हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

LiveLaw News Network

17 April 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (11 अप्रैल, 2022 से 15 अप्रैल, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    सीआरपीसी की धारा 125(4) के तहत पत्नी के भरण-पोषण पाने का अधिकार तभी समाप्त हो सकता है जब व्यभिचार कृत्य को बार-बार किया जाए : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने दोहराया है कि केवल निरंतर और बार-बार व्यभिचार (या व्यभिचार में सहवास) करने पर ही दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 (4) के तहत प्रावधान की कठोरता लागू होगी।

    सीआरपीसी की धारा 125(4) में कहा गया है कि कोई भी पत्नी अपने पति से भत्ता पाने की हकदार नहीं होगी यदि वह व्यभिचार में रह रही है, या बिना किसी पर्याप्त कारण के अपने पति के साथ रहने से इनकार करती है, या यदि वे आपसी सहमति से अलग रह रहे हैं।

    केस का शीर्षक-श्री प्रदीप कुमार शर्मा बनाम श्रीमती दीपिका शर्मा

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    जब मामला सभी कानूनी मानकों पर सत्यापित हो चुका हो तो विवाह की छोटी अवधि पति या पत्नी द्वारा किए जाने वाले अंगदान को अस्वीकार करने का आधार नहीं : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने माना है कि विवाह की अवधि पति या पत्नी में से किसी एक द्वारा अन्य पति या पत्नी के पक्ष में गुर्दा दान करने की इच्छा को नामंजूर करने का आधार नहीं है, खासकर जब मामले को सभी कानूनी मानकों पर सत्यापित किया गया हो।

    कोर्ट ने परमादेश की प्रकृति में एक उपयुक्त रिट जारी करने की मांग करते हुए दायर एक रिट याचिका पर विचार करते हुए यह अवलोकन किया है, जिसमें प्रतिवादी को यह निर्देश देने की मांग की गई है कि याचिकाकर्ता-पत्नी से बिना किसी और देरी के अंग प्राप्त करके याचिकाकर्ता के पति के गुर्दे के प्रत्यारोपण की सर्जरी की जाए।

    केस का शीर्षक- मनप्रीत कौर बनाम पंजाब राज्य व अन्य

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    4 साल की समाप्ति के बाद केवल पीसीआईटी ही पुनर्मूल्यांकन नोटिस को मंजूरी दे सकते हैं, न कि एसीआईटी: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) के जस्टिस एन.आर. बोरकर और जस्टिस के.आर. श्रीराम ने कहा कि प्रासंगिक निर्धारण वर्ष के अंत से चार साल की समाप्ति के बाद केवल प्रधान मुख्य आयुक्त या मुख्य आयुक्त या प्रधान आयुक्त या आयुक्त (पीसीआईटी) पुनर्मूल्यांकन नोटिस को मंजूरी दे सकते हैं, न कि अतिरिक्त आयकर आयुक्त (एसीआईटी)।

    याचिकाकर्ता/निर्धारिती ने निर्धारण वर्ष 2015-2016 के लिए आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 148 के तहत जारी पुनर्मूल्यांकन नोटिस को इस आधार पर चुनौती दी है कि आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 148 के तहत नोटिस जारी करने के लिए प्राप्त अनुमोदन आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 151 के अधिदेश के अनुसार अनुमोदन प्रधान आयकर आयुक्त के बजाय अतिरिक्त आयकर आयुक्त से प्राप्त हुआ है।

    केस का शीर्षक: जे एम फाइनेंशियल एंड इनवेस्टमेंट कंसल्टेंसी सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड बनाम सहायक आयकर आयुक्त

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    रिट कोर्ट किसी उपभोक्ता को मुआवजा पाने का कानूनी अधिकार नहीं दे सकती: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट के जस्टिस अरिंदम सिन्हा की एकल पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट की तरह रिट न्यायालय मुआवजे प्राप्त करने के लिए किसी व्यक्ति के कानूनी अधिकार पर निर्णय लेने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग नहीं कर सकता है। खासकर जब उस प्रभाव के लिए कोई नीति उपलब्ध नहीं है।

