झारखंड हाईकोट
बलात्कार पीड़िता की गवाही सिर्फ़ मेडिकल साक्ष्य के अभाव से प्रभावित नहीं होती, अदालतों को आरोपी को गलत तरीके से फंसाने से सावधान रहना चाहिए: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने दोहराया कि यौन उत्पीड़न जो आम तौर पर सार्वजनिक रूप से नहीं होता हर मामले में पुष्टि की ज़रूरत नहीं होती।कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जब तक पीड़िता की गवाही में कुछ असामान्य न हो उसे सिर्फ़ मेडिकल साक्ष्य के अभाव में खारिज नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ़ गलत आरोप लगाने से बचने के लिए सतर्कता की ज़रूरत पर भी ज़ोर दिया।जस्टिस आनंद सेन और जस्टिस गौतम कुमार चौधरी की अगुवाई वाली खंडपीठ ने कहा,"शुरुआत में यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि साक्ष्य अधिनियम...
Live Wire Accident: झारखंड हाईकोर्ट ने बाद के सरकारी अधिसूचनाओं के आधार पर मुआवज़ा बढ़ाने से इनकार किया
झारखंड हाईकोर्ट ने अप्रैल 2018 में लाइव वायर गिरने से हुई दुर्घटना के कारण 60% दृष्टि खोने का दावा करने वाले व्यक्ति को अतिरिक्त मुआवज़ा देने से इनकार किया। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि यह दुर्घटना झारखंड राज्य विद्युत विनियामक आयोग (JSERC) द्वारा 21 दिसंबर 2018 को जारी किए गए राजपत्र अधिसूचना से पहले हुई थी, जिससे अतिरिक्त मुआवज़े का दावा अमान्य हो गया।हालांकि अदालत ने झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड (JBVNL) से कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (CSR) के तहत याचिकाकर्ता को मदद देने पर विचार करने का आग्रह...
ट्रायल से पहले या उसके दौरान हिरासत में रखना मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं, बरी किए गए व्यक्ति को मुआवजा नहीं: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने व्यक्ति द्वारा आपराधिक मामले में बरी किए जाने के बाद मुआवजे की मांग करने वाली याचिका खारिज की। न्यायालय ने कहा कि बरी किए गए आरोपी मानवाधिकार उपाय के रूप में मुआवजे का दावा नहीं कर सकते, क्योंकि मुकदमे से पहले या उसके दौरान हिरासत में रखना मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं है।जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी ने कहा,“प्रमुख मानवाधिकार संधियां बरी किए गए आरोपी के लिए मुआवजे का स्पष्ट अधिकार प्रदान नहीं करती हैं, आपराधिक मामले में बरी किए गए आरोपी मानवाधिकार उपाय के रूप में मुआवजे का दावा...
झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से झालसा भवन निर्माण में 6 साल की देरी के बारे में स्पष्टीकरण मांगा
झारखंड हाईकोर्ट ने हाईकोर्ट की सुरक्षा पर केंद्रित कई जनहित याचिकाओं (PIL) को संबोधित करते हुए हाईकोर्ट परिसर के पास स्थित झारखंड विधिक सेवा प्राधिकरण (झालसा) भवन के निर्माण में लंबे समय से हो रही देरी पर गहरा असंतोष व्यक्त किया।न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस देरी के कारण लागत में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, यह देखते हुए कि 2018 में मूल रूप से 48 करोड़ रुपये की लागत से स्वीकृत यह परियोजना अब 2024 तक अनुमानित 57 करोड़ रुपये तक बढ़ गई है।सुनवाई के दौरान न्यायालय ने समयसीमा पर मौखिक टिप्पणी...
एनआईए एक्ट | विशेष अदालत की अनुपस्थिति में सत्र न्यायालय की ओर से आदेश पारित किए जाने पर भी अपील खंडपीठ के समक्ष दायर की जानी चाहिए: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम, 2008 के तहत अनुसूचित अपराधों से संबंधित अपील हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष दायर की जानी चाहिए, भले ही मूल निर्णय या आदेश किसी निर्दिष्ट विशेष न्यायालय की अनुपस्थिति में कार्यरत सत्र न्यायालय द्वारा पारित किया गया हो। जस्टिस राजेश शंकर द्वारा दिए गए फैसले में कहा गया, “अधिनियम, 2008 की अनुसूची के तहत अपराधों की गंभीरता को देखते हुए, विधानमंडल ने ऐसे मामलों की सुनवाई में तेजी लाने के लिए हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष अपील दायर करने...
