मोटर दुर्घटना | एक दावेदार जिसे उसके बीमाकर्ता ने मुआवजा दिया हो, वह दुर्घटनाकारी वाहन के बीमाकर्ता से उसी नुकसान के लिए मुआवजा पाने का हकदार नहींः केरल हाईकोर्ट

Avanish Pathak

10 Jun 2022 6:30 AM GMT

  • केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि मोटर दुर्घटना के मामलों में, एक दावेदार जिसे उसके बीमाकर्ता ने मुआवजा दिया हो, वह दुर्घटनाकारी वाहन (Offending Vehicle) के मालिक या बीमाकर्ता से उसी नुकसान के लिए फिर से कोई मुआवजा पाने का हकदार नहीं है।

    जस्टिस ए बदरुद्दीन ने इकोनॉमिक ट्रांसपोर्ट ऑर्गनाइजेशन बनाम चरण स्पिनिंग मिल्स (प्राइवेट) लिमिटेड में यह पाया कि सुप्रीम कोर्ट ने यह माना था कि बीमा का कानून क्षतिपूर्ति के सिद्धांत के न्यायासंगत परिणाम को मान्यता देता है, जब बीमाकर्ता ने बीमाधारक की क्षतिपूर्ति प्रदान की हो तो गलती करने वाले के खिलाफ बीमाधारक के अधिकार और उपचार बीमाकर्ता को ट्रांसफर हो जाते हैं।

    कोर्ट ने कहा,

    "जब पॉलिसी के तहत बीमाकर्ता क्षतिपूर्ति के अनुबंध के संदर्भ में देयता का निर्वहन करता है तो बीमाकर्ता जिसने पॉलिसी जारी की है उसे बीमित व्यक्ति के स्थान पर स्थानांतरित कर दिया जाता है.....इसलिए, बीमित व्यक्ति एक और बीमकर्ता से उक्त राशि का फिर से दावा नहीं कर सकता है।"

    अपीलकर्ता एक मोटर दुर्घटना का शिकार हुआ था। चौथा प्रतिवादी तेज गति से और लापरवाही से लॉरी चला रहा था, जिसने अपीलकर्ता की कार को टक्‍कर मार दी थी। जिसके बाद उसे कई चोटें आईं थीं और उसकी कार को नुकसान पहुंचा था। अपीलकर्ता ने दो अलग-अलग मुआवजा आवेदनों के साथ मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के समक्ष आवेदन किया।

    यह दलील दी गई कि चूंकि उसने अपनी कार के बीमाकर्ता से एक राशि प्राप्त की है, इसलिए वह दुर्घटनाकारी मिनी लॉरी के बीमाकर्ता से अपने कुल नुकसान की शेष राशि प्राप्त करने का हकदार है। हालांकि, लॉरी के बीमाकर्ता ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि वह पहले से प्राप्त राशि का दावा नहीं कर सकता।

    सबूतों का मूल्यांकन करने के बाद, ट्रिब्यूनल ने लॉरी के बीमाकर्ता से मुआवजे के लिए दायर मुकदमे को खारिज कर दिया। इसलिए, अपीलकर्ता ने उस फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    अपीलकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट अनिल एस राज ने प्रस्तुत किया कि चूंकि उन्हें कुल 5,20,666 रुपये का नुकसान हुआ है, पहले से प्राप्त राशि को समायोजित करते हुए, 1,84,015 की शेष राशि का भुगतान मिनी लॉरी के बीमाकर्ता द्वारा किया जाना है, क्योंकि उसके चालक ने दुर्घटना में योगदान दिया था।

    वहीं, एडवोकेट बीमा कंपनी की ओर से पेश एडवोकेट पीके संथम्मा ने कहा कि अपीलकर्ता के बीमाकर्ता ने डेप्र‌िसेएटिव वैल्यू को कम करने के बाद वाहन को कुल 3,36,651 रुपये के नुकसान का आकलन किया। इसलिए अपीलार्थी दावा के अनुसार कोई राशि प्राप्त करने का अधिकारी नहीं था।

    कोर्ट ने कहा कि यहां शामिल कानून का महत्वपूर्ण सवाल और कुछ नहीं बल्कि प्रस्थापन का कानून था।

    लेकिन उस पर चर्चा करने से पहले, जज ने कहा कि अपीलकर्ता के स्वयं के बीमाकर्ता ने 3,36,651 रुपये की कुल राशि का आकलन किया था, जो अपीलकर्ता को दी जा सकती है। सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, मूल्यांकन 2,99,800 रुपये था, जो कि उसके बीमाकर्ता द्वारा निर्धारित राशि से कम था। इस संदर्भ में, न्यायालय द्वारा प्रस्थापन के सिद्धांत पर चर्चा की गई थी।

    यह नोट किया गया था कि प्रस्थापन के सिद्धांत को भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1972 की धारा 69 और संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 92 के तहत शामिल किया गया है। यहां, अपीलकर्ता को पहले से ही वह मुआवजा मिल चुका था जिसके वह हकदार थे, और इसलिए वह अपने स्वयं के बीमाकर्ता द्वारा निर्धारित और दी गई राशि से अधिक कुछ भी दावा नहीं कर सकता था।

    इसलिए, यह माना गया कि ट्रिब्यूनल ने अपीलकर्ता के दावे को उचित ही खारिज किया है और तदनुसार अपील खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल: एंटनी बनाम वीके सुरेश व अन्य।

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (केरल) 272

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