निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 3 : वचन पत्र क्या होता है

Shadab Salim

7 Sep 2021 5:45 AM GMT

  • निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 3 : वचन पत्र क्या होता है

    परक्राम्य लिखत अधिनियम (Negotiable Instruments Act, 1881) के अंतर्गत तीन प्रकार के दस्तावेजों का उल्लेख किया गया है उनमें पहला महत्वपूर्ण दस्तावेज वचन पत्र है। अधिनियम की धारा 4 वचन पत्र के संबंध में उल्लेख करती है। इस आलेख के अंतर्गत वचन पत्र संबंधित से प्रावधानों पर चर्चा की जा रही है तथा उससेे संबंधित न्याय निर्णय भी प्रस्तुत किए जा रहेे हैं।

    वचन पत्र ऐसा पत्र है जिसने ऋण चुकाने का वचन समाहित है। इसका संबंध ऋण से है। यदि ऋण है तो वहां वचन पत्र भी होने की संभावना रहती है। सामान्य व्यवहारों में वचन पत्र नहीं मिलता है परंतु इसका चलन आज भी है तथा अनेक व्यापारिक व्यवहारों को इससे ही संचालित किया जा रहा है। यह प्राचीन व्यवस्था है और अत्यंत सरल भी।

    कृष्ण कुमार बनाम गुरपाल सिंह के मामले में एक अनुज्ञप्तिधारी ऋणदाता ने पूर्व के हस्ताक्षरित अभिलेख पर प्रोनोट तैयार किया एवं प्रतिवादी के हस्ताक्षर पहले कोरे कागज पर लिए और उसे प्रोनोट के तैयार करने में प्रयुक्त किया। इस मामले में निर्धारित किया गया कि वाद की खारिजी समुचित थी।

    वचनपत्र या प्राप्ति प्रश्नगत अभिलेख पर 7-5-2005 मैंने ख से 5,00,000 रु० उधार लिया है। मैं 6 माह में प्रतिसंदाय करूंगा।" न्यायालय ने धारित किया कि यह अभिलेख केवल यह अभिस्वीकृति है कि प्रतिवादी ने 5 लाख रुपया प्राप्त किया है। अभिलेख यह उल्लेख नहीं करता है कि प्रतिवादी ने भुगतान करने की आबद्धता किया है।

    अभिलेख को वचनपत्र नहीं कहा जा सकता है। अभिलेख की परक्राम्यता वचनपत्र का मुख्य लक्षण है, जबकि देय धनराशि की निश्चितता एवं बिना शर्त की आबद्धता अन्य दो अपेक्षाएँ हैं जिससे कोई अभिलेख वचनपत्र के वर्णन में आए।

    के० विजय कुमारन नायर उर्फ विजयन बनाम अजीत कुमारी में कथन कि माँग पर वचनदाता 8 लाख रुपए वचनगृहीता को 18% वार्षिक ब्याज की दर से भुगतान करने की आबद्धता लेता है।

    यह वचनपत्र के लक्षणों को समाहित करता है। यह कथन की मांग पर देय होना अभिलेख को वचनपत्र बनाने के लिए पर्याप्त है। यह आवश्यक नहीं है कि शब्द 'वचन' का प्रयोग किया जाए बशर्ते कि प्रयुक्त भाषा लेखक की ओर से यह स्पष्ट आशय प्रकट करे कि किसी शर्त भुगतान करने की आबद्धता होनी चाहिए।

    इसी प्रकार का विधि सिद्धान्त के० विजय कुमारन नायर बनाम अजीत कुमारों में अन्तर्ग्रस्त था-

    "मैं आपका ऋणी हूँ"

    मैं आपका ऋणी हूँ "Iowee you" का संक्षिप्त शब्द L.O.U. है। यह केवल ऐसा करने वाले व्यक्ति को धारक के प्रति ऋणी होने की अभिस्वीकृति है। यह वचनपत्र नहीं है और स्टाम्प की अपेक्षा नहीं होती है।

    यद्यपि कि सभी व्यवहारिक कार्यों के लिये यह एक परक्राम्य लिखत के ही समान मूल्यवान है, जब कभी ऋण के लिये वाद लाने का प्रश्न होता है, जो कि पक्षकारों के बीच सृजित किया गया है, यदि दिए गए धन की वसूली के लिए कोई कार्यवाही की जाती है, वादी, प्रतिवादी द्वारा हस्ताक्षरित 104 साक्ष्य अधिनियम में प्रस्तुत करता है।

    सुमत प्रकाश जैन बनाम मे० ज्ञान चन्द जैन में यह धारित किया गया है कि ऋण की रकम पर ब्याज का संदाय ऋण की अभिस्वीकृति होता है। अपीलकर्ता शीतल प्रसाद जैन के पिता एवं विधिक प्रतिनिधि है। शीतल प्रसाद जैन ने प्रत्यर्थी से 3 लाख रुपए अपने कारोबार के लिये उधार लिए। ऋण चेक द्वारा जिसे 1.55 प्रतिमाह ब्याज की दर से बैंक खाते से दिया गया। प्रतिवादी/अपीलकर्ता ने ऋण का ब्याज 54,000/- चेक द्वारा संदाय किया।

