हरियाणा पुलिस द्वारा गिरफ्तारी के खिलाफ एडवोकेट ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया

Praveen Mishra

11 Nov 2025 3:08 PM IST

  • हरियाणा पुलिस द्वारा गिरफ्तारी के खिलाफ एडवोकेट ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया

    सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा पुलिस द्वारा एक एडवोकेट की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर कल (12 नवंबर) सुनवाई करने पर सहमति जताई है। यह मामला गुरुग्राम पुलिस द्वारा एडवोकेट विक्रम सिंह की गिरफ्तारी से संबंधित है।

    एडवोकेट मनीष दुबे ने इस मामले का तत्काल उल्लेख (urgent mentioning) मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की पीठ के समक्ष किया। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और वरिष्ठ एडवोकेट विकास सिंह ने भी इस याचिका का समर्थन करते हुए कहा कि यह मामला वकालत पेशे की स्वतंत्रता (independence of the legal profession) से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा —

    “एक ऐसे एडवोकेट को गिरफ्तार किया गया है जिसके खिलाफ समन जारी करने लायक भी कोई सबूत नहीं है।”

    इस पर चीफ़ जस्टिस बी.आर. गवई ने मामले की कल सुनवाई करने पर सहमति जताई।

    गौरतलब है कि पिछले सप्ताह दिल्ली की जिला अदालतों के वकीलों ने एडवोकेट विक्रम सिंह की गिरफ्तारी के विरोध में कार्य से विरत (strike) रहकर विरोध प्रदर्शन किया था।

    एडवोकेट विक्रम सिंह को गुरुग्राम एसटीएफ (STF) ने 31 अक्टूबर 2025 को गिरफ्तार किया था, और 1 नवंबर 2025 को उन्हें न्यायिक मजिस्ट्रेट, फरीदाबाद द्वारा 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया था।

    यह मामला सूरज भान नामक व्यक्ति की हत्या से जुड़ा है, जिसे कथित तौर पर कपिल सांगवान उर्फ नंदू गिरोह ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस मामले में विक्रम सिंह के मुवक्किल ज्योति प्रकाश उर्फ बाबू को 16 मार्च 2024 को गिरफ्तार किया गया था।

    याचिका के अनुसार, एडवोकेट विक्रम सिंह ने अदालत में कई आवेदन दाखिल किए थे, जिनमें उन्होंने आरोप लगाया था कि उनका मुवक्किल पुलिस हिरासत में प्रताड़ित किया जा रहा है।

    सिंह ने अपनी याचिका में बताया कि जांच अधिकारी (IO) ने उन्हें सीआरपीसी की धारा 41A के तहत नोटिस भेजे थे, जिनमें उनसे अपने मुवक्किलों — जिनमें कपिल सांगवान भी शामिल हैं — से जुड़ी जानकारी देने को कहा गया था। उन्होंने कहा कि 31 अक्टूबर 2025 को जब वह ऐसे ही एक नोटिस के जवाब में पुलिस थाने पहुंचे, तो उन्हें बिना किसी वैध कारण के गिरफ्तार कर लिया गया।

    संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर इस याचिका में सिंह ने अपनी गिरफ्तारी को एक “असाधारण मामला” बताया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की आवश्यकता है, क्योंकि यह बार की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है।

    याचिका में कहा गया है —

    “एफआईआर दर्ज होने के 19 महीने बाद अचानक गिरफ्तारी की कार्रवाई, जब बाकी सभी अभियुक्तों को जमानत मिल चुकी है, यह दर्शाती है कि वकील को उसके मुवक्किलों का निडरता से बचाव करने की सजा दी जा रही है।”

    याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि यह कार्रवाई संवैधानिक सुरक्षा प्रावधानों की अवहेलना में की गई है, जो वकीलों को भयभीत करने और न्याय व्यवस्था की नींव को कमजोर करने का प्रयास है।

    याचिका में कहा गया है कि यह कानून का स्थापित सिद्धांत है कि किसी एडवोकेट को अपने मुवक्किल की जानकारी उजागर करने या व्यावसायिक कर्तव्यों के निर्वहन के लिए जबरदस्ती की कार्रवाई का सामना नहीं करना पड़ सकता। ऐसा करना कानून के शासन (Rule of Law) और कानूनी प्रतिनिधित्व के अधिकार पर सीधा आघात है।

    याचिका में हाल ही में आए सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें अदालत ने पुलिस अधिकारियों को वकीलों को उनके मुवक्किलों की जानकारी देने के लिए तलब न करने का निर्देश दिया था।

    Next Story