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भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 भाग 14: आपराधिक अवचार के सबूत
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 (Prevention Of Corruption Act,1988) की धारा 13 आपराधिक अवचार का उल्लेख करती है जिसमें दोषी लोक सेवकों के लिए कठोर दंड का उल्लेख है। आपराधिक अवचार का अर्थ शासकीय संपत्तियों का आपराधिक न्यासभंग है। इस आलेख के अंतर्गत इस अपराध से संबंधित साक्ष्यों पर चर्चा की जा रही है।भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 13 तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 409 के अधीन अपराधों के सबूत-अधिनियम की धारा 13 के अधीन अपराध ठीक उसी प्रकार का है जैसे कि गबन का। इंग्लिश विधि के अनुसार गबन का...
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 भाग 13: भ्रष्टाचार अधिनियम के अंतर्गत दोषी अधिकारियों को दंडित किया जाना
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 (Prevention Of Corruption Act,1988) की धारा 13 आपराधिक अवचार पर प्रावधान करती है। यह अधिनियम रिश्वतखोर अधिकारियों को दंडित करने के उद्देश्य से कड़े से कड़े प्रावधान करता है। समय-समय पर भारत के उच्चतम न्यायालय ने अपनी टिप्पणियों में यह कहा है कि सरकारी संपत्तियों का विनियोग करने वाले अधिकारी को दंडित करते समय कोई रियायत नहीं बरती जानी चाहिए अपितु उसे अधिक से अधिक दंड से दंडित किया जाना चाहिए, जितना दंड उस अपराध के लिए अधिनियम में उल्लेखित किया गया है। इस आलेख के...
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 भाग 12: लोक सेवकों द्वारा आपराधिक अवचार एवं उसके लिए दंड
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 (Prevention Of Corruption Act,1988) की धारा 13 आपराधिक अवचार से संबंधित है। आम शब्दों में कहा जाए तो आपराधिक अवचार आपराधिक दुर्विनियोग के अपराध की तरह है। बस यहां पर किसी सरकारी संपत्ति के दुर्विनियोग का प्रश्न है। शासकीय कार्यों के निष्पादन के लिए अनेक शासकीय संपत्ति लोक सेवकों के पास रहती है, यदि वह स्वयं को संपन्न करने के उद्देश्य से उस संपत्ति को दुर्विनियोग कर देता है तब धारा 13 के अधीन अपराध गठित होता है। इस आलेख के अंतर्गत भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की इस ही...
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 भाग 11: इस अधिनियम के तहत अपराधों के दुष्प्रेरण के लिए दंड
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 (Prevention Of Corruption Act,1988) की धारा 12 इस अधिनियम के अंतर्गत बनाए गए अपराधों के दुष्प्रेरण को भी दंडनीय अपराध बनाती है। दुष्प्रेरण के लिए भी सात वर्ष तक का कारावास दिया जा सकता है जो न्यूनतम तीन वर्ष तक का हो सकता है। किसी भी अपराध के दुष्प्रेरण को भी अपराध बनाया जाना आवश्यक है अन्यथा वह व्यक्ति बच निकलते है जो पर्दे के पीछे से अपराध कारित करते है। साथ ही ऐसे व्यक्ति जो एक लोक सेवक को रिश्वत देने का प्रयास करते हैं उन्हें भी दंडित किये जाने का लक्ष्य है। इस...
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 भाग 10: रिश्वत के अपराध में दोषमुक्ति
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 (Prevention Of Corruption Act,1988) की धारा 7 रिश्वत के अपराध का प्रावधान करती है, धारा सात ने ही लोक सेवकों को रिश्वत लेने पर दंडनीय अपराध का उल्लेख किया है जिसमे कड़े कारावास का उल्लेख है। इस धारा के अधीन प्रकरणों में अनेक अभियुक्त दोषमुक्त किये गए हैं। इस आलेख में कुछ न्यायलयीन प्रकरणों में दोषमुक्ति पर चर्चा की जा रही है।रिश्वत के अपराध में दोषमुक्त होनाकैलाश चन्द्र पाण्डेय बनाम स्टेट ऑफ़ वेस्ट बंगाल, 2003 क्रि लॉ ज 4286 के मामले में चूंकि अभियोजन संदेह से परे यह...
