दिल्ली धमाकों के अगले दिन सुप्रीम कोर्ट ने ISIS विचारधारा फैलाने के आरोपी की जमानत ठुकराई

Praveen Mishra

11 Nov 2025 4:00 PM IST

  • दिल्ली धमाकों के अगले दिन सुप्रीम कोर्ट ने ISIS विचारधारा फैलाने के आरोपी की जमानत ठुकराई

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ISIS विचारधारा को बढ़ावा देने और आतंकी गतिविधियों की साजिश में शामिल होने के आरोप में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA) के तहत गिरफ्तार आरोपी को जमानत देने से इंकार कर दिया।

    जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता की विशेष अनुमति याचिका (SLP) खारिज कर दी, जिसमें उसने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसने जमानत से इंकार किया था। आरोपी पिछले दो साल से अधिक समय से जेल में बंद है।

    अदालत ने कहा —

    “हम हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं। मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, यह ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता दो साल से अधिक समय से हिरासत में है और 64 प्रस्तावित गवाहों में से 19 के बयान दर्ज किए जा चुके हैं, हम ट्रायल कोर्ट को निर्देश देते हैं कि मुकदमे की कार्यवाही दो वर्षों में पूरी की जाए। अभियोजन और बचाव पक्ष को सहयोग करना होगा। यदि मुकदमा दो वर्षों में पूरा नहीं होता और इसमें याचिकाकर्ता की कोई गलती नहीं होती, तो उसे दोबारा जमानत की अर्जी दाखिल करने की अनुमति होगी।”

    सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ डे याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए। सुनवाई की शुरुआत में उन्होंने कहा —

    “कल की घटना के बाद आज यह मामला रखना मेरे लिए आसान नहीं है।”

    संभवतः वह दिल्ली में हुई कार बम विस्फोट की घटना का जिक्र कर रहे थे, जिसमें कई लोगों की मौत हुई थी। इस पर न्यायमूर्ति मेहता ने कहा —

    “आज ही का दिन है ऐसा संदेश देने का।”

    जस्टिस नाथ ने कहा —

    “यह तथ्य स्वीकार किया गया है कि आपके पास से आपत्तिजनक सामग्री बरामद हुई है।”

    डे ने कहा कि उनके मुवक्किल के पास से केवल इस्लामिक साहित्य बरामद हुआ था। हालांकि, पीठ ने कहा कि आरोपों में आईएसआईएस जैसी विचारधारा फैलाने वाला व्हाट्सएप ग्रुप बनाने की बात शामिल है।

    डे ने तर्क दिया कि संरक्षित गवाह (protected witness) ने कहा था कि NIA अधिकारी उस पर झूठा बयान देने का दबाव डाल रहे हैं और उसने गवाही देने से इनकार कर दिया है। इस पर जस्टिस मेहता ने पूछा —

    “गवाह को छोड़िए, आप बताइए — जब आपने आईएसआईएस जैसे नाम और झंडे वाला ग्रुप बनाया, तो उसका मकसद क्या था?”

    डे ने कहा कि केवल “योजना बनाना” साजिश नहीं कहलाता। उन्होंने उदाहरण दिया —

    “अगर मैं केवल अपने मन में सोचता हूं कि मुझे कोई जगह उड़ानी है, तो क्या यह अपराध है?”

    अदालत ने कहा कि मामले में प्राथमिक दृष्टया (prima facie) आरोप सिद्ध होते हैं।

    जस्टिस मेहता ने टिप्पणी की —

    “आप पर देश में आतंक फैलाने का आरोप है।”

    जबकि जस्टिस नाथ ने कहा —

    “आपकी गतिविधियाँ समाज की शांति और सभ्यता को प्रभावित करती हैं।”

    डे ने तर्क दिया कि RDX या कोई विस्फोटक पदार्थ बरामद नहीं हुआ और उनका मुवक्किल 70% विकलांग है तथा ढाई साल से अधिक समय से जेल में बंद है।

    फिर भी, अदालत ने जमानत देने से इंकार कर दिया और ट्रायल कोर्ट को दो वर्षों में मुकदमे की सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया।

    गौरतलब है कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 6 जनवरी 2025 को विशेष NIA कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए जमानत देने से इंकार किया था।

    हाईकोर्ट ने पाया था कि आरोपी आईएसआईएस से जुड़ा हुआ था, उसने “फीसबिलिल्लाह” नामक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया था, जिसका डिस्प्ले पिक्चर आईएसआईएस के झंडे जैसा था, और उसने अपने सह-आरोपियों के साथ मिलकर जबलपुर ऑर्डनेंस फैक्ट्री पर हमला कर हथियार प्राप्त करने की साजिश रची थी।

    हाईकोर्ट ने माना था कि जब्त की गई सामग्री — जैसे आईएसआईएस से जुड़े वीडियो, साहित्य और संचार रिकॉर्ड — आरोपी के खिलाफ प्राथमिक रूप से अपराध सिद्ध करते हैं और UAPA की धारा 13, 17, 18, 20, 38, 39 और 40 के तहत मामला बनता है।

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