जानिए हमारा कानून
क्या राज्य प्रभावी कानूनों के माध्यम से महिला भ्रूण हत्या पर रोक लगा सकता है?
वॉलंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ पंजाब बनाम भारत संघ (2016) के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने महिला भ्रूण हत्या की गंभीर समस्या पर विचार किया। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि Pre-Conception and Pre-Natal Diagnostic Techniques (PCPNDT) Act, 1994 के प्रभावी क्रियान्वयन के अभाव में भ्रूण हत्या बढ़ रही है, जिससे समाज में लिंग अनुपात (Sex Ratio) असंतुलित हो रहा है।इस कानून का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मेडिकल तकनीक का उपयोग लिंग परीक्षण (Sex Determination) और महिला भ्रूण हत्या के लिए न हो, ताकि सामाजिक...
पुलिस को कब मिलता है ट्रांजिट रिमांड?
पुलिस को रिमांड इसलिए दिया जाता है जिससे वह अभियुक्त से पूछताछ कर मामले की बराबर तहकीकात कर सके और उसमें इन्वेस्टिगेशन के बाद चार्जशीट फ़ाइल कर सके। रिमांड की परिभाषा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 35(1) (2) के अंतर्गत प्राप्त होती है। इस धारा के अंतर्गत पुलिस किसी व्यक्ति को कब गिरफ्तार कर सकती है इसका उल्लेख किया गया है। कोई व्यक्ति वारंट के बिना पुलिस द्वारा संज्ञेय मामले की परिस्थिति में गिरफ्तार किया जाता है। जब भी कोई व्यक्ति पुलिस द्वारा बगैर वारंट के गिरफ्तार किया जाता है या फिर...
जानिए कोई भी क्रिमिनल केस अभियुक्त की मौत पर खत्म क्यों नहीं होता?
किसी भी क्रिमिनल केस में वास्तव में सरकार और अभियुक्त पार्टी होते हैं। सरकार मुकदमा चलाती है और अभियुक्त मुकदमे को डिफेंस करता है। कोई भी क्राइम सरकार के ही खिलाफ होता है। एक अभियुक्त जिस पर कोई मुकदमा चलाया जा रहा है यदि वे कोई अपराध करता है तब उसका अपराध पीड़ित के खिलाफ नहीं होता है, अपितु स्टेट के खिलाफ होता है। जैसे कि भारत सरकार ने संसद द्वारा अधिनियमित किए गए कानून के माध्यम से उतावलेपन से मोटरयान चलाना एक अपराध बनाया है। ऐसे उतावलेपन के कारण अगर किसी व्यक्ति को किसी भी तरह की कोई क्षति...
चार्ज में अपराध से जुड़े समय, स्थान और व्यक्ति का विवरण : BNSS, 2023 की धारा 235
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) जो 1 जुलाई, 2024 को लागू हुई और जिसने Criminal Procedure Code की जगह ली है, इस संहिता ने Criminal Justice System में कई नए और महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं।इस संहिता की धारा 235 का उद्देश्य अदालत में चार्ज (Charge) प्रस्तुत करते समय अपराध की स्थिति और उससे जुड़े पहलुओं को विशेष रूप से स्पष्ट करना है। इससे आरोपी को मामले की पूरी जानकारी मिलती है जिससे वे अपनी रक्षा के लिए तैयारी कर सकें। धारा 234, जो चार्ज के सामान्य स्वरूप...
पब्लिक सर्वेंट द्वारा जानबूझकर गिरफ्तारी में चूक और लापरवाही से दोषी का भागना: BNS, 2023, धारा 260 और 261
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023), जिसने भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) का स्थान लिया और 1 जुलाई, 2024 से लागू हुई, में पब्लिक सर्वेंट (Public Servants) के लिए विशिष्ट कर्तव्य और जिम्मेदारियाँ निर्धारित की गई हैं।यह संहिता विशेष रूप से उन मामलों पर ध्यान देती है जब पब्लिक सर्वेंट किसी अपराध के दोषी या न्यायिक हिरासत (Custody) में रखे गए व्यक्ति को कानूनी तौर पर सुरक्षा में रखने में विफल रहते हैं। धारा 260 और 261 ऐसे मामलों से निपटने के लिए बनाई गई हैं, जिनमें या तो...
