निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 18: विधि विरुद्ध साधनों से प्राप्त की गई लिखित ( धारा 58)

Shadab Salim

22 Sep 2021 7:11 AM GMT

  • निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 18: विधि विरुद्ध साधनों से प्राप्त की गई लिखित ( धारा 58)

    परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) के अंतर्गत विधि विरुद्ध साधनों से प्राप्त किए गए लिखित से संबंधित प्रावधानों पर भी प्रकाश डाला गया है। परक्राम्य लिखित एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हस्तांतरण हो जाता है तथा यह संभव है कि ऐसे लिखित की चोरी भी हो सकती है, इसकी कूट रचना भी की जा सकती है तथा इसे अवैध प्रतिफल के माध्यम से भी प्राप्त किया जा सकता है। इस विपदा से निपटने हेतु इस अधिनियम की धारा 58 के अंतर्गत प्रावधान किए गए हैं।

    इस आलेख के अंतर्गत इस धारा 58 से संबंधित प्रावधानों पर संक्षिप्त प्रकाश डाला जा रहा है।

    परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 58 इस भाव में बड़ा महत्वपूर्ण है कि यह परक्राम्य लिखत अर्थात् वचन पत्र विनिमय पत्र एवं चेक के सम्बन्ध में इसके खोने, चोरी या जहाँ इसे कपट या अवैध प्रतिफल से इसे प्राप्त किया गया है, यहाँ इसके धारक को संरक्षण प्रदान करती है। इस धारा के अधीन लिखत के उस धारक को संरक्षण प्रदान किया गया है जो लिखत के खोने, चोरी होने आदि के समय लिखत का धारक था।

    इस प्रकार निम्नलिखित के सम्बन्ध में संरक्षण प्रदान किया गया है:-

    (i) लिखत के खोने।

    (ii) लिखत के चोरी होने।

    (iii) लिखत को कपटपूर्ण तरीके से प्राप्त करने।

    (iv) लिखत को अवैध तरीकों से प्राप्त करने।

    ऐसा कब्जाधारी या पृष्ठांकिती जो लिखत को पाने वाले, चोरी करने वाले या कपटपूर्ण तरीके या अवैध प्रतिफल से प्राप्त करने वाले व्यक्ति से प्राप्त किया है, लिखत के रचयिता, प्रतिग्रहीता या धारक या किसी पूर्विक पक्षकार से धन का दावा नहीं कर सकता है।

    अपवाद- सम्यक् अनुक्रम धारक- एक सम्यक् अनुक्रम धारक या कोई व्यक्ति जो किसी सम्यक् अनुक्रम धारक के माध्यम से अपना अधिकार का दावा करता है, लिखत के अधीन धनराशि का दावा कर सकता है बावजूद कि लिखत को किसी पूर्विक पक्षकार ने विधि विरुद्ध साधनों से या विधिविरुद्ध प्रतिफल से अभिप्राप्त किया था।

    धारा 8 का परन्तुक भी यहाँ पर संगत में है। जहाँ वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक खो जाता है या नष्ट हो जाता है या चोरी हो जाता है यहाँ, लिखत का धारक वही व्यक्ति होगा जो लिखत के खोने, चोरी होने के समय था न कि पाने वाला या चोर ऐसे लिखत का धारक नहीं होगा।

    इस प्रकार लिखत को चुराने वाला या पाने वाला उस लिखत का धारक नहीं कहलाएगा।

    खोए हुए लिखत के सम्बन्ध में प्रयोज्य विधि सिद्धान्त खोए हुए लिखत के सम्बन्ध में लिखत के स्वामी का अधिकार-

    किसी वचन पत्र, विनिमय पत्र या चैक के खोने, चोरी होने दशा में निम्नलिखित विधि सिद्धान्त प्रयोग्य होते हैं जिसे खोए या चोरी हुए लिखत के स्वामी के अधिकार एवं कर्तव्य के रूप में भी स्पष्ट किया जा सकता है।