    प्रत्यर्थी/वादी ने शीतल प्रसाद जैन (प्रतिवादी) पर धन वसूली के लिये वाद लाया परीक्षण न्यायालय ने यह धारित किया कि उधारी का एक समुचित वाद था जो अधिनियम की धारा 4 को आकर्षित करता है और ब्याज का संदाय ऋण की अभिस्वीकृति था। अपील में उच्च न्यायालय ने परीक्षण न्यायालय के निर्णय को मान्य करते हुए अपील खारिज कर दी।

    कामन लॉ के अधीन - विनिमयपत्र अधिनियम, 1822 की धारा 83 (1) वचनपत्र को परिभाषित करती है :

    "एक वचनपत्र अशर्त लेखबद्ध वचन है जो एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति द्वारा किया जाता है। लेखक के द्वारा हस्ताक्षरित होता है। जिसमें किसी विहित व्यक्ति के या उसके आदेशानुसार या वाहक को माँग पर या निश्चित समय पर या भविष्य में निश्चित होने वाले समय पर एक निश्चित धन भुगतान अन्तर्विष्ट होता है।" आंग्ल विधि बैंक नोट या करेंसी नोट को अपवाद स्वरूप अन्तर्विष्ट नहीं करती है किन्तु सारतः परिभाषा वही है जो भारतीय विधि में है।

    वचनपत्र की विशेषताएं:- उक्त परिभाषाओं के अध्ययन से एक वचनपत्र की निम्नलिखित विशेषताएं-

    (1) लिखित होना-

    सभी परक्राम्य लिखतों का प्रथम आवश्यक लक्षण इसका लिखत होना है। निश्चित धनराशि का भुगतान करने का मौखिक वचन लिखत नहीं होगा। इस अपेक्षा का उद्देश्य भुगतान करने का मौखिक वचन को अधिनियम के दायरे से अपवर्जित करना है। यह पेंसिल या स्याही से हो सकता है साथ ही साथ यह प्रिंटिंग, टाइप, फोटो कापी, लिथोग्राफी या अन्य किसी दृष्टव्य प्रारूप में शब्दों को प्रतिनिधित्व या प्रस्तुत करने वाला होना चाहिये।

    इसका कोई निश्चित विहित प्रारूप नहीं है, परन्तु कोई अभिलेख एक वचनपत्र माना जाय इसे प्रारूप एवं आशय में वचनपत्र होना चाहिए। किसी अभिलेख में एक निश्चित धनराशि के कर्ज की अभिस्वीकृति एवं माँग पर देय होना, अभिलेख को वचनपत्र बनाने के लिए पर्याप्त होगा और कर्जदार का भुगतान करने का वचन करना अनावश्यक होगा। 'वचन" शब्द का प्रयोग करना आवश्यक नहीं होता बशर्ते कि प्रयुक्त भाषा यह स्पष्ट करे कि लेखक की ओर से धनराशि भुगतान करने की अशर्त आबद्धता है।

    एक वचनपत्र लेखबद्ध एवं सम्यक् रूप से स्टाम्पित होना चाहिए। बोलम वेंकटैयाह बनाम मेनुमीड्डाला वैंकटा रमन रेड्डी, में यह धारित किया गया है कि एक प्रोनोट यदि स्टाम्पित नहीं है, साक्ष्य में ग्राह्य नहीं होगा और मौखिक साक्ष्य प्रोनोट के निबन्धनों को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।

    (2) भुगतान करने का वचन-

    वचनपत्र का दूसरा तत्व भुगतान करने की अभिव्यक्त प्रतिज्ञा होनी चाहिये। केवल कर्ज की अभिस्वीकृति बिना अभिव्यक्त भुगतान करने की प्रतिज्ञा के वचनपत्र नहीं होगा।

    अतः निम्नलिखित वचनपत्र नहीं है :

    (i) श्रीमान् 'ब' मैं आपका 500 रु० का ऋणी हूँ। यह मात्र ऋण की अभिस्वीकृति है। लक्ष्मी बाई बनाम रघुनाथ, में यह धारित है कि यह केवल ऋण की अभिस्वीकृति बिना भुगतान करने की प्रतिक्षा है। अतः वचनपत्र नहीं है।

    (ii) मैंने आपसे उधार लिया 5000 रु० प्राप्त किया जिसका ब्याज सहित हिसाब देना है।

    (iii) आज जो धनराशि मैं नकद 5000 रु० प्राप्त किया हूँ उसे मैं ब्याज सहित भुगतान करने के लिए आबद्ध हूँ ।

