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NI Act में चेक बाउंस के केस संबंधित प्रक्रिया
NI Act में चेक बाउंस के केस से संबंधित प्रक्रिया दी हुई है। इस एक्ट में तीन तरह के इंस्ट्रूमेंट से संबंधित प्रावधान हैं लेकिन चेक बाउंस से संबंधित प्रक्रिया धारा 142 में विशेष रूप से दी गयी है। यह धारा 142 धारा 138 के अंतर्गत गठित अपराध के संबंध में प्रस्तुत किए गए परिवाद के संज्ञान की शर्तों को निर्धारित कर रही है।किसी परिवाद परपरिवाद विधिक अवधि एक के अन्दरमहानगरीय मजिस्ट्रेट या प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट के समक्षकिसी अपराध का संज्ञान लेना किसी अपराधी के विरुद्ध न्यायिक कार्यवाही को साशय प्रारम्भ...
धारा 40 राजस्थान न्यायालय शुल्क मूल्यांकन अधिनियम, 1961 – विशिष्ट निष्पादन के वादों में न्याय शुल्क की गणना
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961) का उद्देश्य विभिन्न प्रकार के दीवानी वादों में न्यायालय शुल्क की गणना के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रदान करना है। इस अधिनियम की धारा 40 विशेष रूप से उन वादों से संबंधित है जहाँ वादी किसी अनुबंध के विशिष्ट निष्पादन (Specific Performance) की मांग करता है। इस धारा में यह निर्धारित किया गया है कि ऐसे वादों में न्यायालय शुल्क किस प्रकार से और कितनी राशि पर निर्धारित किया जाएगा।धारा 40 का सारांश ...
राजस्व प्रशासन में अधिकारियों की नियुक्ति: धारा 17 से 20, राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की
राज्य में ज़मीन से जुड़ी व्यवस्था और राजस्व (Revenue) प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक संगठित ढांचा आवश्यक होता है। इस उद्देश्य से राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 के तहत राज्य सरकार को यह अधिकार प्राप्त है कि वह अलग-अलग स्तरों पर विभिन्न प्रकार के राजस्व अधिकारी नियुक्त कर सके।पहले के प्रावधानों जैसे धारा 4 में Board of Revenue की स्थापना और धारा 6 से 14 तक Revenue Officers की श्रेणियों और उनकी शक्तियों को निर्धारित करने के बाद, अब धाराs 17 से 20 तक राज्य सरकार द्वारा किए जाने वाले...
धारा 433 BNSS, 2023 – जब अपीलीय पीठ के न्यायाधीशों की राय समान रूप से विभाजित हो
किसी भी आपराधिक न्याय व्यवस्था (Criminal Justice System) में अपील का अधिकार (Right to Appeal) न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) का एक आवश्यक अंग होता है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में अध्याय XXX (Chapter XXX) के अंतर्गत अपील से संबंधित विस्तृत प्रक्रियाएं दी गई हैं।इन्हीं प्रावधानों में एक महत्वपूर्ण स्थिति तब आती है जब हाईकोर्ट (High Court) में अपील की सुनवाई करने वाले न्यायाधीशों की राय एक समान नहीं होती—यानी वे विभाजित मत (Equally Divided Opinion) में रहते हैं। ऐसी स्थिति से कैसे...
क्या हाईकोर्ट, आर्म्ड फोर्सेज ट्राइब्यूनल के फैसलों को चुनौती देने वाली रिट याचिकाएं सुन सकता है?
सुप्रीम कोर्ट द्वारा Union of India बनाम परशोतम दास (Parashotam Dass) [2023] में दिया गया निर्णय एक ऐतिहासिक फ़ैसला है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि क्या देश के हाई कोर्ट्स (High Courts) आर्म्ड फोर्सेज ट्राइब्यूनल (Armed Forces Tribunal – AFT) के निर्णयों को रिट याचिका (Writ Petition) द्वारा चुनौती देने वाले मामलों की सुनवाई कर सकते हैं या नहीं।इस फैसले से पहले Union of India बनाम मेजर जनरल श्रीकांत शर्मा (Shri Kant Sharma) (2015) के मामले में कहा गया था कि हाईकोर्ट ऐसे मामलों में हस्तक्षेप नहीं...
