और अस्थायी मंदिरों की जांच के आदेश दिए
इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ पीठ) ने हाल ही में लखनऊ के सार्वजनिक पार्क में अनधिकृत अतिक्रमण पर कड़ी आपत्ति जताई और अधिकारियों को इस बात की जांच करने का निर्देश दिया कि उस ज़मीन पर अस्थायी मंदिर और अन्य गैर-सार्वजनिक ढांचे कैसे बनने दिए गए।जस्टिस संगीता चंद्रा और जस्टिस बृज राज सिंह की खंडपीठ ने पार्क में अवैध अतिक्रमण हटाने और असामाजिक गतिविधियों को रोकने की मांग वाली रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया।याचिकाकर्ता कॉलोनी निवासी बेबी पाल ने दलील दी कि कभी हरियाली, झूलों और मनोरंजन...
घरेलू जीवन में वैवाहिक कलह आम बात, आत्महत्या के लिए उकसाने के इरादे के बिना प्रताड़ित करने पर IPC की धारा 306 लागू नहीं होगी: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि घरेलू जीवन में वैवाहिक कलह और मतभेद आम बात है। अगर इस कारण से पति या पत्नी में से कोई आत्महत्या करता है तो यह नहीं माना जा सकता कि उनके उकसाने के कारण मृतक ने आत्महत्या की।जस्टिस समीर जैन की पीठ ने सेशन कोर्ट का आदेश रद्द करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें एक महिला और उसके माता-पिता द्वारा भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 306 के तहत अपने पति को कथित रूप से आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में दायर बरी करने की अर्जी खारिज कर दी गई।सिंगल जज ने कहा कि वैवाहिक झगड़े...
BREAKING| सोशल एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक की नज़रबंदी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची उनकी पत्नी
लद्दाख सोशल एक्टिविस्ट और शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंगमो ने उनकी नज़रबंदी को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर यह रिट याचिका गुरुवार को दायर की गई। 26 सितंबर को लद्दाख में राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत उन्हें नज़रबंद कर दिया गया।गीतांजलि अंगमो ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के माध्यम से अपने पति की रिहाई की मांग की, जो कथित तौर पर लद्दाख में हिंसक झड़पों के बाद हिरासत...
'पिछड़े वर्ग की आबादी 50% से ज़्यादा': मध्य प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में OBC कोटा बढ़ाकर 27% करने का बचाव किया
मध्य प्रदेश सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए आरक्षण 14% से बढ़ाकर 27% करने के अपने फ़ैसले का पुरज़ोर बचाव करते हुए सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पिछड़े समुदाय सामूहिक रूप से राज्य की आबादी का 85% से ज़्यादा हिस्सा बनाते हैं और अपनी व्यापक जनसांख्यिकीय उपस्थिति के बावजूद गंभीर रूप से वंचित हैं।23 सितंबर को दायर अपने हलफ़नामे में राज्य ने 2011 की जनगणना का हवाला दिया, जिसमें अनुसूचित जाति (SC) 15.6%, अनुसूचित जनजाति (ST) 21.1% और OBC 51% से ज़्यादा आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। OBC आयोग की...
AI द्वारा दिखाया गया तिल: मतिभ्रम और बायोमेट्रिक निजता जोखिम
हाल ही में एक वायरल पोस्ट ने इंस्टाग्राम के विंटेज साड़ी ट्रेंड को हिलाकर रख दिया। एक उपयोगकर्ता ने जेमिनी के माध्यम से अपनी तस्वीर बनाई और अपनी बाईं बांह पर एक तिल देखकर चौंक गई; यह एक ऐसा विवरण था जो वास्तविक जीवन में सच था, लेकिन उसने जो मूल, पूरी बांह वाली तस्वीर अपलोड की थी, उसमें छिपा हुआ था। इस अनोखे जोड़ ने सवाल खड़े कर दिए: क्या एआई को किसी तरह "पता" था, या वह बस कुछ खास बातें गढ़ रहा था? और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि जब हम एआई टूल्स के साथ तस्वीरें साझा करते हैं, तो हमारी निजती के...
क्या हाईकोर्ट के निर्णय पूरे भारत में लागू होते हैं?
