निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 9 : सम्यक अनुक्रम में संदाय क्या होता है (धारा 10)

Shadab Salim

13 Sep 2021 9:10 AM GMT

  • निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 9 : सम्यक अनुक्रम में संदाय क्या होता है (धारा 10)

    परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) से संबंधित पिछले आलेख में इस अधिनियम की धारा 8, 9 से संबंधित प्रावधानों पर चर्चा की गई थी। इस आलेख में सम्यक अनुक्रम में संदाय जो कि धारा 10 से संबंधित है पर चर्चा की जा रही है। इस धारा से संबंधित न्याय निर्णय भी प्रस्तुत किए जा रहे हैं।

    सम्यक अनुक्रम में संदाय-

    सम्यक् अनुक्रम संदाय की आवश्यक शर्ते- सम्यक् अनुक्रम संदाय के लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा किया जाना चाहिए-

    1. लिखत के प्रकट शब्दों के अनुसार संदाय,

    2. सद्भावना पूर्वक

    3. बिना किसी उपेक्षा के,

    4. लिखत का कब्जा रखने वाले (धारक) को, एवं

    5. उस व्यक्ति को जो संदाय पाने का हकदार है। उक्त परिस्थितियों में की गई संदाय को विधिसम्मत संदाय भी कहेंगे।

    (1) लिखत के प्रकट शब्दों के अनुसार-लिखत के प्रकट शब्दों से अभिप्रेत है कि पक्षकारों के आशय के अनुसार संदाय किया जाना चाहिए जो लिखत के देखने से स्पष्ट होता है।

    "प्रकट शब्दों" के अन्तर्गत निम्नलिखित उपादान सम्मिलित है :

    (i) लिखत का चरित्र - लिखत का संदाय प्रकट शब्दों में होने के लिए लिखत का चरित्र सारवान् होता है, अर्थात् वाहक या आदेशित लिखत का होना, चेकों की दशा में खुला या रेखांकित होना, यदि चेक रेखांकित है तो सामान्य या विशेष रेखांकित है। इस प्रकार एक रेखांकित चेक का संदाय बैंक के खिड़की पर किया जाना, या एक आदेशित लिखत का संदाय वाहक की समान किया जाना या लिखत पर सारवान परिवर्तन के बावजूद संदाय किया जाना सम्यक् अनुक्रम में संदाय नहीं होगा।

    (ii) परिपक्वता पर या इसके पश्चात् संदाय - सम्यक् अनुक्रम में संदाय होने के लिए इसे लिखत के परिपक्वता या उसके पश्चात् किया जाना चाहिए। परिपक्वता के पूर्व संदाय करते समय लिखत को नष्ट कर देना चाहिए या उस पर संदत लिखा जाना चाहिए।

    इस प्रकार विनिमय पत्र का ऊपरवाल (प्रतिगृहीता) इसके परिवक्वता के पूर्व संदाय करता है और उसका धारक इसे पुनः किसी अन्य के पक्ष में पृष्ठांकित बिना प्रतिफल या प्रतिफल के कर देता है तो ऐसा पृष्ठांकन विधिमान्य होगा और पृष्ठांकिती प्रतिगृहीता से संदाय पाने का हकदार होगा यद्यपि कि वह लिखत का संदाय पूर्व में कर चुका है।

    परिपक्वता के पूर्व लिखत का संदाय संव्यवहार के पक्षकारों के बीच तो प्रभावी होता है, परन्तु इसका प्रभाव अन्य पक्षकारों के सम्बन्ध में अन्यथा होता है। इस प्रकार किसी लिखत का परिपक्वता के पूर्व उसका संदाय और तत्पश्चात् ऐसे लिखत का पृष्ठांकन सद्भाव पूर्वक पृष्ठांकितों के पक्ष में विधिमान्य होगा और वह इसे पुनः जारी कर सकेगा।

    लिखत को पुनः जारी किया जाना- किसी लिखत का उसके परिपक्वता के पूर्व संदाय सम्यक् अनुक्रम में संदाय नहीं होता है अतः लिखत ऐसे संदाय से उन्मुक्त नहीं होता है। वचन पत्र के लेखक या विनिमय पत्र के प्रतिगृहीता की आबद्धता को लिखत के अन्तर्गत उस परिपक्वता के पूर्व उन्मुक्त नहीं करता है। चूंकि एक की परिपक्वता उसके लिखे जाने की तिथि से ही होता है अतः चेक की दशा में ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं होती।

