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भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 439 और 440: हाईकोर्ट और सेशन कोर्ट की जांच और पुनर्विचार की शक्तियों
भूमिकाभारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) भारत में दंड प्रक्रिया से संबंधित प्रमुख कानून है। इसमें आपराधिक मामलों की सुनवाई, जांच, पुनरीक्षण और अपील से जुड़ी प्रक्रियाओं का विस्तृत विवरण दिया गया है। संहिता के अध्याय 32 (अध्याय XXXII) में 'संदर्भ और पुनरीक्षण' (Reference and Revision) की प्रक्रिया को समाहित किया गया है। इस अध्याय की प्रारंभिक धाराएं जैसे धारा 436, 437 और 438 यह स्पष्ट करती हैं कि किस प्रकार कोई निचली अदालत हाईकोर्ट को संदर्भ भेज सकती...
SC/ST Act की धारा 3 के प्रावधान
अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की किसी स्त्री को साशय, यह जानते हुए स्पर्श करेगा कि वह अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से सम्बन्धित है, जबकि स्पर्श करने का ऐसा कार्य, लैंगिक प्रकृति का है और प्राप्तिकर्ता की सहमति के बिना है;अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की किसी स्त्री के बारे में, यह जानते हुए कि वह अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से सम्बन्धित है, लैंगिक प्रकृति के शब्दों, कार्यों या अंगविक्षेपों का उपयोग करेगा;स्पष्टीकरण- उपखण्ड (1) के प्रयोजनों के लिए "सहमति" पद से कोई सुस्पष्ट...
SC/ST Act अत्याचार निवारण से संबंधित प्रावधान
भारत के पार्लियामेंट ने इस अधिनियम में अत्याचार निवारण से संबंधित प्रावधान इस प्रकार किये हैं-अत्याचार के अपराधों के लिए दंड-1[ (1) कोई भी व्यक्ति, जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है-(क) अनुसूचति जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के मुख में कोई अखाद्य या घृणाजनक पदार्थ रखता है या ऐसे सदस्य को ऐसे अखाद्य या घृणाजनक पदार्थ पीने या खाने के लिए मजबूत करेगा;(ख) अनूसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य द्वारा दखलकृत परिसरों में या परिसरों के प्रवेश द्वार पर मल-मूत्र, मल,...
SC/ST Act में अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां
संविधान का अनुच्छेद 341, 342 और 366 अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को परिभाषा का वर्णन करता है, जो निम्न प्रकार से पठित है-अनुसूचित जातियाँ-(1) राष्ट्रपति किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के सम्बन्ध में और जहाँ तक वह राज्य है, वहाँ उसके राज्यपाल से परामर्श करने के पश्चात लोक अधिसूचना द्वारा उन जातियों, मूलवंशों या जनजातियों अथवा जातियों, मूलवंशों या जनजातियों के भागों में या उनमें के समूहों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए यथास्थिति उस राज्य या उस संघ...
SC/ST Act से संबंधित प्रावधान
संविधान में दिए गए आरक्षण के अधिकार अनुसूचित जनजाति के सिविल अधिकार हैं इसी प्रकार दांडिक विधि में अनुसूचित जनजाति तथा अनुसूचित जाति अत्याचार निवारण के उद्देश्य से 1989 में एक आपराधिक अधिनियम पारित किया गया। अधिनियम का उद्देश समाज में अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचारों को रोकना जैसे कि उनका बहिष्कार करना उनसे अस्पृश्यता का स्वभाव रखना अनेक ऐसे कार्य है जो मानव गरिमा को कलंकित कर देते हैं। इन कार्यों को रोकने के उद्देश्य से ही भारत की पार्लियामेंट में अधिनियम को...
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 की धारा 43, 44 और 45
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961) न्यायालयों में दायर किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के दीवानी वादों (Civil Suits) पर लगने वाले शुल्क (Court Fees) और उनके मूल्यांकन (Valuation) से संबंधित प्रावधानों को निर्धारित करता है।इस अधिनियम की धाराएँ 43, 44 और 45 विशेष रूप से सार्वजनिक मामलों (Public Matters), इंटरप्लीडर वादों (Interpleader Suits) और अन्य अप्रदत्त वादों (Suits Not Otherwise Provided For) में शुल्क निर्धारण से संबंधित...