    (iv) मेरे पास 5000 रु० जमा करो उसे माँग पर वापस किया जाएगा।

    (v) मैं अ का 5000 रु० आबद्ध हूँ जिसे किश्तों में किराए में भुगतान करूँगा।

    निम्नलिखित वचनपत्र है :-

    (i) शेष रुपये 5000 जो आपको देय है। मैं अभी भी कर्जदार हूँ और भुगतान करने का वचन देता हूँ।

    (ii) 'अ' से 5000 रु० प्राप्त किए जिसे मैं ब्याज सहित भुगतान करने की प्रतिज्ञा करता हूँ।

    (iii) मैं स्वयं को 5000 रु० के कर्जदार की अभिस्वीकृति करता हूँ जिसे माँग पर भुगतान किया जाएगा।

    (iv) हम ऋण लेने के लिये आदेशित हैं जिसे भुगतान करेंगे, यह दूसरे तरह से करने के लिए निर्णीत किया गया है कि "मैं भुगतान करूंगा" अतः वचनपत्र है।

    पदावली 'मांग पर देय' आवश्यक रूप में भुगतान करने की प्रतिज्ञा विवक्षित करता है और एक वचनपत्र माँग पर देय अभिव्यक्त एक वचनपत्र है। जहाँ पर अभिव्यक्तत: भुगतान करने का वचन है वहाँ एक लिखत कम से कम एक वचनपत्र है, क्योंकि यह कृपाजनक या आभार सूचक शब्दों का प्रयोग करता है। एक वचनपत्र अपनी प्रकृति बनाए रखेगा यद्यपि कि एक निश्चित स्थान पर देय है।

    (3) बिना शर्त भुगतान का वचन-

    वचनपत्र होने के लिए यह आवश्यक है कि भुगतान करने की प्रतिज्ञा या आबद्धता बिना किसी शर्त के होनी चाहिए। एक वचन अशर्त है जब यह किसी शर्त के अधीन नहीं होता है। यदि अ य को 5000 रु० देने का वचन देता है यदि यह 'स' से विवाह करेगा यह सशर्त वचन है, क्योंकि यह निश्चित नहीं है कि ब स से विवाह करे या विवाह के पूर्व उसकी मृत्यु हो जाय।

    बियर्डसले बनाम बाल्डविन' में यह लिखित करार था कि विवाहोपरान्त प्रतिवादी को एक निश्चित धनराशि दी जाएगी, वचनपत्र मान्य नहीं किया गया, क्योंकि प्रतिवादी सम्भवतः शादी कभी न करे और धनराशि कभी देय न हो सके।

    निश्चित घटना के अधीन जहाँ वचन किसी ऐसी शर्त के अधीन है जो मानव के सामान्य अनुभव में घटित होने के लिए आबद्ध है, जैसे मृत्यु। इस सम्बन्ध में राबर्ट्स बनाम पोकर्ड का मामला उल्लेखनीय है।

    एक वचनपत्र के लिए वाद लाया गया जो निम्नलिखित प्रारूप में था-

    "स' को मृत्यु पर हम 5000 रु० अ को भुगतान करने का वचन देते हैं जिसका मूल्य प्राप्त कर लिया है, जबकि वह पर्याप्त धनराशि भुगतान वास्ते छोड़ता है अथवा हम भुगतान करने के योग्य हों।" न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि लिखत केवल मृत्यु पर देय बनाया गया होता, तो यह वचनपत्र होता, क्योंकि मृत्यु की घटना निश्चित है और घटित होने के लिये आवश्यक है। परन्तु अन्य शर्त यदि वह पर्याप्त धन छोड़े या अन्यथा हम भुगतान करने के योग्य हों लिखत को अवैध एवं दूषित बना देता है, क्योंकि यह सशर्त है।

    इस धारा के अर्थ में भुगतान करने का वचन सशर्त नहीं होगा, यदि यह किसी ऐसी घटना के अधीन बनाया गया है जो निश्चित रूप में घटित होगी यद्यपि कि घटने का समय अनिश्चित हो सकता है। अतः स की मृत्यु के एक माह बाद निश्चित धनराशि भुगतान करने की प्रतिज्ञा, वचनपत्र होगा।

    ऋणदाता का प्रत्याख्यान के० पी० नलाक गाउण्डर बनाम काथिरवेल के मामले में प्रतिवादी (उधार लेने वाला) ने रुपये लेना एवं वचनपत्र पर हस्ताक्षर करना नकारा, परन्तु वचनपत्र में सारवान् परिवर्तन का उल्लेख करने में विफल रहा। यदि यह साबित करने में सफल रहा कि वचनपत्र वास्तविक है और प्रतिवादी का हस्ताक्षर धन प्राप्ति के ही समान है। उच्च न्यायालय ने वादी के पक्ष में दिक्री देना समुचित पाया।