    ये हैं:-

    (1) लोबेल बनाम मार्टिन के मामले में यह धारित किया गया है कि जहाँ कोई लिखत खो जाता है वहाँ उसका पाने वाला लिखत के वास्तविक स्वामी के विरुद्ध स्वत्व प्राप्त नहीं कर सकता है और न तो वह लिखत के प्रतिग्रहीता या रचयिता के विरुद्ध इस पर संदाय का दावा कर सकता है। वास्तविक स्वामी का स्वत्व ऐसे खोने या चोरी होने से प्रभावित नहीं होता है और वह लिखत को पाने वाले से वापस लेने का हकदार होता है।

    (2) यदि लिखत का पाने वाला खोए हुए वचन पत्र या विनिमय पत्र पर भुगतान प्राप्त करता है, यह व्यक्ति जिसने सम्यक रूप से संदाय किया है इसके लिए विधिक रूप में उन्मोचन पा सकेगा। परन्तु यास्तविक स्वामी लिखत की धनराशि पाने वाले से क्षतिपूर्ति के रूप में प्राप्त कर सकेगा।

    (3) यदि लिखत जो आदेश पर देय है, खो जाता है और पाने वाला पृष्ठांकन का कूटरचना कर एक प्रतिफलार्थ एवं सद्भावी अन्तरिती को अन्तरित कर देता है, ऐसा अन्तरिती लिखत पर स्वत्व नहीं प्राप्त कर सकता और प्रतिग्रहीता या अन्य दायी पक्षकार द्वारा किया गया संदाय यद्यपि कि ऐसा संदाय सद्भावना पूर्वक किया गया है उसे उन्मुक्त नहीं बनाएगा।

    (4) यदि वाहक को देय लिखत या निरंक पृष्ठांकित लिखत खो जाता है तो उसका पाने वाला किसी सद्भावी अन्तरितों को मूल्य से परक्रामित करता है, ऐसा अन्तरिती इसका विधिमान्य स्वत्व प्राप्त कर लेता है और वह सही स्वामों के विरुद्ध लिखत को प्रतिधारित करने एवं लिखत के अधीन दायी पक्षकारों से भुगतान माँगने, दोनों के लिए हकदार होगा।

    (5) यह सलाहकारी है कि खोए हुए लिखत के स्वामी द्वारा लिखत के अधीन दायी व्यक्ति को सूचित कर दिया जाय जिससे कि ऐसे लिखत का भुगतान बिना समुचित जाँच के न करें। लोक विज्ञापन भी लिखत की खोने की दी जा सकती है।

    (6) वह पक्षकार जिसने लिखत को खो दिया है, लिखत को देय होने के समय लेखोवाल को एक आवेदन करे और लिखत के अनादर की सूचना सभी दायी पक्षकारों को दे, अन्यथा वह लेखीवाल एवं पृष्ठांकितों के विरुद्ध अपने उपचार को खो देगा।

    (7) इस धारा के अधीन बिल को खोने वाला व्यक्ति खोए हुए बिल की दूसरी प्रति पाने के लिए धारा 45क के अधीन लेखोवाल से माँग कर सकता है। •परक्राम्य लिखत अधिनियम एवं संविदा के सामान्य विधि के अन्तर्गत खोए हुए लिखत के पाने वाले का अधिकार में अन्तर- परक्राम लिखत अधिनियम की धारा 8, 45 (क) एवं 58 खोए हुए लिखत से सम्बन्धित है। उक्त धाराएँ यह स्पष्ट करती हैं कि लिखत को पाने वाला लिखत का धारक नहीं कहा जा सकता है और ऐसे लिखत का स्वामित्व उस व्यक्ति की बनी रहती हैं जो लिखत को खोने अथवा नष्ट होने के समय हकदार था लिखत को पाने वाला व्यक्ति लिखत का अन्तरण नहीं कर सकता। यद्यपि एक प्रतिफलार्थ अन्तरिती एवं अन्तरक के स्वत्य सम्बन्धी दोष की जानकारी के बिना धारक के अधिकार को प्राप्त कर सकेगा। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 71, 168 एवं 169 खोए हुए माल से सम्बन्धित हैं। धारा 71 के अनुसार "वह व्यक्ति जो किसी अन्य का माल पड़ा पाता है और उसे अपनी अभिरक्षा में लेता है। उसी उत्तरदायित्व के अध्यधीन है, जिसके अध्यधीन उपनिहिती होता है। इस प्रकार संविदा विधि के अधीन माल के पान वाले को उपनिहिती के रूप में रखा गया है। परन्तु लिखत के पाने वाले को उपनिहिती नहीं माना गया है, क्योंकि धारा 71 माल के सम्बन्ध में लागू होती है न कि परक्राम्य लिखत, क्योंकि परक्राम्य लिखत वाद योग्य दावे होता है।

