निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 10 : लिखत के पक्षकारों की सक्षमता (धारा 26)

Shadab Salim

16 Sep 2021 5:06 AM GMT

  • निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 10 : लिखत के पक्षकारों की सक्षमता (धारा 26)

    परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) की धारा 26 लिखत के पक्षकारों की सक्षमता के संबंध में उल्लेख करती है। यह इस अधिनियम का अति महत्वपूर्ण भाग है जो लिखत के पक्षकारों की सक्षमता का उल्लेख करता है। कौन व्यक्ति लिखत के लिए सक्षम पक्षकार हो सकता है यह इस अधिनियम हेतु जानना आवश्यक हो जाता है। इस आलेख के अंतर्गत इस ही प्रावधान पर चर्चा की जा रही है।

    पक्षकारों की सक्षमता-

    संविदात्मक क्षमता– धारा 26 किसी व्यक्ति के सामर्थ्य के सम्बन्ध में नियम को स्थापित करती है कि किसी वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक के :-

    (i) पक्षकार के रूप में दायित्व उपागत करने एवं

    (ii) को रचित करने, लिखने, प्रतिग्रहीत करने, पृष्ठांकन करने, परिदान करने एवं परक्राम्य करने के सम्बन्ध में।

    उक्त दोनों संविदा सामर्थ्य के समविस्तार में हैं। किसी वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक का पक्षकार होना और लिखतों के सम्बन्ध में उक्त कार्यों को करने के लिए संविदात्मक सामर्थ्य होना आवश्यक है। जहाँ कोई व्यक्ति वचन पत्र विनिमय पत्र, या चेक के सम्बन्ध में कोई कार्य करता है जो संविदा सामर्थ्य नहीं रखता है वहाँ लिखत शून्य होगा। परन्तु एक या अधिक पक्षकारों में संविदा सामर्थ्य न होने की दशा में अन्य सामर्थ्य पक्षकारों की आबद्धता को कम करने का प्रभाव नहीं रखेगा।

    यह धारा इस तथ्य को भी स्पष्ट करती है कि पक्षकारों के संविदा सामर्थ्य को शासित करने वाली विधि उनकी वैयक्तिक विधि होगी जिसके अध्याधीन वह है।

    विधि जिसके अध्यधीन व्यक्ति है— भारतीय वयस्कता अधिनियम (1875 का 9) में यह व्यवस्था है कि हर व्यक्ति जो भारत का अधिवासी है, अल्पवय की अवधि 18 वर्ष की पूर्ण होने पर समाप्त होती है। उन व्यक्तियों के सम्बन्ध में जो भारत में अधिवासी नहीं है वयस्कता की अवधि की पूर्णता उनके अधिवास की विधि से शासित होगी।

    अधिनियम की धारा 26 उपबन्धित करती है कि-

    "ऐसा हर व्यक्ति जो उस विधि के अनुसार जिसके वह अध्यधीन है, संविदा करने के समर्थ है, वचन पत्र, विनिमय पत्र या चैक की रचना लेखन प्रतिग्रहण, पृष्ठांकन, परिदान और परक्रामण करके अपने को आबद्ध कर सकेगा और आबद्ध हो सकेगा।"

    चूँकि सभी लिखत चाहे वचन पत्र, विनिमय पत्र चेक एक निश्चित धनराशि के संदाय करने की संविदा अन्तर्ग्रस्त करते हैं, अतः वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक के पक्षकार संविदा करने को सक्षम होना चाहिए कौन सक्षम है और कौन सक्षम नहीं है संविदा अधिनियम में उपबन्धित है। "हर व्यक्ति जो उस विधि जिसके अध्यधीन है, वयस्क है, संविदा करने में सक्षम होता है, और जो स्वस्थचित है एवं किसी अन्य विधि जिसके अध्यधीन है, अनर्ह नहीं है।

