आदिवासियों की घटती आबादी पर जनहित याचिका | झारखंड हाईकोर्ट ने कहा- राज्य का दावा, बांग्लादेशियों की घुसपैठ नहीं हुई, लेकिन जनजातियों की आबादी में कमी के कारणों पर चुप

Avanish Pathak

24 Aug 2024 10:01 AM GMT

  • आदिवासियों की घटती आबादी पर जनहित याचिका | झारखंड हाईकोर्ट ने कहा- राज्य का दावा, बांग्लादेशियों की घुसपैठ नहीं हुई, लेकिन जनजातियों की आबादी में कमी के कारणों पर चुप

    झारखंड हाईकोर्ट ने गुरुवार को संथाल परगना क्षेत्र में घटती आदिवासी आबादी पर हलफनामों में राज्य अधिकारियों की चुप्पी पर निराशा व्यक्त की। बांग्लादेश से कथित अवैध अप्रवास के मुद्दे पर दायर एक जनहित याचिका पर पारित आदेश में कार्यवाहक चीफ जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने उक्त टिप्पण‌ियां कीं।

    जनहित याचिका दानियाल दानिश ने दायर की है, जिसमें दावा किया गया था कि छह जिलों - गोड्डा, जामताड़ा, पाकुड़, दुमका, साहिबगंज और देवघर (संथाल परगना क्षेत्र में) में बड़े पैमाने पर बांग्लादेश‌ियों की घुसपैठ हो रही है।

    संथाल परगना क्षेत्र में अनुसूचित जनजातियों की घटती आबादी के कारणों का हलफनामे में कोई जवाब नहीं

    गुरुवार को पारित आदेश में हाईकोर्ट ने कहा, "संबंधित जिलों, यानी गोड्डा, जामताड़ा, पाकुड़, दुमका, साहिबगंज और देवघर के उपायुक्त और एसपी ने हलफनामा दायर किया है...इस न्यायालय ने संबंधित जिलों के उपायुक्त की ओर से दायर हलफनामे की विषय-वस्तु पर गौर किया है, जिसमें कहा गया है कि बांग्लादेशी प्रवासियों की कोई घुसपैठ नहीं हुई है, हालांकि संबंधित क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों की संख्या में कमी के कारण के संबंध में कोई संदर्भ नहीं है"।

    पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की ओर से पिछली सुनवाई में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, "क्षेत्र में अनुसूचित जनजातियों की आबादी में वर्ष 1951 में 44.67% थी, जबकि वर्ष 2011 में यह 28.11%" रही गई, इस कमी को हाईकोर्ट ने 8 अगस्त के आदेश में संज्ञान में लिया था।

    हालांकि, "बहुत आश्चर्यजनक रूप से", इस पहलू पर "कोई जवाब नहीं" दिया गया और "संबंधित क्षेत्रों में आदिवासियों की आबादी में कमी के संबंध में कोई प्रासंगिक डेटा प्रस्तुत नहीं किया गया, जिस पर प्रतिवादी-राज्य द्वारा जवाब दिए जाने की आवश्यकता है"।

    यह देखते हुए कि हलफनामा आदिवास‌ियों के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाए गए एक विशिष्ट कानून के बावजूद स्थिति को ठीक से स्पष्ट करने में विफल रहा, हाईकोर्ट ने कहा, "यह न्यायालय यह समझने में विफल है कि इस तरह का हलफनामा बिना इस स्थिति को स्पष्ट किए बिना कैसे दायर किया गया है कि जबकि संथाल परगना क्षेत्र के आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक किरायेदारी कानून है, जिसे वर्ष 1872 से संथाल परगना किरायेदारी अधिनियम के रूप में जाना जाता है और वर्ष 1949 में पूरक बनाया गया था, जिसमें भूमि के हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाने के लिए विशिष्ट प्रावधान किए गए हैं"।

    संदर्भ के लिए, संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम 1872 एक ब्रिटिश कानून था (जिसे स्वतंत्रता के बाद संथाल परगना काश्तकारी [पूरक प्रावधान] अधिनियम 1949 के साथ पूरक बनाया गया) जिसका उद्देश्य संथाल परगना क्षेत्र में आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासियों को हस्तांतरित करने पर प्रतिबंध लगाना था, जिससे आदिवासी समुदाय के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान की जा सके।

    मामले को 5 सितंबर को सूचीबद्ध करते हुए, हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि इस पहलू पर राज्य के संबंधित विभाग द्वारा अगली सुनवाई की तारीख पर या उससे पहले "इस संबंध में विशिष्ट हलफनामा" मांगा जाना चाहिए।

    बीएसएफ के विस्तार के अनुरोध को खारिज कर दिया गया

    शुरुआत में, हाईकोर्ट ने बीएसएफ और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) द्वारा दायर दो अंतरिम आवेदनों की चर्चा की।

    बीएसएफ की ओर से प्रस्तुत प्रथम अंतरिम आवेदन में जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए आवश्यक विशाल डेटा को संकलित करने और सत्यापित करने के लिए चार सप्ताह का समय मांगा गया था। बीएसएफ ने तर्क दिया कि यह विस्तार आवश्यक था क्योंकि डेटा को विभिन्न क्षेत्रीय संरचनाओं से एकत्र किया जाना था और बाद में बीएसएफ के महानिदेशक (डीजी) को उसे अनुमोदित करना था।

    हालांकि, हाईकोर्ट ने बीएसएफ के विस्तार अनुरोध को खारिज करते हुए कहा, "यह न्यायालय, मांगी गई राहत की प्रकृति पर विचार करते हुए, जो जनसांख्यिकी में परिवर्तन और अवैध प्रवासियों के कारण अनुसूचित जनजातियों की आबादी में उल्लेखनीय कमी से संबंधित है, जिसे माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बाहरी आक्रमण माना है, का विचार है कि छह सप्ताह का समय मांगना न्यायसंगत और उचित नहीं है।"

    यूआईडीएआई के अतिरिक्त समय के अनुरोध को भी अस्वीकार कर दिया गया

    न्यायालय ने यूआईडीएआई की ओर से दायर दूसरे अंतरिम आवेदन पर विचार किया, जिसमें गोड्डा, जामताड़ा, पाकुड़, दुमका, साहिबगंज और देवघर जिलों में आधार नामांकन से संबंधित सांख्यिकीय डेटा और ग्राफ़ एकत्र करने के लिए छह सप्ताह का समय मांगा गया था। यूआईडीएआई ने दावा किया कि डेटा को बेंगलुरु में अपने प्रौद्योगिकी केंद्र और मानेसर में डेटा केंद्र से प्राप्त करने की आवश्यकता है।

    हालांकि न्यायालय ने कहा, "यह न्यायालय यह समझने में विफल है कि यूआईडीएआई का अपना ऑनलाइन नेटवर्क है और आधार कार्ड बनाने के लिए सभी डेटा पहले से ही सिस्टम में मौजूद हैं, फिर बेंगलुरु में प्रौद्योगिकी केंद्र/मानेसर में डेटा केंद्र से डेटा प्राप्त करने के लिए छह सप्ताह का समय मांगने का क्या कारण है।"

    न्यायालय ने इन्हीं टिप्पण‌ियों के साथ यूआईडीएआई की ओर से समय विस्‍तार की मांग को न्यायसंगत और उचित नहीं मानते हुए आवेदन को खारिज कर दिया। साथ ही बीएसएफ और यूआईडीएआई दोनों को अगली सुनवाई की तारीख से पहले अपने हलफनामे प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

    केस टाइटलः दानियाल दानिश बनाम झारखंड राज्य और अन्य।


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