जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

बढ़े हुए मुआवजे की मांग करने वाले भूस्वामी को यह साबित करना होगा कि अधिग्रहित भूमि का बाजार मूल्य कलेक्टर द्वारा निर्धारित मूल्य से अलग है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
बढ़े हुए मुआवजे की मांग करने वाले भूस्वामी को यह साबित करना होगा कि अधिग्रहित भूमि का बाजार मूल्य कलेक्टर द्वारा निर्धारित मूल्य से अलग है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि यह साबित करने का भार कि अधिग्रहित भूमि का बाजार मूल्य कलेक्टर द्वारा निर्धारित मूल्य से अलग है बढ़े हुए मुआवजे की मांग करने वाले भूस्वामियों पर है।जस्टिस संजय धर की पीठ ने कहा कि जब तक भूमि मालिक उन पर डाले गए बोझ का निर्वहन करने में विफल रहते हैं, तब तक संदर्भ न्यायालय द्वारा कोई वृद्धि देने का कोई सवाल ही नहीं है।मामले की पृष्ठभूमि:यह मामला 1997 में अधिसूचित क्षेत्र समिति कुपवाड़ा के कार्य से उत्पन्न हुआ, जब इसने टाउन हॉल परियोजना...

बीमार मां की देखभाल के लिए छुट्टी न देना ड्यूटी छोड़ने का कोई आधार नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने अनधिकृत अनुपस्थिति के लिए सीआरपीएफ कर्मियों का वेतन रोकने का फैसला बरकरार रखा
बीमार मां की देखभाल के लिए छुट्टी न देना ड्यूटी छोड़ने का कोई आधार नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने अनधिकृत अनुपस्थिति के लिए सीआरपीएफ कर्मियों का वेतन रोकने का फैसला बरकरार रखा

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने ड्यूटी से अनधिकृत अनुपस्थिति के लिए सीआरपीएफ कर्मियों के वेतन रोकने का फैसला बरकरार रखा। कोर्ट ने उक्त फैसला यह देखते हुए बरकरार रखा कि बीमार मां की देखभाल के लिए छुट्टी न देना बिना अनुमति के ड्यूटी छोड़ने का आधार नहीं हो सकता।सीआरपीएफ में कांस्टेबल मोहम्मद यूसुफ भट द्वारा दायर रिट याचिका खारिज करते हुए जस्टिस सिंधु शर्मा ने कहा,"छुट्टी देना या न देना सक्षम प्राधिकारी का विशेषाधिकार है, जिसे आवेदक के व्यक्तिगत अनुरोधों पर विचार करते समय प्रशासनिक और आधिकारिक कारकों पर...

उत्पीड़न के विशिष्ट उदाहरणों के बिना सर्वव्यापी आरोप आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध आकर्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं: जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट
उत्पीड़न के विशिष्ट उदाहरणों के बिना सर्वव्यापी आरोप आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध आकर्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं: जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

अपने मृतक भाई को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में चार भाइयों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा है कि बिना किसी विशेष उदाहरण के उत्पीड़न के केवल आरोप आईपीसी की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त नहीं होंगे। इस प्रावधान के तहत दायित्व को पुख्ता करने के लिए साबित किए जाने वाले आवश्यक तत्वों को स्पष्ट करते हुए ज‌स्टिस संजय धर ने कहा,“यह दिखाने के लिए कि किसी व्यक्ति ने अपराध करने के लिए उकसाया है, उसका इरादा स्पष्ट...

कंपनी कीटनाशक अधिनियम के तहत अपराध करती है तो व्यवसाय के संचालन के लिए जिम्मेदार सभी लोग उत्तरदायी होंगे: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
कंपनी कीटनाशक अधिनियम के तहत अपराध करती है तो व्यवसाय के संचालन के लिए जिम्मेदार सभी लोग उत्तरदायी होंगे: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि कीटनाशक अधिनियम 1968 (Insecticides Act, 1968 ) के तहत यदि कोई कंपनी कोई अपराध करती है तो कंपनी और उस समय प्रभारी व्यक्ति दोनों को दोषी माना जाता है और उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है। साथ ही उन्हें दंडित भी किया जा सकता है।कंपनी को वास्तव में आरोपी बनाए बिना कंपनी के कर्मचारियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए जस्टिस रजनीश ओसवाल की पीठ ने कहा,“जब कंपनी को आरोपी नहीं बनाया जाता है तो याचिकाकर्ता जो कंपनी के कर्मचारी हैं, उन पर कंपनी...

