हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

12 Jun 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (6 जून, 2022 से 10 जून, 2022 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    एक बार जब मजिस्ट्रेट अपराधों का संज्ञान ले लेता है तो वह अपने स्वयं के आदेश पर पुनर्विचार और धारा/ओं को छोड़/वापस नहीं ले सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि एक बार जब मजिस्ट्रेट ने कुछ धाराओं/अपराधों के तहत अपराधों का संज्ञान लिया है तो उसे संज्ञान आदेश से धारा/ओं को हटाने के अपने आदेश की समीक्षा करने की कोई शक्ति नहीं है।

    जस्टिस राजबीर सिंह की खंडपीठ ने यह टिप्‍पणी की। उन्होंने मजिस्ट्रेट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें आरोप पत्र (जिस पर मजिस्ट्रेट ने पहले संज्ञान लिया था) के एक अपराध संबंध में संज्ञान आदेश को वापस लेने के लिए आरोपी/याचिकाकर्ता द्वारा दायर एक आवेदन को खारिज कर दिया गया था।

    केस टाइटल - जगवीर बनाम यूपी राज्य और एक और CRIMINAL MISC. WRIT PETITION No. - 718 of 2006]]

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    कम मात्रा में प्रतिबंधित पदार्थ के मामले में जमानत पर एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 के कठोर प्रतिबंध लागू नहीं होते : गुजरात हाईकोर्ट ने दोहराया

    गुजरात हाईकोर्ट ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (एनडीपीएस एक्ट), 1985 के तहत आरोपी को जमानत दे दी। कोर्ट ने यह देखते हुए जमानत दी कि अधिनियम की धारा 37 के तहत जमानत के कठोर प्रावधान मामले में लागू नहीं होते है, इसलिए नियमित जमानत की अनुमति दी जा सकती है।

    एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 में प्रावधान है कि अधिनियम के तहत वाणिज्यिक मात्रा से जुड़े अपराधों के आरोपी व्यक्तियों को तब तक जमानत पर रिहा नहीं किया जाएगा जब तक कि न्यायालय संतुष्ट न हो कि आरोपी दोषी नहीं है और उसके जमानत पर रहते हुए कोई अपराध करने की संभावना नहीं है। हालांकि, गैर-व्यावसायिक मात्रा के लिए प्रावधान के तहत जमानत देने के लिए ऐसी कोई रोक नहीं है।

    केस टाइटल: महेंद्रभाई मंगलभाई बोदत बनाम गुजरात राज्य

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    मोटर दुर्घटना | एक दावेदार जिसे उसके बीमाकर्ता ने मुआवजा दिया हो, वह दुर्घटनाकारी वाहन के बीमाकर्ता से उसी नुकसान के लिए मुआवजा पाने का हकदार नहींः केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि मोटर दुर्घटना के मामलों में, एक दावेदार जिसे उसके बीमाकर्ता ने मुआवजा दिया हो, वह दुर्घटनाकारी वाहन (Offending Vehicle) के मालिक या बीमाकर्ता से उसी नुकसान के लिए फिर से कोई मुआवजा पाने का हकदार नहीं है।

    जस्टिस ए बदरुद्दीन ने इकोनॉमिक ट्रांसपोर्ट ऑर्गनाइजेशन बनाम चरण स्पिनिंग मिल्स (प्राइवेट) लिमिटेड में यह पाया कि सुप्रीम कोर्ट ने यह माना था कि बीमा का कानून क्षतिपूर्ति के सिद्धांत के न्यायासंगत परिणाम को मान्यता देता है, जब बीमाकर्ता ने बीमाधारक की क्षतिपूर्ति प्रदान की हो तो गलती करने वाले के खिलाफ बीमाधारक के अधिकार और उपचार बीमाकर्ता को ट्रांसफर हो जाते हैं।

    केस टाइटल: एंटनी बनाम वीके सुरेश व अन्य।

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    समाचार प्रसारित करने में लगे न्यूज पेपर या एजेंसी को सार्वजनिक कार्य करने के रूप में नहीं देखा जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कहा है कि समाचार के प्रसार में लगे समाचार पत्र या एजेंसी को सार्वजनिक कार्य के रूप में नहीं देखा जा सकता है।

    जस्टिस यशवंत वर्मा ने प्रकाश सिंह नाम के एक व्यक्ति द्वारा दायर एक रिट याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उनके खिलाफ एक फ्रांसीसी निजी अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी एजेंस फ्रांस-प्रेसे के खिलाफ नस्लीय भेदभाव और उत्पीड़न के आरोप लगाए गए थे। कोर्ट ने याचिका को सुनवाई योग्य नहीं होने के कारण खारिज कर दिया।