    सशर्त भुगतान के कुछ दृष्टान्त-

    (i) "लेखों के निपटान पर जब मुकदमा समाप्त होता है।" भुगतान करने का वचन।

    (ii) 'न्यायालय में विचाराधीन मामले में विजयी होने पर भुगतान करने का वचन।

    (iii) "जहाज के सुरक्षित आगमन के 30 दिन बाद" भुगतान का वचन।

    (iv) "मैं अपनी सुविधा पर मांग पर भुगतान करने का वचन देता हूँ।"

    (v) "यदि 'ब' द्वारा जो मुझे देय है के भुगतान करने पर भुगतान का वचन"

    (vi) "मैं 'ब' को 5000 रु० किश्तों में भुगतान करने का वचन देता हूँ इस परन्तुक के साथ कि मेरी मृत्यु के बाद कोई भुगतान नहीं किया जाएगा।"

    (4) लेखक के द्वारा हस्ताक्षरित होना-

    वचनपत्र लेखक द्वारा हस्ताक्षरित होना चाहिए एवं लेखक के हस्ताक्षर के बिना लिखत अपूर्ण एवं प्रभावहीन होता है। जहाँ वचनपत्र का लेखक, विनिमयपत्र या चेक का लेखक या कोई पृष्ठांकनकर्ता अपना नाम लिखने में असमर्थ है तो चिह्न (अंगूठा निशान) द्वारा इसे पूरा कर सकता है।

    वचनपत्र सभी संयुक्त वचनदाताओं द्वारा हस्ताक्षरित होना चाहिए, भागीदारों को छोड़कर। एक अधिकृत अभिकर्ता भी वचनपत्र पर अपने प्रधान के लिए हस्ताक्षर कर सकता है। अनाधिकृत हस्ताक्षर होने की दशा में प्रधान उसे अनुमोदित कर सकेगा। जहाँ लेखक अशिक्षित है यहाँ उसका अंगूठा का निशान पर्याप्त होगा।

    के० शिव कुमार बनाम कादर अली वादी के पिता ने प्रतिवादी को 20,000 रु० दिए और उसने एक वचनपत्र लिखा। प्रतिवादी ने उसे यह कहते हुए इंकार किया कि यह केवल इंग्लिश में हस्ताक्षर करता है, जबकि प्रोनोट पर तामिल में हस्ताक्षर है। न्यायालय ने वचनपत्र को समुचित मान्य किया।

    (5) धनराशि का निश्चित होना-

    वचनपत्र में अभिव्यक्त धनराशि निश्चित होनी चाहिए और इसे जोड़ने या घटाने के समाश्रित ग्रहणशील नहीं होना चाहिए।

    देय धन इस धारा के प्रावधानों के अनुसार निश्चित है जहाँ भुगतान अपेक्षित है :-

    (i) किसी विशेष स्थान पर

    (ii) ब्याज सहित,

    (iii) दिए गए विनिमय दर पर,

    (iv) किस्तों के व्यतिक्रम की दशा में सभी असंदत्त धनराशि देय होगी।

    इस प्रकार निम्नलिखित निश्चित धनराशि नहीं है:-

    (i) मैं 'ब' के विवाह पर कुछ धनराशि देने का वचन देता हूँ।

    (ii) मैं 'ब' को 5000 रु० एवं अन्य सभी धनराशि जो देय है देने का वचन देता हूँ।"

    (iii) "मैं अ को 1000 रु० एवं अन्य सभी नियमानुसार देय आर्थिक दण्ड भुगतान करने का वचन करता हूँ।"

    स्मिथ के मामले में यह निर्णीत किया गया है कि "मैं ब को विधिमान्य ब्याज के साथ 65 पौण्ड तीन माह के अन्दर सभी देय धनराशि के साथ भुगतान करने का वचन देता हूँ।" को एक अच्छा वचनपत्र मान्य नहीं किया गया।

    यद्यपि कि प्रत्येक नोट में "For value received" होता है, परन्तु विधिक रूप में यह अपेक्षित नहीं है।

    (6) केवल मुद्रा-

    छठवी, विशेषता कि लिखत में केवल मुद्रा एवं आवश्यक रूप में मुद्रा देय होनी चाहिए। जब लिखत में मुद्रा के अतिरिक्त या मुद्रा के अतिरिक्त कुछ अन्य चीज देने का उल्लेख हो, वचनपत्र नहीं होगा। यह भी आवश्यक है कि देय मुद्रा को निश्चित होना चाहिए। अतः एक लिखत में मुद्रा के अतिरिक्त धान या एक घोड़ा देने का प्रतिज्ञा वचनपत्र नहीं होगा।