क्या कोर्ट कई अपराधों के लिए क्रमागत उम्रकैद की सजा दे सकती है?
सुप्रीम कोर्ट के एक संविधान पीठ ने एक अहम फैसले में यह स्पष्ट किया कि क्या किसी दोषी को एक ही सुनवाई में अलग-अलग अपराधों के लिए क्रमागत (Consecutive) उम्रकैद की सजा दी जा सकती है।इस फैसले ने दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure – CrPC) की धारा 31 और धारा 427(2) की अलग-अलग व्याख्याओं पर विराम लगाया। अदालत ने यह तय किया कि उम्रकैद का अर्थ क्या होता है और क्या किसी व्यक्ति को उसकी बाकी की जिंदगी जेल में बिताने के लिए लगातार कई उम्रकैद की सजा दी जा सकती है। मामले के तथ्य और मुख्य मुद्दे...
क्या घरेलू हिंसा कानून के तहत वयस्क महिला रिश्तेदारों को भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?
Hiral P. Harsora और अन्य बनाम Kusum Narottamdas Harsora और अन्य मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005 (घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा कानून) की धारा 2(q) की संवैधानिक वैधता पर विचार किया। इस धारा में केवल “adult male person” (वयस्क पुरुष) को ही प्रतिवादी (Respondent) के रूप में शामिल किया गया था, जिसका अर्थ था कि महिला रिश्तेदारों को घरेलू हिंसा के आरोपों से बाहर रखा गया।अदालत के सामने सवाल यह था कि क्या यह प्रावधान महिलाओं को पर्याप्त सुरक्षा देने...
जानिए किसी केस में पक्षकारों की डेथ हो जाने पर क्या इफेक्ट होता है?
कोई अदालती मुकदमे में दो पक्ष होते हैं, एक पक्ष होता है जो मुकदमा कोर्ट में लाता है और दूसरा पक्ष वह होता है जो मुकदमे को डिफेंट करता है। केस दो तरह के होते हैं, एक सिविल केस और दूसरा क्रिमिनल केस। सिविल केस प्राइवेट लगाया जाता है और क्रिमिनल केस सरकार द्वारा लगाया जाता है क्योंकि अपराध सरकार के खिलाफ होता है और किसी भी अपराध में फरियादी केवल एक गवाह होता है और इत्तिलाकर्ता होता है।ऐसे किसी भी केस में किसी भी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने से सभी मामलों में वादकारण समाप्त नहीं हो जाता है। जैसे अगर...
लीगल ऐड से मुफ्त कानूनी मदद से संबंधित प्रावधान
सरकार द्वारा गरीब लोगों को मुफ्त कानूनी मदद उपलब्ध करवायी जाती है। ऐसी मदद केवल कानूनी सलाह तक ही सीमित नहीं होती है बल्कि किसी भी व्यक्ति को अपना मुकदमा लड़वाने के लिए मुफ्त वकील भी उपलब्ध करवाए जाते हैं। शासन गरीब कैदी को भी मुफ़्त में जमानत हेतु वकील उपलब्ध करवाती है।कोई भी गरीब व्यक्ति अपना मुकदमा अदालत में केस चला पाएगा और अपने पर लगे हुए आपराधिक प्रकरण में स्वयं का बचाव कैसे कर पाएगा क्योंकि गरीब व्यक्ति के पास इतने साधन नहीं होते हैं कि वह एक महंगे वकील को नियुक्त कर सके।भारत सरकार ने और...
भाग 2: आरोप की भाषा का महत्व और अदालतें आरोपों की व्याख्या कैसे करती हैं? धारा 234, BNSS 2023
इस लेख के पहले भाग में, हमने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के सेक्शन 234 के तहत आरोप (Charges) की रूपरेखा, संरचना और उनके फ्रेमिंग के लिए आवश्यकताओं पर चर्चा की थी। अब इस दूसरे भाग में, हम इन प्रावधानों के न्यायिक प्रक्रिया, कानूनी पेशेवरों और आरोपी के लिए व्यावहारिक प्रभावों पर गहराई से चर्चा करेंगे। हम इस पर भी चर्चा करेंगे कि आरोप से संबंधित नियम निष्पक्ष मुकदमे को कैसे सुनिश्चित करते हैं, आरोप में प्रयुक्त भाषा का महत्व, और अदालतें इन नियमों को कैसे समझती और लागू करती हैं। आरोपों में...
