सुप्रीम कोर्ट ने सांस्कृतिक भिन्नताओं के कारण लोगों को निशाना बनाए जाने पर जताई चिंता
Praveen Mishra
11 Nov 2025 3:21 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने आज मौखिक रूप से टिप्पणी करते हुए कहा कि यह देखकर दुख होता है कि देश में लोगों को सांस्कृतिक और नस्लीय भिन्नताओं के कारण निशाना बनाया जा रहा है। अदालत ने हाल ही में दिल्ली में एक व्यक्ति के साथ हुई उस घटना का उल्लेख किया, जिसमें उसे “लुंगी” पहनने पर मज़ाक का पात्र बनाया गया। अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार को ऐसे सांस्कृतिक और नस्लीय भेदभाव के मामलों को लेकर गंभीर होना चाहिए, विशेष रूप से जब यह पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों से संबंधित हो।
यह टिप्पणी जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे की खंडपीठ ने एक 2015 में दाखिल याचिका की सुनवाई के दौरान की। यह याचिका संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई थी, जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले पूर्वोत्तर के लोगों पर होने वाले नस्लीय हमलों और अपमानजनक व्यवहार से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने और इसके लिए निर्देश (guidelines) जारी करने की मांग की गई थी। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार द्वारा दायर स्थिति रिपोर्ट (status report) पर बहस हुई।
सुनवाई के दौरान एडवोकेट गैचांगपाउ गांगमेई ने अदालत को बताया कि पूर्वोत्तर के लोगों के साथ नस्लीय भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार की घटनाएं अब भी जारी हैं। वहीं, केंद्र सरकार की ओर से एडिसनल सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने कहा कि इस याचिका में अब कुछ शेष नहीं रहा, क्योंकि इस मुद्दे से निपटने के लिए एक मॉनिटरिंग कमिटी (Monitoring Committee) पहले से गठित की गई है।
इस पर जस्टिस संजय कुमार ने टिप्पणी की —
“हाल ही में हमने अखबार में पढ़ा कि केरल के एक व्यक्ति का दिल्ली में केवल 'लुंगी' पहनने पर मज़ाक उड़ाया गया। यह किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं है। हम एक देश हैं, जहां लोग विविधता में एकता के साथ रहते हैं। सरकार को इस पर अधिक ध्यान देना चाहिए।”
इस याचिका में समय-समय पर कई आदेश पारित किए जा चुके हैं। 1 मई 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि 2016 में गठित मॉनिटरिंग कमिटी के कार्यों पर एक अपडेटेड स्थिति रिपोर्ट दाखिल की जाए। यह कमिटी कर्मा दोर्जी एवं अन्य बनाम भारत संघ (2014) मामले में दिए गए आदेश के अनुसार बनाई गई थी।
गृह मंत्रालय (MHA) ने यह मॉनिटरिंग कमिटी बनाई थी ताकि पूर्वोत्तर के लोगों को झेलने पड़ने वाले नस्लीय भेदभाव और अपमान की शिकायतों की निगरानी की जा सके और उनका समाधान किया जा सके। यह कमिटी 2014 में एम.पी. बेजबरूआ (सेवानिवृत्त IAS) की अध्यक्षता में गठित एक अन्य समिति की सिफारिशों के कार्यान्वयन की समीक्षा भी करती है।
एएसजी के.एम. नटराज द्वारा दायर नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, मॉनिटरिंग कमिटी अब तक 14 बार बैठक कर चुकी है, जिसकी अंतिम बैठक 9 जुलाई 2025 को हुई थी। कमिटी ने दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से अधिवक्ताओं को पैनल में शामिल किया है ताकि पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोगों को कानूनी सहायता दी जा सके। साथ ही, पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए विशेष पुलिस इकाई (Special Police Unit) भी स्थापित की गई है।
सरकार ने रिपोर्ट में बताया कि उसने फौजदारी कानूनों की व्यापक समीक्षा कर उन्हें भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) से प्रतिस्थापित किया है, जिनमें घृणा भाषण और घृणा अपराध (hate speech and hate crime) से निपटने के लिए पर्याप्त प्रावधान मौजूद हैं। इसके अलावा, पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों से नस्लीय भेदभाव से संबंधित शिकायतें दर्ज करने के लिए एक विशेष ऑनलाइन पोर्टल भी स्थापित किया गया है।
हालांकि, याचिकाकर्ता ने दलील दी कि मॉनिटरिंग कमिटी, जिसे हर तीन महीने में बैठक करनी थी, ने नौ साल में केवल 14 बैठकें की हैं, जो कि अपर्याप्त है।
अदालत ने याचिकाकर्ता को केंद्र द्वारा दायर स्थिति रिपोर्ट पर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

