हाईकोर्ट
भीमा कोरेगांव मामला: बॉम्बे हाईकोर्ट ने हनी बाबू की ज़मानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा
बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर हनी बाबू की ज़मानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया।बाबू पर एल्गार परिषद भीमा कोरेगांव मामले में कथित भूमिका के लिए मामला दर्ज किया गया।जस्टिस अजय गडकरी और जस्टिस रंजीत सिंह भोंसले की खंडपीठ ने बाबू द्वारा दायर ज़मानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया।जस्टिस गडकरी ने मामले को फैसले के लिए बंद करते हुए कहा,"हमें आदेश सुनाने में कुछ समय लग सकता है।"गौरतलब है कि स्पेशल कोर्ट के आदेश के खिलाफ बाबू की प्रारंभिक अपील हाईकोर्ट ने खारिज...
NDPS Act : चार्जशीट के साथ FSL रिपोर्ट न होने से जमानत का अधिकार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण अवलोकन में कहा है कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस अधिनियम (NDPA Act) के तहत दर्ज मामलों में विशेष रूप से जब व्यावसायिक मात्रा में मादक पदार्थ बरामद हुआ हो और NDPA Act की धारा 37 के तहत जमानत पर रोक लागू होती हो तो केवल चार्जशीट के साथ फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL) रिपोर्ट संलग्न न होने के कारण आरोपी को जमानत का अधिकार नहीं मिल जाता।जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की एकल पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए आरोपी की दूसरी जमानत याचिका खारिज कर दी। यह आरोपी नवंबर 2024...
पोस्ट-ग्रेजुएट डिप्लोमा प्रोमोशन के लिए पोस्ट-ग्रेजुएट डिग्री के बराबर नहीं: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि पोस्ट-ग्रेजुएट डिप्लोमा को पोस्ट-ग्रेजुएट डिग्री के समान नहीं माना जा सकता और ऐसे में मेडिकल एजुकेशन सर्विस रूल्स के तहत असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर प्रोमोशन का दावा डिप्लोमा धारक नहीं कर सकते।जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर और जस्टिस सुशील कु्करेजा की खंडपीठ ने कहा कि 1999 के हिमाचल प्रदेश मेडिकल एजुकेशन सर्विस रूल्स में कहीं भी पोस्ट-ग्रेजुएट डिप्लोमा का उल्लेख नहीं है। नियमों में पोस्ट-ग्रेजुएशन शब्द का आशय केवल पोस्ट-ग्रेजुएट डिग्री से ही लिया जाएगा।मामले में...
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1982 के हत्याकांड में दोषसिद्धि का फैसला वापस लेने की 30 से अधिक वर्षों से फरार आरोपी की याचिका खारिज की
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में 1982 के हत्याकांड के संबंध में आरोपी (हाईकोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता) की दोषसिद्धि की पुष्टि करने वाले इस वर्ष मार्च में पारित अपने फैसले को वापस लेने की मांग वाली याचिका खारिज की।जस्टिस विवेक कुमार बिड़ला और जस्टिस प्रवीण कुमार गिरि की खंडपीठ ने कहा कि CrPC की धारा 362 के तहत इस आवेदन पर रोक है, जो आपराधिक अदालतों को लिपिकीय या अंकगणितीय त्रुटियों को ठीक करने के अलावा हस्ताक्षरित निर्णयों की समीक्षा या परिवर्तन करने से रोकती है।अदालत ने आरोपी-अपीलकर्ता के आचरण पर भी...
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 40 साल पुराने हत्या केस में आरोपी को बरी किया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1984 के चर्चित हत्या मामले में लगभग चार दशक बाद बचे हुए एकमात्र आरोपी सुरेश को बरी किया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा और घटनाक्रम में गंभीर विरोधाभास पाए गए।मामला मथुरा का है, जहां 17 सितम्बर 1984 को चरन सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। FIR में आरोप लगाया गया कि ज़मीन विवाद के चलते छह लोग जिनमें मृतक के भाई और भतीजे भी शामिल थे, हथियारों के साथ पहुंचे और गोलीबारी की। 1986 में सेशन कोर्ट ने सभी आरोपियों को उम्रकैद की सज़ा...