भाग 1: आरोपों को किस तरह से तैयार किया जाना चाहिए, उनके कानूनी आवश्यकताएँ क्या हैं? धारा 234, BNSS, 2023
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023, जो 1 जुलाई 2024 को लागू हुई, ने पुराने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) को बदल दिया है और कई महत्वपूर्ण बदलाव लाए हैं। इस संहिता का एक महत्वपूर्ण अध्याय अध्याय 18 (Chapter XVIII) है, जो न्यायालय में आरोप (Charges) दर्ज करने की प्रक्रिया और उसके रूप को समझाता है।आरोप का विचार आपराधिक प्रक्रिया में केंद्रीय भूमिका निभाता है, क्योंकि यह उस आरोप को परिभाषित करता है जो आरोपी पर लगाया गया है और जो अपराध वह करने का आरोपित है। इस लेख में, हम भारतीय नागरिक सुरक्षा...
पब्लिक सर्वेंट द्वारा गिरफ्तारी में विफलता: भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 259
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023), जो 1 जुलाई, 2024 से लागू हुई है, ने भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) को प्रतिस्थापित किया है। इसमें सार्वजनिक सेवकों (Public Servants) की ज़िम्मेदारियों और उनके कर्तव्यों को लेकर कई महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल किए गए हैं।धारा 259 उन सार्वजनिक सेवकों से संबंधित है, जो किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने या उसे हिरासत में रखने में जानबूझकर विफल रहते हैं, जब कानून उन्हें ऐसा करने के लिए बाध्य करता है। यह प्रावधान इसलिए महत्वपूर्ण है ताकि पुलिस...
Online FIR अपलोड करने का न्यायिक निर्देश: पारदर्शिता सुनिश्चित करना
सुप्रीम कोर्ट ने यूथ बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य (2016) केस में यह स्पष्ट किया कि नागरिकों को FIR (प्रथम सूचना रिपोर्ट) तक समय पर पहुँच प्राप्त होना उनका बुनियादी अधिकार है।कोर्ट ने माना कि FIR का समय पर ऑनलाइन उपलब्ध होना न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Liberty) की रक्षा करता है बल्कि पुलिस जांच में पारदर्शिता (Transparency) भी लाता है। इस फैसले के जरिए कोर्ट ने FIR अपलोड करने के नियम तय किए, जिसमें संवेदनशील (Sensitive) मामलों में गोपनीयता (Privacy) बनाए रखने का प्रावधान...
कितनी तरह की होती हैं कानून की किताबें?
हालांकि किताबें तो सिर्फ किताबें होतीं हैं लेकिन कानून की किताबों के मामलों में थोड़ी डिफरेंट टर्मिनोलॉजी रहती है। आमतौर पर यह किताबे किसी अदालत, किसी लॉ कॉलेज लाइब्रेरी और वकीलों के दफ्तरों में नज़र आती हैं। इन किताबों में अनेक तरह की किताबें होती हैं जैसे लॉ जर्नल्स, ऑल इंडिया रेकॉर्ड, कमेंट्री, बेयरेक्ट इत्यादि।बेयर एक्टबेयर एक्ट उस किताब को कहा जाता है जिसमे केवल संसद द्वारा बनाया गया अधिनियम होता है। कानून मुख्य रूप से संसद और राज्य के विधानमंडल द्वारा बनाया जाता है। किसी भी कानून को मुख्य...
BNS सेक्शन 85 पर सुप्रीम कोर्ट क्या कहता है?
भारतीय न्याय संहिता की धारा 85 पति और उसके घर के सदस्यों द्वारा पत्नी और बहू के साथ क्रूरता करने को अपराध बनाती है। इस धारा के अंतर्गत एक महिला अपने पति के साथ साथ सुसराल के अन्य लोगों के विरुद्ध भी प्रकरण पंजीबद्ध करवा सकती है यदि उसके साथ कोई अपराध घटा है।इस धारा में पति और उसके रिश्तेदारों को 3 वर्ष तक की सजा से दंडित किए जाने का प्रावधान है। कोई भी पीड़ित महिला संबंधित थाना क्षेत्र में इस अपराध की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे सकती है। अनेक मामलों में यह देखा गया है कि इस धारा का दुरुपयोग...
