निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 17: निरंक पृष्ठांकन का पूर्ण पृष्ठांकन में परिवर्तन (धारा 49)

Shadab Salim

19 Sep 2021 4:15 AM GMT

  • निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 17: निरंक पृष्ठांकन का पूर्ण पृष्ठांकन में परिवर्तन (धारा 49)

    परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) के अंतर्गत निरंक पृष्ठांकन से पूर्ण पृष्ठांकन में परिवर्तन से संबंधित प्रावधान इस अधिनियम की धारा 49 में समाहित किए गए हैं।

    यह इस अधिनियम की महत्वपूर्ण धाराओं में से एक धारा है। निरंक पृष्ठांकन के प्रकारों का भी उल्लेख इस धारा में मिलता है। इस आलेख के अंतर्गत इस अधिनियम की धारा 49 से संबंधित प्रावधानों पर चर्चा की जा रही है।

    निरंक पृष्ठांकन

    धारा 49 के अंतर्गत दिए गए निरंक पृष्ठांकन के प्रावधान को विधि विदानों के दिए इस उदाहरण से समझा जा सकता है-

    'अ' एक निरंक पृष्ठांकन द्वारा लिखत को 'ब' को परिदत्त करता है यहाँ अ पृष्ठांकक है और 'ब' पृष्ठांकिती है। 'ब' चाहता है कि वह इसे 'स' को पृष्ठांकित कर दे तो वह केवल 'स' का नाम 'अ' के हस्ताक्षर के ऊपर लिखकर पृष्ठांकित कर सकेगा उसे अपना हस्ताक्षर करना आवश्यक नहीं होगा।

    इस संव्यवहार में धारक 'अ' के विरुद्ध या किसी भी पक्षकार के विरुद्ध अधिकार रखेगा जिससे वह लिखत का दावा करता है और निरंक पृष्ठांकन का धारक लिखत के अधीन दायित्वाधीन नहीं होगा। अर्थात् अ" की कोई आबद्धता लिखत के अधीन नहीं होगी।

    ऐसी दशा में लिखत का धारक 'स', 'अ' के विरुद्ध या किसी अन्य पक्षकार के विरुद्ध अधिकार रखेगा और वह व्यक्ति जो निरंक पृष्ठांकिती के रूप में "ब धारक के प्रति लिखत में उत्तरदायी नहीं होगा।

    (ख) प्रतिबन्धात्मक या सशर्त पृष्ठांकन

    प्रतिबन्धात्मक पृष्ठांकन– पृष्ठांकन, पृष्ठांकिती को लिखत का मालिक बनाता है और उस पर लिखत को पुनः पृष्ठांकन करने का अधिकार प्रदान करता है। परन्तु जहाँ यह पुनः पृष्ठांकन का अधिकार अभिव्यक्त शब्दों से प्रतिबन्धित कर दिया जाता है या ले लिया जाता है तो इसे प्रतिबन्धात्मक पृष्ठांकन कहते हैं।

    पृष्ठांकक पुनः पृष्ठांकन के अधिकार को पूर्णतः अपवर्जित कर सकता है या पृष्ठांकिती को केवल अभिकर्ता के रूप में या केवल लिखत के अधीन किन्हों विहित प्रयोजनों के लिए संदाय प्राप्त करने का अधिकार प्रदान कर सकता है।

    प्रतिबन्धात्मक पृष्ठांकन हो सकता है-

    (1) पृष्ठांकिती के पृष्ठांकन के अधिकार को प्रतिबन्धित कर, या

    (ii) पृष्ठांकिती के पृष्ठांकन के अधिकार को अपवर्जित कर

    (iii) पृष्ठांकिती को केवल अभिकर्ता के रूप में, या

    (iv) पृष्ठांकिती केवल संदाय पाने का अभिकर्ता, या

    (v) पृष्ठांकिती किसी अन्य व्यक्ति या प्रयोजन के लिए संदाय पाने का अधिकार।

    उदाहरण-

    निम्नलिखित पृष्ठांकन पुनः ग द्वारा पृष्ठांकन के अधिकार को अपवर्जित करता है:-

    ख वाहक को देय परक्राम्य लिखतों पर निम्नलिखित पृष्ठांकन हस्ताक्षरित करता है-

    (क) "अन्तर्वस्तुओं का संदाय ग को करो।"

