अगर ट्रायल खत्म होने में देरी हो रही हो तो वाणिज्यिक मात्रा वाले मामलों में भी एनडीपीएस एक्ट की धारा 37 की कठोरता में छूट दी जा सकती हैः पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

Avanish Pathak

7 Jun 2022 3:01 PM IST

  • P&H High Court Dismisses Protection Plea Of Married Woman Residing With Another Man

    Punjab & Haryana High Court

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि ट्रायल की समाप्‍ति देरी के कारण नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट की धारा 37 की कठोरता में एक हद तक छूट दी जा सकती है और इसके बावजूद की आरोपी के पास वाणिज्यिक मात्रा में प्रतिबंधित सामग्री पाई थी, उसकी जमानत की प्रार्थना पर विचार किया जा सकता है।

    उल्लेखनीय है कि धारा 37 अधिनियम की धारा 19 या धारा 24 या धारा 27ए के तहत अपराध के मामले में वाणिज्यिक मात्रा से जुड़े अपराधों में आरोपियों को जमानत देने से रोकती है।

    मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता-आरोपी उस कार की मालिक थी, जिससे 500 ग्राम हेरोइन बरामद हुई थी। वह अगस्त 2019 से हिरासत में थी और अब तक 32 गवाहों में से केवल तीन से ही पूछताछ की गई थी।

    यह भी तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता की उम्र 37 वर्ष है और उसके पति की पहले ही मृत्यु हो चुकी है, जिसके कारण उस पर अपने छोटे बच्चों की देखभाल का भार है।

    पीठ ने कहा,

    "इसलिए, एनडीपीएस एक्ट की धारा 37 की कठोरता में एक हद तक ढील दी जा सकती है और जमानत देने के लिए आरोपी की प्रार्थना पर विचार किया जा सकता है, इस तथ्य के बावजूद कि उसके पास वाणिज्यिक मात्रा में प्रतिबंधित पदार्थ पाए गए हैं।"

    पीठ में जस्टिस जसजीत सिंह बेदी शामिल थे।

    पीठ ने चित्त बिस्वास @ सुभाष बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, अमित सिंह मोनी बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य और विपन सूद बनाम पंजाब राज्य और अन्य, CRMM-20177-2020(O&M) पर भरोसा किया, जहां नियमित जमानत की रियायत सुप्रीम कोर्ट द्वारा उन मामलों में दी गई थी, जहां आरोपी को लंबे समय से हिरासत में रखा गया है।

    हाईकोर्ट ने कहा, उपरोक्त निर्णयों के अवलोकन से पता चलता है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने उन मामलों में नियमित जमानत की रियायत पर भी विचार किया है और उन्हें प्रदान किया है जहां आरोपी एनडीपीएस एक्ट की धारा 37 की कठोरता के बावजूद लंबे समय से हिरासत में रह रहा है।

    तदनुसार, मामले की योग्यता पर टिप्पणी किए बिना, अदालत ने उसकी जमानत याचिका को इस सावधानी के साथ स्वीकार कर लिया कि यदि याचिकाकर्ता फिर से इसी तरह के अपराध में लिप्त होती है, तो राज्य जमानत रद्द करने का आवेदन करने के लिए स्वतंत्र होगा।

    केस शीर्षक: घनसो @ कालो बनाम पंजाब राज्य

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