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 26, 27 और 28 के अंतर्गत अधिकारियों और न्यायालयों के अतिरिक्त और अंतर्निहित
धारा 26 - न्यायालयों और अधिकारियों के अतिरिक्त अधिकार (Additional Powers of Courts and Officers)राजस्थान सरकार (State Government) के पास यह अधिकार है कि वह एक अधिसूचना (Notification) के माध्यम से विभिन्न राजस्व अधिकारियों को उनके मौजूदा अधिकारों के अतिरिक्त भी कुछ अन्य अधिकार सौंप सकती है। धारा 26 इस प्रक्रिया को विस्तार से बताती है। आइए इसे सरल भाषा में समझते हैं। राज्य सरकार निम्नलिखित प्रकार से अतिरिक्त अधिकार प्रदान कर सकती है : • Naib-Tehsildar को Tehsildar के सारे या कुछ अधिकार दिए जा...
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 437 और 438: संदर्भ का निर्णय और पुनरीक्षण की शक्ति
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) में आपराधिक मामलों की सुनवाई, प्रक्रिया और पुनरीक्षण (Revision) से संबंधित कई महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल किए गए हैं। अध्याय 32 (Chapter XXXII) विशेष रूप से “संदर्भ और पुनरीक्षण” (Reference and Revision) से संबंधित है। इस अध्याय की धारा 436 पहले से यह व्यवस्था देती है कि अगर किसी निचली अदालत को लगता है कि किसी कानून या नियम की वैधता (Validity) पर प्रश्न उठता है, तो वह हाईकोर्ट को संदर्भ भेज सकती है।अब हम धारा 437 और 438...
Surrogacy (Regulation) Act, 2021: सरोगेसी कानून के उद्देश्य, प्रमुख प्रावधान और सुप्रीम कोर्ट में हालिया चुनौती
भारत में सरोगेसी (Surrogacy) एक संवेदनशील सामाजिक और कानूनी विषय रहा है। सरोगेसी वह प्रक्रिया है जिसमें एक महिला किसी अन्य दंपत्ति (Couple) के लिए गर्भधारण (Pregnancy) करती है और बच्चे के जन्म के बाद उसे उस दंपत्ति को सौंप देती है। पहले भारत में सरोगेसी को लेकर कोई विशेष कानून नहीं था जिससे surrogate mothers का शोषण (Exploitation) होता था और सरोगेसी का बाज़ारीकरण (Commercialization) हो गया था।सरोगेसी (नियमन) अधिनियम, 2021 को इसी स्थिति को सुधारने के लिए बनाया गया। यह अधिनियम 25 जनवरी 2021 से...
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 436: संदर्भ और पुनरीक्षण Reference and Revision की पूरी जानकारी
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) ने भारत के आपराधिक प्रक्रिया (Criminal Procedure) तंत्र में कई नए प्रावधान (Provisions) जोड़े हैं। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण प्रावधान है धारा 436, जो अध्याय XXXII : संदर्भ और पुनरीक्षण (Chapter XXXII : Reference and Revision) का हिस्सा है।यह धारा उन स्थितियों से जुड़ी है जब किसी निचली अदालत (Lower Court) को किसी कानून (Law) की वैधता (Validity) पर संदेह होता है और फैसला लेने से पहले उसे हाईकोर्ट (High Court) की राय चाहिए...
क्या Default Bail के लिए 60 या 90 दिन की गणना Remand के दिन से शुरू होती है?
Enforcement Directorate v. Kapil Wadhawan के निर्णय में, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 27 मार्च 2023 को सुनाया, एक अत्यंत महत्वपूर्ण सवाल उठाया गया — Default Bail (डिफॉल्ट बेल) के अधिकार के लिए 60 या 90 दिन की अवधि की गणना कब से शुरू होती है?सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जिस दिन Magistrate (मजिस्ट्रेट) द्वारा Remand (हिरासत) का आदेश दिया जाता है, उसी दिन को गणना में शामिल करना होगा। इस फैसले ने पहले से चले आ रहे विभिन्न विरोधाभासी निर्णयों (Conflicting Judgments) को समाप्त किया और व्यक्तिगत स्वतंत्रता...
राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 25: राजस्व न्यायालयों और अधिकारियों की शक्तियाँ और कर्तव्य
राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 के अंतर्गत, विभिन्न राजस्व अधिकारियों और न्यायालयों को विशिष्ट शक्तियाँ और कर्तव्य सौंपे गए हैं। धारा 25 विशेष रूप से यह निर्धारित करती है कि कौन-सा अधिकारी अपने क्षेत्र में कौन-कौन से कार्य करेगा, उसकी सीमाएँ क्या होंगी और उसके अधिकार कितने व्यापक होंगे। इस लेख में हम धारा 25 के प्रत्येक उपखंड को विस्तार से सरल भाषा में समझेंगे, ताकि कोई भी व्यक्ति इसे आसानी से समझ सके।धारा 25(1) – संभागीय आयुक्त, कलेक्टर, उपखण्ड अधिकारी और तहसीलदार के अधिकार और कर्तव्यधारा...
क्या मेस्ने प्रॉफिट्स से जुड़े मुकदमों में कोर्ट फीस अलग से देनी पड़ती है? – धारा 42 राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम 1961
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961) न्यायालय शुल्क (Court Fee) से जुड़े हर पहलू को विस्तार से नियंत्रित करता है। जब संपत्ति के कब्जे से जुड़े विवाद होते हैं, तो केवल कब्जा (Possession) ही नहीं बल्कि उस कब्जे के दौरान उत्पन्न होने वाले आय या लाभ (Mesne Profits) के लिए भी मुकदमे दायर किए जाते हैं। ऐसे मामलों में कोर्ट फीस की गणना कैसे होगी, इसका विस्तृत प्रावधान धारा 42 (Section 42) में दिया गया है।धारा 42 विशेष रूप से उन...
NI Act में किसी चेक बाउंस केस में ट्रायल के शुरू होने के पहले ही प्रतिकर
NI Act में प्रतिकर के संदाय के सम्बन्ध में कोई प्रावधान नहीं था। 2018 में संशोधन के द्वारा इस सम्बन्ध में धारा 143-क अन्तरिम प्रतिकर का प्रावधान किया गया है। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 357 (3) का सन्दर्भ यहाँ लिया जाता है।धारा 143 - क के प्रावधान दण्ड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों पर अधिभावी प्रभाव रखते हैं। कब अन्तरिम प्रतिकर [ धारा 143 क (1) ] - धारा 138 के अधीन अपराध का विचारण करने वाला कोर्ट चेक के लेखीवाल कोसंक्षिप्त विचारण या समन मामले में जहाँ परिवाद में उसने किए गए अभियोग का दोषी...
NI Act में चेक बाउंस केस की ट्रायल प्रक्रिया
इस एक्ट में यह प्रोसेस है कि चेक बाउंस के केस का समरी ट्रायल किया जाएगा। लेकिन इस समरी ट्रायल केस में भी वर्षों का समय लग जाता है। चेकों के अनादरण को अपराध के रूप में अधिनियम में उपबन्धित करने के बाद चेक अनादरण के मामलों में वृद्धि हुई। धारा 138 के अधीन परिवादों की संख्या में इतनी अधिक संख्या में वृद्धि हो गई कि न्यायालयों को इन्हें युक्तियुक्त समय में सम्भालना असम्भव सा हो गया और इसका न्यायालयों के आपराधिक के सामान्य कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा। अतः कुछ और अनुतोषीय उपाय को लाना आवश्यक...