    संविदा विधि की धारा 168 एवं 169 पुनः माल पड़ा पाने वाले को ऐसे माल को वापसी के लिए विनिर्दिष्ट पुरस्कार देने की प्रस्थापना की गयी है तो उसे पाने के लिए वाद लाने का अधिकार एवं संदाय होने तक माल को प्रतिधृत रखने का अधिकार होगा। इसके साथ ही साथ ऐसी वस्तु यदि सामान्यतया विक्रय होने वाली चीज है तो तधीन शर्तों के अनुसार माल को बेचने का भी अधिकार होता है।

    कामन लॉ के अन्तर्गत माल को पड़ा पाने वाले का अधिकार केवल सही स्वामी को छोड़कर सभी व्यक्तियों से बेहतर स्वत्य माना जाता है। विधि का यह सामान्य सिद्धान्त लिखत को पाने वाले के सम्बन्ध में लागू नहीं होता है।

    लिखत को अपराध द्वारा प्राप्त करना- धारा 58 के अधीन उन मामलों को विहित किया गया है जिसके अधीन एक लिखत अपराध द्वारा अभिप्राप्त माना जाता है।

    वे हैं-

    1. चुराया हुआ लिखत- खोने की दशा में,

    2. कपट के द्वारा अभिप्राप्त लिखत,

    3. अवैध प्रतिफल के लिए अभिप्राप्त लिखत,

    4. कूटरचित लिखत, अर्थात् कूटरचना द्वारा प्राप्त लिखत,

    5. कूटरचित पृष्ठांकन, अर्थात् कूटरचित पृष्ठांकन से प्राप्त लिखत

    (1) चुराया हुआ लिखत- एक व्यक्ति जिसने किसी लिखत को चुराया है, इसका संदाय उसके अधीन किसी दायी पक्षकार से लागू नहीं करा सकता है एवं न तो इसे उस व्यक्ति के विरुद्ध प्राधिकृत कर सकता है जिससे उसने चुराया है।

    यदि यह लिखत को ऐसे व्यक्ति को परक्रामित करता है जो प्रतिफलार्थ परन्तु इस तथ्य की जानकारी के साथ कि लिखत चोरी की है, अन्तरिती को अन्तरक से बेहतर हक नहीं मिलेगा एवं संदाय को लागू नहीं करा सकेगा तथा अन्तरक ने जिस व्यक्ति से लिखत प्राप्त किया है उसके विरुद्ध प्रतिधृत भी नहीं कर सकेगा परन्तु जहाँ चोरी की गई लिखत वाहक को देय है, यदि इसे एक सम्यक् अनुक्रम धारक को अन्तरित किया जाता है, वह उसे बेहतर स्वत्व दे सकेगा या अन्य कोई व्यक्ति जो इससे हक प्राप्त करता है उसे बेहतर स्वत्व दे सकेगा।

    चोरी गयी लिखत के सम्बन्ध में चोर इसका हक अभिप्राप्त नहीं कर सकेगा, बैंक बेलगे बनाम हैमबुक के मामले में धारित किया गया। परन्तु सूचक वाद रैफेल बनाम बैंक ऑफ इंग्लैण्ड के मामले में यह निर्णीत किया गया है कि एक चुरायी गयी लिखत को परिदान द्वारा परक्रामित किया गया किसी ऐसे अन्तरिती को जो प्रतिफलार्थ एवं बिना चोरी के संज्ञान के अभिप्राप्त किया है, को एक बेहतर हक चोर के विरुद्ध ही नहीं, बल्कि किन्हीं पूर्विक पक्षकार के विरुद्ध, मिलेगा।