    केस टाइटल: प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ एंड अन्य।

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    जिसे कोर्ट ने रद्द कर दिया है, म्‍यूनिसिपल अथॉरिटी उस ब्लैकलिस्टिंग रिजोल्यूशन पर भी भरोसा कर सकती, बशर्ते कि अंतिम आदेश में उसे जस्टिफाई किया गया हो: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने एक रोड कॉन्ट्रेक्टर के खिलाफ पारित अपने ही एक ब्लैकलिस्टिंग आदेश पर भरोसा करने की अनुमति वड़ोदरा नगर निगम को दी है, जबकि उस आदेश को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप न पाते हुए खारिज कर दिया था। मामले में हाईकोर्ट ने तीन वर्क ऑर्डर के संबंध में कॉन्ट्रेक्टर को नोटिस जारी किया था।

    हालांकि, चीफ जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष जे शास्त्री की खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि मामले में अंतिम आदेश पारित करते हुए निगम को इसे उचित ठहराना होगा।

    केस टाइटल: दिव्या सिमंधर कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड बनाम वडोदरा नगर निगम

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    अदालत अभियोजन पक्ष को साक्ष्य अधिनियम की धारा 65-B(4) के तहत ट्रायल शुरू होने के बाद के चरण में भी प्रमाण पत्र पेश करने की अनुमति दे सकती है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के पास अभियोजन पक्ष को मुकदमे के दौरान भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65-बी (4) के तहत प्रमाण पत्र पेश करने की अनुमति देने की शक्ति है।

    जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ ने उक्त टिप्पणी करते हुए ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिस आदेश में अभियोजन पक्षा द्वारा सीआरपीसी की धारा 311 के तहत दायर आवेदन को भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 65-बी के तहत रिकॉर्ड पर दो प्रमाण पत्र पेश करने की अनुमति दी गई थी, क्योंकि आरोप पत्र के दौरान उक्त सामग्री को दायर नहीं किया गया था।

    केस टाइटल- श्याम सुंदर प्रसाद बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो लखनऊ [आपराधिक संशोधन संख्या - 2022 का 588]

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    सीपीसी | विवाद से संबंधित मुद्दों को सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय जांच आयोग का गठन नहीं किया जा सकता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को फैसला सुनाया कि स्थानीय निरीक्षण के लिए आयोग का गठन केवल अदालत द्वारा उन मामलों को सुनिश्चित करने के लिए किया जा सकता है, जो विवाद में शामिल मुद्दों को स्पष्ट करने के लिए आवश्यक हैं।

    जस्टिस ए. बदरुद्दीन ने कहा कि विवाद से अप्रासंगिक मुद्दों को सुनिश्चित करने के लिए आयोग की नियुक्ति मामले को लंबा खींचने के इरादे से अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और इस तरह की प्रथाओं पर अच्छी तरह से अंकुश लगाया जाना चाहिए।

    केस टाइटल: के.एम. अब्दुल जलील बनाम थज़े इरावत राबिया और अन्य।

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    मोटर वाहनों में हाई-पावर ऑडियो सिस्टम, डीजे एलईडी लाइट्स, मल्टी-टोन हॉर्न के उपयोग की कानूनी रूप से अनुमति नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि मोटर गाड़ियों में बूस्टर, पावर एम्पलीफायर, स्पीकर और सब-वूफर लगे हाई पॉवर ऑडियो सिस्टम के उपयोग की कानूनी रूप से अनुमति नहीं है।

    जस्टिस अनिल के नरेंद्रन और जस्टिस पीजी अजितकुमार की खंडपीठ ने कहा कि कई हजार वाट पीएमपीओ (पीक म्यूजिक पावर आउटपुट) की रेटिंग वाले ऐसे ऑडियो सिस्टमों से पैदा आवाज न केवल चालक और यात्रियों की सुनने की क्षमता को खराब करेगी बल्कि अन्य ड्राइवरों और सड़क पर चलने वालों का ध्यान भटकाने का कारण भी बनेगी।

    केस टाइटल: स्वतः संज्ञान बनाम केरल राज्य और अन्य।

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    कोर्ट ट्रायल के दौरान मौखिक साक्ष्य पर आपत्तियों को नोट कर सकता है, फैसला सुनाते समय उसकी स्वीकार्यता तय की जानी चाहिए, परीक्षा के समय नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि अंतिम फैसला सुनाते समय सबूतों को शामिल किया जाना है या विचार से बाहर रखा जाना है, इस सवाल को अंत में लिया जाना है न कि परीक्षा के समय।