धारा 15 राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 के तहत प्रशासनिक सीमाओं की संरचना
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956, राज्य में ज़मीन से जुड़े प्रशासन और Revenue व्यवस्था को संचालित करने वाला एक मुख्य कानून है। इस Act की शुरुआत में ज़मीन से जुड़ी संस्थाओं और अधिकारियों की नियुक्ति से लेकर उनके अधिकारों और कार्यों का विवरण दिया गया है। जैसे—Section 4 में Board of Revenue की स्थापना होती है, Section 6 से 8 तक Revenue Officers जैसे Divisional Commissioner, Collector, Tehsildar आदि की नियुक्ति होती है। फिर Section 9 में Board को इन अधिकारियों पर Supervisory (निरीक्षणात्मक) अधिकार...
धारा 432 BNSS 2023 : अपीलीय न्यायालय द्वारा अतिरिक्त साक्ष्य लेना या उसे लेने का निर्देश देना
अदालतों द्वारा दिए गए निर्णय अंतिम माने जाते हैं, लेकिन हमारे देश की न्यायिक व्यवस्था में अपील का अधिकार एक महत्वपूर्ण अधिकार है, जिससे किसी भी व्यक्ति को न्याय पाने का दूसरा मौका मिलता है। जब कोई मामला अपीलीय अदालत में पहुँचता है, तब वहाँ सिर्फ रिकॉर्ड देख कर ही निर्णय नहीं लिया जाता, बल्कि यदि आवश्यक हो, तो अदालत खुद से या अन्य किसी सक्षम अदालत को यह आदेश दे सकती है कि अतिरिक्त साक्ष्य (Additional Evidence) लिया जाए। यही प्रावधान धारा 432 में किया गया है।अपीलीय न्यायालय द्वारा अतिरिक्त साक्ष्य...
धारा 39 राजस्थान कोर्ट फीस मूल्यांकन अधिनियम, 1961 : कुर्की रद्द करने के वादों में न्याय शुल्क की गणना
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961) का उद्देश्य यह निर्धारित करना है कि विभिन्न प्रकार के दीवानी वादों (Civil Suits) में न्यायालय शुल्क (Court Fee) किस प्रकार से लिया जाएगा। यह अधिनियम न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता (Transparency) बनाए रखने में सहायक होता है और सुनिश्चित करता है कि सभी वादी (Plaintiff) या प्रतिवादी (Defendant) समान न्यायिक प्रक्रिया का पालन करें।इस अधिनियम की धारा 39 विशेष रूप से उन मामलों से संबंधित है...
क्या केंद्र सरकार बिना कानून बदले किसी State Administrative Tribunal को खत्म कर सकती है?
Orissa Administrative Tribunal Bar Association v. Union of India नामक मामले में, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 21 मार्च 2023 को निर्णयित किया, यह तय किया गया कि क्या केंद्र सरकार (Union Government) के पास यह अधिकार है कि वह एक बार बनाए गए राज्य प्रशासनिक अधिकरण (State Administrative Tribunal या SAT) को समाप्त (Abolish) कर सकती है, वह भी बिना संसद में किसी नए कानून को पारित किए।इस केस का मुख्य मुद्दा यह था कि जब संविधान के Article 323-A और Administrative Tribunals Act, 1985 के तहत एक Tribunal को स्थापित...
NI Act में बैंक कब किसी चेक को भूनने से इनकार कर सकती है?
चेक के सम्बन्ध में लेखीवाल एवं ऊपरवाल (बैंक) के बीच में संविदात्मक सम्बन्ध होता है। ऐसा सम्बन्ध पाने वाला या धारक एवं बैंक के बीच में नहीं होता है। इस प्रकार पाने वाला/धारक बैंक के विरुद्ध कोई उपचार नहीं रखता है।अतः उक्त (i) एवं (ii) के सम्बन्ध में चेक के बाउंस की आबद्धता चेक के पाने वाला/धारक के प्रति आबद्धता लेखीवाल की होती है न कि बैंक की। जहाँ बैंक किसी ग्राहक के चेक का बाउंस करता है, ग्राहक के खाते में पर्याप्त निधि के बावजूद बिना पर्याप्त कारण के वहाँ बैंक ग्राहक के प्रति आबद्ध होता है न...