लिव-इन पार्टनर से भरण-पोषण का हक़ नहीं, जब उसी पर लगाया हो रेप का आरोप: जम्मू-कश्मीर-लद्दाख हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने अहम फैसले में स्पष्ट किया कि कोई महिला अपने लिव-इन पार्टनर से भरण-पोषण की मांग नहीं कर सकती यदि उसने उसी पर रेप का आरोप लगाया हो और उसे दोषी ठहराया गया हो।जस्टिस विनोद चटर्जी कौल की पीठ ने प्रिंसिपल सेशन जज कठुआ का आदेश बरकरार रखा, जिसमें मजिस्ट्रेट द्वारा महिला को दी गई अंतरिम भरण-पोषण राशि को रद्द कर दिया गया था।महिला का कहना था कि वह 10 वर्षों तक प्रतिवादी के साथ रही एक बच्चा भी हुआ और विवाह का आश्वासन दिया गया लेकिन शादी नहीं हुई। उसने दलील दी कि लंबे समय...
विवाह का अपरिवर्तनीय विघटन: पति-पत्नी का अधिकार या अदालत का विशेषाधिकार?
"एक विवाह जो सभी उद्देश्यों के लिए समाप्त हो चुका है, उसे न्यायिक निर्णय द्वारा पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता।" - नवीन कोहली बनाम नीलू कोहली (2006) 4 SCC 558, 62सुप्रीम कोर्ट का यह अवलोकन भारतीय पारिवारिक कानून में सबसे अधिक बहस वाले मुद्दों में से एक को आकार दे रहा है: क्या विवाह का अपरिवर्तनीय विघटन (आईबीएम) को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत तलाक के लिए एक वैधानिक आधार के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए, या क्या यह केवल संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत न्यायालय की असाधारण शक्ति के माध्यम से...
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखनऊ के एक पार्क में अवैध अतिक्रमण और अस्थायी मंदिरों की जांच के आदेश दिए
इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ पीठ) ने हाल ही में लखनऊ के सार्वजनिक पार्क में अनधिकृत अतिक्रमण पर कड़ी आपत्ति जताई और अधिकारियों को इस बात की जांच करने का निर्देश दिया कि उस ज़मीन पर अस्थायी मंदिर और अन्य गैर-सार्वजनिक ढांचे कैसे बनने दिए गए।जस्टिस संगीता चंद्रा और जस्टिस बृज राज सिंह की खंडपीठ ने पार्क में अवैध अतिक्रमण हटाने और असामाजिक गतिविधियों को रोकने की मांग वाली रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया।याचिकाकर्ता कॉलोनी निवासी बेबी पाल ने दलील दी कि कभी हरियाली, झूलों और मनोरंजन...
घरेलू जीवन में वैवाहिक कलह आम बात, आत्महत्या के लिए उकसाने के इरादे के बिना प्रताड़ित करने पर IPC की धारा 306 लागू नहीं होगी: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि घरेलू जीवन में वैवाहिक कलह और मतभेद आम बात है। अगर इस कारण से पति या पत्नी में से कोई आत्महत्या करता है तो यह नहीं माना जा सकता कि उनके उकसाने के कारण मृतक ने आत्महत्या की।जस्टिस समीर जैन की पीठ ने सेशन कोर्ट का आदेश रद्द करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें एक महिला और उसके माता-पिता द्वारा भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 306 के तहत अपने पति को कथित रूप से आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में दायर बरी करने की अर्जी खारिज कर दी गई।सिंगल जज ने कहा कि वैवाहिक झगड़े...
AI द्वारा दिखाया गया तिल: मतिभ्रम और बायोमेट्रिक निजता जोखिम
हाल ही में एक वायरल पोस्ट ने इंस्टाग्राम के विंटेज साड़ी ट्रेंड को हिलाकर रख दिया। एक उपयोगकर्ता ने जेमिनी के माध्यम से अपनी तस्वीर बनाई और अपनी बाईं बांह पर एक तिल देखकर चौंक गई; यह एक ऐसा विवरण था जो वास्तविक जीवन में सच था, लेकिन उसने जो मूल, पूरी बांह वाली तस्वीर अपलोड की थी, उसमें छिपा हुआ था। इस अनोखे जोड़ ने सवाल खड़े कर दिए: क्या एआई को किसी तरह "पता" था, या वह बस कुछ खास बातें गढ़ रहा था? और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि जब हम एआई टूल्स के साथ तस्वीरें साझा करते हैं, तो हमारी निजती के...