    (2) कपट के द्वारा अभिप्राप्त लिखत- कपट सभी अनुबन्धों एवं संव्यवहारों को दूषित बनाता है यह सभी संविदाओं का परक्राम्य लिखतों को सम्मिलित करते हुए यह सार है कि इसे सक्षम पक्षकारों की स्वतंत्र सहमति से किया जाना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति किसी हुण्डी पर असत्य व्यपदेशन के आधार पर अग्रिम धनराशि प्राप्त करता है जिसे वह जानता है कि असत्य है और यह भी जानते हुए कि बिना इसके वह अग्रिम धनराशि प्राप्त नहीं कर सकता था, ऋणदाता हुण्डी के संविदा को विखण्डित कर सकता है एवं तत्काल ऋण की धनराशि को वापसी के लिए याद ला सकता है।

    अतः यदि एक परक्राम्य लिखत प्रपोड़न से निष्पादित की गई है या कपट द्वारा किया या अभिप्राप्त किया गया है, कपट एवं प्रपीड़न का सबूत लिखत के लिए बाद के सम्बन्ध में एक अच्छा बचाव होगा।

    अतः एक रचयिता या प्रतिग्रहीता पर लिखत के अधीन वाद लाया जाता है, और वह यह साबित करने में सफल रहता है कि इसे उससे कपट या प्रपीड़न से प्राप्त किया गया है, ऐसा कपट करने वाला व्यक्ति कुछ भी पाने का हकदार नहीं होगा। इसी प्रकार पश्चात्वर्ती परक्रामण या अन्तरण कपट से दूषित होता है, जिसे बचाय के रूप में लिया जा सकता है।

    इसके अन्तर्गत एक कब्जाधारी या एक पृष्ठांकिती जो ऐसे व्यक्ति से दावा करता है जिसने कपट के द्वारा लिखत को प्राप्त किया है, इस पर किसी भी पक्षकार से वसूली नहीं कर सकेगा।

    कपट का बचाव सामान्तया एक सम्यक् अनुक्रम धारक या एक धारक जिसका हक सम्यक अनुक्रम धारक से व्युत्पन्न हुआ है, के विरुद्ध नहीं उठाया जा सकता है। यद्यपि कि यह दिखाया जा सकता है कि एक व्यक्ति स्वयं की उपेक्षा के बिना एक भिन्न प्रकार के अभिलेख को हस्ताक्षर करने के लिए उत्प्रेरित किया गया हो, वह सम्यक् अनुक्रम धारक के प्रति भी अवरुद्ध नहीं होगा।

    इस प्रकार किसी अन्य पक्षकार के कपट से लिखत के प्रकृति का मिथ्या व्यपदेशन किया गया है जिससे हस्ताक्षर करने वाला व्यक्ति यह न जान सके कि यह एक परक्राम्य लिखत पर हस्ताक्षर कर रहा है, परन्तु यह विश्वास करता है कि वह एक भिन्न प्रकृति के अभिलेख पर हस्ताक्षर कर रहा है, वह लिखत से आबद्ध नहीं होगा, क्योंकि उसका मस्तिष्क हस्ताक्षर के साथ नहीं है।

    वह इसे हस्ताक्षर करने के लिए कभी आशयित नहीं या अतः विधि की अपेक्षा में उसने एक परक्राम्य लिखत को कभी भी हस्ताक्षर नहीं किया था। पुनः हस्ताक्षर करने वाला उपेक्षा के लिए दोषी नहीं होगा अन्यथा वह अपने हस्ताक्षर की विधिमान्यता को मना करने से एक सम्यक् अनुक्रम धारक के विरुद्ध विबन्धित (रोक) दिया जाएगा।

    यह बचाव कारलोसल एण्ड कुम्बालैन्ड बैंकिंग कं० बनाम बैग के मामले में Nonest Factum कहा गया जिसे सफलता पूर्वक मान्य किया गया था।