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 भाग 9 : अधिनियम के अंतर्गत परितोषण क्या है
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 (Prevention Of Corruption Act,1988) की धारा 7 रिश्वत के अपराध को विस्तारपूर्वक प्रावधानित करती है। शायद कोई ऐसा तथ्य रह गया है जिसे रिश्वत के अपराध के संबंध में पार्लियामेंट द्वारा छोड़ा गया हो। यह अधिनियम अपने आप में परिपूर्ण है। परितोषण शब्द के संबंध में न्यायालय समय समय पर अपने विचार देता रहा है। यह शब्द इस अधिनियम के अंतर्गत महत्वपूर्ण है। इस आलेख में इस ही शब्द पर चर्चा की जा रही है।परितोषणजहाँ तक 'परितोषण' शब्द का प्रश्न है, तो इसको भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम...
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 भाग 8 : लोक सेवक को रिश्वत देने का अपराध
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 (Prevention Of Corruption Act,1988) की धारा 7 इस अधिनियम की महत्वपूर्ण धारा है। यहां से इस अधिनियम का नया अध्याय शुरू होता है, जिसमें इस अधिनियम में उल्लेखित किए गए अपराधों के संबंध में प्रावधान किए गए हैं। कुछ ऐसे कृत्य बताए गए हैं, जिन्हें इस अधिनियम में अपराध बनाया गया है। इस अधिनियम के अंतर्गत प्रारंभ में प्रक्रिया दी गई है एवं उसके बाद अपराधों का उल्लेख किया गया है। यहां इस आलेख में इस अधिनियम की धारा 7 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।यह अधिनियम में प्रस्तुत...
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 भाग 7 : विशेष न्यायाधीश की क्षमा प्रदान करने की शक्ति
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 (Prevention Of Corruption Act,1988) की धारा 5 में विशेष न्यायाधीश की शक्तियों और अधिकार का उल्लेख है। इन अधिकारों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अधिकार आरोपियों को क्षमा प्रदान करने का अधिकार है। यह अधिकार इस अधिनियम में विशेष रूप से उल्लेखित किया गया है। यहां एक विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार अधिनियम के अधीन आरोपी बनाए गए व्यक्ति को अभियोजन की सहायता करने की शर्त पर क्षमा प्रदान कर सकता है। इस आलेख में विशेष न्यायाधीश की इस ही शक्ति पर चर्चा की जा रही है।विशेष न्यायाधीश की...
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 भाग 6: विशेष न्यायाधीशों के अधिकार और प्रक्रिया
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 (Prevention Of Corruption Act,1988) की धारा 5 विशेष न्यायाधीशों को कुछ अधिकार देती है और उनकी प्रक्रिया के संबंध में प्रावधान करती है। हालांकि किसी भी आपराधिक प्रकरण का विचारण दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार किया जाता है लेकिन कुछ विशेष आपराधिक कानून ऐसे हैं जो कुछ मामलों में विशेष प्रक्रिया देते हैं जो दंड प्रक्रिया संहिता से थोड़ी भिन्न होती है। ऐसा इसलिए किया गया है कि विशेष कानूनों के अधीन होने वाले प्रकरणों में विचारण शीघ्र किया जा सके और विशेष न्यायाधीशों को...
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 भाग 5: विशेष न्यायाधीशों द्वारा विचारण किए जाने वाले प्रकरण
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 (Prevention Of Corruption Act,1988) की धारा 4 उन प्रकरणों का उल्लेख करती है जिन्हें विशेष न्यायाधीशों द्वारा विचारण किया जाएगा। जैसा कि विदित है यह अधिनियम के प्रारंभ में ही धारा 3 में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के आधीन अपराधों का विचारण विशेष न्यायाधीश द्वारा किया जाएगा और राज्य सरकार को ऐसे न्यायाधीश की नियुक्ति की सभी शक्तियां होगी। इस ही प्रकार धारा 4 उन प्रकरणों का उल्लेख है जिनका विचारण विशेष न्यायाधीश कर सकते हैं। इस आलेख में धारा...
