निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 2 : बैंककार क्या होता है

Shadab Salim

6 Sep 2021 9:15 AM GMT

  • निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 2 : बैंककार क्या होता है

    परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) के अंतर्गत बैंककार का महत्व है तथा इस अधिनियम को समझने से पूर्व इससे संबंधित विशेष शब्दों को समझा जाना महत्वपूर्ण होगा। बैंककार इस अधिनियम का महत्वपूर्ण भाग है तथा इसकी परिभाषा इस अधिनियम की धारा 3 में प्रस्तुत की गई। इस आलेख के अंतर्गत इस धारा पर संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

    अधिनियम के अंतर्गत दी गई परिभाषा:-

    बैंककार–"बैंककार" के अन्तर्गत बैंककार के तौर पर कार्य करने वाला कोई भी व्यक्ति और कोई भी डाक घर बचत बैंक आता है।

    इस अधिनियम में और न तो बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 में "बैंकर" की कोई सन्तोषजनक परिभाषा नहीं है।

    अधिनियम की धारा 3 में इसे परिभाषित किया गया है "बैंकर" सम्मिलित करता है:-

    (1) कोई व्यक्ति जो बैंकर के समान कार्य करता है, और

    (2) किसी पोस्ट आफिस सेविंग बैंक

    विद्वानों ने "बैंकर" की परिभाषा प्रस्तुत की है जिन परिभाषाओं से कुछ यूं शब्द बांधे जा सकते हैं:- "बैंक या बैंकर का निर्वाचन किया जाना चाहिए, जिसका अर्थ प्रत्येक व्यक्ति, फर्म या कम्पनी से है जो अपने वर्णन या स्वत्व के साथ, "बैंक", "बैंकर" या "बैंकिंग" का प्रयोग करता है एवं प्रत्येक कम्पनी जो जमा धन को स्वीकार करती है, जो चेकों, ड्राफ्ट्स या आदेश से वापसी के अधीन है।

    एक बैंकर के निम्नलिखित चार कार्यों को आवश्यक माना है:-

    (i) जमा धन लेना।

    (ii) चालू खाता लेना।

    (iii) चेकों का निर्गमन एवं भुगतान।

    (iv) रेखांकित या बिना रेखांकित चेकों की वसूली।

    इंग्लिश विद्वान विल्सन के अनुसार बैंक एक ऐसा स्थान है जहाँ मुद्रा (धन) रखा जाता है जिसे कभी-कभी बैंकर" कहा जाता है, जो मुद्रा का कारोबार करता है बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 5 (ख) के अनुसार- "जनता से उधार देने या विनियोजन के प्रयोजन से जमा धन स्वीकार करना जिसे माँग या अन्यथा भुगतान देय हो, और जो चेक, ड्राफ्ट, आदेश या अन्यथा वापसी देय हो।" बैंकिंग विनियमन अधिनियम की धारा 7 में यह उपबन्धित है कि बैंक", "बैंकिंग" "बैंकर" शब्दों का प्रयोग केवल एक बैंकिंग कम्पनी ही कर सकती है।

    दिल्ली क्लाथ एण्ड जनरल मिल्स बनाम हरनाम सिंह के मामले में उच्चतम न्यायालय ने परिभाषित किया है : "बैंकर एक व्यक्ति, भागीदारी या निगम है जिसका एकमात्र या प्रधान कार्य बैंकिंग है, अर्थात् चालू या जमा खाते पर धन प्राप्त करना और ग्राहकों द्वारा लिखे गये चेक का एवं उगाही के चेकों का भुगतान करना है।

    वर्तमान में इस प्रकार बैंकर्स के तीन लक्षण सामान्यतया पाये जाते हैं:-

    (i) यह अपने ग्राहकों से धन स्वीकार करने, उनके बैंकों को वसूली के लिए स्वीकार करने और उनके खातों में जमा करते हैं।

    (ii) यह उनके चेकों का या लिखे आदेशों का आदर करने।

    (iii) यह अपनी पुस्तकों में चालू खातों या इस प्रकार की प्रकृति का अन्य कुछ चीजों को रखना। बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 5 (ग) के अनुसार "बैंकिंग कम्पनी" से अभिप्रेत किसी कम्पनी से है जो भारत में बैंकिंग कारोबार करती है।