    अधिनियम को यह धारा निम्नलिखित व्यक्तियों को संविदा करने में समर्थ बनाती है :-

    (i) एक वयस्क अवयस्क नहीं,

    (ii) स्वस्थचित है, अस्वस्थचित नहीं,

    (iii) जो विधि द्वारा संविदा करने से अनर्ह नहीं किया गया है।

    अल्पवय की स्थिति — संविदा अधिनियम की धारा 11 के अधीन अवयस्क के प्रत्येक संविदा शून्य होते हैं एवं उसके वयस्कता प्राप्ति पर अनुमोदन के भी योग्य नहीं होते हैं। वचन पत्र एवं विनिमय पत्र के संविदा सामान्यतया अवयस्क के हितों के अहित में होते हैं, अतः इन लिखतों के अधीन वे आबद्ध नहीं होते हैं एवं किसी परक्राम्य लिखत को रचित करने, लिखने, प्रतिग्रहीत करने या पृष्ठांकित करने से अपने को आबद्ध नहीं बना सकते हैं।

    एक अवयस्क व्यक्ति संविदा अधिनियम में विशेष उन्मुक्ति प्रदान की गयी है और ऐसा हर विधि में होता है। परक्राम्य लिखत अधिनियम इसका अपवाद नहीं है। इसके द्वारा भी अवयस्क को एक विशेष स्थिति प्रदान की गई है। एक अवयस्क वचन पत्र, विनिमय पत्र या बैंक की रचना, लेखन प्रतिग्रहण, पृष्ठांकन, परिदान और परक्रामण करके स्वयं के सिवाय अन्य पक्षकारों को आबद्ध बना सकेगा।

    उदाहरण: (i)'अ' एक अवयस्क एक विनिमय पत्र लिखता है जिसके अधीन ब को को संदाय करने का आदेश देता है। यह एक विधिमान्य विनिमय पत्र है। अ को आबद्धता ब एवं स के विरुद्ध नहीं होगी, जबकि ब एवं स विनिमय पत्र के अधीन आबद्ध होंगे।

    (ii) अ एक अवयस्क एक वचन पत्र बनाता है जिसके अधीन वह 5000 रु० ब को संदाय करने का वचन देता है यह एक विधिमान्य वचन पत्र है, परन्तु ब इस धनराशि को अ से नहीं प्राप्त कर सकेगा। यहाँ तक कि वयस्कता प्राप्त करने की दशा में भी अ आबद्ध नहीं होगा। मान लो ब इसे स को स इसे द को पृष्ठांकित करता है। वचन पत्र ब. स एवं द के बीच विधिमान्य रहेगा, परन्तु अ के प्रति नहीं।

    (iii) अ एक वचन पत्र 5000/- रु० का ब एक अवयस्क के प्रति लिखता है। यह एक विधिमान्य वचन पत्र है व इस धनराशि को अ से वसूल सकता है मानो कि ब इसे स को और स इसे द को पृष्ठांकित करता है। य एक अवयस्क के द्वारा किया गया पृष्ठांकन विधिमान्य है, परन्तु व स एवं द के प्रति आबद्धता नहीं होगा एवं स, द एवं 'अ' के विरुद्ध प्रवर्तनीय होगा।

    (iv) एक बैंक एक अवयस्क के लिए बैंक खाता उसके संरक्षक के द्वारा खोल सकता है, परन्तु उसे चेक बुक नहीं जारी करेगा जब तक कि यह वयस्क नहीं हो जाता। अतः वह चेक के लेखक के बजाय पाने वाला या पृष्ठांकिती हो सकता है। अवयस्क एक पाने वाला या पृष्ठांक या पृष्ठांकिती होने के नाते चेक को विधिमान्यता दूषित नहीं होगी, विधिमान्य रहेगा। किन्तु अवयस्क के सिवाय अन्य पक्षकार एक दूसरे के प्रति आबद्ध बने रहेंगे।

    बायल बनाम वेबस्टर्स के मामले में यह धारित किया गया है कि किसी लिखत में जहाँ कई व्यक्ति लिखत को लेखक प्रतिग्रहोता या पृष्ठांकक होते हैं जिसमें एक अवयस्क भी पक्षकार होता है, बाद अवयस्क के विरुद्ध नहीं लाया जा सकेगा, परन्तु अवयस्क वाद ला सकता है।

    अवयस्क की आबद्धता आवश्यकताओं के लिए जहाँ एक अवयस्क अपनी आवश्यकताओं के लिए या किसी अन्य व्यक्ति की आवश्यकताओं के लिए जिन्हें यह विधिक रूप में संरक्षित करने के लिए आबद्ध है किसी वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक से कोई आबद्धता उपगत करता है तो उसकी सम्पत्ति न कि यह वैयक्तिक रूप में आबद्ध होगा।