    किसी वचन पत्र का लेखक या विनिमय पत्र का प्रतिगृहीता संदाय द्वारा इसके परिपक्वता के पूर्व ऐसे लिखत को प्राप्त करता है, वहाँ वह वचन पत्र या विनिमय पत्र के सम्बन्ध में क्रेता होता है, उसे वह पुनः जारी कर सकता है इस भाव में कि वह उसे पुनः अन्तरित कर सकता है।

    यदि वह ऐसे नोट या बिल को पुनः अन्तरित (परक्रामित) करता है तो ऐसे लिखत एक नई जीवन संचलन के लिए प्राप्त हो जाती है और इसे वचन पत्र या विनिमय पत्र पुनः जारी किया जाना कहा जाता है। ऐसे मामलों में वचन पत्र का लेखक या विनिमय पत्र का प्रतिगृहीता यह विकल्प रखता है कि उसे रद्द करे या पुनः जारी करे।

    यह भी ध्यान में रखना होगा कि जब किसी वचन पत्र या विनिमय पत्र का लेखक या प्रतिगृहीता (क्रमश:) ऐसे लिखत का परिपक्वता के पश्चात् धारक बन जाता है तो लिखत उन्मुक्त हो जाता है। श्री निवास बनाम गौन्डरों के मामले में एक माँग पर देय वचन पत्र का लेखक संदाय कर दिया, परन्तु वचन पत्र को वापस नहीं लिया या उसे रद्द नहीं किया था।

    वह पुनः संदाय के लिए आबद्ध माना गया जब मूल पाने वाले ने एक सम्यक् अनुक्रम धारक को अन्तरित कर दिया था। एक सामान्य धारक भी यदि सद्भावना पूर्वक धारक है तो संदाय के लिए हकदार होगा। यदि प्रतिगृहोता विनिमय पत्र के अधीन संदाय उसके परिपक्वता के पूर्व करता है, विनिमय पत्र का धारक उसे पुनः अन्तरित कर सकेगा और लिखत के अन्य सभी पक्षकार आबद्ध बने रहेंगे

    (2) सद्भावना पूर्वक संदाय सम्यक् अनुक्रम संदाय का दूसरी अपेक्षा है कि ऐसा संदाय सद्भावना पूर्वक किया जाना चाहिए। यह ऐसे संदाय का बड़ा ही महत्वपूर्ण शर्त है एवं वस्तुतः इस अपेक्षा के अधीन अन्य सभी अपेक्षाएं समाहित हैं।

    यह कि संदाय सद्भावना पूर्वक बिना किसी उपेक्षा एवं उन परिस्थितियों में जिसमें यह विश्वास करने का कोई युक्तियुक्त आधार हो कि वह व्यक्ति जिसे संदाय किया गया है, वह संदाय पाने का हकदार नहीं है, किया जाना चाहिए।

    यदि वहाँ सन्देहजनक परिस्थितियाँ हैं तो संदाय करने वाले व्यक्ति को जाँच की जानी चाहिए और यदि वह जाँच करने में उपेक्षा बरतता है और संदाय कर देता है, तो ऐसा संदाय सम्यक् अनुक्रम में संदाय कर देता है, तो ऐसा संदाय सम्यक अनुक्रम में संदाय नहीं होगा।

    अतः एक वाहक को देव विनिमय पत्र खो गया या चोरी हो गयी एवं चोर उसे प्रतिगृहीता के समक्ष परिपक्वता के पश्चात् उपस्थापित करता है, यदि प्रतिगृहोता उसे संदाय सद्भावना पूर्वक कर देता है और उसे संदाय करने के समय यह विश्वास करने का कोई आधार नहीं है कि वह लिखत का चोर है, यहाँ ऐसा संदाय सम्यक अनुक्रम में संदाय होगा एवं प्रतिगृहांता उन्मुक्त हो जाएगा।

    परन्तु लिखत का संदाय वस्तुतः माँग पर वाहक को देय है, सम्यक अनुक्रम में संदाय नहीं होगा यदि संदाय करने वाले व्यक्ति को यह संज्ञान में है कि लिखत की चोरी हो गयी है एवं संदाय की माँग करने वाला व्यक्ति संदाय का हकदार नहीं है। लिखत के लेखक द्वारा भुगतान, रोक आदेश के बाद चेक का संदाय सम्यक अनुक्रम में संदाय नहीं होगा।

    शाहजोग हुण्डो की दशा में संदाय के लिए उपस्थापना करने वाले व्यक्ति की सम्मानीयता की जाँच के बिना किया गया संदाय सम्यक् अनुक्रम में संदाय नहीं होगा। पुनः किसी लिखत का संदाय करने के पूर्व, संदाय करने वाले व्यक्ति को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि लिखत की उपस्थापना करने वाला व्यक्ति लिखत के अधीन संदाय प्राप्त करने का हकदार है।