NI Act में चेक बाउंस का क्राइम
चेक एक इंस्ट्रूमेंट है जिसके बाउंस होने को क्राइम बनाया गया है। अपराध के रूप में चेकों के बाउंस से सम्बन्धित विधि 1988 के संशोधन से मूल रूप में धारा 138 से 142 तक थी। धारा 143-147, 2002 के संशोधन से प्रभावी 2003 से एवं धारा 148, 2018 में जोड़ी गयी। अब इस सम्बन्ध में विधि धारा 138 से 142 तक है। खातों में अपर्याप्त निधियों के कारण (चेक के लेखीवाल के खाते में) कतिपय चेकों के बाउंस की दशा में शास्तियों के सम्बन्ध में उक्त उपबन्ध अपने आप में सम्पूर्ण संहिता है।अध्याय 8 की धारा 91 से 104 तक के...
राजस्थान न्यायालय शुल्क मूल्यांकन अधिनियम, 1961 की धारा 38– डिक्री अथवा अन्य दस्तावेज को रद्द करने के लिए वादों में कोर्ट फीस की गणना
संपत्ति के अधिकारों और आर्थिक विवादों में अक्सर कुछ ऐसे दस्तावेज या डिक्री सामने आते हैं जिनसे किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों, संपत्ति के स्वामित्व, दावे या हक को नुकसान पहुंचता है। ऐसे मामलों में व्यक्ति अदालत की शरण में जाकर उस डिक्री या दस्तावेज को रद्द करने की मांग करता है। Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961 की धारा 38 इन्हीं वादों में देय न्याय शुल्क (Court Fee) की गणना की विधि को निर्धारित करती है।धारा 38 विशेष रूप से उन मामलों को कवर करती है जिनमें वादी (Plaintiff) किसी...
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 11 से 14– प्रश्नों के संदर्भ, हाईकोर्ट से मत, भिन्न मतों का एवं अभिलेखों का संधारण
प्रस्तावनाराजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 राज्य के भीतर भूमि राजस्व प्रशासन और न्यायिक व्यवस्था को नियंत्रित करने वाला एक प्रमुख अधिनियम है। इसकी प्रारंभिक धाराओं में राजस्व बोर्ड की स्थापना, उसकी शक्तियों और अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण की व्यवस्था की गई है। जैसे कि हमने पहले देखा, धारा 9 में अधीनस्थ न्यायालयों पर बोर्ड का सामान्य पर्यवेक्षण निर्धारित है, जबकि धारा 10 में बोर्ड द्वारा मामलों को एकल सदस्य या पीठ के माध्यम से कैसे सुना जाएगा, यह स्पष्ट किया गया है। अब हम उन धाराओं को समझते...
क्या PMLA की Section 45, CrPC की Section 438 के तहत दी गई Anticipatory Bail पर भी लागू होती है?
Directorate of Enforcement v. M. Gopal Reddy मामले में, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 24 फरवरी 2023 को निर्णयित किया, एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न पर विचार किया गया – क्या Prevention of Money Laundering Act, 2002 (PMLA) की Section 45 में जो सख्त शर्तें (Rigorous Conditions) हैं, वे Anticipatory Bail (पूर्व-गिरफ्तारी जमानत) पर भी लागू होती हैं, जिसे CrPC (Code of Criminal Procedure) की Section 438 के तहत मांगा जाता है?सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें आरोपी को Anticipatory Bail...
धारा 431 BNSS 2023: दोषमुक्ति के विरुद्ध अपील में अभियुक्त की गिरफ्तारी
भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली (Criminal Justice System) का मूल सिद्धांत यह है कि हर व्यक्ति तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक कि उसे अपराधी सिद्ध न कर दिया जाए।लेकिन जब कोई अभियुक्त निचली अदालत (Lower Court) से दोषमुक्त (Acquitted) हो जाता है, और अभियोजन पक्ष (Prosecution) या राज्य सरकार (State Government) उसके विरुद्ध हाईकोर्ट (High Court) में अपील (Appeal) करती है, तब यह प्रश्न उठता है कि उस दोषमुक्त व्यक्ति को क्या दोबारा न्यायालय के समक्ष लाया जा सकता है? इसी स्थिति के लिए भारतीय नगरिक सुरक्षा...