क्या हाईकोर्ट के निर्णय पूरे भारत में लागू होते हैं?
भारत एक सामान्य कानून वाला देश है और इसलिए पूर्व उदाहरण कानून के स्रोतों में से एक है। भारतीय न्यायालयों में 'स्टारे डेसिसिस' (अध्यक्ष निर्णय) का सिद्धांत सबसे अधिक प्रचलित सिद्धांत है। लेकिन भारतीय संविधान की संघीय व्यवस्था में, क्या किसी हाईकोर्ट द्वारा दिया गया निर्णय पूरे भारत में लागू होता है?संविधान के अनुच्छेद 215 के तहत, सुप्रीम कोर्ट की तरह एक हाईकोर्ट भी रिकॉर्ड न्यायालय है और उसे अपनी अवमानना के लिए दंडित करने की शक्तियां प्राप्त हैं। हाईकोर्ट और भारत कासुप्रीम कोर्ट, दोनों को...
संजीव सान्याल की भयावह अज्ञानता
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि भारतीय न्यायिक प्रणाली 'विकसित भारत' के लक्ष्य को प्राप्त करने में "सबसे बड़ी बाधा" है। अगर उन्होंने अर्थशास्त्र का गहन अध्ययन किया होता, तो उन्हें यह विचार 1789 में प्रकाशित 'नैतिक भावनाओं का सिद्धांत' नामक एक प्रसिद्ध पुस्तक में मिलता:"यदि [न्याय] को हटा दिया जाए, तो मानव समाज का विशाल ताना-बाना, वह ताना-बाना जिसे इस दुनिया में, अगर मैं कहूंतो, खड़ा करना और सहारा देना, एक पल में बिखर जाएगा।"एक स्वतंत्र...
लिखित बयान दाखिल करने की परिसीमा का प्रारंभिक बिंदु समन की तामील की तिथि: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश VIII नियम 1 के तहत लिखित बयान दाखिल करने की समय-सीमा प्रतिवादी द्वारा वकालतनामा दाखिल करने की तिथि से नहीं, बल्कि वादपत्र की प्रति के साथ समन की तामील की तिथि से शुरू होती है। अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि वादपत्र की तामील की ज़िम्मेदारी वादी की है और प्रतिवादी से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह केवल इसलिए वादपत्र की प्रति प्राप्त करने के लिए अदालत में आवेदन करे, क्योंकि वकालतनामा पहले ही दाखिल किया जा चुका है।जस्टिस...
जांच अधिकारी जांच लंबित नहीं रख सकते, फिर भी अदालत आरोपपत्र दाखिल करने का निर्देश नहीं दे सकती: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
हत्या के प्रयास के मामले में पुलिस को आरोपपत्र दाखिल करने का निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जांच अधिकारी जांच लंबित नहीं रख सकते, फिर भी अदालत आरोपपत्र दाखिल करने का निर्देश नहीं दे सकती, क्योंकि यह जांच की निगरानी करने के समान है।जस्टिस मिलिंद रमेश फड़के ने डी. वेंकटसुब्रमण्यम बनाम एम.के. मोहन कृष्णमाचारी (2009) मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा,"इस प्रकार, यह अदालत जांच की निगरानी नहीं कर सकता और आरोपपत्र दाखिल करने का...
सिर्फ़ EMI चुकाने के आधार पर पति संयुक्त संपत्ति पर अनन्य स्वामित्व का दावा नहीं कर सकता: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि पति दोनों पति-पत्नी के संयुक्त स्वामित्व वाली संपत्ति पर केवल इस आधार पर अनन्य स्वामित्व का दावा नहीं कर सकता कि उसने अकेले EMI का भुगतान किया था।जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा,"...जब संपत्ति पति-पत्नी के संयुक्त नाम पर हो तो पति को केवल इस आधार पर अनन्य स्वामित्व का दावा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती कि उसने अकेले ही खरीद मूल्य प्रदान किया था। ऐसी दलील बेनामी अधिनियम की धारा 4 का उल्लंघन करेगी, जो बेनामी संपत्ति के संबंध...