    इस निर्णय को अद्यतन वाद सॉन्डर्स बनाम अन्गलीया बिल्डिंग सोसायटी में उलट दिया गया है। जहाँ एक वृद्ध विधवा जिसका चश्मा टूट गया था, पढ़ नहीं पढ़ सकती थी, अपने गृह के सम्बन्ध में एक अन्य पक्षकार के साथ अन्तरित की, जबकि उसे विश्वास कराया गया कि वह भतीजे के लिए दान बन्ध था।

    अन्तरितों ने उस गृह को एक बिल्डिंग सोसायटी को बन्धक कर दिया जिसने बन्धक किश्त का भुगतान न होने पर गृह का कब्जा प्राप्त करना चाहा विधवा ने नान इस्ट फैक्टम का तर्क लिया, परन्तु सफल नहीं रहो।

    हाउस आफ लार्ड्स में सही विधि कहा गया कि एक व्यक्ति जो कोई अभिलेख पर हस्ताक्षर करता है और इसे दूसरे को दे देता है जिससे यह सम्पत्ति दूसरे के हाथ में जा सके, आबद्धता रखती है कि वह एक साधारण आदमी के विवेक से सावधानी रखे कि वह क्या हस्ताक्षर कर रहा है, और यदि वह इस आबद्धता की उपेक्षा करती है तो वह अभिलेख के प्रकट शब्दों के अनुसार अपनी आबद्धता से इन्कार नहीं कर सकती जहाँ प्रतिवादी कपट पर बचाव को बल देता है, वह संविदा को पूर्ण रूप से विखण्डित करे और इसके अधीन कोई फायदा प्रतिधृत न करे।

    अधिनियम की यह उपधारणा है कि प्रत्येक धारक जब तक कि प्रतिकूल साबित न किया जाय एक सम्यक् अनुक्रम धारक होता है। परन्तु एक धारक के बाद से यदि यह साबित होता है कि लिखत असम्यक् असर से दिया गया है, धारक पर यह आवद्धता आ जाती है कि वह यह साबित करे कि स्वयं वह एक सम्यक् अनुक्रम धारक है

    (3) अवैध प्रतिफल के लिए अभिप्राप्त लिखत- यदि वचन पत्र विनिमय पत्र या चेक का प्रतिफल अवैध है, वहाँ लिखत शून्य है। प्रत्येक अनुबन्ध जिसका उद्देश्य या प्रतिफल अवैध है, शून्य है। संविदा विधि के संविदा के सामान्य सिद्धान्त परक्राम्य लिखत के संविदाओं पर भी लागू होता है और एक दिया गया लिखत का प्रतिफल अवैध है, या लोक नीति के विरुद्ध है या अनैतिक है या जिसे संविधि द्वारा स्पष्टतः मना किया गया है, शून्य है और पक्षकारों के बीच कोई आबद्धता उत्पन्न नहीं करती है।

    एक वचन पत्र जिसे अंशों के सट्टेबाजी से उत्पन्न कर्ज के संदाय के लिए निष्पादित किया गया है, परन्तु एक सम्यक् अनुक्रम धारक किसी लिखत के सम्बन्ध में अच्छा हक प्राप्त कर लेता है जो मूलतः लिखा या रचा गया या इसके पश्चात् अवैध प्रतिफल के लिए परक्रामित किया गया।

    (4) कूटरचित लिखत- हर प्रकार की कूटरचना किसी अभिलेख को जिसमें लिखत भी सम्मिलित है, शून्य बनाने का प्रभाव रखता है। कूटरचना किसी अन्य व्यक्ति के अधिकार के प्रतिकूल किसी लिखावट में कपटपूर्ण तरीके से बनाना या परिवर्तन करना, कूटरचना है। कूटरचना का सबसे अधिक कामन प्रकार किसी विद्यमान व्यक्ति के नाम का कपटपूर्ण हस्ताक्षर करना है।

