नए पते की जानकारी दिए बिना बटालियन छोड़ने पर अनिवार्य रिटायरमेंट वैध, नियोक्ता कर्मचारी की तलाश नहीं कर सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
Shahadat
8 April 2025 4:27 AM

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने 326 दिनों की अवधि के लिए छुट्टी के दौरान बिना अनुमति के बटालियन से लगातार अनुपस्थित रहने के कारण याचिकाकर्ता पर लगाए गए सेवा से अनिवार्य रिटायरमेंट (Compulsory Retirement) का आदेश बरकरार रखा।
याचिकाकर्ता CRPF कांस्टेबल है। उसने तर्क दिया कि प्रतिवादी नंबर 3 द्वारा जारी आदेश एकपक्षीय जांच पर आधारित है और याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया। प्राधिकारी द्वारा जो भी नोटिस भेजा गया, वह प्राप्त नहीं हो सका, क्योंकि उसने अपनी बीमारी के कारण अपना आवासीय पता बदल लिया था।
जस्टिस संजय धर की पीठ ने कहा,
"किसी नियोक्ता से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वह पूरी दुनिया में किसी फरार कर्मचारी की तलाश करे। यदि नियोक्ता किसी फरार कर्मचारी को उसके आवासीय पते पर संदेश भेज दे तो यह पर्याप्त है। वर्तमान मामले में प्रतिवादियों और जांच अधिकारी ने यही किया। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि जांच अधिकारी ने CRPF नियमों के तहत निर्धारित प्रक्रिया या प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं किया।"
अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड से पता चलता है कि नियोक्ता ने विभागीय जांच करने की प्रक्रिया का सावधानीपूर्वक पालन किया। चूंकि याचिकाकर्ता ने अधिकारियों को सूचित नहीं किया, इसलिए उनके लिए उक्त पते पर नोटिस भेजना संभव नहीं था।
अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत मेडिकल रिकॉर्ड से यह पता नहीं चलता कि वह ऐसी बीमारियों से पीड़ित था, जिसके कारण वह अधिकारियों से संपर्क नहीं कर सकता था, इस तथ्य पर विचार करते हुए कि उसका इलाज एक बाहरी मरीज के रूप में किया गया और उसे कभी अस्पताल में भर्ती नहीं कराया गया।
याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि प्रतिवादी पुनर्विचार प्राधिकारी होने के नाते सशस्त्र बल के सदस्य द्वारा पुनर्विचार आवेदन किए बिना दंड को बढ़ा नहीं सकता।
हालांकि, अदालत ने CRPF नियमों के नियम 29 पर ध्यान दिया, जिसमें यह बिल्कुल स्पष्ट था कि CRPF नियमों के नियम 29 (डी) में निहित प्रावधान, बल के सदस्य पर लगाए गए दंड की पुष्टि, वृद्धि, संशोधन या निरस्त करने के उद्देश्य से पुनर्विचार क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने के लिए इसमें उल्लिखित अधिकारियों को स्वप्रेरणा और स्वतंत्र शक्ति प्रदान करते हैं।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि सजा उसके खिलाफ लगाए गए आरोप के अनुपात में नहीं थी। हालांकि, अदालत ने नोट किया कि याचिकाकर्ता 326 दिनों की अवधि के लिए ड्यूटी से अनुपस्थित पाया गया। उसके पास अपनी छुट्टी से अधिक समय तक रहने की कोई अनुमति नहीं थी, न ही उसके खिलाफ बर्खास्तगी आदेश पारित होने तक स्थगन के दौरान उसके द्वारा अपने नियोक्ता को कोई संचार किया गया।
न्यायालय ने मेघालय राज्य बनाम मेकन सिंह एन. मारक का हवाला देते हुए उनकी बर्खास्तगी के निर्णय में हस्तक्षेप करने से इनकार किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि साबित अपराध की प्रकृति के अनुरूप दंड लगाने का विवेकाधिकार अनुशासनात्मक प्राधिकारी के पास निहित है। न्यायालय इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
केस-टाइटल: HC/GD हरीश चंदर बनाम UOI और अन्य, 2025