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 भाग 4: सरकार को विशेष न्यायधीशों की नियुक्ति के अधिकार
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 (Prevention Of Corruption Act,1988) की धारा 3 सरकार को इस अधिनियम के अंतर्गत होने वाले अपराधों के विचारण के विशेष न्यायधीशों की नियुक्ति करने का अधिकार देती है। विशेष न्यायधीशों की नियुक्ति का अधिकार एक महत्वपूर्ण अधिकार है, इससे किसी प्रकरण को विशेष रूप से चलाया जा सकता है ताकि शीघ्र विचारण संपन्न हो सके। इस आलेख के अंतर्गत धारा 3 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।यह अधिनियम में प्रस्तुत धारा का मूल रूप हैधारा 3 विशेष न्यायाधीशों की नियुक्ति का अधिकार(1) केन्द्रीय...
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 भाग 3: अधिनियम के अंतर्गत लोक सेवक कौन है
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 (Prevention Of Corruption Act,1988) की धारा 2 में परिभाषाएं दी गई है जहां लोक सेवक की परिभाषा भी उपलब्ध है। इस अधिनियम में लोक सेवक एक केंद्र है क्योंकि यह अधिनियम लोक सेवकों के आपराधिक कृत्यों के विरुद्ध ही प्रावधान करता है, कोई भी ऐसा व्यक्ति जो लोक पद पर है यदि उसके द्वारा कोई भ्रष्टाचार किया जाता है तब यह अधिनियम लागू होता है। यह अधिनियम आम व्यक्ति पर नहीं है अपितु केवल सरकारी व्यक्तियों पर है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु अधिनियम में यह स्पष्ट होना आवश्यक था कि...
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 भाग 2: अधिनियम में लोक कर्त्तव्य किसे माना गया है
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 (Prevention Of Corruption Act,1988) की धारा 2 इस अधिनियम का निर्वचन खंड है जो कुछ शब्दों की परिभाषाएं प्रस्तुत करता है। लोक कर्त्तव्य और लोक सेवक इस अधिनियम के दो महत्वपूर्ण भाग है, अधिनियम की परिधि इन्हीं के आसपास है। इस आलेख के अंतर्गत लोक कर्त्तव्य को समझने का प्रयास किया जा रहा है।यह अधिनियम की धारा 2(ख) में प्रस्तुत की गई लोक कर्त्तव्य की परिभाषा है-(ख) "लोक-कर्त्तव्य" से अभिप्रेत है, कोई ऐसा कर्त्तव्य जिसके निर्वहन में राज्य की जनता या समाज की रुचि...
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 भाग 1: अधिनियम का उद्देश्य एवं एक परिचय
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 (Prevention Of Corruption Act,1988) वर्ष 1988 का एक महत्त्वपूर्ण केंद्रीय अधिनियम है, जो 1988 का अधिनियम संख्या 49 है अर्थात यह अधिनियम 1988 में 49वा अधिनियम है। यह 9 सितंबर,1988 को लागू एवं प्रभावी हुआ।यह अधिक विस्तारित अधिनियम तो नहीं है लेकिन भारत की पार्लियामेंट द्वारा गागर में सागर भरने का प्रयास किया गया है और इस अधिनियम की कम से कम धाराओं में भ्रष्टाचार निवारण से संबंधित समस्त प्रावधान कर दिए गए हैं। इस अधिनियम को निर्मित करने करने का एकमात्र उद्देश्य भारत...
वकीलों के लिए प्रतिबंधित कार्य क्या हैं?
वकीलों को न्यायालय का अधिकारी कहा गया है, यह एक पवित्र पेशा है। कानून ने वकीलों के लिए कुछ कार्य प्रतिबंधित किये हैं जो उन्हें वकालत की सनद मिलने के बाद नहीं करने चाहिए। न्याय प्रशासन एक प्रवाह है। इसे स्वच्छ, शुद्ध एवं प्रदूषण मुक्त रखा जाना आवश्यक है। यह बार एवं बैंच दोनों का दायित्व है कि वे न्याय प्रशासन की पवित्रता को बनाये रखें। अधिवक्ताओं से ऐसे आचरण की अपेक्षा की जाती है कि उनकी सत्यनिष्ठा पर कोई अंगुलि न उठा सकें।"भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा अपने एक वाद में भी वकीलों के लिए...
लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 भाग 34: अधिनियम के अंतर्गत अपनी पसंद के वकील की सेवाएं लेना
लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (The Protection Of Children From Sexual Offences Act, 2012) की धारा 40 पीड़ित बालक को अपनी पसंद के वकील को प्रकरण में नियुक्त करने की शक्ति देती है। किसी भी आपराधिक मामले का संचालन लोक अभियोजक द्वारा किया जाता है जिसे साधारण भाषा में सरकारी वकील कहा जाता है।पॉक्सो मामलों में पीड़ित व्यक्ति को यह अधिकार दिया गया है कि वह अपनी पसंद से किसी प्रायवेट अधिवक्ता को अपनी ओर से प्रकरण में नियुक्त कर सकता है जो उसके मामले की निगरानी करे और पीड़ित को समय पर...
लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 भाग 33: पॉक्सो अधिनियम में विचारण का बंद कमरे में किया जाना
लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (The Protection Of Children From Sexual Offences Act, 2012) की धारा 37 विचारण के बंद कमरे में किए जाने के संबंध में प्रावधान करती है। कोई भी लैंगिक अपराध बालकों के मस्तिष्क पर अत्यंत गहरा प्रभाव डालता है। खुलेआम इस तरह के विचारण को किये जाने से आवश्यक ही बालक की प्रतिष्ठा और उसके परिवार की प्रतिष्ठा पर दुष्प्रभाव पड़ता है, इस समस्या से निपटने के उद्देश्य अधिनियम में विचारण को बंद कमरे में किये जाने संबंधी प्रावधान किए गए हैं। इस आलेख के अंतर्गत...
लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 भाग 32: बालक के साक्ष्य अभिलिखित करने एवं प्रकरण का निपटारा करने हेतु अवधि
लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (The Protection Of Children From Sexual Offences Act, 2012) अधिनियम एक विशेष अधिनियम है, इस अधिनियम का उद्देश्य लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण है। इस अधिनियम के अंर्तगत बनाए गए प्रावधान बालकों को शीघ्र न्याय देने हेतु प्रयास करते है। उक्त अधिनियम की धारा 35 में ऐसी अवधि का उल्लेख किया गया है जिसमें बालकों के कथन अभिलिखित किए जाएंगे और मामले का निपटान किया जाएगा। इस आलेख में धारा 35 पर विवेचना प्रस्तुत की जा रही है।यह अधिनियम में प्रस्तुत...
लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 भाग 31: पॉक्सो अधिनियम के अंतर्गत अस्थि परीक्षण के आधार पर आयु का निर्धारण
लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (The Protection Of Children From Sexual Offences Act, 2012) अधिनियम आयु के इर्दगिर्द घूमता है क्योंकि यह अधिनियम बालकों से संबंधित है, धारा 33 में बालक द्वारा किए जाने वाले अपराधों में प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है जिसकी चर्चा पिछले आलेख में की गई है, इस आलेख में अस्थि परीक्षण के आधार पर आयु के निर्धारण से संबंधित कुछ एवं तथ्यों पर चर्चा की जा रही है।अस्थि परीक्षण के आधार पर आयु का अवधारणअस्थियों में अस्थि परीक्षण को किसी व्यक्ति की आयु के...
लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 भाग 30: किसी बालक द्वारा पॉक्सो अधिनियम का अपराध किए जाने पर प्रक्रिया
लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (The Protection Of Children From Sexual Offences Act, 2012) की धारा 34 इस अधिनियम की विशेष धाराओं में से एक है। इस धारा में यह प्रावधान किए गए हैं कि यदि किसी बालक द्वारा ही इस अधिनियम में उल्लेखित कोई आपराधिक कृत्य घटित किया जाए तब उस बालक की आयु निर्धारित करते समय विशेष न्यायालय किस प्रक्रिया को अपनाए। इस आलेख में धारा 34 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।यह अधिनियम में प्रस्तुत धारा का मूल रूप हैधारा 34बालक द्वारा किसी अपराध के घटित होने और...