एक बार शिकायतकर्ता का बयान सीआरपीसी की धारा 200 के तहत दर्ज हो जाने के बाद मजिस्ट्रेट धारा 156(3) के तहत एफआईआर दर्ज करने के निर्देश नहीं दे सकते: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
एक बार शिकायतकर्ता का बयान सीआरपीसी की धारा 200 के तहत दर्ज हो जाने के बाद मजिस्ट्रेट धारा 156(3) के तहत एफआईआर दर्ज करने के निर्देश नहीं दे सकते: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

शिकायतों को निपटाने के दौरान सीआरपीसी की धारा 156(3) और 200 के तहत मजिस्ट्रेट की शक्तियों के बीच अंतर को पुष्ट करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि धारा 200 के तहत शिकायतकर्ता का बयान दर्ज करना धारा 156(3) के तहत एफआईआर आदेश जारी करने पर रोक लगाता है।M/S Sas Infratech Pvt. Ltd. अपीलकर्ता(ओं) बनाम तेलंगाना राज्य और अन्य का हवाला देते हुए जस्टिस राजेश ओसवाल ने दोहराया,“जब मजिस्ट्रेट अपने न्यायिक विवेक का प्रयोग करते हुए सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत जांच का निर्देश देता है...

अंतरिम आदेशों को चुनौती देने के लिए सेशन जज के समक्ष अपील दायर करने पर कोई विशेष रोक नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया
अंतरिम आदेशों को चुनौती देने के लिए सेशन जज के समक्ष अपील दायर करने पर कोई विशेष रोक नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने पुष्टि की है कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पारित अंतरिम आदेश के खिलाफ सत्र अदालत के समक्ष अपील दायर करने पर कोई विशिष्ट रोक नहीं है।अंतरिम आदेशों पर इस तरह की किसी भी रोक की अनुपस्थिति पर प्रकाश डालते हुए, जस्टिस संजय धर की पीठ ने कहा, "यदि विधायिका अंतरिम आदेशों को डीवी अधिनियम की धारा 29 के दायरे से बाहर रखने का इरादा रखती है, तो इसे विशेष रूप से प्रदान किया जा सकता था। किसी विशिष्ट प्रतिबंध की अनुपस्थिति में, एक अंतरिम आदेश, जिसे 'आदेश' की परिभाषा में शामिल...

न्यायालयों को संभावित रूप से परेशान करने वाली कार्यवाही में एफआईआर में आरोपों से परे परिस्थितियों की जांच करनी चाहिए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
न्यायालयों को संभावित रूप से परेशान करने वाली कार्यवाही में एफआईआर में आरोपों से परे परिस्थितियों की जांच करनी चाहिए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

संभावित रूप से तुच्छ शिकायतों से जुड़े मामलों में एफआईआर से परे देखने की आवश्यकता पर जोर देते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर को खारिज कर दिया, जिसमें पाया गया कि उसे मारपीट और छेड़छाड़ के मामले में झूठा आरोपी बनाया गया।जस्टिस रजनेश ओसवाल की पीठ ने सलीब @ शालू @ सलीम बनाम यूपी राज्य और अन्य” का संदर्भ देते हुए कहा कि अदालतों का कर्तव्य है कि वे एफआईआर में आरोपों से परे मौजूदा परिस्थितियों की जांच करें खासकर जब व्यक्तिगत विवादों से उत्पन्न होने वाली संभावित रूप से...

पति के रिश्तेदारों के खिलाफ क्रूरता के लिए उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए विशेष आरोप आवश्यक: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने दोहराया
पति के रिश्तेदारों के खिलाफ क्रूरता के लिए उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए विशेष आरोप आवश्यक: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने दोहराया

इस बात पर जोर देते हुए कि सामान्य और अस्पष्ट आरोपों के आधार पर पति के रिश्तेदारों पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498-ए के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने अभियोजन के लिए विशेष आरोपों की आवश्यकता को रेखांकित किया।आरोपी पति के माता-पिता के संबंध में एफआईआर रद्द करते हुए जस्टिस राजेश ओसवाल ने कहा,“आईपीसी की धारा 498-ए के तहत अपराध करने के लिए पति के रिश्तेदारों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए विशेष आरोप होने चाहिए, लेकिन बिना किसी स्पष्ट और सामान्य आरोप और...