    जस्टिस जसमीत सिंह ने कहा कि जहां अदालत को पता चलता है कि बचाव पक्ष द्वारा रखा गया कोई भी प्रश्न अस्वीकार्य है या प्रासंगिक नहीं है, उसे अपना अवलोकन दर्ज करना चाहिए और उसके बाद गवाह को प्रश्न का उत्तर देने की अनुमति देनी चाहिए।

    केस टाइटल: दुष्यंत कुमार बनाम सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन

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    एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज करने में देरी को माफ करने से पहले कोर्ट को आरोपी को नोटिस देना चाहिए : त्रिपुरा हाईकोर्ट

    त्रिपुरा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स (एनआई) अधिनियम की धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज करने में देरी को माफ करने से पहले एक अदालत को आरोपी को नोटिस जारी करने और उसकी सुनवाई करने की आवश्यकता है।

    जस्टिस अरिंदम लोध की पीठ ने कहा, "... एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत यदि वैधानिक अवधि की समाप्ति के बाद मूल शिकायत दर्ज की जाती है तो ऐसे मामलों में देरी को माफ करने से पहले एनआई अधिनियम की धारा 142 (बी) के प्रावधान के अनुसार आरोपी को देरी के लिए आवेदन की एक प्रति के साथ नोटिस दिया जाएगा।"

    केस टाइटल- सुमित देब बनाम जॉय देब और अन्य

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    अगर ट्रायल खत्म होने में देरी हो रही हो तो वाणिज्यिक मात्रा वाले मामलों में भी एनडीपीएस एक्ट की धारा 37 की कठोरता में छूट दी जा सकती हैः पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि ट्रायल की समाप्‍ति देरी के कारण नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट की धारा 37 की कठोरता में एक हद तक छूट दी जा सकती है और इसके बावजूद की आरोपी के पास वाणिज्यिक मात्रा में प्रतिबंधित सामग्री पाई थी, उसकी जमानत की प्रार्थना पर विचार किया जा सकता है।

    उल्लेखनीय है कि धारा 37 अधिनियम की धारा 19 या धारा 24 या धारा 27ए के तहत अपराध के मामले में वाणिज्यिक मात्रा से जुड़े अपराधों में आरोपियों को जमानत देने से रोकती है।

    केस शीर्षक: घनसो @ कालो बनाम पंजाब राज्य

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    मजिस्ट्रेट को धारा 133 सीआरपीसी के तहत आदेश पारित करने से पहले कथित "उपद्रव" के बारे में पार्टी को सुनवाई का मौका देना होगा, और अपनी संतुष्टि दर्ज करनी होगी: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि सार्वजनिक उपद्रव को रोकने के लिए सीआरपीसी की धारा 133, 138 और 139 के तहत शक्ति का प्रयोग पार्टियों को पर्याप्त अवसर देकर किया जाना चा‌हिए। साथ ही इस कानूनी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए सबूत दर्ज होना चा‌हिए कि जिस व्यक्ति की कार्रवाई हुई, उसने सार्वजनिक उपद्रव किया था।

    जस्टिस वी श्रीशानंद की पीठ ने अच्युत डी. नायक और अन्य की ओर से दायर याचिका को स्वीकार करते हुए यह टिप्‍पणी की, जिन्होंने सब डी‌विजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी थी। एसडीएम ने सार्वजनिक उपद्रव के आधार पर पोल्ट्री फार्म को बंद करने का निर्देश दिया था। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने इस आदेश की पुष्टि की।

    केस टाइटल: अच्युत डी नायक और अन्य बनाम सब-डीविजनल मजिस्ट्रेट और अन्‍य।

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    सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत मजिस्ट्रेट मानहानि की शिकायत की जांच के लिए पुलिस को नहीं भेज सकते, भले ही अन्य अपराध भी आरोपित हों: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के तहत दंडनीय अपराधों से संबंधित शिकायत पर दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 156 (3) के तहत एक मजिस्ट्रेट पर सीआरपीसी की धारा 199 के तहत प्रतिबंध लागू होगा।

    यहां तक कि उन मामलों में भी जहां अपराध आईपीसी की धारा 500 के अलावा अन्य अपराधों के लिए आरोपित हैं। धारा 199 यह निर्धारित करती है कि अपराध से पीड़ित किसी व्यक्ति द्वारा की गई "शिकायत" को छोड़कर कोई भी कोर्ट आईपीसी के अध्याय XXI (मानहानि) के तहत दंडनीय अपराध का संज्ञान नहीं लेगा।