    रिट याचिका में समन्वय पीठ के आदेश दिनांक 29 मई, 2020 के अनुसार बिजली आपूर्ति कंपनी को शिकायत याचिका दिनांक 2 जुलाई, 2020 से निपटने के निर्देश के लिए याचिका दायर की गई थी। याचिकाकर्ता ने एक करोड़ रुपये के मुआवजे के साथ-साथ गलत तरीके से बिजली काटे जाने के लिए प्रतिवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने की भी प्रार्थना की थी। न्यायालय के पूछे जाने पर प्रतिवादी कंपनी ने कहा कि मुआवजे पर उसकी कोई नीति नहीं है।

    केस शीर्षक: प्रमोद कुमार राउत बनाम अधीक्षण अभियंता इलेक्ट्रिकल सर्कल और अन्य।

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    फैमिली कोर्ट के समक्ष कार्यवाही का मास्टर फैमिली कोर्ट का पीठासीन अधिकारी है, न कि पक्षकार; फैमिली कोर्ट सच्चाई का पता लगाने के लिए जांच कर सकती है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने हाल ही में कहा कि फैमिली कोर्ट के समक्ष कार्यवाही का मास्टर फैमिली कोर्ट का पीठासीन अधिकारी है, न कि पक्षकार, जबकि यह दोहराते हुए कि फैमिली कोर्ट सच्चाई का पता लगाने के लिए कोई भी जांच करने के लिए सक्षम है।

    जस्टिस ए. मोहम्मद मुस्ताक और जस्टिस सोफी थॉमस की एक खंडपीठ ने कहा कि एक पार्टी मांगी गई राहत को दबाने में सक्षम नहीं हो सकती है, लेकिन वे परिवार न्यायालय को सच्चाई की खोज से रोक नहीं सकते हैं।

    केस का शीर्षक: टी. अंजना बनाम जे.ए. जयेश जयराम

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    दिल्ली हाईकोर्ट ने केवीएस में कक्षा 1 में प्रवेश के लिए न्यूनतम छह वर्ष आयु मानदंड के खिलाफ दायर अपील खारिज की

    दिल्ली हाईकोर्ट ने नीति के कार्यान्वयन के बारे में अचानक कुछ भी नहीं कहे जाने पर शैक्षणिक वर्ष 2022-23 के लिए केंद्रीय विद्यालयों (केवीएस) में कक्षा एक में प्रवेश के लिए 6 वर्ष की न्यूनतम आयु मानदंड में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

    एक्टिंग चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस नवीन चावला की पीठ ने एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया, जिसमें न्यूनतम आयु मानदंड को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था।

    केस शीर्षक: आरिन अपने अगले दोस्त और प्राकृतिक पिता पवन कुमार बनाम केंद्रीय विद्यालय संगठन और अन्य के माध्यम से

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    हाईकोर्ट सीआरपीसी की धारा 482 के क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा को साथ-साथ चलने का निर्देश दे सकता है: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि सीआरपीसी की धारा 427 की व्याख्या करते हुए कहा कि एक ही प्रकृति के अपराध के लिए बाद के मामलों में पारित कारावास की सजा भुगतने के संबंध में सजा एक साथ चलेगी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वह सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कर सकती है और निर्देश जारी कर सकती है कि निचली अदालत द्वारा गी गई सजा साथ-साथ चलेगी।

    मदुरै खंडपीठ के जस्टिस जीके इलांथिरैयान ने मुरुगन उर्फ पन्नी मुरुगन द्वारा दायर याचिका पर फैसला करते हुए उपरोक्त का अवलोकन किया। इसमें कहा गया कि न्यायिक मजिस्ट्रेट, बोदिनायकनूर द्वारा उनके खिलाफ दो मामलों में सजा एक साथ चलने के लिए पारित की गई है।

    केस शीर्षक: मुरुगन @ पन्नी मुरुगन बनाम राज्य प्रतिनिधि। पुलिस उप निरीक्षक और अन्य।

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    पक्षकारों के बीच बाद में उत्पन्न विवाद को अलग मध्यस्थता के माध्यम से तय किया जा सकता है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कहा कि एक ही लेन-देन से उत्पन्न होने वाले बाद के विवाद को एक अलग मध्यस्थता के लिए संदर्भित किया जा सकता है और मध्यस्थता समझौते को एक बार का उपाय नहीं कहा जा सकता है जिसे पहले के संदर्भ में अवार्ड के बाद लागू नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस मुक्ता गुप्ता की एकल पीठ ने देखा कि मध्यस्थता समझौते में "सभी विवाद" शब्द का अर्थ मध्यस्थता के आह्वान के समय सभी मौजूदा विवाद हैं और बाद में उत्पन्न होने वाले विवादों को एक अलग मध्यस्थता में तय किया जा सकता है। कोई कानूनी बाधा नहीं है जो मध्यस्थता समझौते के आह्वान पर रोक लगाती है यदि कोई लंबित मध्यस्थता है या पहले की मध्यस्थता में एक अवार्ड दिया गया है।