    एक निश्चित बदले दर से विदेशी मुद्रा का भुगतान वचनपत्र होगा। अधिनियम में कहीं भी यह अपेक्षित नहीं किया गया है कि धनराशि शब्दों में एवं अंकों में लिखी जाय, परन्तु यह सामान्यतः होता है क्योंकि धारा 18 के अनुसार धनराशि यदि शब्दों एवं अंकों में विभिन्नता है तो शब्दों में लिखी धनराशि विधिमान्य होगी।

    (7) पक्षकारों का निश्चित होना-

    सातवाँ, कि लिखत के पक्षकार युक्तियुक्त निश्चितता के साथ दिया जाना चाहिये अर्थात् लिखत के पक्षकार निश्चित होना चाहिए। वचनपत्र के दो पक्षकार एक लिखत को बनाने वाला (लेखक) और दूसर आदाता जिसे भुगतान करने का वचन होता है।

    बृज राज शरन बनाम रघुनन्दन शरन के मामले में अ को लिखे गए पत्र में निम्नलिखित कथन था:-

    "आपके खाते में मेरे पुत्र से 4668.15 रुपये देय है। आपको सुनिश्चित करता हूँ कि मैं धनराशि को दिसम्बर, 1948 तक भुगतान करूंगा। यह कथन किया गया कि व्यक्ति जिसे धनराशि देय है, इंगित नहीं है। परन्तु धारा 4 के दृष्टान्त (ख) को देखते हुए..... यह स्पष्ट है कि यदि व्यक्ति जिसे भुगतान किया जाना है लिखत में इंगित नहीं है, परन्तु लिखत में प्रयुक्त शब्दों से निश्चित है, वहाँ यह तथ्य कि "मैं भुगतान करूंगा" शब्दों के पश्चात् नाम उल्लिखित नहीं है, से यह तात्पर्य नहीं लेना चाहिए कि आदाता अनिश्चित था। चूँकि पत्र 'क' को सम्बोधित है, अतः यह स्पष्ट है कि 'क' आशयित आदाता है, मुख्य न्यायाधीश वान्चु ने यह धारित किया है कि यह एक अच्छा नोट था।

    इसी प्रकार "मैं यह अभिस्वीकृत करता हूँ कि पौण्ड 15.50 सर एन्ड्रेथू को देय है। मैं अभी भी ऋणी हूँ और भुगतान करने का वचन देता हूँ। धारित किया गया कि एक अच्छा वचनपत्र है। एक लिखत जो किसी पद को धारण करता है उसे देय बनाया गया है, परन्तु उसका नाम नहीं लिखा गया है, उदाहरण के लिए "इण्डियन सोसाइटी के सचिव या उसके आदेशानुसार देय बनाया गया है, धारित किया गया कि एक अच्छा वचनपत्र है।

    लेखक स्वयं आदाता- एक वचनपत्र स्वयं लेखक को देय नहीं बनाया जा सकता है, ऐसा नोट अकृत होगा, क्योंकि एक ही व्यक्ति लेखक (वचनदाता) और वचनग्रहीता है। इस प्रकार एक नोट में स्वयं को भुगतान करने का वचन देता हूँ।" वचनपत्र नहीं है। परन्तु यदि इसे लेखक ने पृष्ठांकन कर दिया है तो यह विधिमान्य होगा, क्योंकि तब यह लिखत वाहक को देय हो जाता है, यदि कोरा पृष्ठांकन किया जाता है या पृष्ठांकिती या उसके आदेशानुसार देय होता है।

    वाहक को देय वचनपत्र- वाहक को देय वचनपत्र की दशा में आदाता को निश्चित होना प्रयोज्य नहीं होता है। परन्तु रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया अधिनियम, 1934 की धारा 31 (2) के प्रभाव से रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया या केन्द्रीय सरकार के सिवाय जिन्हें अधिनियम के अधीन अभिव्यक्तः अधिकृत किया है, कोई अन्य व्यक्ति वाहक की माँग पर देय वचनपत्र न तो बना सकता है और न तो लिख सकता है। वाहक को वचन पत्र देय बनाया जा सकता है परन्तु वाहक की माँग पर देय नहीं बनाया जा सकता है।

    ऐसा प्रावधान एक विनिमय पत्र या वचनपत्र को बैंक नोट/करेन्सी नोट से अन्तर रखने के लिए किया गया है।

    ( 8 ) स्टाम्पित होना चाहिए-

    वचनपत्र को अन्तिम अपेक्षा है कि वचनपत्र को भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की धारा 49 में विहित देय स्टाम्प ड्यूटी सम्य रूपेण स्टाम्पित होना चाहिए। वचनपत्र का स्टाम्प उसके मूल्य पर निर्भर करता है।

    मे० पैकिंग पेपर सेल्स बनाम वीना लता खोसला के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय का यह मत था कि एक वचनपत्र अपेक्षित स्टाम्प फाइन सहित भुगतान कर विधिमान्य बनाया जा सकता है। इससे स्पष्ट है कि वचनपत्र को प्रारम्भ से ही स्टाम्पित होना आवश्यक नहीं है और बिना इसके विधिमान्य हो सकता है. परन्तु स्टाम्प ड्यूटी के भुगतानोपरान्त ही बाध्यकारी बनाया जा सकता है।