    किसी काल्पनिक व्यक्ति या गैर-विद्यमान व्यक्ति के नाम का हस्ताक्षर करना जिससे ऐसा विश्वास करने का आशय हो कि लिखत सही व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित है, कूटरचना है यदि हस्ताक्षर कपटपूर्ण या बेईमानी के आशय से किया गया है। अतः यहाँ पर बड़ा ही महत्वपूर्ण है कि जहाँ किसी व्यक्ति के नाम की कूटरचना की गयी हो तो सभी सम्भव संरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए।

    कूटरचना के द्वारा दायित्व का नुकसान धारक को अन्तरितों के हस्ताक्षर एवं उसके हस्ताक्षर की शुद्धता के प्रति अत्यन्त चैतन्य बनाता है। सामान्य नियम के रूप में यह कहा जा सकता है कि स्वत्व के आधार के लिए कूटरचित हस्ताक्षर व्यर्थ है जब किसी परक्राम्य लिखत पर हस्ताक्षर को कूटरचना की गई है, जाली हस्ताक्षर पूर्ण रूप से प्रवर्तनीय नहीं होगा और लिखत को सम्पत्ति उस धारक में बनी रहेगी जिस समय हस्ताक्षर की कूटरचना की गई थी। कूटरचित लिखत का धारक उस पर सन्दाय को लागू नहीं करा सकता और न तो उसका विधिसम्मत उन्मोचन प्रदान करेगा। यदि, यद्यपि कि कूरचना के बावजूद एक धारक लिखत का देय धन प्राप्त करने की व्यवस्था करता है वहाँ ऐसा संदाय यह प्रतिधृत नहीं कर सकेगा।

    लिखत का सही स्वामी जो लिखत के अधीन संदाय किया है उसे इसे परिदत्त कर दे और ऋण पुनः सही ऋणदाता को संदाय के लिए बाध्य होगा लिखत का सही स्वामी जिसने संदाय प्राप्त किया है अपकृति विधि में उसके विनिमय पत्र के सम्परिवर्तन या अपने प्रयोग के लिए जो धनराशि प्राप्त किया है या रखता है, बाद ला सकता है।

    एक व्यक्ति जो कूटरचित हस्ताक्षर पर भूल से संदाय कर दिया है, उस व्यक्ति से वापस पाने का अधिकार रखता है जिसे उसने संदाय किया है। यह सिद्धान्त वैश्विक रूप में प्रयोज्य है और एक सम्यक अनुक्रम धारक भी इससे अपवादित नहीं है। क्योंकि स्वत्व में दोष जिसमें कूटरचना एक सम्यक् अनुक्रम धारक संरक्षित होता है और पूर्ण रूप से स्वत्व का अभाव की दशा में इन दोनों महान अन्तर है। इस दशा में सम्यक अनुक्रम धारक भी स्वत्व प्राप्त नहीं करता है।

    परन्तु इस नियम को लागू होने के लिए यह आवश्यक है कि धारक ने लिखत को हस्ताक्षर के द्वारा या अधीन प्राप्त किया है अर्थात् हस्ताक्षर लिखत का आवश्यक भाग था जिससे लिखत को अन्तिम कब्जाधारी से धारक को अन्तरित हुआ है। यदि, इस प्रकार लेखोवाल या प्रतिग्रहीता का हस्ताक्षर की कूटरचना की गई है, कूटरचना कोई स्वत्व अन्तरित नहीं करेगा और इन मामलों में विनिमय पत्र (लिखत) सम्पूर्ण रूप से व्यर्थ रहेगा।

    उदाहरण-

    (i) 5000 रुपए के वचन पत्र पर अ, ब के हस्ताक्षर को रचयिता के रूप में कूटरचित करता है, स एक धारक लिखत को सद्भावना पूर्वक प्रतिफल सहित प्राप्त करता है, लिखत में यह कोई स्वत्य नहीं प्राप्त करेगा।

    (ii) 5000 रु० के एक विनिमय पत्र पर अ प्रतिग्रहीता का हस्ताक्षर कूटरचित है। यह वचन पत्र 'ब' के हाथ में सद्भावना पूर्वक एवं प्रतिफलार्थ आता है', 'ब' को लिखत में कोई स्वत्व प्राप्त नहीं होगा।