झारखंड हाईकोर्ट ने जज के यातायात में फंसने के बाद स्वत: संज्ञान लेते हुए जिला जज की सड़क पर हुई हत्या को याद किया
जस्टिस एस.के. द्विवेदी के यातायात जाम में फंसने और वहां मौजूद पुलिस बल से उचित सहायता नहीं मिलने के मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए मंगलवार को झारखंड हाईकोर्ट के समक्ष शीर्ष पुलिस अधिकारियों को पेश होना पड़ा।जस्टिस द्विवेदी ने खुलासा किया कि 23 अगस्त को राजनीतिक दल द्वारा आयोजित प्रदर्शन के कारण यातायात जाम के बीच उनके कर्मचारियों को उन्हें एस्कॉर्ट करने के लिए पीसीआर वैन बुलानी पड़ी, लेकिन दुर्भाग्य से आवास पर वापस जाते समय वह आधे घंटे तक अपनी कार में फंसे रहे और मौके पर मौजूद पुलिस अधिकारियों...
राज्य ने कहा, बांग्लादेशियों की घुसपैठ नहीं हुई, लेकिन कुछ क्षेत्रों में जनजातीय आबादी में कमी के कारणों पर चुप्पी साधी गई: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने गुरुवार को संथाल परगना क्षेत्र में जनजातीय आबादी में गिरावट के बारे में राज्य के अधिकारियों द्वारा हलफनामों में चुप्पी साधे रखने पर निराशा व्यक्त की। यह टिप्पणी क्षेत्र में बांग्लादेश से कथित अवैध अप्रवास को उजागर करने वाली जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करते हुए पारित किए गए न्यायालय के आदेश में की गई।एक्टिंग चीफ जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ दानियाल दानिश द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें दावा किया गया कि छह जिलों - गोड्डा,...
आदिवासियों की घटती आबादी पर जनहित याचिका | झारखंड हाईकोर्ट ने कहा- राज्य का दावा, बांग्लादेशियों की घुसपैठ नहीं हुई, लेकिन जनजातियों की आबादी में कमी के कारणों पर चुप
झारखंड हाईकोर्ट ने गुरुवार को संथाल परगना क्षेत्र में घटती आदिवासी आबादी पर हलफनामों में राज्य अधिकारियों की चुप्पी पर निराशा व्यक्त की। बांग्लादेश से कथित अवैध अप्रवास के मुद्दे पर दायर एक जनहित याचिका पर पारित आदेश में कार्यवाहक चीफ जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने उक्त टिप्पणियां कीं। जनहित याचिका दानियाल दानिश ने दायर की है, जिसमें दावा किया गया था कि छह जिलों - गोड्डा, जामताड़ा, पाकुड़, दुमका, साहिबगंज और देवघर (संथाल परगना क्षेत्र में) में बड़े पैमाने पर...
झारखंड हाईकोर्ट ने किसी भी दंडात्मक कार्यवाही के अभाव में कर भुगतान में देरी के लिए आपराधिक कार्यवाही रद्द की
झारखंड हाईकोर्ट ने आयकर अधिनियम 1961 (INCOME TAX Act ) के तहत कर चोरी के आरोपी व्यक्ति के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही रद्द की। इस मामले में आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता ट्रैक्टर डीलर अपने दाखिल किए गए रिटर्न में राशि घोषित करने के बावजूद आकलन वर्ष 2011-12 के लिए अपने आयकर रिटर्न से जुड़ी कर देयता का भुगतान करने में विफल रहा।कार्यवाही रद्द करने का कोर्ट का निर्णय इस तथ्य पर टिका था कि कर का भुगतान अंतत किया गया। हालांकि कुछ देरी के साथ और याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई वसूली कार्यवाही लंबित नहीं...
झारखंड हाईकोर्ट ने 2023 के विरोध प्रदर्शन के मामलों में भाजपा नेताओं के खिलाफ कार्यवाही रद्द की, कहा-" इन पर पत्थरबाजी या बैरिकेड तोड़ने का कोई सीधा आरोप नहीं"
झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में अप्रैल 2023 में झारखंड सरकार के खिलाफ आयोजित विरोध प्रदर्शन के संबंध में सांसद निशिकांत दुबे सहित 28 भाजपा नेताओं के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों को रद्द कर दिया। जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी ने फैसले में कहा, "जब पुलिस की कार्रवाई या निष्क्रियता के खिलाफ विरोध होता है तो मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की संभावना सबसे अधिक होती है, क्योंकि पुलिस को लोगों की सुरक्षा के लिए हथियार रखने का लाइसेंस दिया जाता है। पुलिस की शक्ति की निरंकुशता में गलत विश्वास या...