    पुनः मे० पैकिंग पेपर सेल्स (उक्त) के मामले में न्यायालय का यह मत था कि वचनपत्र होने के लिये अधिनियम की धारा 4 में वर्णित लक्षण के अतिरिक्त निम्न अपेक्षाओं को पूरा किया जाना चाहिए-

    (i) लिखत में भुगतान करने का वचन का मुख्यतः होना।

    (ii) भुगतान का वचन के अलावा इसके असंगत में कुछ नहीं होना चाहिए।

    (iii) पक्षकारों का लिखत को वचनपत्र होने का आशय होना चाहिए।

    इसी मामले में न्यायालय का यह मत था कि निम्न विवरणों के साथ लिखत वचनपत्र नहीं होगा।

    "1986 के 5 अगस्त को मे० गाविन्दले एण्ड कम्पनी, पेशावर पर लिखा गया एक चेक 10,000/ रु० का प्राप्त किया। यह धनराशि 11.40 की दर से व्याज सहित प्रतिसंदाय किया जाएगा। प्रधान धन का भुगतान 10 माह के बाद किया जायेगा। यह धारित किया गया कि यह वचनपत्र नहीं था, बल्कि केवल प्राप्ति रसीद थी।

    इसी मामले में मृतक ओ० एस० खोसला निम्नलिखित अभिलेख याची के पक्ष में निष्पादित किया था जिसका वचनपत्र के रूप में विधिमान्यता का प्रश्न विचाराधीन था।

    (1) 22-10-1991 को मैं ओ० एस० खोसला पुत्र नई दिल्ली एतदद्वारा अभिस्वीकृत करता हूँ कि चेक से मे० पैकिंग पेपर सेल्स से 25,000 रु० का ऋण प्राप्त किया।

    मैं आज से 22-10-1991 से ऋण धनराशि को एक वर्ष के अन्दर 2410 रु० प्रति माह ब्याज के साथ भुगतान करने का वचन देता हूँ।

    इस सम्बन्ध में उच्च न्यायालय का यह मत था कि प्रथम भाग मात्र ऋण की अभिस्वीकृति थी और द्वितीय भाग भुगतान करने का वचन अन्तग्रस्त करता है अतः वचनपत्र है।

    (2) 6-6-1994 को- आज 6-6-1994 को मेरे द्वारा अभिस्वीकृत किया जाता है कि ओ० एस० खोसला.. .......25,000 रु० को मे० पेपर पैकिंग सेल्स से ऋण प्राप्त किया और में इसे अद्यतन व्याज के साथ 6 माह में भुगतान करने का वचन देता हूँ। धारित किया गया कि यह एक वचनपत्र था।

    (3) 4-11-1996 को 4-11-1996 को स्व० ओ० एस० खोसला ने निम्नलिखित रूप में एक लिखत निष्पादित किया 'आज 4-11-1996 को मेरे द्वारा यह अभिस्वीकृति की जाती है कि मैं ओ० एस० खोसला 25,000 रु० का ऋण का भुगतान मे० पैकिंग पेपर सेल्स को इसके भागीदार जी० के० जैन के माध्यम से भुगतान करूँगा।

    मैं पूर्व में जी० के० जैन को ब्याज के रूप में 2000 रु० भुगतान कर चुका हूँ। मैं बहुत बीमार हूँ। मैं ब्याज भुगतान करने में असमर्थ हूँ। मै आग्रह करता हूँ कि ब्याज को माफ कर दिया जाय।

    प्रश्न था कि मृतक के उत्तराधिकार के रूप में प्रत्यर्थी लता खोसला इस धनराशि का भुगतान करने के लिए आबद्ध थी। न्यायालय ने निर्णीत किया कि उसने मृतक को सम्पत्ति को उत्तराधिकार में प्राप्त किया है। अतः वह लिखत में धनराशि को भुगतान करने के लिये आबद्ध थी।

    नाग राजू बनाम पदमावती के मामले में उच्चतम न्यायालय का निर्णय वाद के तथ्यों सहित यहाँ उल्लेखनीय है :-

    उच्चतम न्यायालय का यह विनिश्चय था कि प्रतिवादी (उत्तराधिकारी) एक कूटरचित वचनपत्र के लिए आबद्ध नहीं होते हैं, क्योंकि ऐसे मामले में वादी से प्रतिवादी को कोई प्रतिफल प्राप्त नहीं हुआ है।

    वादी का मामला था कि प्रतिवादी ने वादी से 1,25,000 रु० ऋण लिया था और इसके लिए उसने 1,25,000 रु० का वचनपत्र निष्पादित किया था धनराशि का भुगतान न होने से कार्यवाही की गई।