संयुक्त कब्जे और संपत्ति प्रशासन से संबंधित मुकदमों में Court Fee का निर्धारण – Rajasthan Court Fees Act, 1961 की धारा 36 और 37
संपत्ति के अधिकार और उसका निष्पक्ष वितरण (Fair Distribution) भारतीय समाज में हमेशा से विवाद का विषय रहा है। अक्सर लोग अदालत का दरवाजा तब खटखटाते हैं जब उन्हें उनके हिस्से की संपत्ति से वंचित कर दिया जाता है या वे यह महसूस करते हैं कि उन्हें उनकी वैधानिक हिस्सेदारी (Legal Share) नहीं मिल रही है।इसी संदर्भ में दो प्रकार के मुकदमे आम तौर पर दाखिल किए जाते हैं—एक, जब Plaintiff को संयुक्त संपत्ति से बाहर कर दिया गया हो और वह Joint Possession की मांग करता है; और दूसरा, जब कोई संपत्ति या एस्टेट...
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 9 और 10 के अंतर्गत अधीनस्थ राजस्व न्यायालयों पर सामान्य पर्यवेक्षण और बोर्ड का क्षेत्राधिकार किस प्रकार प्रयोग किया जाता है?
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 के प्रारंभिक प्रावधानों में राज्य में राजस्व न्यायिक प्रणाली की नींव रखी गई है। अधिनियम की धारा 4 से लेकर धारा 8 तक, राजस्व बोर्ड की स्थापना, उसकी संरचना, मुख्यालय, अधिकार और कर्तव्यों के बारे में विस्तार से बताया गया है। धारा 4 में बोर्ड के गठन की बात की गई है, धारा 5 में सदस्यों की नियुक्ति और कार्यकाल का उल्लेख है, धारा 6 में मुख्यालय अजमेर बताया गया है, जबकि धारा 7 में मंत्रीगणीय अधिकारियों की नियुक्ति और धारा 8 में बोर्ड की शक्तियों को बताया गया है।अब हम...
क्या जमानत मिलने के बाद भी Undertrial Prisoners को जेल में रखना Article 21 का उल्लंघन है?
In Re: Policy Strategy for Grant of Bail नामक मामले में, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 31 जनवरी 2023 को तय किया, कोर्ट ने भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली (Criminal Justice System) की एक गंभीर समस्या को उठाया — वह यह कि बहुत से Undertrial Prisoners (विचाराधीन कैदी) ज़मानत (Bail) मिलने के बावजूद जेल में बंद रहते हैं।इसका मुख्य कारण यह होता है कि वे गरीब होते हैं, ज़मानत की शर्तें (Conditions) पूरी नहीं कर पाते, या फिर Court के आदेशों की Jail तक सूचना समय पर नहीं पहुँच पाती। इस फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सात...
धारा 430 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 : अपील लंबित होने पर सजा पर रोक और दोषी को जमानत पर रिहा करने का प्रावधान
BNS, 2023 के अंतर्गत जब किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है और वह उस निर्णय के विरुद्ध अपील करता है, तो यह स्वाभाविक है कि वह अपीलीय न्यायालय से यह प्रार्थना करेगा कि जब तक उसकी अपील पर निर्णय नहीं हो जाता, तब तक उसे जेल में न रखा जाए और उसकी सजा पर रोक लगाई जाए।इसी संदर्भ में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 430 एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान है। यह धारा यह निर्धारित करती है कि अपील लंबित रहने के दौरान सजा को निलंबित कैसे किया जा सकता है और दोषी व्यक्ति को किन...
NI Act में चेक के मामले में बैंक की जिम्मेदारी
इस में किसी भी चेक के मामले में पेमेंट प्राप्त करने वाले बैंक को जिम्मेदारी दी गयी है। इसका उल्लेख इस एक्ट की धारा 131 में मिलता है। संग्राहक बैंक वह होता है जो समाशोधन द्वारा चेक की धनराशि का संग्रहण करता है। चेकों का संग्रहण महत्वपूर्ण सुविधा है जो बैंक अपने ग्राहक को प्रदान करता है। चेकों का संग्रहण खुला एवं क्रास दोनों चेकों का होता है, पर धारा 131 केवल क्रास चेक के संदाय के सम्बन्ध में संग्राहक बैंक को संरक्षण प्रदान करती है। धारा 131क अब माँग ड्राफ्ट को भी ऐसी संरक्षण प्रदान करती है। बैंक...




