1382 जेलों में अमानवीय स्थितियों पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: कैदियों की मौतों पर चिंतन
रे: इनह्यूमन कंडीशंस इन 1382 प्रिज़न्स (2017) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय जेलों में कैदियों के साथ होने वाली हिंसा और मौतों के गंभीर मुद्दों पर गौर किया। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने जेलों की खराब स्थितियों, जैसे भीड़भाड़, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, और आत्महत्या के बढ़ते मामलों को उजागर किया।कोर्ट ने कैदियों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया और उन प्रणालीगत समस्याओं (systemic issues) को संबोधित किया, जो हिरासत में होने वाली अप्राकृतिक मौतों का कारण बनती हैं। मुख्य...
डिफॉल्ट बेल' कब मिल सकती है? : राकेश कुमार पॉल बनाम असम राज्य मामले का विश्लेषण
राकेश कुमार पॉल बनाम असम राज्य का मामला डिफॉल्ट बेल और आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973) की धारा 167(2) की व्याख्या पर आधारित है।इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने उन परिस्थितियों पर ध्यान दिया जब जांच समय पर पूरी नहीं होती और अभियुक्त को बिना चार्जशीट (Chargesheet) दाखिल किए हिरासत में रखा जाता है। इस मामले का मुख्य बिंदु यह था कि जब अभियोजन पक्ष जांच पूरी करने में असफल रहता है, तो क्या अभियुक्त को डिफॉल्ट बेल का अधिकार मिलना चाहिए। मुख्य प्रावधान (Key Legal...
शिकायत और पुलिस रिपोर्ट के मामलों का एकीकरण : भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 233 का विस्तृत विवरण
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023, जो 1 जुलाई, 2024 से लागू हुआ है, ने भारत में आपराधिक जांच और ट्रायल (Trial) की प्रक्रिया में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। इस अधिनियम की धारा 233 एक अहम प्रावधान है, जो उस स्थिति से निपटने का तरीका बताती है जब एक शिकायत मामला (Complaint Case) मैजिस्ट्रेट के सामने चल रहा हो और यह पता चले कि पुलिस भी उसी अपराध की जांच कर रही है। यह धारा सुनिश्चित करती है कि ऐसे मामलों में न्याय प्रक्रिया सुचारू और प्रभावी रहे, और मामलों में अनावश्यक विलंब न हो। शिकायत मामले और...
न्यायिक शक्ति का दुरुपयोग: भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 257 और 258
भारतीय न्याय संहिता, 2023, जो 1 जुलाई 2024 को लागू हुई, ने भारतीय दंड संहिता को बदलकर भारत के लिए एक नया कानूनी ढांचा पेश किया। इस कानून के कई प्रावधान हैं, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि सार्वजनिक अधिकारी (Public Servants) अपनी शक्तियों का दुरुपयोग न करें।धारा 257 और 258 विशेष रूप से उन भ्रष्ट (Corrupt) या दुर्भावनापूर्ण (Malicious) कार्यों पर केंद्रित हैं, जिनमें सार्वजनिक अधिकारी न्यायिक और हिरासत (Confinement) से जुड़े मामलों में शक्ति का गलत उपयोग करते हैं। ये प्रावधान पहले के धारा 255 और...
फैमिली कोर्ट की एक्स पार्टी डिक्री कब रद्द की जा सकती है?
जब किसी भी सिविल मुकदमे में प्रतिवादी उपस्थित नहीं होता है तब कोर्ट प्रतिवादी को एक्सपार्टी कर देती है और केवल वादी के साक्ष्य लेकर मामले में अपना फाइनल डिसीजन दे देती है।कोर्ट का यह मानना रहता है कि यदि उसने किसी व्यक्ति को अपने समक्ष उपस्थित होने हेतु बुलाया है और ऐसे बुलावे के बाद भी संबंधित व्यक्ति कोर्ट के समक्ष उपस्थित नहीं होता है, तब कोर्ट उस व्यक्ति को एकपक्षीय कर केवल एक पक्षकार को सुनकर कोई आदेश और डिक्री पारित कर देता है।कभी-कभी कोर्ट द्वारा दिया गया ऐसा एकपक्षीय आदेश न्याय के अनुरूप...