अगर धारा 173(2) सीआरपीसी के तहत जांच पूरी न होने के कारण चार्जशीट फाइनल नहीं हुई तो अभियुक्त धारा 167(2) सीआरपीसी के तहत वैधानिक जमानत का हकदारः तेलंगाना हाईकोर्ट

Avanish Pathak

6 Jun 2022 12:41 PM IST

  • अगर धारा 173(2) सीआरपीसी के तहत जांच पूरी न होने के कारण चार्जशीट फाइनल नहीं हुई तो अभियुक्त धारा 167(2) सीआरपीसी के तहत वैधानिक जमानत का हकदारः तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्र‌िंग एक्ट, (पीएमएलए) 2002 के तहत एक आरोपी सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत वैधानिक जमानत का हकदार है, बशर्ते जांच पूरी किए बिना धारा 173 (2) सीआरपीसी के तहत आरोप पत्र जमा न किया गया हो।

    ज‌स्टिस के लक्ष्मण ने कहा,

    "कोर्ट मानता है कि 19 मार्च 2022 की शिकायत अंतिम शिकायत नहीं थी, जिसके आधार पर संज्ञान लिया जा सकता था।

    एक शिकायत/रिपोर्ट को अंतिम रिपोर्ट नहीं माना जा सकता, जब तक कि जांच पूरी नहीं हो जाती। मौजूदा मामले में जांच पूरी नहीं हुई है और साठ दिनों की वैधानिक अवधि 21 मार्च 2022 को समाप्त हो गई है। इसलिए, पूरी जांच और अंतिम शिकायत की अनुपस्थिति में, याचिकाकर्ता धारा 167 (2) सीआरपीसी के तहत वैधानिक जमानत का हकदार है।"

    तथ्य

    याचिकाकर्ता मेसर्स कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग लिमिटेड (केएसबीएल) के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक हैं। प्रतिवादी अथारिटी ने केएसबीएल के खिलाफ पीएमएलए, 2002 के तहत मनी लॉन्ड्रिंग का अपराध दर्ज किया था। केएसबीएल और याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप था कि उन्होंने शेल कंपनियों के माध्यम से बड़े पैमाने पर ग्राहकों के फंड का डायवर्जन किया था, जिसके कारण निवेशकों को भारी नुकसान हुआ।

    याचिकाकर्ता के खिलाफ कई एफआईआर दर्ज की गईं थी। गिरफ्तारी के बाद 20 जनवरी 2022 को उसे मेट्रोपॉलिटन सेसन्स जज कम स्पेशल कोर्ट (डेजिग्नेटेड कोर्ट) के समक्ष पेश किया गया और उसी दिन उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

    याचिकाकर्ता के अनुसार, उसके खिलाफ आरोपित अपराध में कम से कम 10 वर्ष, मृत्यु, आजीवन कारावास जैसी सजाओं का दंड नहीं हैं। चूंकि जांच 60 दिनों के भीतर पूरी नहीं हुई है, इसलिए, वह सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत वैधानिक जमानत का हकदार है।

    याचिकाकर्ता के अनुसार 60 दिनों की अवधि 21 मार्च 2022 को समाप्त हो गई। इसलिए उन्होंने डिफॉल्ट जमानत के लिए अर्जी दाखिल की। लेकिन उस आवेदन को खारिज कर दिया गया क्योंकि प्रतिवादी ने 19 मार्च 2022 को शिकायत/आरोप पत्र दायर किया था।

    हालांकि, 31 मार्च 2022 को, प्रतिवादी ने धारा 167 के तहत एक अन्य आवेदन दायर कर रिमांड बढ़ाने की मांग की थी। उस आवेदन को स्वीकार कर लिया गया और याचिकाकर्ता की हिरासत 13 अप्रैल 2022 तक बढ़ा दी गई।

    इसके बाद, 13 अप्रैल 2022 को प्रतिवादी द्वारा रिमांड के विस्तार की मांग करते हुए एक अन्य आवेदन दायर किया गया था। रिमांड 27 अप्रैल 2022 तक बढ़ा दिया गया था।