एफआईआर-आधारित हिरासत आदेश में अभियुक्त को दी गई ज़मानत का उल्लेख न करना हिरासत को अवैध बनाता है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
एफआईआर-आधारित हिरासत आदेश में अभियुक्त को दी गई ज़मानत का उल्लेख न करना हिरासत को अवैध बनाता है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

निवारक हिरासत आदेश (Preventive Detention Order) रद्द करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने घोषणा की कि एक बार जब एफआईआर हिरासत आदेश पारित करने का मुख्य आधार बन जाती है तो उस एफआईआर के संबंध में दी गई ज़मानत का उल्लेख न करना हिरासत आदेश को अवैध बनाता है।जस्टिस पुनीत गुप्ता की पीठ ने यह टिप्पणी कानून के स्थापित प्रस्ताव पर आधारित की है कि हिरासत आदेश पारित करते समय हिरासत प्राधिकारी को हिरासत आदेश में सभी प्रासंगिक सामग्री का खुलासा करना आवश्यक है, क्योंकि यह हिरासत आदेश पारित करते समय...

मनी लॉन्ड्रिंग के कारण नुकसान झेलने वाले वास्तविक व्यक्ति कुर्क की गई संपत्ति को वापस पाने के लिए स्पेशल कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
मनी लॉन्ड्रिंग के कारण नुकसान झेलने वाले वास्तविक व्यक्ति कुर्क की गई संपत्ति को वापस पाने के लिए स्पेशल कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

मनी लॉन्ड्रिंग के अपराधों के कारण सद्भावनापूर्वक कार्य करने वाले व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि वे कुर्क की गई संपत्तियों को वापस पाने के लिए स्पेशल कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के हकदार हैं।धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA Act) की धारा 8 की उपधारा 8 का हवाला देते हुए जस्टिस संजीव कुमार ने कहा,“कोई व्यक्ति, जिसने सद्भावनापूर्वक कार्य किया है और PMLA अपराध के परिणामस्वरूप उसे परिमाणात्मक नुकसान हुआ, सभी उचित सावधानियां बरतने के बावजूद और...

संवैधानिक न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों के संरक्षक , व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन होने पर उन्हें अतिरिक्त संवेदनशील होना चाहिए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
संवैधानिक न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों के संरक्षक , व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन होने पर उन्हें अतिरिक्त संवेदनशील होना चाहिए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम 1978 के तहत निवारक निरोध आदेश रद्द करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हिरासत में लेने वाले अधिकारियों के लिए चेतावनी जारी की, जो मानते हैं कि अधिनियम के तहत उनकी शक्तियों पर कोई नियंत्रण नहीं है।जस्टिस राहुल भारती की पीठ ने कहा कि निरोध आदेश जारी करने के लिए अधिकारियों की व्यक्तिपरक संतुष्टि को शब्दों के खेल के रूप में नहीं समझा जा सकता, जबकि यह माना जाता है कि उनके पास किसी भी व्यक्ति को किसी भी समय निवारक निरोध में रखने की सर्वशक्तिमान शक्ति और...

जांच एजेंसी की कमियां रिकॉर्ड में लाए गए साक्ष्यों के आधार पर आरोप तय करने में बाधा नहीं डाल सकतीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जांच एजेंसी की कमियां रिकॉर्ड में लाए गए साक्ष्यों के आधार पर आरोप तय करने में बाधा नहीं डाल सकतीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

किसी आरोपी के खिलाफ आरोप तय करते समय न्यायालय के कर्तव्यों पर प्रकाश डालते हुए जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि जांच संबंधी कमियों को प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर आरोप तय करने में बाधा नहीं डालनी चाहिए।अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश (एडीएंडजे) बारामुल्ला द्वारा पारित आदेश को रद्द करते हुए, जिसमें धारा 304 भाग-I आईपीसी (हत्या के बराबर न होने वाली गैर-इरादतन हत्या) के तहत आरोप तय करने का निर्देश दिया गया!जस्टिस पुनीत गुप्ता की पीठ ने इसके बजाय आरोपी के खिलाफ धारा 302 आईपीसी...