    (ख) "मेरे उपयोग के लिए ग को संदाय करो।"

    (ग) "ख के लेखे ग को या आदेशानुधार संदाय करो।"

    (घ) "इसकी अन्तर्वस्तुएं ग के नाम जमा कर दो।"

    निम्नलिखित पृष्ठांकन ग द्वारा आगे के परक्रामण (पृष्ठांकन) के अधिकार को अपवर्जित नहीं करते:-

    (ङ) "ग को संदाय करो"

    (च) "ओरिएण्टल बैंक में ग के खाते में इसका मूल्य जमा कर दो।"

    (छ) "पृष्ठांकक एवं अन्यों को ग ने जो समनुदेशन विलेख निष्पादित किया है उसके प्रतिफल के भागस्वरूप ग को इसकी अन्तर्वस्तुओं का संदाय करो।"

    प्रतिबन्धात्मक पृष्ठांकन के प्रभाव-

    प्रतिबन्धात्मक पृष्ठांकन का प्रभाव है कि पृष्ठांकिती संदाय पाने का अधिकार प्राप्त करता है जब शोध्य होता है और इसके लिए वाद भी ला सकता है परन्तु वह पुनः लिखत को पृष्ठांकित नहीं कर सकेगा जब तक कि यह पृष्ठांकक से प्राधिकृत हो।

    सशर्त पृष्ठांकन- जहाँ पृष्ठांकक अपने पृष्ठांकन में किसी शर्त का उल्लेख करता है तो उसे सशर्त पृष्ठांकन कहते हैं। इसे विशेषित पृष्ठांकन भी कहा जाता है।

    उदाहरण के लिए- पृष्ठांकक का पृष्ठांकन है "X" या आदेशानुसार उसके विवाह पर संदाय करें।" या" एक जहाज के आने पर संदाय करें" या "यदि वह विशेष वस्तु परिदत करे तो संदाय करें।"

    अधिनियम की धारा 52 परक्राम्य लिखत का पृष्ठांकन में अभिव्यक्त शब्दों द्वारा उस पर का अपना स्वयं का दायित्व अपवर्जित कर ऐसे दायित्व को या उस लिखत पर शोध्य रकम को प्राप्त करने के पृष्ठांकिती के अधिकार को किसी विनिर्दिष्ट घटना के घटित होने पर, चाहे ऐसी घटना कभी भी न हो, आद्रित कर सकेगा।

    (क) एक लिखत का पृष्ठांकक निम्न शब्दों को जोड़ते हुए हस्ताक्षर करता है। "दायित्व रहित " इस पृष्ठांकन के आधार पर वह कोई दायित्व पैदा नहीं करता है।

    (ख) 'क' परक्राम्य लिखत का पाने वाला और धारक है। "दायित्व रहित" इस पृष्ठ द्वारा वैयक्तिक दायित्व को अपवर्जित करके वह लिखत ख को अन्तरित करता है और ख उसे ग को पृष्ठांकृत करता है जो उसे क को पृष्ठांकित कर देता है। क न केवल अपने पूर्ववर्ती अधिकारों से ही पुन:स्थापित हो जाता है, वरन् उसे ख और ग के विरुद्ध पृष्ठांकिती के अधिकार भी प्राप्त हो जाते हैं।

    जब कोई पृष्ठांकक दायित्व रहित" लिखत का कारक अपने अधिकार में बन जाता है, सभी मध्यवर्ती पृष्ठांकक उसके प्रति आबद्ध हो जाते हैं।

    सशर्त पृष्ठांकन एवं सशर्त परिदान- एक सशर्त पृष्ठांकन को सशर्त परिदान से भिन्न मानना चाहिए। सशर्त परिदान में लिखत पर पृष्ठांकन में किसी शर्त का उल्लेख नहीं होता है। शर्तों का केवल मौखिक वर्णन होता है। उदाहरण के लिए 'A' कोई लिखत 'B' को केवल उगाही के प्रयोजन से परिदत करता है न कि पृष्ठांकन के लिए।

    यदि "B" इसे न मानकर लिखत का पृष्ठांकन किसी निर्दोष पक्ष को करता है तो बाद का व्यक्ति एक अच्छा हक प्राप्त कर सकेगा। इससे यह निकलता है कि ऐसी शर्त केवल तात्कालिक पक्षों में प्रभावी होगी या उन पक्षों को जिनके संज्ञान में शर्त है। परन्तु सम्यक् अनुक्रम धारक के विरुद्ध नहीं।