    दलील

    याचिकाकर्ताः याचिकाकर्ता की ओर से पेश अविनाश देसाई की ओर से पेश सीनियर काउंसल टी निरंजन रेड्डी ने दलील दिया कि अंतरिम रिपोर्ट की प्रकृति की एक शिकायत केवल 19 मार्च 2022 को दर्ज की गई थी और धारा 173 (2) सीआरपीसी के संदर्भ में कोई शिकायत/आरोप पत्र दायर नहीं किया गया था, जिससे स्पष्ट है कि जांच पूरी नहीं हुई थी। इसलिए, जांच पूरी नहीं होने पर याचिकाकर्ता सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत वैधानिक जमानत का हकदार है।

    प्रतिवादीः प्रतिवादी के लिए प्रवर्तन निदेशालय के विशेष लोक अभियोजक अनिल प्रसाद तिवारी ने कहा कि 19 मार्च 2022 को पहले ही एक शिकायत / आरोप पत्र दायर किया जा चुका है। इसलिए चार्जशीट दाखिल होने के बाद सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत वैधानिक जमानत का दावा नहीं किया जा सकता है।

    रिमांड को सीआरपीसी की धारा 309 के तहत बढ़ा दिया गया था और प्रतिवादी पीएमएलए की धारा 44 (2) के तहत आगे की जांच पूरी करने के लिए याचिकाकर्ता की हिरासत की मांग कर सकता है।

    मुद्दा

    मुद्दा यह था कि क्या याचिकाकर्ता सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत वैधानिक जमानत का हकदार है।

    निष्कर्ष

    जस्टिस के लक्ष्मण ने कई निर्णयों पर भरोसा किया और कहा कि सीआरपीसी की धारा 167 (2) जांच एजेंसियों को समयबद्ध तरीके से जांच पूरी करने के लिए बाध्य करती है।

    उन्होंने कहा, एम रवींद्रन बनाम खुफिया अधिकारी, राजस्व खुफिया निदेशालय (2021) में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया था कि जांच पूरी करने के लिए एक समय सीमा शामिल की गई है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आरोपी जांच जांच पूरी करने में जांच अधिकारी की विफलता के कारण जेल में बंद न हो।

    उन्होंने कहा,

    "धारा 167 (2) का स्पष्ट आदेश है कि जांच एजेंसी को निर्धारित समयावधि के भीतर आवश्यक साक्ष्य एकत्र करना चाहिए, जिस न कर पाने पर आरोपी को हिरासत में नहीं रखा जा सकता है। यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि जांच अधिकारियों को भविष्य में रिमांड की संभावनाओं का दुरुपयोग किए बिना तेजी और कुशलता से जांच पूरी करें।"

    कोर्ट ने सत्य नारायण मुसादी बनाम बिहार राज्य (1980) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें सीआरपीसी की धारा 173 (2) पर चर्चा यह मानने के लिए की गई थी कि जांच पूरी होने के बाद ही आरोप पत्र दायर किया जा सकता है।

    इस प्रकार, यह स्पष्ट था कि जांच पूरी होने के बाद ही आरोप पत्र दायर किया जा सकता है। जांच पूरी होना तब कहा जाता है, जब जांच अधिकारी पर्याप्त सामग्री जुटा लेता है, जिसके आधार पर सीआरपीसी की धारा 167 के तहत संज्ञान लिया जा सकता है।

    इस मामले में, यदि शिकायत 19 मार्च 2022 को जांच पूरी होने के बाद दायर की गई थी तो नामित न्यायालय ने अपराध का संज्ञान लिया होगा। जब शिकायत 19 मार्च 2022 पहले ही दर्ज की गई थी, तब अपराध का संज्ञान नहीं लेना यह दर्शाता है कि जांच अधूरी है। इसलिए 19 मार्च 2022 की शिकायत पर विचार नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस के लक्ष्मण ने दोहराया कि 19 मार्च 2022 की शिकायत अंतिम शिकायत नहीं थी। इसलिए, याचिकाकर्ता धारा 167(2) के तहत वैधानिक जमानत का हकदार था।

    याचिकाकर्ता को सीआरपीसी की धारा 309 के तहत रिमांड पर नहीं लिया जा सकता है क्योंकि यह अपराध का संज्ञान लेने के बाद ही लागू होता है। इस प्रकार, आपराधिक याचिका की अनुमति दी गई और यह माना गया कि याचिकाकर्ता सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत वैधानिक जमानत का हकदार था।

    केस टाइटल: सी. पार्थसारथी बनाम प्रवर्तन निदेशक

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