    इस प्रकार हुण्डी का ऊपरवाल उपेक्षापूर्वक एक गलत व्यक्ति को संदाय करता है, ऐसा संदाय विधिसम्मत संदाय नहीं होगा और वह फिर से हुण्डी का सम्पूर्ण धनराशि का संदाय करने को आबद्ध होगा। कूटरचित चेक या अन्य लिखत पर किया गया संदाय सम्यक् अनुक्रम में संदाय नहीं होगा।

    (3) बिना उपेक्षा के संदाय सद्भावना पूर्वक एवं बिना किसी उपेक्षा के किया जाना चाहिए। लिखत के मुख्य पृष्ठ पर या संदाय के लिए प्रस्तुत किये जाने वाले व्यक्ति के व्यवहार से कोई सन्देह एक विचारवान व्यक्ति के लिए कोई सन्देह उत्पन्न करने का अवसर नहीं होना चाहिए।

    जहाँ चेक का भुगतान पाने वाले के खाते में किया जाना अपेक्षित है वहाँ वाहक को संदाय या चेक पर टेम्परिंग स्पष्ट है, या मिटाकर चेक को वाहक में परिवर्तित किया गया है यहाँ पाने वाले के स्थल पर वाहक को संदाय करने की दशा में बैंक चेक की धनराशि को ग्राहक को क्षतिपूर्ति करने के लिए आबद्ध होगा।

    (4) एवं (5) किसी व्यक्ति जो कब्जाधारी हों संदाय प्राप्त करने का हकदार है-

    यहाँ पर (4) एवं (5) की शर्तों को एक साथ लिया जा रहा है, क्योंकि दोनों समान प्रभाव की हैं। संदाय ऐसे व्यक्ति को किया जाना चाहिए जो लिखत का कब्जाधारी एवं संदाय पाने का हकदार है। संदाय करने की परिस्थितियों से कोई ऐसा सन्देह न हो कि संदाय प्राप्त करने वाला व्यक्ति संदाय का हकदार नहीं है।

    पी० एम० दास बनाम सेण्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया में यह धारित किया जाता है कि जहाँ बैंक किसी चेक का संदाय उसके प्रकट शब्दों के अनुसार सद्भावना पूर्वक एवं बिना किसी उपेक्षा और यह विश्वास न रखते हुए कि वह संदाय के लिए हकदार नहीं है, ऐसा संदाय सम्यक् अनुक्रम में (विधिसम्मत) माना जाएगा।

    किसे संदाय किया जाना चाहिए- अधिनियम की धारा 78 के अनुसार वचन पत्र के लेखक, विनिमय पत्र का प्रतिगृहीता या चेक का संदाय उसके धारक को किया जाना चाहिए। पुनः धारा 82 (ग) के अनुसार यदि लिखत वाहक को देय है या कोरा पृष्ठांकन है, वहाँ सम्यक् अनुक्रम में किया गया संदाय एक विधिसम्मत उन्मुक्ति होगा।

    एक चोर एवं पाने वाले का संदाय-

    (i) वाहक लिखत की दशा में अधिनियम की धाराएं 10, 78 एवं 82 (ग) लिखतों के संदाय के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण है कि सभी मामलों में संदाय एक विधिसम्मत धारक को किया जाना चाहिए। यहाँ प्रश्न है कि वाहक की देय लिखत में किसे विधिसम्मत धारक माना जाय। ऐसी दशा में सही धारक वह है जिसने परिदान के द्वारा लिखत को प्राप्त किया है।

    वाहक को देय लिखत की दशा में यह निर्धारित करना कि किस धारक ने लिखत को परिदान द्वारा या अन्यथा रूप में प्राप्त किया है, कठिन है। यदि यह दिखाने के लिए कुछ नहीं है कि वह संदाय पाने का हकदार नहीं है, वहाँ धारा 10 के अनुसार संदाय उस व्यक्ति को किया जाना चाहिए जो लिखत का कब्जाधारी है।

    इस प्रकार संदाय यहाँ तक कि किसी चोर को या पाने वाले व्यक्ति को यदि किया गया है तो लिखत उन्मुक्त हो जाएगा और ऐसा संदाय विधिसम्मत होगा। यदि परिस्थितियों से किसी विचारवान व्यक्ति को कोई सन्देह उत्पन्न न करे। यहाँ पर यह महत्वपूर्ण है कि सन्देहजनक परिस्थितियों में किसी व्यक्ति (चोर या पाने वाले) को किया गया भुगतान विधिसम्मत संदाय नहीं होगा।