    प्रतिवादी का कथन था कि उसके द्वारा 1,25,000 का ऋण लिया गया था जिसके लिए उसने विभिन्न धनराशि के चार वचनपत्र निष्पादित किये थे वित्तीय कठिनाइयों के कारण उसने मध्यस्थ के माध्यम से सम्पूर्ण देयता को 90,000 रु० पर निपटान किया था और उसका भुगतान वादी को कर दिया था।

    भुगतान के बाद वादी ने 4 वचनपत्रों में से तीन को लौटा दिया था, परन्तु एक को वापस नहीं किया था, क्योंकि कहीं वह गायब हो गया था जो प्राप्त नहीं हो सकता था। प्रतिवादी का कथन कि वह वचनपत्र जो 25,000 रु० का था उसे कूटरचित कर 25,000 रु० के वचनपत्र को 1,25,000 रु० बनाया गया है, इस तथ्य को हस्तलेख विशेषज्ञ ने भी स्पष्ट किया है। उच्चतम न्यायालय ने यह निश्चित किया कि कूटरचित वचनपत्र में प्रतिवादी को प्रतिफल प्राप्त नहीं हुआ है, अतः वह वादी को भुगतान करने के लिए आबद्ध नहीं है।

    (9) प्रतिफल - वचन पत्र एक संविदा है जिसके अन्तर्गत एक ऋणी बिना किसी शर्त के एक निश्चित धनराशि भुगतान (संदाय) करने का वचन देता है। अतः यह प्रतिफल के अस्तित्व की अपेक्षा करता है।

    वचन पत्र में प्रतिफल के अस्तित्व का प्रश्न अपील में मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष के रासु बनाम मायावान के मामले में आया था। अपीलकर्ता/वादी एक दूल्हा 'अ' का चाचा था। 'अ' का विवाह प्रतिवादी की लड़की 'ब' से होना था।

    अभियोजन के अनुसार प्रतिवादी ने एक वचन पत्र रुपया 5,000 का 9% वार्षिक ब्याज की दर से वादी के पक्ष में लिखा तथा प्रतिवादी का कथन था कि वचन पत्र बिना प्रतिफल के लिखा गया था वस्तुतः विवाह में दहेज के लिए था परीक्षण न्यायालय ने वचन पत्र के निष्पादन को सही मानते हुए वादी के पक्ष में डिक्री का आदेश दिया। प्रतिवादी की प्रथम अपील में डिक्री को अपास्त कर दिया गया।

    अत: वादी ने द्वितीय अपील की जिसे खारिज होने पर वह मद्रास उच्च न्यायालय में अपील की। उच्च न्यायालय ने यह पाया कि वादी की ओर से कुछ तथ्यों को जानबूझकर छिपाया गया था, अतः वह न्यायालय के समक्ष साफ-सुधरे हाथों से नहीं आया था।

    द्वितीय यह कि वादी/अपीलार्थी प्रतिफल के अस्तित्व को साबित करने में असफल रहा है, अतः उच्च न्यायालय ने परीक्षण न्यायालय की डिक्री को अपास्त करते हुए अपील खारिज कर दी। प्रत्येक परक्राम्य लिखत के लिए प्रतिफल का होना आवश्यक है, बिना इसके लिखत न्यूडम पैक्टम होगा। चेक की दशा में ऋण एवं अन्य दायित्व का होना जिसके उन्मोचन के लिए चेक का लिखा जाना धारा 138 के अधीन अपराध को साबित करने के लिए आवश्यक होता है। प्रतिफ़ल का यह सिद्धान्त विनिमयपत्र एवं चेक पर समान रूप से लागू होता है।

    प्रतिफल की उपधारणा को नकारना धारा 118 (क) में परक्राम्य लिखत के सम्बन्ध में प्रतिफल की उपधारणा का प्रावधान है, अर्थात् प्रत्येक परक्राम्य लिखत प्रतिफल के लिए बनाया या लिखा गया था, इस उपधारणा को हस्ताक्षर के प्रत्याख्यान के आधार पर इन्कार नहीं किया जा सकता है। इसे टी० जी० बालागुरु बनाम रामचन्द्रन पिल्लई के वाद में यह व्यवस्था दी गयी।

    इस नियम को मद्रास उच्च न्यायालय ने कृष्णामूर्ति बनाम शिवाजी के मामले में बनाया। इस मामले में प्रतिवादी द्वारा वचनपत्र पर किया गया हस्ताक्षर (लेखक) उसके वकालतनामा पर की हस्ताक्षर के समान पाया गया।