    कूटरचना का अनुमोदन कूटरचना का अनुमोदन नहीं किया जा सकता है, क्योंकि एक कूटरचित व्यक्ति उस व्यक्ति जिसके हस्ताक्षर की वह कूटरचना करता है उसकी ओर से और न तो उसके लिए तात्पर्यित होता है। परन्तु वह व्यक्ति जिसका हस्ताक्षर कूटरचित किया गया है अपने आचरण से लिखत को शुद्धता को मना करने से एक निर्दोष धारक के प्रति विबन्धित कर दिया जाएगा।

    उदाहरण-

    एक विनिमय पत्र पर 'अ' का प्रतिग्रहण कूटरचित किया जाता है। 'ब' एक सम्यक अनुक्रम धारक को सूचित किया जाता है कि हस्ताक्षर 'अ' का नहीं है।'' पूछताछ के लिए 'अ' को पत्र लिखता है और 'अ' द्वारा सूचित किया जाता है कि हस्ताक्षर उसी का है। 'अ' प्रतिग्रहण पर आबद्ध होगा।

    (5) पृष्ठांकन की कूटरचना- पृष्ठांकन की कूटरचना का मामला भिन्न होता है। इसका उत्तर इस पर निर्भर करेगा कि क्या पृष्ठांकन पूर्ण या निरंक किया गया है।

    पूर्ण पृष्ठांकन की दशा में यदि लिखत का पृष्ठांकन पूर्ण है, वह व्यक्ति जिसे या जिसके आदेश से लिखत का पृष्ठांकन किया जाना है, आवश्यक रूप से हस्ताक्षर सही होना चाहिए, क्योंकि लिखत का स्वत्व केवल उसी के हस्ताक्षर से परक्रामित किया जाएगा।

    यदि विनिमय पत्र, वचन पत्र या चेक का परक्रामण एक कूटरचित पृष्ठांकन किया जाता है, उस लिखत के अधीन दावा करने वाला व्यक्ति यद्यपि कि वह प्रतिफलार्थ लिखत का क्रेता और सद्भाव पूर्वक है, एक सम्यक् अनुक्रम धारक का अधिकार नहीं प्राप्त कर सकेगा। उसे लिखत का स्वत्व प्राप्त नहीं हो सकेगा।

    निरंक पृष्ठांकन की दशा में परन्तु एक निरक पृष्ठांकन पर यदि लिखत को कूटरचना की जाती है तो भिन्न मत उत्पन्न होता है। ऐसी दशा में यदि लिखत किसी व्यक्ति के हाथ में आता है जहाँ एक अन्तरण केवल सामान्य परिदान से किया जा सकता है, यह धारक के लिए महत्वहीन होगा कि अन्तरितों ने किसी नाम से लिखत को पृष्ठांकित किया है।

    जहाँ कोरा पृष्ठांकन किया गया है और यह पुनः कूटरचित पृष्ठांकन किया गया है, इस कूटरचित पृष्ठांकन से धारक स्त्वत्व नहीं प्राप्त करता, और वह किसी भी पक्षकार पर तिखत के अधीन कूटरचना का बिना कोई ध्यान रखे, बाद ला सकता है।

    उदाहरण- एक विनिमय पत्र पृष्ठांकित किया गया X या आदेशानुसार संदाय करें।" लिखत का निरंक पृष्ठांकन करता है। यह अ के हाथ में आता है और इसे वह स को अन्तरित करता है। स धारक के रूप में अ के कूटरचित पृष्ठांकन से अपना स्वत्व नहीं प्राप्त करता है, परन्तु वह X के पृष्ठांकन से प्राप्त करता है जो सही पृष्ठोंकन है। बिना अके कूटरचित पृष्ठांकन को ध्यान में रखते हुए वह विनिमय पत्र के किसी भी पक्षकार पर याद ला सकता है। एक समान नतीजा होगा जहाँ पृष्ठांकन किसी लिखत जो मूलतः बाहक को देख लिखत लिखा या रचित किया गया है।

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