    लाला मला बनाम केशवदास में यह धारित किया गया है कि यदि चुराए गए लिखत (वाहक को देय) चुराने वाले या पाने वाले के द्वारा संदाय के लिए उपस्थापित की गई है तो उसे सद्भावी धारक समझकर सद्भावना पूर्वक किया गया संदाय विधिसम्मत होगा। चेक की दशा में भी ऐसा संदाय विधिसम्मत होगा।

    भारतीय ट्रेडिंग कम्पनी बनाम इलाहाबाद बैंक में एक वाहक चैक जो एक कम्पनी को देय था, एक व्यकि उसे कम्पनी का तात्पर्पित प्रबन्धक के रूप में संदाय के लिए उपस्थापित किया एवं वहाँ पर परिस्थितियों से भिन्न सन्देह उत्पन्न नहीं होता था, बैंक ने संदाय कर दिया ऐसा संदाय सम्यक् अनुक्रम में मान्य किया गया जिससे भुगतानी बैंक अपनी आबद्धता से उन्मुक्त हो गया।

    पॉल बनाम पॉल में यह धारित किया गया था कि संदाय लिखत के धारक को ही इसके किसी हितधारी को नहीं किया जाना चाहिए।

    (ii) आदेशित देय लिखत- उक्त से स्पष्ट है कि वाहक लिखत की दशा में सही संदाय एक चोर या लिखत के पाने वाले को भी किया जा सकता है, बशर्ते कि सद्भाव पूर्वक संदाय होना चाहिए। परन्तु आदेशित देय लिखत का संदाय पाने वाला या पृष्ठांकिती जो धारक / सम्यक् अनुक्रम धारक है, को किया जाना चाहिये।

    ऐसा संदाय एक पृष्ठांकिती को इस विश्वास के साथ कि वह सही पृष्ठांकिती है और सद्भावपूर्वक बिना किसी उपेक्षा के किया गया है, विधिसम्मत होगा।

    कूटरचित पृष्ठांकन जहाँ संदाय किसी लिखत के ऐसे व्यक्ति को किया गया है जिसका स्वत्व एक कूटरचित पृष्ठांकन से बनाया गया है, यह लिखत को उन्मुक्त नहीं बनाएगा, भुगतान करने वाला सही स्वामी के प्रति संदाय के लिए आबद्ध बना रहेगा। यहाँ तक कि पृष्ठांकन में कोई कूटरचना नहीं की गई है और लिखत किसी अनाधिकृत व्यक्ति के हाथ में है जो पृष्ठांकितो का व्यक्तित्व परिवर्तन (भेष बदकर) कर संदाय प्राप्त कर लेता है, भुगतान करने वाला अपनी आबद्धता से उन्मुक्त नहीं होगा।

    एक बिल जान स्मिथ को आदेशानुसार पृष्ठांकित किया गया। एक अन्य व्यक्ति उसी नाम का इस बिल को प्राप्त कर लेता है और संदाय के लिए उपस्थापित करता है। प्रतिगृहीता उसे संदाय कर देता है। बिल का उन्मोचन नहीं हुआ।

    प्रतिगृहीता वास्तविक जान स्मिथ के प्रति आबद्ध बना रहेगा यही सिद्धान्त इलाहाबाद बैंक बनाम कुलभूषण के मामले में अनुसरण किया गया जहाँ कूटरचित चेक का संदाय सम्यक् अनुक्रम में मान्य नहीं किया गया।

    किसके द्वारा संदाय किया जाए- लिखत का भुगतान उसके किसी भी पक्षकार के द्वारा किया जा सकेगा और ऐसा व्यक्ति संदायोपरान्त उस धारक के अधिकार को प्राप्त कर लेता है जिससे उसने लिखत को प्राप्त किया था और ऐसे धारक का अधिकार इसके पूर्व सभी पक्षकारों को होगा।

    कोई भी ऐसा व्यक्ति जो लिखत का पक्षकार नहीं है अर्थात् अजनबी व्यक्ति संदाय कर धारक का स्थान ग्रहण नहीं कर सकता है, परन्तु एक अजनबी व्यक्ति द्वारा जो लिखत प्रसाक्ष्याधीन एवं विनिमय पत्र या वचन पत्र के किसी पक्षकार के आदरणार्थ, किया गया संदाय मान्य होगा। एक अजनबी द्वारा संदाय विधिमान्य संतुष्टि होगा, यदि यह प्रतिगृहीता के खाते में और प्रतिगृहीता इसे वर्तमान में मानता है या पश्चात्वर्ती इसे ग्रहण करता है।

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