    सुलोचना बनाम पाण्डयन बैंक लि, में जहाँ एक अवयस्क एवं उसके पिता संयुक्त रूप में वचन पत्र लिखे। यह धारित किया गया कि पिता उससे आबद्ध था। एक व्यक्ति जो पूर्ण आयु का है एक विनिमय पत्र प्रतिग्रहीत करता है यद्यपि जब यह लिखा गया था उस समय अवयस्क था, विनिमय पत्र से आबद्ध होगा।

    स्टेवेन्स बनाम जैकसन में यह धारित किया गया कि एक व्यक्ति इस धारा के अधीन किसी लिखत की वैधता को अस्वीकार करने से रोका नहीं जा सकेगा कि वह वचन पत्र लिखने के समय अवयस्क था।

    इस प्रकार यदि एक अवयस्क कोई वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक बनाता या लिखता या पृष्ठांकन करता है, धारक लिखत को सिवाय अवयस्क के अन्य सभी पक्षकारों के विरुद्ध लागू कराने के लिए हकदार होगा। एक अवयस्क किसी लिखत पर कोई आबद्धता उपागत नहीं करेगा कि लिखत उसके द्वारा रचा, लिखा, प्रतिग्रहोत या पृष्ठांकन किया गया है।

    लिखत केवल अवयस्क के प्रति शून्य होगा, परन्तु अन्य पक्षकारों के प्रति विधिमान्य होगा। इस प्रकार एक अवयस्क लिखत के अधीन स्वत्व या आवद्धता प्रदान करने के लिए एक कानदुइट पाइप या एक चैनल होगा, परन्तु इसे उद्भव करने वाला नहीं होगा।

    जहाँ कई व्यक्ति संयुक्त रूप में किसी वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक में लेखीवाल, रचयिता, प्रतिग्रहीता या पृष्ठांकक है और उसमें से एक अवयस्क है यद्यपि कि अवयस्क पर वाद नहीं लाया जा सकेगा और अन्य पक्षकार अपनी आबद्धता से इस आधार पर उन्मुक्त नहीं होंगे। धारक बिना अवयस्क को पक्षकार बनाए अन्य वयस्क पक्षकारों पर वाद ला सकेगा।

    पुनः एक अवयस्क किसी विनिमय पत्र को प्रतिग्रहीत कर या वचन पत्र को रचकर स्वयं को आबद्ध नहीं बना सकेगा। यद्यपि धारा 26 एक विनिमय पत्र या वचन को अवयस्क द्वारा प्रतिग्रहीत करने या लिखने से सम्बन्धित नहीं है। इस प्रकार का वचन पत्र या विनिमय पत्र अवयस्क के विरुद्ध प्रवर्तनीय नहीं होगा, परन्तु अन्य सभी पक्षकारों के प्रति लागू होगा।

    एक अवयस्क अपने को अपने द्वारा विनिमय पत्र या वचन पत्र अपनी आवश्यकताओं के लिए आबद्ध नहीं बनाएगा यद्यपि कि एक अवयस्क वैयक्तिक रूप में आबद्ध नहीं होगा, परन्तु आवश्यकताओं की आपूर्ति करने वाला व्यक्ति अवयस्क की सम्पति से वसूल करने के लिए हकदार होगा।

    यहाँ तक कि जहाँ एक अवयस्क अपने को वयस्क कहते हुए कोई वचन पत्र या विनिमय पत्र निष्पादित करता है, लिखत उसके विरुद्ध प्रवर्तनीय नहीं होगा, बल्कि शून्य होगा। इसी प्रकार एक अवयस्क कोई ऋण किसी वचन के निष्पादन में वयस्क कहकर प्राप्त करता है, वह ऋण का संदाय करने के लिए कपट की क्षतिपूर्ति के रूप में आबद्ध नहीं होगा और न तो साम्या के अधीन ऋण की राशि को वापस करने के लिए आवद्ध होगा है।

