आरोप पत्र में दस्तावेजों की सूची दाखिल करना CrPC की धारा 294 का पर्याप्त अनुपालन नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
Amir Ahmad
8 April 2025 8:08 AM

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने माना कि केवल दस्तावेजों की सूची दाखिल करना सीआरपीसी की धारा 294 का पर्याप्त अनुपालन नहीं है।
न्यायालय ने माना कि प्रतिकूल पक्ष को उन दस्तावेजों की सूची प्रदान करके नोटिस देना आवश्यक है, जिन्हें BNSS की धारा 330 के अनुसार प्रतिकूल पक्ष द्वारा स्वीकार या अस्वीकार किया जाना है, जो CrPC की धारा 294 के समतुल्य है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि पक्ष को उन दस्तावेजों के बारे में पता हैस जिन्हें स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए उक्त पक्ष को कहा गया।
न्यायालय को यह निर्धारित करने के लिए कहा गया कि क्या CrPC की धारा 294 के तहत परिकल्पित दस्तावेजों की सूची आरोप पत्र या शिकायत के साथ संलग्न दस्तावेजों की सूची द्वारा पर्याप्त रूप से अनुपालन की जाती है।
जस्टिस संजय धर की पीठ ने फैसला सुनाया कि न्यायालय अभियोजन पक्ष या अभियुक्त द्वारा उसके समक्ष दाखिल किए गए दस्तावेजों की सत्यता को स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है लेकिन ऐसे दस्तावेजों को प्रत्येक दस्तावेज के विवरण के लिए एक सूची में शामिल किया जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि स्पेशल ट्रायल कोर्ट ने CrPC की धारा 294 में उल्लिखित सूची के विकल्प के रूप में आरोप पत्र के साथ संलग्न दस्तावेजों की सूची को स्वीकार करने में गलती की, जिसमें दस्तावेजों के विवरण दिए गए।
न्यायालय ने कहा कि यह अनिवार्य है कि CrPC की 294 के तहत दाखिल किए गए दस्तावेजों की सूची में केवल उन दस्तावेजों के विवरण शामिल होने चाहिए, जिन्हें स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए प्रतिकूल पक्ष के समक्ष प्रस्तुत किया जाना है।
न्यायालय ने कहा कि ऐसे कई दस्तावेज हैं, जिनका उल्लेख आरोप पत्र की अनुक्रमणिका में है, जिन्हें अभियुक्त के समक्ष प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है और न ही उन्हें प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। इसलिए यह CrPC की धारा 294/BNSS की धारा 330 के तहत दस्तावेजों को दाखिल करने की प्रक्रियात्मक आवश्यकता के विकल्प के रूप में कार्य नहीं कर सकता।
न्यायालय ने सोनू उर्फ अमर बनाम हरियाणा राज्य मामले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया कि CrPC की धारा 294(1) में निहित प्रावधानों के अनुरूप दस्तावेजों की एक अलग सूची तैयार की जानी चाहिए और उक्त सूची में निहित दस्तावेजों को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए उक्त पक्ष को बुलाने से पहले प्रतिकूल पक्ष के साथ आदान-प्रदान किया जाना चाहिए।
न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 330 (2) जो CrPC की धारा 294 के समतुल्य है, जम्मू-कश्मीर सरकार ने अधिसूचना जारी की, जिसमें दस्तावेजों की सूची का प्रारूप निर्धारित किया गया, जिसका प्रावधान का अनुपालन करने के लिए पालन किया जाना है।
न्यायालय ने कहा कि उपरोक्त अधिसूचना को ध्यान में रखते हुए इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि CrPC की धारा 294 (1) के तहत विचारित दस्तावेजों की सूची आरोप पत्र/शिकायत के साथ संलग्न दस्तावेजों की सूची से भिन्न है।
न्यायालय ने स्पेशल जज से अनुरोध करते हुए याचिका का निपटारा किया कि वह शिकायतकर्ता को निर्देश दे कि वह अभियुक्त द्वारा स्वीकार किए जाने/अस्वीकार किए जाने के लिए मांगे गए दस्तावेजों की सूची सरकार द्वारा अधिसूचित निर्धारित प्रारूप में तैयार करे तथा CrPC की धारा 294 में निहित प्रावधानों के अनुसार, उक्त दस्तावेजों को स्वीकार करने/अस्वीकार करने के लिए कहने से पहले याचिकाकर्ता को इसे उपलब्ध कराए।
मामला
याचिकाकर्ताओं ने प्रधान सेशन जज द्वारा पारित आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिकाकर्ता ने धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत कथित अपराधों के लिए उनके मुकदमे के दौरान CrPC की धारा 294 के उपयोग पर आपत्ति जताई है।
स्पेशल जज ने पहले याचिकाकर्ताओं को CrPC की धारा 294 का हवाला देते हुए अभियोजन पक्ष द्वारा भरोसा किए गए दस्तावेजों को स्वीकार करने या अस्वीकार करने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह प्रावधान लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि जम्मू और कश्मीर सरकार ने धारा 294(2) के तहत आवश्यक अनिवार्य प्रपत्र निर्धारित नहीं किया और दस्तावेजों की एक अलग सूची पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
स्पेशल जज ने उनकी आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा कि दस्तावेज पहले से ही शिकायत का हिस्सा थे और याचिकाकर्ताओं के साथ साझा किए गए।
याचिकाकर्ता ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी, जिसमें हाईकोर्ट को दो प्रमुख मुद्दों पर विचार करने की आवश्यकता थी कि क्या CrPC की धारा 294 के तहत दस्तावेजों की सूची सामान्य रूप से आरोप पत्र या शिकायत के साथ संलग्न की जाने वाली सूची से भिन्न है और यदि आधिकारिक प्रपत्र सरकार द्वारा अधिसूचित नहीं किया गया है तो क्या CrPC की धारा 294 का उपयोग भी किया जा सकता है।
केस टाइटल: सुरेश कुमार रेखी बनाम प्रवर्तन निदेशालय, 2025