    इस प्रकार जब नोट का निष्पादन करना साबित हो गया है, विधि का स्थापित सिद्धान्त है कि जब प्रारम्भिक आबद्धता वादी द्वारा पूरी कर दी गयी है, प्रतिवादी पर आबद्धता आ जाती है कि यह साबित करे कि लिखत प्रतिफल के बिना लिखा गया है, अतः यह प्रतिवादी के लिए है कि वह उपधारणा को नकारे कि उसने प्रतिफल प्राप्त नहीं किया है जिसे प्रतिवादी साबित करने में असहाय पूर्वक असफल रहा है, अतः नोट में दायित्व साबित है।

    सुखमिन्दर सिंह बनाम निर्भय सिंह में अधिनियम की धारा 20 प्रश्नगत थी। वचनपत्र/प्रोनोट का वचनदाता भुगतान करने में असफल रहा, विचारण न्यायालय ने 3,50,000 रु० ऋण एवं 1,57,000 रु० ब्याज के लिए डिक्री पारित की।

    ऋणी यद्यपि कि विवक्षित रूप में अपने हस्ताक्षर को वचनपत्र/प्रोनोट पर स्वीकार किया, परन्तु यह बात साक्ष्य बाक्स में मना कर दी। न्यायालय ने पाया कि ऋणदाता जिसका साक्ष्य ठोस व विश्वसनीय है के साक्ष्य के विरुद्ध ऋणी का कथन विश्वसनीय नहीं है। अतः ऋणदाता धन की वसूली के लिए डिक्री पाने का हकदार है।

    रमेश बाबू बनाम के० साल्वेराज में लेनदार वचनपत्र के लेखक को 9 लाख रु० उधार देने का पर्याप्त लोप रखता था। वचनपत्र के निष्पादन के लिए प्रतिफल साबित किया गया और लेखक ने कोरा प्रोनोट पर नहीं बल्कि भरे हुए प्रोनोट पर उसने हस्ताक्षर किए थे। परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 118 एवं 139 के अधीन उपधारणा को नकारने में वह असमर्थ रहा। लेनदार धनराशि की वसूली के लिए प्रोनोट के अधीन, हकदार था।

    नरेश कुमार बनाम सुखदेव सिंह में प्रतिवादी ने प्रोनोट पर अपने हस्ताक्षर को कूटरचित होने का दावा किया, परन्तु उसने पुलिस में शिकायत नहीं की और न तो अपने कथन कूटरचना के लिए निश्चित साक्ष्य प्रस्तुत किए। धारा 118 के अधीन उपधारणा साबित पायी गयी और प्रोनोट के अन्दर वह दायी पाया गया।

    वचन पत्र की दशा में लेनदार की कर्ज देने की क्षमता एवं प्रतिफल की उपधारणा के सम्बन्ध में अद्यतन वाद विजय कुमार बनाम जतिन्दर गुप्त' है। वादी/प्रत्यर्थी का मामला था कि उसने रु० 11 लाख व्यक्तिगत जरूरत के लिए प्रतिवादी/अपीलकर्ता को कर्ज दिया था और उसने उक्त धनराशि नकद प्राप्त करने के पश्चात् दो साक्षियों की उपस्थिति में उसने वादी के पक्ष में वचन पत्र एवं प्राप्ति निष्पादित किया।

    वादी ने इस धनराशि के ब्याज सहित वापसी के लिए एक वाद संस्थित किया। प्रतिवादी ने वाद का विरोध किया और यह अभिवाक लिया कि वह वादी से रु० 1 लाख उधार लिए थे और उसे उसने संदत्त कर दिए है। वचन पत्र एवं रसीद जाली बताई रु० 11 लाख के उधार के तथ्य को बिल्कुल मना कर दिया। अभिकथित वचन पत्र एवं रसीद उसने निष्पादित नहीं की थी। रु० 1 लाख का ऋण लेते समय वादी ने प्रतिवादी से कुछ निरंक दस्तावेज पर हस्ताक्षर कराए था एवं उन दस्तावेजों पर जिस पर स्टाम्प लगा था प्रतिवादी का हस्ताक्षर कराया था।

    प्रतिवादी ने सद्भावभूर्वक उनपर हस्ताक्षर किया था क्योंकि उस समय वह निर्देशित करने के स्थिति में था। वचनकर्ता द्वारा उपधारणा के विखण्डन का अभिवाक् वचनग्रहीता के आयकर विवरणी में ऋण की रकम को दिखाने में असफलता का आधार बनाया एवं एतद्वारा ऋण रकम को उधार देने की क्षमता को, वह साबित करे।

    वचन पत्र पर वचनकर्ता द्वारा हस्ताक्षर एवं रकम प्राप्त करने के पश्चात् इसका निष्पादन, साबित था। दोनों साक्षियों ने प्रतिवादी द्वारा वचन पत्र के निष्पादन की पुष्टि की। इन परिस्थितियों में वचनग्रहीता को अपनी ऋण देने की क्षमता को वचन पत्र के निष्पादन के समय साबित करने की अपेक्षा आवश्यक नहीं है। वचन ग्रहीता ऋण रकम वापस पाने का हकदार धारित किया गया।

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