भारत एक सामान्य कानून वाला देश है और इसलिए पूर्व उदाहरण कानून के स्रोतों में से एक है। भारतीय न्यायालयों में 'स्टारे डेसिसिस' (अध्यक्ष निर्णय) का सिद्धांत सबसे अधिक प्रचलित सिद्धांत है। लेकिन भारतीय संविधान की संघीय व्यवस्था में, क्या किसी हाईकोर्ट द्वारा दिया गया निर्णय पूरे भारत में लागू होता है?संविधान के अनुच्छेद 215 के तहत, सुप्रीम कोर्ट की तरह एक हाईकोर्ट भी रिकॉर्ड न्यायालय है और उसे अपनी अवमानना के लिए दंडित करने की शक्तियां प्राप्त हैं। हाईकोर्ट और भारत कासुप्रीम कोर्ट, दोनों को...
संजीव सान्याल की भयावह अज्ञानता
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि भारतीय न्यायिक प्रणाली 'विकसित भारत' के लक्ष्य को प्राप्त करने में "सबसे बड़ी बाधा" है। अगर उन्होंने अर्थशास्त्र का गहन अध्ययन किया होता, तो उन्हें यह विचार 1789 में प्रकाशित 'नैतिक भावनाओं का सिद्धांत' नामक एक प्रसिद्ध पुस्तक में मिलता:"यदि [न्याय] को हटा दिया जाए, तो मानव समाज का विशाल ताना-बाना, वह ताना-बाना जिसे इस दुनिया में, अगर मैं कहूंतो, खड़ा करना और सहारा देना, एक पल में बिखर जाएगा।"एक स्वतंत्र...
लिखित बयान दाखिल करने की परिसीमा का प्रारंभिक बिंदु समन की तामील की तिथि: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश VIII नियम 1 के तहत लिखित बयान दाखिल करने की समय-सीमा प्रतिवादी द्वारा वकालतनामा दाखिल करने की तिथि से नहीं, बल्कि वादपत्र की प्रति के साथ समन की तामील की तिथि से शुरू होती है। अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि वादपत्र की तामील की ज़िम्मेदारी वादी की है और प्रतिवादी से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह केवल इसलिए वादपत्र की प्रति प्राप्त करने के लिए अदालत में आवेदन करे, क्योंकि वकालतनामा पहले ही दाखिल किया जा चुका है।जस्टिस...
जांच अधिकारी जांच लंबित नहीं रख सकते, फिर भी अदालत आरोपपत्र दाखिल करने का निर्देश नहीं दे सकती: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
हत्या के प्रयास के मामले में पुलिस को आरोपपत्र दाखिल करने का निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जांच अधिकारी जांच लंबित नहीं रख सकते, फिर भी अदालत आरोपपत्र दाखिल करने का निर्देश नहीं दे सकती, क्योंकि यह जांच की निगरानी करने के समान है।जस्टिस मिलिंद रमेश फड़के ने डी. वेंकटसुब्रमण्यम बनाम एम.के. मोहन कृष्णमाचारी (2009) मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा,"इस प्रकार, यह अदालत जांच की निगरानी नहीं कर सकता और आरोपपत्र दाखिल करने का...
वित्तीय आपत्तियों के कारण सशर्त पदोन्नति राज्य हित में: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि राज्य के हितों की रक्षा के लिए कुछ शर्तों के अधीन पदोन्नति वैध रूप से दी जा सकती है, जैसे कि गंभीर वित्तीय आपत्तियों से संबंधित लंबित जांचों के परिणाम पर निर्भर होना।मामले की पृष्ठभूमि के तथ्यअपीलकर्ता/रिट याचिकाकर्ता विधि एवं विधायी कार्य विभाग में अवर सचिव के पद पर कार्यरत है। वह अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी से आते हैं। उप-सचिव के पद पर उनकी पदोन्नति के मामले पर वर्ष 2012 में विभागीय पदोन्नति समिति...
'लंबे समय तक ट्रायल से पहले हिरासत में रखना स्वतंत्रता के लिए अभिशाप': हाईकोर्ट ने बलात्कार के आरोपी को जमानत दी
बलात्कार के आरोपी को ज़मानत देते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि मुकदमे से पहले लंबे समय तक हिरासत में रखना स्वतंत्रता के लिए अभिशाप है। न्यायालय ने यह भी कहा कि मुकदमे के निकट भविष्य में समाप्त होने की संभावना नहीं है और अभियोजन पक्ष की महिला अपने बयान से मुकर गई।जस्टिस मिलिंद रमेश फड़के ने कहा:"मामले के समग्र तथ्यों और परिस्थितियों, आरोपों की प्रकृति और अभियोजन पक्ष के बयान को देखते हुए, जिसमें उसने अपने बयान से मुकरते हुए अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं किया, साथ ही इस तथ्य को...


















