अदालत अभियोजन पक्ष को साक्ष्य अधिनियम की धारा 65-B(4) के तहत ट्रायल शुरू होने के बाद के चरण में भी प्रमाण पत्र पेश करने की अनुमति दे सकती है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Shahadat

9 Jun 2022 8:57 AM GMT

  • अदालत अभियोजन पक्ष को साक्ष्य अधिनियम की धारा 65-B(4) के तहत ट्रायल शुरू होने के बाद के चरण में भी प्रमाण पत्र पेश करने की अनुमति दे सकती है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के पास अभियोजन पक्ष को मुकदमे के दौरान भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65-बी (4) के तहत प्रमाण पत्र पेश करने की अनुमति देने की शक्ति है।

    जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ ने उक्त टिप्पणी करते हुए ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिस आदेश में अभियोजन पक्षा द्वारा सीआरपीसी की धारा 311 के तहत दायर आवेदन को भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 65-बी के तहत रिकॉर्ड पर दो प्रमाण पत्र पेश करने की अनुमति दी गई थी, क्योंकि आरोप पत्र के दौरान उक्त सामग्री को दायर नहीं किया गया था।

    उल्लेखनीय है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65बी(4) में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के प्रमुख माध्यमिक साक्ष्य के लिए प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। इस प्रावधान का उद्देश्य कंप्यूटर द्वारा उत्पन्न इलेक्ट्रॉनिक रूप में द्वितीयक साक्ष्य को स्पष्ट (Sanctify) करना है।

    संक्षेप में मामला

    श्याम सुंदर प्रसाद (याचिकाकर्ता) पंजाब नेशनल बैंक के शाखा प्रबंधक के रूप में कार्यरत है। आरोप है कि उन्होंने खाते को डीफ्रीज करने के लिए शिकायतकर्ता से 80,000/- रुपये की रिश्वत मांगी। इस संबंध में शिकायतकर्ता की ओर से शिकायत की गई थी।

    शिकायत के सत्यापन के दौरान, 25-04-2014 को जब शिकायतकर्ता ने मुलाकात की और आरोपी संशोधनकर्ता से रिश्वत की राशि कम करने को कहा तो वह 50,000/- रुपये की रिश्वत चेक से स्वीकार करने के लिए सहमत हो गया। इस बातचीत को रिकॉर्ड किया गया।

    इसेक बाद जाल बिछाया गया और आरोपी याचिकाकर्ता को मार्क रिश्वत के चेक के साथ रंगे हाथों पकड़ा गया। रिश्वत चेक के लेन-देन के दौरान आरोपी याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता के बीच बातचीत को रिकॉर्ड किया गया और उसे खाली कॉम्पैक्ट डिस्क में स्थानांतरित कर दिया गया।

    सीबीआई अपराध की जांच के बाद, 2014 में आरोपी याचिकाकर्ता के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(1)(डी) सपठित धारा 7 और 13 (2) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आरोप पत्र दायर किया। हालांकि, सीबीआई धारा 65-बी (4) के तहत उचित प्रारूप में प्रमाण पत्र दाखिल नहीं किया।

    2021 में भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 65-बी और सीआरपीसी की धारा 311 के तहत दो प्रमाण पत्र (शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच बातचीत वाली कॉम्पैक्ट डिस्क के संबंध में) को रिकॉर्ड में लाने के लिए आवेदन दायर किया गया था।

    अदालत ने आवेदन की अनुमति दी, इसलिए, वह आदेश से असंतुष्ट है। इसके बाद आरोपी याचिकाकर्ता ने विशेष न्यायाधीश, सीबीआई के आदेश को चुनौती देते हुए वर्तमान पुनर्विचार याचिका के साथ हाईकोर्ट का रुख किया।

    आरोपी का तर्क है कि देर से प्रमाण पत्र दाखिल करने का कोई कारण नहीं बताया गया, क्योंकि आरोप पत्र वर्ष 2014 में ही दाखिल किया गया, लेकिन प्रमाण पत्र वर्ष 2021 के हैं।

    मुख्य रूप से यह तर्क दिया गया कि जब सीबीआई द्वारा प्रमाण पत्र जारी किए जा रहे हैं। स्वयं अधिकारी इस विलम्बित चरण में प्रमाण-पत्रों को स्वीकार करना और आवेदन को गवाहों को वापस बुलाने की अनुमति देना, अभियुक्तों के विचारण पर अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    कोर्ट ने अर्जुन पंडित राव खोतकर बनाम कैलाश कुषाणराव गोरंट्याल और अन्य (2020) 7 एससीसी 1 के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह माना गया कि अधिनियम की धारा 65-बी (4) में प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने के चरण का उल्लेख नहीं है।

    इसे देखते हुए हाईकोर्ट ने इस प्रकार कहा:

    "... इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड/दस्तावेज की स्वीकार्यता के लिए धारा 65-बी(4) साक्ष्य में दर्ज करने के लिए अनिवार्य है। जब उचित प्रमाण पत्र के बिना सबूत में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड पेश किया जाता है तो ट्रायल कोर्ट को संदर्भित व्यक्ति/व्यक्तियों को समन करना चाहिए। भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65-बी (4) के तहत यह आवश्यक है कि ऐसा प्रमाण पत्र ऐसे व्यक्ति/व्यक्तियों द्वारा दिया जाए… उपयुक्त मामलों में निचली अदालत मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर सीआरपीसी की धारा 91 या धारा 311 या भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के तहत अपने विवेक का प्रयोग कर सकती है। अभियोजन पक्ष को बाद में भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65-बी के तहत प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने की अनुमति दे सकता है। आरोपी के संबंध में एक वही मामला होगा, जो अपने बचाव के हिस्से के रूप में अपेक्षित प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना चाहता है।"

    मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने पाया कि दो कॉम्पैक्ट डिस्क पहले ही आरोपी-याचिकाकर्ता को आपूर्ति की जा चुकी हैं और साबित करने के लिए और सीआरपीसी की धारा 311 के तहत आवेदन की अनुमति देकर भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65-बी के तहत केवल प्रमाण पत्र पेश करने की अनुमति दी गई है।

    अदालत ने आगे कहा कि आवेदन की अनुमति देकर आरोपी-संशोधनवादी को इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के संबंध में प्रमाण पत्र पेश करके किसी भी तरह से पूर्वाग्रह नहीं किया गया है। इसलिए, अदालत ने वर्तमान पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी।

    केस टाइटल- श्याम सुंदर प्रसाद बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो लखनऊ [आपराधिक संशोधन संख्या - 2022 का 588]

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एबी) 280

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