    सशर्त पृष्ठांकन के उदाहरण-

    (1) सैन्स फ्रेस- सैन्स फ्रेस पृष्ठांकन अर्थात् बिना खर्ची के यहाँ पर पृष्ठांकन लिखत पर उसके खातों में बिना खर्च के पृष्ठांकन, जैसे उदाहरण—X बैंक को इस प्रकार से पृष्ठांकित करता है:-

    Y के आदेश पर संदाय करे बिना मेरे खर्ची के।

    (2) प्रो पृष्ठांकन- ऐसा पृष्ठांकन एक प्राधिकृत अभिकर्ता करता है।

    (3) सम्पूर्ण या भागिक पृष्ठांकन (धारा 56 )

    यह पृष्ठांकन का सामान्य नियम है कि लिखत के सम्पूर्ण रकम का पृष्ठांकन किया जाना चाहिए। एक लिखत उसके रकम के किसी एक भाग अर्थात् भागिक पृष्ठांकन नहीं किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए यदि लिखत 50,000 रु० का है तो 10,000 रु० के लिए पृष्ठांकन नहीं किया जा सकता है।

    परन्तु जहाँ शोध्य रकम को आंशिक रूप में संदत कर दिया गया है तो वहाँ अधिशेष धनराशि का पृष्ठांकन किया जा सकेगा। अतः यदि लिखत 5000 रु० का है और 3000 रुपए संदत्त किया जा चुका है तो शेष धनराशि 2000 रु० का पृष्ठांकन किया जा सकेगा।

    उदाहरण—विनिमय पत्र असंदत होते हुए X के आदेशानुसार रु० 2,000/- का भुगतान करें।

    (4) फैकल्टेटिव पृष्ठांकन-

    जहाँ पृष्ठांकन, पृष्ठांकक अपने कुछ अधिकारों को परित्याग करते हुए या लिखत के अधीन किसी पक्षकार के कर्तव्यों का परित्याग करते हुए किया जाता है तो उसे फैकल्टेटीव पृष्ठांकन कहते हैं। उदाहरण के लिए लिखत के अनादर की सूचना देने का परित्याग या धारक द्वारा संदाय के लिए लिखत के उपस्थापन का परित्याग।

    पृष्ठांकन के सामान्य सिद्धान्त या विधिमान्य पृष्ठांकन की शर्तें या नियम–

    एक प्रभावी पृष्ठांकन होने के लिए इसे नियमित एवं विधिमान्य होना चाहिए। एक विधिमान्य पृष्ठांकन के निम्न सिद्धान्त या शर्तें हैं:-

    (1) पृष्ठांकन स्वयं लिखत पर होनी चाहिए जगह न होने की दशा में पृथक् कागज के टुकड़े (एलान्ज) पर होना चाहिए।

    (2) पृष्ठांकक या उसके प्राधिकृत अभिकर्ता से हस्ताक्षरित होना चाहिए।

    (3) पृष्ठांकन इन्क से होना चाहिए। पेन्सिल से भी किया जा सकता है, परन्तु इसे मिटाया जा सकेगा अतः पेन्सिल से बचना चाहिए।

    (4) टाइप से लिखित भी प्रयोज्य है। प्रिन्टेड पृष्ठांकन स्वीकार योग्य होता है। परन्तु बैंक सामान्यतया इसे मान्य नहीं करते, क्योंकि इसे बड़ी आसानी से डुप्लीकेटेड किया जा सकता है।

    (5) एक रबर स्टैम्प से किया गया पृष्ठांकन आवश्यक रूप से पृष्ठांकक के हस्ताक्षर से समर्थित होना चाहिए।

    (6) पृष्ठांकन प्राधिकृत व्यक्ति से ही किया जाना चाहिए। किसी अजनबी द्वारा यह मान्य नहीं होगा।

    (7) पृष्ठांकन के पश्चात् लिखत को परिदत्त किया जाना चाहिए, क्योंकि परिदान के बिना पृष्ठांकन पूर्ण नहीं होता है।