    पुनः एक व्यक्ति द्वारा वयस्क होने पर दिया गया वचन पत्र जो अवयस्कता अवधि में दिये गए उसके वचन पत्र के नवीकरण में था, प्रतिफल के अभाव में शून्य होगा। 'ब' एक अवयस्क 21 वर्ष के ठीक 3 माह पूर्व तिथि के 6 माह बाद एक विनिमय पत्र को प्रतिग्रहीत करता है। वह इस लिखत को वयस्कता प्राप्त करने के पश्चात् अनुमोदित करता है और यह विनिमय पत्र पृष्ठांकित किया जाता है। धारक द्वारा 'ब' पर याद लाए जाने पर उसको आबद्धता मान्य नहीं की जाती है।

    अवयस्क अधिकार प्राप्त कर सकता है यह स्पष्ट होता है कि एक अवयस्क किसी वचन पत्र या विनिमय पत्र में आबद्ध नहीं बनाया जा सकता है, परन्तु उसमें वह अधिकार प्राप्त कर सकता है और यदि वह वचन पत्र या विनिमय पत्र का धारक बन जाता है तो लिखत के अन्य सभी पक्षकारों पर वाद ला सकता है एक माँग पर देय वचन पत्र जो अ एक अवयस्क के पक्ष में लिखा गया है जब वह अवयस्क था, शून्य नहीं है जिससे उस लिखत के अधीन वाद लाने से वंचित किया जा सके परन्तु ऐसा वाद अवयस्क अपने विधिक प्रतिनिधि द्वारा ला सकेगा

    उन्मत्त, विकृतचित्त या मत्त व्यक्ति यह सामान्य सिद्धान्त है कि किसी भी सोत से उद्धृत असमर्थता, संविदा को शून्य बनाने का प्रभाव रखती है। इस प्रकार संविदा उन्मत्त व्यक्तियों, विकृतचित्त व्यक्तियों या मत व्यक्तियों से किया गया अनुबन्ध शून्य होगा। विनिमय पत्र या वचन पत्र ऐसे व्यक्तियों द्वारा लिखा या पृष्ठांकित उनके विरुद्ध शून्य होता है, यद्यपि कि अन्य पक्षकार बाध्य बने रहते हैं।

    एक वचन पत्र या विनिमय पत्र जो उन्मत्त विकृतचित्त या मत व्यक्ति द्वारा लिखा या पृष्ठांकित किया गया है उसके विरुद्ध शून्य होगा बशर्ते कि वह इसे निष्पादित करते समय इसके अपने हितों पर कारित प्रभाव को समझने और विवेको निर्णय करने में समर्थ नहीं था परन्तु एक व्यक्ति जो सामान्यतया विकृतचित्त का है अपने को परक्राम्य लिखत से बाध्य बना सकेगा जब वह मतता के अन्तराल में है।

    इंग्लिश विधि के अन्तर्गत विकृतचित्त एक विधिमान्य बचाव नहीं होता है जब तक कि वादी यह साबित न करे कि उसे इसका संज्ञान नहीं था? मनता का बचाव भी ऐसा ही है और एक मत व्यक्ति द्वारा लिखा गया वचन पत्र या विनिमय पत्र उसके विरुद्ध शून्य होगा बशर्ते यह यह दिखाता है कि ऐसी मतता के प्रभाव से वह यह नहीं जान सका था कि वह क्या है।"

    कम्पनियां या निगम यद्यपि कि धारा 26 कहती है कि एक व्यक्ति संविदा की क्षमता रखते हुए अपने को बाध्य बना सकता है एक वचन पत्र या विनिमय पत्र का पक्षकार बनकर, परन्तु इस धारा की परन्तुक घोषित करती है कि एक निगम इस सामान्य नियम की अपवाद है।

    किसी निगम/कम्पनी का किसी वचन पत्र या विनिमय पत्र का लेखन प्रतिग्रहण एवं पृष्ठांकन को सामर्थ्य का उस विधि से विनियमित होने को छोड़ दिया गया है जिस विधि से कम्पनी/निगम तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन ऐसा करने को सशक्त हो। यद्यपि कि एक कम्पनी/निगम संविदा करने को सशक है। यह इस धारा के अधीन एक कम्पनी को ऐसा करने को सशक नहीं बनाता है जब तक कि वह अपने तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन ऐसा करने को सशक्त न हो।