झारखंड हाईकोर्ट ने देवघर के पूर्व डिप्टी कमिश्नर के खिलाफ BJP सांसद निशिकांत दुबे द्वारा दर्ज FIR खारिज की
झारखंड हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह देवघर के पूर्व डिप्टी कमिश्नर मंजूनाथ भजंत्री के खिलाफ दर्ज एफआईआर खारिज की, जिसे गोड्डा से BJP सांसद निशिकांत दुबे ने दर्ज कराया था। 31 अगस्त, 2022 को दिल्ली में जीरो एफआईआर के रूप में दर्ज की गई एफआईआर में भजंत्री पर देशद्रोह और सरकारी गोपनीयता अधिनियम के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था। बाद में इसे देवघर के कुंडा पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित कर दिया गया।भजंत्री के खिलाफ आरोपों में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 353, 448, 201, 506 और 124-ए के साथ-साथ आधिकारिक...
प्रमोशन कर्मचारी का अंतर्निहित अधिकार नहीं, प्रमोशन के लिए विचार किए जाने का अधिकार तब प्राप्त होता है, जब जूनियर पर विचार किया जाता है: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि प्रमोशन किसी कर्मचारी का अंतर्निहित अधिकार नहीं है लेकिन प्रमोशन के लिए विचार किए जाने का अधिकार तब उत्पन्न होता है, जब जूनियर पर विचार किया जाता है।याचिकाकर्ता ने रिट याचिका दायर कर प्रतिवादी-राज्य को असिस्टेंट इंजीनियर के पद पर प्रमोशन के लिए उसके मामले की समीक्षा करने का निर्देश देने की मांग की थी।याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि पदोन्नति के लिए पात्र होने के बावजूद उसकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR) की अनुपस्थिति के कारण उसके आवेदन पर विचार नहीं किया गया, जिसने...
अवैध रूप से बर्खास्त कर्मचारी को, यह मानते हुए कि बर्खास्तगी कभी हुई ही नहीं, सभी लाभ पाने का अधिकार: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस एसएन पाठक की एकल पीठ ने एक याचिका पर निर्णय देते हुए कहा कि जिस कर्मचारी को अवैध रूप से नौकरी से निकाला गया है, उसे उन लाभों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए जो उसे नौकरी से निकाले जाने पर मिलते। अदालत ने मामले में पाया कि 1992 में याचिकाकर्ता की अवैध नौकरी से निकाले जाने को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने विभिन्न दौर की मुकदमों के माध्यम से बरकरार रखा था। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की नौकरी से निकाले जाने की अवधि के लिए कोई गलती नहीं थी। इसलिए, उसे उन लाभों से...
दोष न होने पर रजिस्ट्रेशन अधिकारी सेल डीड के विषय-वस्तु की जांच नहीं कर सकता: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि सेल डीड के रजिस्ट्रेशन के मामलों में रजिस्ट्रेशन अधिकारी विलेख के विषय-वस्तु के अधिकार, शीर्षक, चरित्र की प्रकृति की जांच नहीं कर सकता, यदि इसे ठीक से निष्पादित किया गया हो और इसमें कोई कानूनी या औपचारिक दोष न हो।दिनेश सिंह बनाम झारखंड राज्य एवं अन्य में समन्वय पीठ के 2012 के फैसले पर भरोसा करते हुए एकल न्यायाधीश पीठ के जस्टिस अनिल कुमार चौधरी ने कहा,"ऐसी परिस्थितियों में यदि विक्रय-पत्र विधिवत रूप से निष्पादित और पर्याप्त रूप से मुहरबंद है तथा इसमें कोई...
बिना देरी के दायर की गई अपील में बाद में सुधार नहीं किया जा सकता: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि यदि अपील ज्ञापन में देरी के लिए माफी के लिए आवेदन दाखिल करने के समय शामिल नहीं है तो इस तरह के आवेदन को बाद में दाखिल करने से दोष को ठीक नहीं किया जा सकता।2020 में दायर की गई अपील में आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (ITAT) रांची बेंच के न्यायिक सदस्य और लेखाकार सदस्य द्वारा अलग-अलग मूल्यांकन वर्षों के लिए पारित आदेश रद्द करने की मांग की गई। हालांकि, यह देरी के लिए माफी के लिए किसी भी आवेदन के बिना दायर किया गया।प्रतिवादी ने तर्क दिया कि अपील को देरी के लिए माफी के...