    (8) पृष्ठांकन लिखत के सम्पूर्ण रकम का होना चाहिए।

    (9) पृष्ठांकक चाहे पाने वाला या पृष्ठांकिती हो तो पृष्ठांकन उसी नाम से किया जाना चाहिए जैसा कि लिखत में नाम है। यदि पृष्ठांकक का नाम लिखत में गलत उच्चारण है या उसके पद को गलत दिखाया गया है तो उसे उसी रूप में हस्ताक्षर करना चाहिए जैसा कि लिखत में उल्लिखित है, तत्पश्चात् वह अपना हस्ताक्षर समुचित रूप में कर सकता है, यदि वह ऐसा चाहता है।

    केवल सही नाम लिखना नियमित पृष्ठांकन नहीं होगा। कोई इनिशियल या नाम न तो जोड़ा जाएगा और न तो हटाया जाएगा जैसा कि पाने वाला या पृष्ठांकिती का नाम चेक में दिया है। उदाहरण के लिए जो एस० सी० गुप्ता को देय है एस० गुप्ता के नाम से पृष्ठांकित नहीं किया जाएगा। इसी प्रकार एक चेक हरीश सक्सेना के नाम से एच० सक्सेना के नाम से पृष्ठांकित नहीं किया जाएगा।

    (10) अशिक्षित व्यक्ति द्वारा पृष्ठांकन- जहाँ अशिक्षित व्यक्ति के द्वारा पृष्ठांकन किया जाता है, यहाँ उसके द्वारा उस पर अंगूठे का निशान लगाया जाएगा जो किसी अन्य व्यक्ति के साक्षी में एवं प्रमाणित होगा जिसका पूर्ण विवरण होगा। जैसे X का अंगूठे का निशान।

    (11) पाने वाला या पृष्ठांकिती के Prefixes or Suffixes (नाम का) पृष्ठांकन में सम्मिलित नहीं किया जाएगा। उदाहरण के लिए "श्री, मेसर्स, श्रीमती कुमारी, श्रीमती, लाला बाबू, जनरल, डॉक्टर, मेजर आदि पृष्ठांकक के द्वारा नहीं दिया जाएगा। क्योंकि पृष्ठांकन नियमित नहीं होगा यद्यपि कि पृष्ठांकक अपने हस्ताक्षर के बाद अपने टाइटल एवं रेन्क का प्रयोग कर सकेगा। उदाहरण के लिए एक चेक मेजर राजाराम या डॉ० लक्ष्मी चन्द्रा को देय है, "राजा राम, मेजर" या "लक्ष्मी चन्द्र, डॉक्टर से पृष्ठांकित होना चाहिए।" लिखत एक विवाहित महिला को देय है, पृष्ठांकन होना चाहिए।

    (12) भागीदारी फर्म के दशा में, फर्म का नाम एक व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित होना चाहिए। ( भागीदार, प्रबन्धक, आदि) जो भागीदारी फर्म की ओर से हस्ताक्षर करने के लिये सम्यक् रूप में प्राधिकृत हो। जैसे-एक चेक मे० किशन चन्द्र राजा राम को देय है, पृष्ठांकित होना चाहिए।

    (1) किंशन चन्द राजाराम।

    (2) किशन चन्द राजाराम के लिए।

    (3) पर प्रो० किशन चन्द्र राजाराम किशन चन्द

    (4) किशन चन्द राजाराम के लिए

    राजाराम (भागीदार)

    हरीश चन्द (प्रबन्धक)

    परन्तु दो भागीदार बिना यह दिखाते हुए कि फर्म में भागीदार है, हस्ताक्षर करते हैं, पृष्ठांकन अनियमित होगा।

    (13) एक व्यक्ति अपने अभिकर्ता को उसके लिए लिखत को पृष्ठांकित करने के लिए प्राधिकृत कर सकता है। अतः अभिकर्ता पृष्ठांकन में प्रयोग कर सकता है, लिए' 'के लिए' को ओर से' पर प्रो, आदि जिससे संकेत मिले कि वह अपने मालिक के लिए न कि स्वयं के लिए हस्ताक्षर कर रहा है।

    यदि भुगतान बैंक पर प्रो' हस्ताक्षर करने पर सन्देह करे तो उसे आवश्यक जाँच संदाय के पूर्व की जानी चाहिए। ऐसी दशा में नियमित पृष्ठांकन होने के लिए या की ओर से' या 'पर प्रो' पृष्ठांकन अनियमित होगा।

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