    केस टाइटल: दिव्या एंड अन्य बनाम कर्नाटक एंड अन्य राज्य

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    एनडीपीएस अधिनियम : आरोपी को पकड़ने से पहले राजपत्रित अधिकारी को अवैध ड्रग्स के बारे में गुप्त टिप देना अभियोजन पक्ष की कहानी पर संदेह करने का कारण नहीं : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में एनडीपीएस मामले में अभियोजन पक्ष की कहानी पर संदेह करने से इनकार कर दिया। बचाव पक्ष ने अभियोजन पक्ष के मामले पर केवल इस आधार पर संदेह व्यक्त किया था कि कथित गुप्त जानकारी जिसके आधार पर आरोपी को पकड़ा गया था, उसकी गिरफ्तारी से पहले ही वह गुप्त जानकारी एक राजपत्रित अधिकारी (Gazetted Officer) से साझा की गई। बचाव पक्ष के इस संदेह को अदालत ने मानने से इनकार कर दिया।

    केस टाइटल : जसविंदर सिंह @ जस बनाम पंजाब राज्य

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    आरपीआई मामले तीन लाख रुपये की सीमा से कम होने पर पहले जिला न्यायाधीश (वाणिज्यिक) के समक्ष सूचीबद्ध किए जाएंगे, जिससे यह पता लगे कि कहीं जानबूझकर तो मूल्यांकन कम नहीं किया : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual property rights) के ऐसे मामले जो तीन लाख रुपए से कम के दावे के अंतर्गत आते हों, ऐसे वादों को पहले जिला न्यायाधीश (वाणिज्यिक) के समक्ष सूचीबद्ध किया जाएगा ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि कहीं मूल्यांकन मनमाने ढंग से तो नहीं किया गया है या जानबूझकर इसका मूल्यांकन कम तो नहीं आंका गया है।

    केस टाइटल: विशाल पाइप्स लिमिटेड बनाम भव्य पाइप उद्योग

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    अगर धारा 173(2) सीआरपीसी के तहत जांच पूरी न होने के कारण चार्जशीट फाइनल नहीं हुई तो अभियुक्त धारा 167(2) सीआरपीसी के तहत वैधानिक जमानत का हकदारः तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्र‌िंग एक्ट, (पीएमएलए) 2002 के तहत एक आरोपी सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत वैधानिक जमानत का हकदार है, बशर्ते जांच पूरी किए बिना धारा 173 (2) सीआरपीसी के तहत आरोप पत्र जमा न किया गया हो। ज‌स्टिस के लक्ष्मण ने कहा, "कोर्ट मानता है कि 19 मार्च 2022 की शिकायत अंतिम शिकायत नहीं थी, जिसके आधार पर संज्ञान लिया जा सकता था।

    केस टाइटल: सी. पार्थसारथी बनाम प्रवर्तन निदेशक

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    सीआरपीसी की धारा 102(3)- 'मजिस्ट्रेट को बैंक अकाउंट की जब्ती की सूचना न देना जब्ती को अवैध नहीं बनाता': इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पाया कि मजिस्ट्रेट को बैंक अकाउंट की जब्ती (सीआरपीसी की धारा 102 के तहत पुलिस द्वारा जब्त) की सूचना न देना जब्ती को अवैध नहीं बनाता है। जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सरोज यादव की खंडपीठ ने इस प्रकार देखा क्योंकि यह अमित सिंह बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य 2022 लाइव लॉ (एबी) 207 के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर भरोसा जताया और सहमत था।

    केस टाइटल - मैसर्स एसजेएस गोल्ड प्राइवेट लिमिटेड के माध्यम से निर्देशक सुनील जयहिंद सालुंखे और एक अन्य बनाम स्टेट ऑफ यूपी और अन्य

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    ट्रायल कोर्ट को केवल पक्षकारों के मौलिक अधिकारों को स्वीकार करने वाले वकील द्वारा दायर मेमो पर डिक्री/आदेश पारित नहीं करना चाहिए: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि निचली अदालतों को पार्टी के वकील की ओर से दायर मेमो पर कार्रवाई करने से बचना चाहिए। जस्टिस एन शेषसायी ने कहा कि हालांकि पक्षकारों के वकील की ओर से दायर मेमो पर विचार करने पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं है, लेकिन इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि मेमो और परिणामी आदेश का पक्षकारों के अधिकारों पर क्या प्रभाव पड़ेगा। अदालत ने यह भी कहा कि यद्यपि वकील वकालतनामा के माध्यम से अपने मुवक्किल की ओर से कार्य करने के लिए अधिकृत है, उसे समझौता करने के लिए एक स्पष्ट अधिकार दिया जाना चाहिए और उसे निहित नहीं किया जा सकता है।

    केस टाइटल: अब्दुल रशीद साहिब बनाम रामचंद्रन और अन्य

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