धारा 90 साक्ष्य अधिनियम | केवल दस्तावेज़ की आयु उसके निष्पादन का निर्णायक सबूत नहीं, प्रथम दृष्टया साक्ष्य आवश्यक: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी दस्तावेज की उम्र मात्र उसके निष्पादन का निर्णायक सबूत नहीं है। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 90 के तहत अनुमान लगाने के लिए यह साबित करने के लिए प्रथम दृष्टया सबूत जरूरी है कि कोई दस्तावेज तीस साल पुराना है, हालांकि यह अनुमान खंडनीय है।जस्टिस गौतम कुमार चौधरी ने कहा, "दस्तावेज की उम्र मात्र उसके निष्पादन का निर्णायक सबूत नहीं है। धारा 90 के तहत अनुमान लगाने के लिए कम से कम प्रथम दृष्टया सबूत यह दिखाने के लिए जरूरी...
अभियुक्त की डिस्चार्ज याचिका पर विचार करते समय उसके बचाव पर विचार नहीं किया जा सकता: झारखंड हाईकोर्ट ने दोहराया
झारखंड हाईकोर्ट ने दोहराया कि अभियुक्त के डिस्चार्ज याचिका पर विचार करते समय अभियुक्त के बचाव पर विचार नहीं किया जा सकता।जस्टिस प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने टिप्पणी की,"ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ताओं को डिस्चार्ज करने के आधार के रूप में उठाए गए बिंदु मामले में उनके बचाव से संबंधित हैं। मामले की सच्चाई या झूठ का फैसला केवल ट्रायल के दौरान ही किया जा सकता है और याचिकाकर्ताओं के संभावित बचाव को कार्यवाही के प्रारंभिक चरण में स्वीकार नहीं किया जा सकता है, जिसे ट्रायल के दौरान प्रमाणित करने की...
मात्र अनुबंध का उल्लंघन IPC की धारा 405 के तहत सौंपने के बिना आपराधिक विश्वासघात नहीं माना जाता: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने माना कि मात्र अनुबंध का उल्लंघन भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 405 के तहत 'सौंपने' के बिना अपराध नहीं माना जाता। यह प्रावधान आपराधिक विश्वासघात को दंडित करता है।जस्टिस संजय द्विवेदी ने कहा,“आपराधिक विश्वासघात के अपराध को धारा 405 आईपीसी के तहत परिभाषित किया गया और यह धारा 406 आईपीसी के तहत दंडनीय है। आपराधिक विश्वासघात के अपराध को लाने के लिए विश्वासघात होना चाहिए।”इस मामले में शिकायतकर्ता ने याचिकाकर्ता-आरोपी की कंपनी के साथ समझौता किया। आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता लगभग 28...
टेस्ट पहचान परेड में अनियमितता से न्यायालय में पहचान के साक्ष्य मूल्य में कमी नहीं आती: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि जांच के दौरान आयोजित टेस्ट पहचान परेड (TIP) जांच प्रक्रिया का हिस्सा है और यह ठोस सबूत नहीं है। इस प्रकार इसने इस बात पर जोर दिया कि TIP आयोजित करने में अनियमितता अभियोजन पक्ष के मामले को खारिज करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है, अगर अन्य विश्वसनीय सबूतों द्वारा समर्थित हो।इस मामले की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस गौतम कुमार चौधरी ने कहा,“भले ही यह मान लिया जाए कि TIP में अनियमितता थी जो वर्तमान मामले में प्रतीत होती है, यह अपने आप में न्यायालय में पहचान के साक्ष्य...
झारखंड हाईकोर्ट ने हत्या के आरोप की पुष्टि की, कहा, निचली अदालत ने 11 वर्षीय गवाह की योग्यता पर सवाल नहीं उठाया था, फिर भी गवाही तर्कसंगत और स्थिर
झारखंड हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति को उसकी पत्नी की हत्या के लिए दोषी ठहराए जाने के फैसले को बरकरार रखा है, जबकि निचली अदालत ने ग्यारह वर्षीय बाल गवाह की योग्यता की पुष्टि करने में विफलता दिखाई है। जस्टिस सुभाष चंद और जस्टिस आनंद सेन की खंडपीठ की अध्यक्षता वाले हाईकोर्ट ने कहा कि जसमीरा खातून की गवाही तर्कसंगत और सुसंगत रही, भले ही निचली अदालत ने गवाह के रूप में उसकी उपयुक्तता का मूल्यांकन नहीं किया।अदालत ने टिप्पणी की, "हालांकि विद्वान निचली अदालत ने इस गवाह पीडब्लू2- जसमीरा खातून से गवाह के रूप...