    धन उधार देने वाले बैंकर नहीं माने जाते हैं-

    करुप्पन चेटियारस बनाम सोमसुन्दरम चेटियारस के मामले में यह निर्णीत किया गया है कि व्यक्ति जो धन उधार देने का कारोबार करते हैं बैंकर नहीं होते। पुनः विमल चन्द्र ग्रोवर बनाम बैंक ऑफ इण्डिया के मामले में उच्चतम न्यायालय का निर्णय था कि धन उधार देने वाले जो धन में व्यवहार करते हैं या धन में व्यापार करते हैं, उन्हें बैंक या बैंकर्स नहीं कहा जा सकता है। उक्त परिभाषाओं से यह भी स्पष्ट है कि बैंक या बैंकर्स एक ही अर्थ में हैं।

    केवल जमा धन स्वीकार करना बैंकिंग नहीं है यद्यपि जमा धन स्वीकार करना बैंकिंग का प्राथमिक (मुख्य) कार्य है, परन्तु केवल जमा धन स्वीकार करना बैंकिंग नहीं होता है। यह विधि का स्थापित सिद्धान्त है कि अन्य शर्तों के साथ चेक, ड्राफ्ट, आदेश या अन्यथा द्वारा धन की वापसी अवश्य होना चाहिए। यह ध्यान देने की बात है कि चेक द्वारा धन की निकासी केवल बैंक के ही द्वारा किया जा सकता है।

    इसके निम्नलिखित उदाहरण हैं:-

    1:- धारा 5 (ग) का स्पष्टीकरण- एक कम्पनी जो मालों के विनिर्माता के कार्य में है या कोई व्यापार करती है और धन की जमा जनता से अपने कारोबार के वित्तीय सहयोग के लिए स्वीकार करती है, यह नहीं कहा जाएगा कि वह बैंकिंग कारोबार करती है।

    2:- बैंकिंग विनियमन अधिनियम के अधीन कोई व्यक्ति व्यक्तियों का समूह, फर्म या धन उधार देने वाला अपने नातेदारों से जमा धन स्वीकार करने से बैंक नहीं कहलाएगा।

    3:- कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 58-क स्वयं वित्त पोषक के लिए जमा धन स्वीकार करने से किसी कम्पनी को बैंकिंग नहीं कहा जाएगा।

    एक कम्पनी जो केवल ऋण देने की शक्ति रखती है और इसका प्रयोग करती है, बैंकिंग विनियमन अधिनियम की धारा 5 (ख) में इंगित तरीके से लोक जमा धन को स्वीकार करने और वापसी करने की शक्ति के अभाव में बैंकिंग कम्पनी नहीं कही जाएगी।

    इरीनजलकुडा बैंक लि० बनाम पोथुसरी पंचायत में यह धारित किया गया कि एक सरकारी ट्रेजरी एक बैंकर (बैंक) है।

    इस प्रकार, ग्राहकों से धन प्राप्त करना एवं इसे उनके द्वारा लिखे गए चेकों का आदर करना जब भी अपेक्षित हो, एक मुख्य कार्य है जो बैंकिंग कारोबार को अन्य किसी प्रकार के कारोबार से भिन्न बनाता है।

    बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 6 में विहित अन्य प्रकार के कारोबार को किसी बैंकिंग कम्पनी को करने के लिए अनुमन्य करती है। अधिनियम की धारा 7 गैर-बैंकिंग कम्पनियों एवं सहकारी समितियों को सहकारी बैंक के अलावा अपने नाम के साथ "बैंक" "बैंकर" या "बैंकिंग" शब्दों के प्रयोग को प्रतिबन्धित करती है। कोई कम्पनी या सहकारी समिति बैंकिंग कारोबार नहीं कर सकती जब तक कि यह कम से कम किसी एक शब्द का प्रयोग अपने नाम के साथ नहीं करती।

    बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 49 क के अनुसार चेक द्वारा आदरण की सुविधा केवल बैंकिंग कम्पनी, रिजर्व बैंक, स्टेट बैंक या अन्य बैंकिंग संस्थाएं फर्म या अन्य कोई व्यक्ति रिजर्व बैंक के अनुशंसा पर केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित है प्रदान कर सकेगी परन्तु यह कि इस धारा में उपबन्धित कोई बात सरकार द्वारा संचालित सेविंग बैंक स्कीम पर लागू होगा।

    बैंकिंग कम्पनियों को अनुज्ञप्ति- कोई भी कम्पनी भारत में बैंकिंग कारोबार नहीं कर सकती जब तक कि वह रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया से अनुज्ञप्ति भारित न करती हो।

    वित्तीय संस्थाएँ बैंकर नहीं- मेसर्स भगवधी बनाम तमिलनाडु राज्य के मामले में यह धारित किया गया है कि वित्तीय संस्थाओं एवं बैंक बैंकर्स में केवल जनता से जमा धन प्राप्त करने के अतिरिक्त समानता नहीं है। यह धारित किया गया है कि वित्तीय संस्थाओं द्वारा जमा धन की स्वीकृति एवं चेक द्वारा धन निकालने को सुविधा के बिना बैंकिंग नहीं होता है।