धारा 41, राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम 1961 के तहत मकान मालिक और किरायेदार के बीच विवाद में न्यायालय शुल्क की गणना
राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961) किराया संबंधी मुकदमों में Court Fee (न्यायालय शुल्क) की गणना का स्पष्ट आधार प्रदान करता है। ऐसे मुकदमे, जो मकान मालिक (Landlord) और किरायेदार (Tenant) के बीच होते हैं, आमतौर पर किराए, कब्जे या पट्टे (Lease) के विवाद से जुड़े होते हैं। धारा 41 (Section 41) विशेष रूप से ऐसे ही विवादों में लागू होती है और यह बताती है कि Court Fee किस आधार पर ली जाएगी।इस लेख में हम धारा 41 के अंतर्गत आने वाले...
धारा 434 और 435, BNSS, 2023 : अपीलीय न्यायालय के अंतिम निर्णय और अपील करने वाले की मृत्यु पर अपील का अंत
आपराधिक न्याय व्यवस्था (Criminal Justice System) में अपील (Appeal) का अधिकार एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। जब किसी पक्ष को लगता है कि ट्रायल कोर्ट (Trial Court) में कोई गलती हुई है, तो वह उच्च न्यायालय (Higher Court) से फैसले की समीक्षा (Review) की मांग कर सकता है। लेकिन यह अधिकार भी अनंत नहीं होता। एक समय आता है जब अपीलीय न्यायालय (Appellate Court) का निर्णय अंतिम और बाध्यकारी (Final and Binding) माना जाता है। धारा 434 इसी "Finality" से जुड़ा हुआ है।वहीं दूसरी ओर, धारा 435 एक विशेष...
राजस्व न्यायालयों और नियंत्रण प्रणाली की संरचना: राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएँ 20-A से 23
राज्य में भूमि से जुड़े विवादों की संख्या बहुत अधिक होती है, और इनमें निर्णय लेने के लिए एक न्यायिक और प्रशासनिक व्यवस्था की आवश्यकता होती है। राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 में पहले ही राजस्व अधिकारियों की नियुक्ति और उनके अधिकारों का वर्णन किया गया है।अब Sections 20-A से 23 में राजस्व अपीलीय प्राधिकारी, पद के अनुसार की गई नियुक्तियाँ, उनकी अधिसूचना, और न्यायिक तथा गैर-न्यायिक कार्यों पर नियंत्रण से संबंधित प्रावधानों को दर्शाया गया है। Section 20-A – राजस्व अपीलीय प्राधिकारी (Revenue...
क्या बैंक किसी Borrower को Fraud घोषित करने से पहले उसका पक्ष सुने बिना निर्णय ले सकते हैं?
State Bank of India v. Rajesh Agarwal नामक ऐतिहासिक निर्णय में, जो 27 मार्च 2023 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाया गया, एक महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रश्न पर विचार किया गया कि क्या किसी Borrower (उधारकर्ता) को Fraudulent (धोखाधड़ी करने वाला) घोषित करने से पहले उसे सुनवाई का अवसर (Right to be Heard) देना ज़रूरी है या नहीं।कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि Reserve Bank of India (RBI) की Master Directions on Frauds, 2016 को संविधान की मूल भावना और न्यायसंगत प्रक्रिया (Fair Procedure) के अनुसार पढ़ा जाना चाहिए। ...
NI Act में चेक बाउंस का केस लीगल लिमिटेशन में होना
विधिक अवधि के अन्तर्गत परिवाद-धारा 142 का खण्ड (ख) यह उपबन्धित करता है कि धारा 138 के अधीन अभियोजन के लिए परिवाद एक माह के अन्दर उस तिथि से जब से धारा 138 के खण्ड (ग) के अधीन वाद हेतुक उत्पन्न होता है। इस धारा के सरल पाठन से यह स्पष्ट है कि एक सक्षम कोर्ट धारा 138 के अधीन अपराध का संज्ञान विहित अवधि (एक माह) के अन्दर लिखित परिवाद पर ही ले सकता है।सदानन्द भादरन बनाम माधवन सुनील कुमाएँ, के वाद में सुप्रीम कोर्ट धारा 142 के अधीन खण्ड (ख) के अर्थ को स्पष्ट करने का अवसर मिला। यह ध्यान में रखने के लिए...


