    केस का शीर्षक: उड़ीसा कंक्रीट एंड एलाइड इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम भारत संघ, Arb.p. 560/2021

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    उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 29A मान्य; उपभोक्ता फोरम अध्यक्ष के बिना आदेश पारित कर सकते हैं: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने हाल ही में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (Consumer Protection Act), 1986 की धारा 29ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती माना है - क्या जिला उपभोक्ता फोरम (District Consumer Forum) द्वारा अध्यक्ष के बिना शक्तियों का प्रयोग अवैध है? जस्टिस वी एम देशपांडे और जस्टिस अमित बी बोरकर की बेंच ने इस सवाल का नकारात्मक जवाब दिया।

    केस का शीर्षक: अपर्णा अभिताभ चटर्जी बनाम भारत संघ

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    पुलिस को अपहरण के मामलों में पीड़िता की उम्र का आकलन करना चाहिए ताकि अगर किसी बालिग लड़की ने स्वतंत्र रूप से निर्णय लिया है तो उसे प्रताड़ित न किया जाए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा है कि अपहरण के मामलों की जांच करते समय, पुलिस अधिकारियों को पहले पीड़ित लड़की की उम्र का आकलन करना चाहिए ताकि अगर यह पाया जाए कि वह बालिग है और उसने अपने जीवन के लिए कोई कदम उठाया है, तो किसी भी प्रकार का उत्पीड़न नहीं होना चाहिए।

    न्यायमूर्ति अरविंद कुमार मिश्रा- I और न्यायमूर्ति मनीष माथुर की पीठ ने एक युवा-बालिग विवाहित जोड़े के मामले से निपटने के दौरान यह टिप्पणी की, जिन्होंने अदालत से सुरक्षा मांगी क्योंकि उन्होंने प्रस्तुत किया कि लड़की के पिता ने लड़के के खिलाफ (याचिकाकर्ता संख्या 2) 'फर्जी' अपहरण का मामला दर्ज कराया है जबकि उन्होंने अपनी मर्जी से शादी की थी।

    केस का शीर्षक - तस्लीमुन निशा उर्फ तनु आर्य एंड अन्य बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. एंड अन्य

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    यदि धारा 138 एनआई एक्ट के तहत शिकायत दायर करने में देरी का आधार पहली बार अपील में उठाया गया है तो केस को धारा 142 (बी) के तहत विचार के लिए वापस भेजा जा सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि कोई पक्ष नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत स्थापित कार्यवाही का विरोध करते हुए प्रथम दृष्टया अदालत के समक्ष शिकायत दर्ज करने में देरी के आधार को उठाने में विफल रहता है तो अपील में न्यायालय को अधिनियम की धारा 142 (बी) के तहत विलंब की माफी के मुद्दे पर नए सिरे से विचार के लिए मामले को वापस करने का अधिकार है।

    जस्टिस एचपी संदेश की बेंच ने कहा, "यह मामले के अजीबोगरीब तथ्य और परिस्थितियां हैं और याचिकाकर्ताओं (धारा 138 एनआई एक्ट के तहत आरोपी) द्वारा ट्रायल कोर्ट के समक्ष ऐसा कोई तर्क नहीं पेश किया गया था और यदि उन्होंने ट्रायल से पहले देरी का मुद्दा उठाया था, अदालत शिकायतकर्ता को देरी को माफ करने के लिए आवश्यक आवेदन करने का अवसर दिया जाना चाहिए था और माना जाता है कि पहली बार अपीलीय न्यायालय के समक्ष मामला उठाया गया है। केवल इस आधार पर कि देरी हुई है, शिकायतकर्ता की शिकायत को कूड़ेदान में नहीं फेंका जा सकता।"

    केस शीर्षक: एम/ एस ए सी‌टिंग और अन्य बनाम मैसर्स नंदिनी मॉड्यूलर

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    6 किलो गांजा व्यावसायिक मात्रा नहीं, एनडीपीएस एक्ट की धारा 37 के तहत ज़मानत के कड़े नियम लागू नहीं होंगे : आंध प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में 6 किलोग्राम गांजा रखने के आरोपी एक व्यक्ति को जमानत दी। कोर्ट ने यह देखते हुए जमानत दी कि यह "व्यावसायिक मात्रा" नहीं है और इस प्रकार जमानत देने का मामला एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 के तहत नियंत्रित नहीं होगा।

