वॉरंट मामलों में ट्रायल का निष्कर्ष और शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति: धारा 271 और 272, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023
Himanshu Mishra
20 Nov 2024 7:25 PM IST
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023), वॉरंट मामलों (Warrant Cases) की सुनवाई के लिए एक विस्तृत प्रक्रिया प्रदान करती है। धारा 271 और 272 ट्रायल के निष्कर्ष और शिकायतकर्ता (Complainant) की अनुपस्थिति से संबंधित प्रक्रियाओं पर ध्यान केंद्रित करती हैं। ये प्रावधान अभियोजन और आरोपी दोनों के लिए निष्पक्षता सुनिश्चित करते हैं।
धारा 271: ट्रायल का निष्कर्ष (Conclusion of Trial)
धारा 271 उस प्रक्रिया का वर्णन करती है जिसका पालन मजिस्ट्रेट (Magistrate) को ट्रायल समाप्त होने पर करना चाहिए। यह मामले के परिणामों के अनुसार उचित कदम उठाने की आवश्यकता पर जोर देती है।
आरोपी का बरी होना (Acquittal of the Accused)
यदि मजिस्ट्रेट यह पाते हैं कि आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोप साबित नहीं हुए हैं, तो वह आरोपी को बरी (Acquittal) करने का आदेश देंगे। यह आदेश यह सुनिश्चित करता है कि निर्दोष व्यक्ति को राहत मिले।
उदाहरण (Example):
एक चोरी के मामले में, यदि अभियोजन पक्ष (Prosecution) यह साबित करने के लिए कोई ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफल रहता है कि आरोपी अपराध में शामिल था, तो मजिस्ट्रेट आदेश देते हैं कि आरोपी को बरी कर दिया जाए।
आरोपी का दोषी ठहराया जाना (Conviction of the Accused)
यदि मजिस्ट्रेट आरोपी को दोषी पाते हैं, लेकिन धारा 364 (विशेष सजा) या 401 (परिवीक्षा के प्रावधान) के अनुसार कार्यवाही नहीं करते, तो उन्हें:
1. आरोपी को सजा के संबंध में अपनी बात रखने का अवसर देना होगा।
2. कानून के अनुसार उपयुक्त सजा सुनानी होगी।
उदाहरण (Example):
मान लीजिए, एक व्यक्ति पर हमला करने का आरोप साबित हो जाता है। सजा सुनाने से पहले, मजिस्ट्रेट आरोपी को यह अवसर देते हैं कि वह अपनी परिस्थिति जैसे कि पहली बार अपराध करने का मामला या आर्थिक स्थिति को उनके सामने रख सके।
पिछले दोषसिद्धि का आरोप (Previous Convictions)
अगर चार्ज में पहले की किसी दोषसिद्धि (Previous Conviction) का उल्लेख है, और आरोपी इसे स्वीकार नहीं करता, तो मजिस्ट्रेट:
1. वर्तमान मामले में आरोपी को पहले दोषी ठहराएंगे।
2. पिछले दोषसिद्धि की जांच के लिए साक्ष्य लेंगे और उस पर निर्णय देंगे।
हालांकि, यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि ट्रायल के दौरान पिछले दोषसिद्धि का उल्लेख न किया जाए, ताकि आरोपी के खिलाफ पूर्वाग्रह न उत्पन्न हो।
उदाहरण (Example):
यदि किसी व्यक्ति पर चोरी का आरोप है और यह भी आरोप है कि वह पहले भी चोरी के मामले में दोषी ठहराया गया था, तो ट्रायल के दौरान इस बात का कोई जिक्र नहीं किया जाएगा। लेकिन, वर्तमान अपराध में दोषी ठहराने के बाद, पिछले दोषसिद्धि के साक्ष्य की जांच की जाएगी।
धारा 272: शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति (Absence of Complainant)
धारा 272 उन मामलों को नियंत्रित करती है जो शिकायत के आधार पर शुरू हुए हैं। अगर किसी सुनवाई की तारीख पर शिकायतकर्ता अनुपस्थित है, तो मजिस्ट्रेट आरोपी को डिस्चार्ज (Discharge) करने का आदेश दे सकते हैं, लेकिन इसके लिए कुछ शर्तें हैं।
डिस्चार्ज के लिए शर्तें (Conditions for Discharge)
मजिस्ट्रेट आरोपी को डिस्चार्ज कर सकते हैं यदि:
1. अपराध गैर-संज्ञेय (Non-Cognizable) या समझौतायोग्य (Compoundable) है।
2. शिकायतकर्ता को सुनवाई में उपस्थित होने के लिए 30 दिन का नोटिस दिया गया हो, और वह फिर भी उपस्थित न हो।
यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि अदालत में अनावश्यक मामलों का बोझ न बढ़े और आरोपी को अनावश्यक मुकदमेबाजी से बचाया जा सके।
उदाहरण (Example):
एक पड़ोसी विवाद में, जिसमें संपत्ति के सीमांकन (Boundary Dispute) को लेकर शिकायत दर्ज की गई थी, शिकायतकर्ता बार-बार सुनवाई में अनुपस्थित रहता है। मजिस्ट्रेट 30 दिन का नोटिस जारी करते हैं। यदि शिकायतकर्ता इसके बाद भी उपस्थित नहीं होता, तो मजिस्ट्रेट आरोपी को डिस्चार्ज करने का आदेश दे सकते हैं।
पिछली धाराओं से संबंध (Connection with Previous Sections)
धारा 271 और 272 पहले की धाराओं के साथ एक संगठित प्रक्रिया बनाती हैं:
• धारा 261-263: इन धाराओं में ट्रायल शुरू होने और आरोप तय करने की प्रक्रिया का वर्णन है। धारा 271 इन प्रक्रियाओं के समाप्त होने के बाद उचित निर्णय सुनिश्चित करती है।
• धारा 264-270: ये धाराएं दोष-स्वीकृति (Plea of Guilt), साक्ष्य, और बचाव की प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करती हैं। धारा 271 इन प्रक्रियाओं के निष्कर्ष पर सजा या बरी करने की प्रक्रिया को लागू करती है।
न्याय और प्रक्रिया में संतुलन (Balancing Justice and Procedure)
धारा 271 और 272 न्याय और प्रक्रिया के बीच एक संतुलन स्थापित करती हैं:
1. धारा 271: यह सुनिश्चित करती है कि आरोपी को न्यायसंगत तरीके से बरी या दोषसिद्ध किया जाए।
2. धारा 272: यह अदालत और आरोपी दोनों को उन मामलों में राहत देती है जहां शिकायतकर्ता गंभीरता नहीं दिखाता।
ये प्रावधान न्यायिक दक्षता (Judicial Efficiency) बनाए रखते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि प्रक्रिया सभी पक्षों के लिए निष्पक्ष हो।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 271 और 272 ट्रायल प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। धारा 271 ट्रायल के निष्कर्ष के लिए विस्तृत मार्गदर्शन प्रदान करती है, जिससे न्यायसंगत निर्णय सुनिश्चित होता है। धारा 272 शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति के मामलों में अदालत के समय और आरोपी के अधिकारों की रक्षा करती है।
ये प्रावधान प्रक्रिया को पारदर्शी और न्यायसंगत बनाते हैं, जिससे भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली की प्रभावशीलता और निष्पक्षता में सुधार होता है।