    निगम को बैंक, वचन पत्र एवं विनिमय पत्र से आबद्ध होने की शक्ति आवश्यक रूप में संविदा करने की सामान्य शक्ति से विवक्षित नहीं मानी जाती है। एक कम्पनी/निगम विधि द्वारा कृत्रिम रूप से सृजित होतो है, अतः केवल उन्हीं अधिकारों एवं शक्तियों में निहित होती है जो उसके सृजित करने वाला चार्टर उसे प्रदन करता है चाहे अभिव्यक्तः चाहे उसके अस्तित्व के लिए आनुषंगिक हो।

    कम्पनी/निगम को संविदात्मक क्षमता सामान्यतया उन उद्देश्यों पर निर्भर करता है जिसके लिए कम्पनी स्थापित की गयी है अर्थात् उसके निगम के संविधान या सीमा नियम जिससे वह स्थापित है, पर निर्भर करता है।

    यदि कम्पनी/निगम अपनी इस शक्ति से बाहर किसी परक्राम्य लिखत को निष्पादित करती है, ऐसा कार्य निगम कम्पनी के शक्ति बाह्य होगा और जिसे वह अनुमोदित भी नहीं कर सकती है। ऐसे वचन पत्र एवं विनिमय पत्र के सद्भावी प्रतिफलार्थ धारक भी कम्पनी को दायी नहीं ठहरा सकता है। परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि ऐसी शक्ति कम्पनी/निगम के चार्टर या सीमा निगम में अभिव्यक्त रूप में प्राप्त हो। ऐसी शक्ति जो कम्पनी के मुख्य उद्देश्य के लिए आवश्यक एवं अनुषंगिक हो, विवक्षित हो सकेगी।

    इस प्रकार एक कम्पनी या निगम किसी कारोबार को करने के लिए निगमित है, कोई वचन पत्र/विनिमय पत्र का लेखन प्रतिग्रहण या पृष्ठांकन करने की सामर्थ्य रखती है एवं न्यायालय इसे करने को विवक्षित रूप में मान्य करेगा। परन्तु एक गैर-व्यापारिक कम्पनी इसे करने की शक्ति नहीं रखेगी जब तक कि उसका चार्टर या सीमा निगम अभिवत: ऐसा करने के लिए सशक्त न करे धारा 26 से किसी सारवान् या प्रक्रियात्मक विधि को बनाने का प्रावधान तात्पर्पित नहीं होता है।

    इस धारा का पश्चात्वर्ती भाग केवल यह स्पष्ट करती है कि एक कम्पनी प्रथम भाग के अधीन चेक को जारी करने का प्राधिकार का दावा नहीं कर सकती है। कम्पनी के द्वारा परक्राम्य लिखत जारी करने की शक्ति कम्पनी अधिनियम के सुसंगत भाग में स्वयं पाया जाता है।

    कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 22 उपबन्धित करती है "एक विनिमय पत्र, हुण्डी या वचन पत्र कम्पनी के लिए बनाया गया, प्रतिग्रहीत किया गया, लिखा गया, पृष्ठांकित किया गया माना जाएगा यदि इसे लिखा गया, प्रतिग्रहीत किया गया, बनाया गया या पृष्ठांकित किया गया है कम्पनी के नाम से या कम्पनी की ओर से या कम्पनी के लेखे में किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा जो अभिव्यक्त या विवक्षित प्राधिकार के अधीन किया

    जहाँ कोई लिखत स्पष्टतः कम्पनी की ओर से निष्पादित है, यहाँ कम्पनी पर आवद्धता होगी कि वह इसे साबित करे कि ऐसा लिखत उस पर बाध्यकारी नहीं है।

    एक वचन पत्र तमिल भाषा में श्री राजगोपाल बस ट्रान्सपोर्ट के प्रोपराइटर राम नाथ रेड्डियार द्वारा निष्पादित किया गया।" इस धनराशि को ट्रान्सपोर्ट के लिए एक बस खरीदी गई जिसका रामनाथ रेड्डियार प्रबन्ध निदेशक था। इस वचन पत्र के आधार पर एक वाद में यह धारित किया गया ट्रांसपोर्ट कम्पनी इससे आबद्ध थी, क्योंकि वचन पत्र में ऐसा आशय स्पष्ट था।

    Next Story