मौलिक अधिकारों पर अवैध आक्रमण: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने अवैध हिरासत को खारिज किया 2 लाख रुपये मुआवजे का आदेश दिया
मौलिक अधिकारों पर अवैध आक्रमण: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने अवैध हिरासत को खारिज किया 2 लाख रुपये मुआवजे का आदेश दिया

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन को 22 वर्षीय स्टूडेंट आफताब हुसैन डार को 2 लाख रुपये मुआवजे के रूप में देने का आदेश दिया। उसकी निवारक हिरासत को अवैध और असंवैधानिक घोषित करते हुए उसे खारिज किया।जस्टिस राहुल भारती की पीठ ने उसकी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका स्वीकार करते हुए कहा,“यह न्यायालय मानता है और मानता है कि यह 25 लाख रुपये की राशि का मुआवजा देने के लिए उपयुक्त मामला है। प्रतिवादियों द्वारा याचिकाकर्ता के पक्ष में 2 लाख रुपये का भुगतान किया जाना है। भारत के...

जम्मू-कश्मीर में केंद्र शासित प्रदेश के रूप में पुनर्गठन के बाद से राज्य की सुरक्षा अब निवारक निरोध के लिए वैध आधार नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर में केंद्र शासित प्रदेश के रूप में पुनर्गठन के बाद से राज्य की सुरक्षा अब निवारक निरोध के लिए वैध आधार नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

निरोधक निरोध आदेश रद्द करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में घोषणा की कि 2019 में केंद्र शासित प्रदेश के रूप में पुनर्गठन के बाद से जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में राज्य की सुरक्षा शब्द अप्रचलित है।जस्टिस राहुल भारती की पीठ ने स्पष्ट किया,“जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (राज्य कानूनों का अनुकूलन) आदेश, 2020 के तहत धारा 8(1)(ए)(आई) में प्राप्त राज्य की सुरक्षा को जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश की सुरक्षा के वैधानिक आधार द्वारा प्रतिस्थापित किया गया। इसलिए उक्त के साथ पारित आदेश अभिव्यक्ति...

[S.340 CrPC] झूठी गवाही के लिए कार्रवाई की सिफारिश करने से पहले न्यायालय को यह सुनिश्चित करना होगा कि पक्ष ने जानबूझकर अपराध किया: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
[S.340 CrPC] झूठी गवाही के लिए कार्रवाई की सिफारिश करने से पहले न्यायालय को यह सुनिश्चित करना होगा कि पक्ष ने जानबूझकर अपराध किया: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

न्यायालय को आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 340 के तहत कार्रवाई की सिफारिश करने से पहले जानबूझकर अपराध करने के बारे में आश्वस्त होने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाइकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि केवल आरोप लगाना या व्यक्तिगत स्कोर तय करने का प्रयास झूठी गवाही की कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं हैं।धारा 340 सीआरपीसी में आने वाले शब्दों न्याय के हित में यह समीचीन है कि जांच की जानी चाहिए पर प्रकाश डालते हुए जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने समझाया,"जब तक...

मजिस्ट्रेट को क्लोजर रिपोर्ट पर विचार करने से पहले घायल पक्ष या मृतक के रिश्तेदार को सूचित करने की आवश्यकता नहीं है, जब तक कि उनके द्वारा FIR दर्ज नहीं की जाती: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
मजिस्ट्रेट को क्लोजर रिपोर्ट पर विचार करने से पहले घायल पक्ष या मृतक के रिश्तेदार को सूचित करने की आवश्यकता नहीं है, जब तक कि उनके द्वारा FIR दर्ज नहीं की जाती: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि पुलिस क्लोजर रिपोर्ट पर विचार करते समय मजिस्ट्रेट घायल पक्षों या मृतक के रिश्तेदारों को सूचित करने के लिए बाध्य नहीं हैं।जस्टिस संजीव कुमार द्वारा पारित एक फैसले में, कोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट पर घायल या मृतक के रिश्तेदार को नोटिस जारी करने का कोई दायित्व नहीं है, ऐसे व्यक्ति को रिपोर्ट पर विचार करने के समय सुनवाई का अवसर प्रदान करने के लिए जब तक कि वह व्यक्ति प्राथमिकी दर्ज करने वाला मुखबिर न हो। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा है कि हालांकि...