    कौन ऋणदाता है:- विजय शंकर राय बनाम सुजीत अग्रवाला के मामले में यह धारित किया गया है कि ऋणदाता होने के लिए यह आवश्यक है कि ऋण देने का कार्य व्यापार के सामान्य अनुक्रम में नियमित रूप से किया जाना चाहिए। एक बार या अधिक ऋण के दिए जाने से ऋणदाता नहीं होगा। अतः प्रतिवादी को उसके लड़की के विवाह के लिए वादी द्वारा धन उधार देना उसे ऋणदाता नहीं कहा जाएगा।

    क्या सहकारी समिति या सहकारी बैंक एक बैंक है?

    "सहकारी समिति" से अभिप्रेत ऐसी समिति से है जो केन्द्रीय या राज्य के अधिनियम के अधीन पंजीकृत है या पंजीकृत की हुई मानी गयी है। सहकारी बैंक को छोड़कर कोई सहकारी समिति अपने नाम के साथ बैंक", "बैंकिंग" या "बैंकर" शब्दों का प्रयोग नहीं कर सकती, और कोई सहकारी समिति भारत में बैंकिंग कारोबार नहीं कर सकती जब तक कि इन शब्दों में से कोई शब्द अपने नाम के साथ प्रयुक्त नहीं करती।

    अपेक्स कोआपरेटिव बैंक बनाम एम० एस० कोआपरेटिव बैंक लि में यह धारित किया गया है कि बैंकिंग विनियमन अधिनियम की योजना के अनुसार वादी कोआपरेटिव सोसाइटी को बैंकिंग कारोबार करने की अनुज्ञप्ति के लिए इसे प्रथम कोआपरेटिव बैंक की परिभाषा में आना चाहिए अर्थात् या तो इसे 'स्टेट कोआपरेटिव बैंक' सेण्ट्रल कोआपरेटिव बैंक या प्राइमरी कोआपरेटिव बैंक होना चाहिए।

    यह केवल नाबार्ड अधिनियम की धारा 2 (4) के अधीन जारी अधिसूचना के पश्चात् कोआपरेटिव सोसाइटी बैंकिंग विनियमन अधिनियम की धारा 5गग के अधीन यथा धारा 56 (ग) द्वारा संशोधित, एक कोआपरेटिव सोसाइटी होगी और इस प्रकार बैंकिंग विनियमन अधिनियम की धारा 22 के अधीन भारतीय रिजर्व बैंक से अनुज्ञप्ति प्राप्त के लिए पात्र होगी। इस प्रकार बैंकिंग विनियमन अधिनियम की धारा 22 के अधीन पूर्व अधिसूचना रिजर्व बैंक से अनुज्ञप्ति प्राप्त करने के लिये आवश्यक होगा।

    इस प्रकार एक कोआपरेटिव सोसाइटी को बैंकिंग कारोबार करने के लिए आवश्यक होगा-

    (1) नाबार्ड अधिनियम के अधीन उसे कोआपरेटिव बैंक घोषित होना चाहिए।

    (2) इसके पश्चात् रिजर्व बैंक से बैंकिंग कारोबार करने की अनुज्ञप्ति प्राप्त करना।

    (3) ऐसे कोआपरेटिव सोसाइटी को अपने नाम के साथ "बैंक" "बैंकर" बैंकिंग" या शब्दों में से किसी शब्द का प्रयोग करना ।

    इससे यह स्पष्ट है कि एक कोआपरेटिव बैंक केवल एक कोआपरेटिव सोसाइटी होती है जिसे नाबार्ड की अनुशंसा पर रिजर्व बैंक द्वारा एक बैंक घोषित किया गया है ।

    क्या कोआपरेटिव सोसाइटी ( कोआपरेटिव बैंक ) को कारोबार बैंकिंग विनियमन अधिनियम के अधीन एक बैंकिंग कारोबार है?

    यह प्रश्न उच्चतम न्यायालय के समक्ष ग्रेटर बाम्बे कोआपरेटिव बैंक लि. बनाम मेसर्स यूनाइटेड यार्न (प्रा०) लि०' के मामले में विचारण के लिए आया था। उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णीत किया कि कोआपरेटिव बैंक्स/कोआपरेटिव सोसाइटीज बैंकिंग विनियमन अधिनियम की धारा 5 (ग) के अधीन बैंकिंग कम्पनी नहीं है ।

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