इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को कानूनी मान्यता: भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 का योगदान
Himanshu Mishra
20 Nov 2024 7:21 PM IST
1 जुलाई 2024 से लागू हुआ भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Bharatiya Sakshya Adhiniyam) भारतीय कानून के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लेकर आया है। यह अधिनियम 1872 के औपनिवेशिक-युग के भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की जगह लेता है और आधुनिक तकनीकी प्रगति के अनुरूप साक्ष्य के नियमों को अपडेट करता है।
भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita) के साथ यह अधिनियम भी भारत के आपराधिक न्याय प्रणाली में व्यापक बदलाव लाने का उद्देश्य रखता है।
डिजिटल रिकॉर्ड्स की मान्यता (Recognition of Digital Records)
इस अधिनियम के तहत, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स (Digital Records) को प्राथमिक साक्ष्य (Primary Evidence) का दर्जा दिया गया है, बशर्ते उन्हें प्रमाण-पत्र (Certificate) के माध्यम से सत्यापित किया जाए। यह डिजिटल डेटा की व्यापकता को स्वीकार करता है और इसे कानूनी प्रक्रियाओं में मान्य बनाता है।
ईमेल, टेक्स्ट मैसेज, सर्वर लॉग, वेबसाइट सामग्री और लोकेशन डेटा (Location Data) जैसे विभिन्न डिजिटल प्रारूप अब अदालत में साक्ष्य के रूप में स्वीकार किए जा सकते हैं।
उदाहरण (Example): मान लीजिए, एक विवादित अनुबंध (Disputed Contract) ईमेल के जरिए किया गया। यदि उस ईमेल को डिजिटल प्रमाण-पत्र के साथ प्रस्तुत किया जाता है, तो इसे प्राथमिक साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाएगा, जिससे पारंपरिक कागजी दस्तावेज़ों पर निर्भरता कम होगी।
मौखिक साक्ष्य का विस्तार (Enhancing Oral Evidence)
इस अधिनियम में मौखिक साक्ष्य (Oral Evidence) को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (Electronic Medium) से प्रस्तुत करने की अनुमति दी गई है। अब गवाह (Witnesses) अदालत में अपनी उपस्थिति के बिना भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (Video Conferencing) या अन्य डिजिटल माध्यमों से गवाही दे सकते हैं। यह सुविधा विशेष रूप से तब उपयोगी है जब किसी व्यक्ति की भौतिक उपस्थिति चुनौतीपूर्ण या अनावश्यक हो।
उदाहरण (Example): विदेश में रहने वाला एक गवाह सुरक्षित वीडियो लिंक के माध्यम से गवाही दे सकता है, जिससे यात्रा का समय और खर्च बचाया जा सके।
द्वितीयक साक्ष्य का दायरा बढ़ाना (Expansion of Secondary Evidence)
भारतीय साक्ष्य अधिनियम द्वितीयक साक्ष्य (Secondary Evidence) की परिभाषा को व्यापक बनाता है। पहले, द्वितीयक साक्ष्य तभी मान्य होता था जब मूल दस्तावेज़ (Original Document) अनुपलब्ध हो या नष्ट हो गया हो। अब इसमें मौखिक और लिखित स्वीकारोक्ति (Oral and Written Admissions) और दस्तावेज़ों की जांच में विशेषज्ञ की गवाही (Expert Testimony) को भी शामिल किया गया है।
उदाहरण (Example): यदि एक हाथ से लिखा वसीयतनामा (Handwritten Will) खो गया है, लेकिन उसे किसी विशेषज्ञ ने जांचा है, तो उनकी रिपोर्ट और गवाही इस अधिनियम के तहत द्वितीयक साक्ष्य मानी जाएगी।
इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की सुरक्षा (Safeguarding Electronic Evidence)
इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य (Electronic Evidence) के साथ सबसे बड़ी चुनौती इसे छेड़छाड़ (Tampering) से बचाना है। यह अधिनियम डिजिटल प्रमाण-पत्र (Digital Certificate) के माध्यम से साक्ष्य की विश्वसनीयता (Reliability) स्थापित करने पर जोर देता है। हालांकि, आलोचकों का मानना है कि छेड़छाड़ से बचाव के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपायों के बिना, न्यायिक प्रणाली डिजिटल साक्ष्य के दुरुपयोग की शिकार हो सकती है।
उदाहरण (Example): मान लीजिए, एक संपादित वीडियो क्लिप अदालत में प्रस्तुत की जाती है। यदि इसके प्रमाणीकरण (Authentication) की कठोर प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती, तो यह गलत निष्कर्ष तक ले जा सकती है।
सामूहिक परीक्षण के लिए प्रावधान (Provisions for Joint Trials)
यह अधिनियम सामूहिक परीक्षण (Joint Trials) की प्रक्रिया को भी स्पष्ट करता है। यदि किसी मामले में एक से अधिक आरोपी (Accused) शामिल हैं और उनमें से कोई फरार है या गिरफ्तारी वारंट का पालन नहीं कर रहा है, तो उनके खिलाफ सामूहिक परीक्षण किया जा सकता है।
उदाहरण (Example): मान लीजिए, वित्तीय धोखाधड़ी (Financial Fraud) के मामले में एक नेटवर्क के कई आरोपी हैं। इस अधिनियम के तहत, परीक्षण को एक साथ चलाने की अनुमति मिलती है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया सुगम होती है।
परंपरा और आधुनिकता का संतुलन (Balancing Tradition and Modernity)
भारतीय साक्ष्य अधिनियम परंपरागत साक्ष्य नियमों और समकालीन समाज की आवश्यकताओं के बीच संतुलन स्थापित करता है। यह जहां पुराने सिद्धांतों को बनाए रखता है, वहीं डिजिटल युग और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं (Global Best Practices) को भी शामिल करता है।
चुनौतियाँ और आलोचनाएँ (Challenges and Criticisms)
हालांकि यह अधिनियम भविष्य की ओर अग्रसर है, लेकिन इसमें कुछ संभावित खामियां (Loopholes) भी हैं। डिजिटल प्रमाण-पत्र (Certificate Authentication) पर निर्भरता, जबकि आवश्यक है, पूरी तरह से डिजिटल रिकॉर्ड्स के दुरुपयोग को रोकने में सक्षम नहीं हो सकती।
इसके अलावा, पुलिस हिरासत (Police Custody) में जबरन दिए गए बयानों की स्वीकार्यता (Admissibility) को लेकर चिंताएँ बनी हुई हैं।
उदाहरण (Example): यदि पुलिस हिरासत में आरोपी द्वारा चोरी के माल का स्थान बताया जाता है, तो यह स्वीकार्य हो सकता है। लेकिन यदि यह साबित हो जाए कि यह जानकारी जबरन ली गई है, तो इसकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम एक ऐतिहासिक सुधार है, जो भारतीय कानूनी प्रणाली को डिजिटल युग के अनुरूप बनाता है। साक्ष्य के दायरे का विस्तार करके, तकनीक की भूमिका को स्वीकार करके, और प्रक्रियात्मक जटिलताओं को हल करके, यह अधिनियम न्याय प्रणाली को सुदृढ़ करने का प्रयास करता है।
हालांकि, इसकी सफलता इस पर निर्भर करेगी कि इसे कितनी सख्ती और सतर्कता से लागू किया जाता है।