[O.22 R.10 CPC] नया ट्रस्टी कानूनी प्रतिनिधि नहीं बल्कि हित में उत्तराधिकारी: जम्मू एंड कश्मीर हाइकोर्ट ने स्पष्ट किया
[O.22 R.10 CPC] नया ट्रस्टी कानूनी प्रतिनिधि नहीं बल्कि हित में उत्तराधिकारी: जम्मू एंड कश्मीर हाइकोर्ट ने स्पष्ट किया

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाइकोर्ट ने घोषित किया कि किसी ट्रस्टी की मृत्यु होने पर नव निर्वाचित या नियुक्त ट्रस्टी को मृतक ट्रस्टी का कानूनी प्रतिनिधि नहीं माना जा सकता। इसके बजाय ट्रस्ट की संपत्ति का हित नए ट्रस्टी को हस्तांतरित हो जाता है, जिससे आदेश 22 नियम 10 सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के प्रावधान लागू होते हैं।आदेश 22 नियम 10 CPC में निर्धारित किया गया कि यदि मुकदमे के लंबित रहने के दौरान किसी वादी या प्रतिवादी से किसी अन्य व्यक्ति को कोई हित हस्तांतरित किया जाता है तो मुकदमा उस व्यक्ति...

महत्वपूर्ण तथ्यों को दबाना सिर्फ़ बाजीगरी है, वकालत नहीं: जम्मू-कश्मीर हाइकोर्ट ने न्यायालय से महत्वपूर्ण तथ्य छिपाने के लिए पूर्व कांस्टेबल की बहाली का आदेश रद्द किया
महत्वपूर्ण तथ्यों को दबाना सिर्फ़ बाजीगरी है, वकालत नहीं': जम्मू-कश्मीर हाइकोर्ट ने न्यायालय से महत्वपूर्ण तथ्य छिपाने के लिए पूर्व कांस्टेबल की बहाली का आदेश रद्द किया

कानूनी कार्यवाही में पारदर्शिता की महत्ता को रेखांकित करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाइकोर्ट ने पुलिस बल में बहाली की मांग करने वाले पूर्व कांस्टेबल की याचिका खारिज की।जस्टिस ताशी रबस्तान और जस्टिस एम.ए. चौधरी द्वारा पारित निर्णय में कहा गया,"महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाना वकालत नहीं है। यह बाजीगरी, हेरफेर, पैंतरेबाज़ी या गलत बयानी है, जिसका न्यायसंगत और विशेषाधिकार क्षेत्राधिकार में कोई स्थान नहीं है।"यह मामला मसरत जान से जुड़ा है, जिसे 1999 में जम्मू-कश्मीर पुलिस में कांस्टेबल के रूप में...

जब क़ानून विशिष्ट आकस्मिकता के तहत हिरासत में लेने का प्रावधान करता है तो अलग-अलग आकस्मिकताओं के तहत हिरासत तब तक नहीं की जा सकती, जब तक कि स्थितियां ओवरलैप न हों: जम्मू-कश्मीर हाइकोर्ट
जब क़ानून विशिष्ट आकस्मिकता के तहत हिरासत में लेने का प्रावधान करता है तो अलग-अलग आकस्मिकताओं के तहत हिरासत तब तक नहीं की जा सकती, जब तक कि स्थितियां ओवरलैप न हों: जम्मू-कश्मीर हाइकोर्ट

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाइकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि एक बार जब कोई क़ानून किसी विशिष्ट आकस्मिकता के तहत किसी व्यक्ति को हिरासत में लेने का प्रावधान करता है तो उसे क़ानून द्वारा उल्लिखित अलग आकस्मिकता के तहत हिरासत में नहीं लिया जा सकता है जब तक कि दोनों स्थितियां ओवरलैप या सह-अस्तित्व में न हों।जस्टिस राजेश ओसवाल ने जम्मू-कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम 1978 की धारा 8 (1) (ए) के तहत कथित आदतन शराब तस्कर के खिलाफ निवारक हिरासत आदेश को रद्द करते हुए कहा,“याचिकाकर्ता को केवल पीएसए की...

अभियोक्ता की गवाही के आधार पर घटना के तथ्य और इसमें शामिल व्यक्तियों की जांच की जानी चाहिए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
अभियोक्ता की गवाही के आधार पर घटना के तथ्य और इसमें शामिल व्यक्तियों की जांच की जानी चाहिए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

बलात्कार के मामलों में अभियोक्ता की ओर से सुसंगत और विश्वसनीय कथन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि अदालतों को अभियोक्ता की गवाही पर भरोसा करने से पहले उसकी गहन जांच करनी चाहिए।जस्टिस संजय धर की पीठ ने कहा,“न्यायालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि घटना के तथ्य, इसमें शामिल व्यक्ति और घटना के क्रम के बारे में कोई संदेह नहीं है। यह भी देखा जाना चाहिए कि अभियोक्ता द्वारा दिया गया बयान हर दूसरे गवाह द्वारा दिए गए बयान के अनुरूप है या नहीं और...