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने शिक्षिका पर हमला और जातिवादी टिप्पणी करने के आरोपी 'पत्रकारों' को अग्रिम ज़मानत देने से किया इनकार
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का वह आदेश बरकरार रखा, जिसमें अनुसूचित जाति की स्कूल शिक्षिका पर हमला करने और जातिवादी टिप्पणी करने के आरोप में पत्रकार बताए जा रहे दो लोगों को अग्रिम ज़मानत देने से इनकार कर दिया गया था।अदालत ने यह भी कहा कि शिक्षिका के संबंध में प्रकाशित समाचार लेख में उन्हें 'चिंदी चोर' यानी छोटी चोर बताया गया था। इस प्रकार, FIR से शिकायतकर्ता का अपमान करने के इरादे का अनुमान लगाया जा सकता है।जस्टिस गजेंद्र सिंह ने अपने आदेश में कहा कि FIR की विषयवस्तु अपीलकर्ताओं के खिलाफ...
पाकिस्तान के समर्थन में की गई सोशल मीडिया पोस्ट पर 'भारत की संप्रभुता को खतरे में डालने' का अपराध नहीं चलेगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि किसी अन्य देश के समर्थन में संदेश पोस्ट करने मात्र से भारत के नागरिकों में रोष या वैमनस्य पैदा हो सकता है और यह भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 196 (शत्रुता को बढ़ावा देना) के तहत दंडनीय भी हो सकता है, लेकिन यह BNS की धारा 152 (भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्य) के कड़े प्रावधानों के अंतर्गत नहीं आएगा।जस्टिस संतोष राय की पीठ ने साजिद चौधरी नामक व्यक्ति को ज़मानत देते हुए यह टिप्पणी की। साजिद पर 'पाकिस्तान ज़िंदाबाद' वाली एक फ़ेसबुक पोस्ट...
उत्तर प्रदेश जल आपूर्ति एवं सीवरेज अधिनियम की धारा 54 के अंतर्गत अपील के लिए विहित प्राधिकारी कौन है? इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य से पूछा
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य से यह स्पष्ट करने को कहा कि उत्तर प्रदेश जल आपूर्ति एवं सीवरेज अधिनियम, 1975 की धारा 54 के अंतर्गत जय संस्थान या किसी अन्य एजेंसी द्वारा अधिनियम की धारा 53 की उप-धारा (2) के अंतर्गत पारित मूल्यांकन आदेश के विरुद्ध अपील का निर्णय करने हेतु विहित प्राधिकारी कौन है?याचिकाकर्ता हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट डिवीजन, चकेरी, कानपुर, अत्याधुनिक विमानों और अन्य रक्षा उपकरणों एवं सेवाओं के निर्माण, मरम्मत और ओवरहालिंग में लगा हुआ है। भारत में रक्षा...
दिल्ली हाईकोर्ट ने श्री श्री रविशंकर के व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा की, डीपफेक और मॉर्फ्ड सामग्री पर रोक लगाई
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में "द आर्ट ऑफ़ लिविंग" फाउंडेशन के संस्थापक श्री श्री रविशंकर के व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा हेतु जॉन डो आदेश पारित किया।जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा ने जॉन डो (अज्ञात संस्थाओं) को श्री श्री रविशंकर के व्यक्तित्व और उनके नाम, आवाज़, इमेज, समानता, भाषण और प्रस्तुति की अनूठी शैली या उनकी पहचान से जुड़ी किसी भी अन्य विशेषता का उनकी सहमति के बिना किसी भी व्यावसायिक या व्यक्तिगत लाभ के लिए उपयोग करने से रोक दिया।यह निर्देश सभी प्रारूपों और सभी माध्यमों पर लागू होता है,...
स्टूडेंट आत्महत्याएं मामले में राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य और केंद्र से मेंटल हेल्थकेयर के लिए उठाए गए कदमों पर जानकारी मांगी
राजस्थान हाईकोर्ट ने केंद्र, राज्य, यूनिवर्सिटी अनुदान आयोग (UGC) और CBI को मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता उपलब्ध कराने और सभी स्तरों पर मनोवैज्ञानिक रखरखाव और मानसिक स्वास्थ्य विषय को पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी देने का निर्देश दिया।एक्टिंग चीफ जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस संजीत पुरोहित की खंडपीठ याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 10 से 30 वर्ष की आयु के स्टूडेंट्स में आत्महत्या की प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला गया। याचिका में दावा किया गया कि इसके बावजूद, शैक्षणिक...

