    नशीले पदार्थों और मन:प्रभावी पदार्थों के संबंध में वाणिज्यिक मात्रा को अधिनियम की धारा 2(viia) के तहत परिभाषित किया गया है। इसका अर्थ सरकारी राजपत्र में अधिसूचना द्वारा केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट मात्रा से अधिक मात्रा से है। वर्तमान में गांजे की व्यावसायिक मात्रा 20 किलोग्राम या उससे अधिक है।

    केस शीर्षक: दिनेश @ दिनेश बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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    रिट कार्यवाही में विवादित तथ्यों का न्याय निर्णय नहीं किया जा सकता: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) ने हाल ही में एक कर्मचारी द्वारा टर्मिनल और पेंशन लाभ के लिए दायर एक रिट याचिका का निपटारा किया। जस्टिस एस एम सुब्रमण्यम की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता एक कामगार था और सेवा से सेवानिवृत्त हुआ था। इसलिए, वह पेंशन योजना के तहत सेवा शर्तों के तहत और सेवानिवृत्ति के बाद शासित था और इसलिए उसे कानून के अनुसार अपनी शिकायतों के निवारण के लिए उचित राहत के लिए श्रम अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए।

    केस का शीर्षक: ए पिचैया बनाम प्रबंध निदेशक एंड अन्य

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    नाबालिग लड़की को उसकी मर्जी के खिलाफ या पिता की इच्छा पर संरक्षण गृह में नहीं रखा जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि एक नाबालिग लड़की को भी उसकी इच्छा के विरुद्ध या उसके पिता की इच्छा पर एक सरंक्षण गृह में बंद नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस सुरेश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश (पोक्सो अधिनियम), सुल्तानपुर, जिसने एक लड़की/ कथित पीड़िता को सरंक्षण गृह में भेजा था, को नारी निकेतन से उसे बुलाने, उसकी इच्छाओं के बारे में पूछने और उसकी इच्छा को ध्यान में रखते हुए कानून के अनुसार उसकी कस्टडी के संबंध में उचित आदेश पारित करने आदेश दिया।

    केस शीर्षक - अभय प्रताप मिश्रा @ उज्जवल मिश्रा बनाम यूपी राज्य एसीएस/प्रिन्सिपल सेक्रटरी होम के माध्यम से

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    (एनडीपीएस एक्ट) सह-अभियुक्तों के बीच हुई कॉल, वह भी जिसकी ट्रांसक्रिप्ट न हो, पर्याप्त सबूतों के अभाव में पुष्टिकारक सामग्री नहीं: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पाया है कि सह-अभियुक्तों के बीच हुई बातचीत की ट्रांसक्रिप्‍ट के बिना, केवल कॉल डिटेल को नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक एक्ट के तहत मामले में आरोपी के खिलाफ वास्तविक सामग्री के अभाव में पुष्टि के लिए आवश्यक सामग्री नहीं माना जाएगा।

    जस्टिस विकास बहल की खंडपीठ ने यश जयेशभाई चंपकलाल शाह बनाम गुजरात राज्य 2022 लाइव लॉ (गुजरात) 66 के मामले में गुजरात हाईकोर्ट के हालिया आदेश पर भरोसा करते हुए उक्‍त टिप्‍पणी की।

    केस शीर्षक - विक्रांत सिंह बनाम पंजाब राज्य और जुड़े मामले

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    रिडिवेलपमेंट के लिए बेदखली की अवधि के दौरान फ्लैट का कब्जाधारी ट्रांजिट रेंट का हकदार होगा: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि जिस व्यक्ति का आवास फिर से विकसित किया जा रहा है, वह परिसर का मालिक न होने पर भी अदालत के आदेश के अभाव में ट्रांजिट रेंट का हकदार होगा। हाईकोर्ट ने वर्तमान मामले में यदि फ्लैट मालिक के साथ उसका विवाद अंततः तब तक तय नहीं होता है तो डेवलपर से रिडिवेलपमेंट संपत्ति के कब्जे में रखने के लिए भी कहा।

    जस्टिस जीएस कुलकर्णी ने कहा, "तथ्य यह है कि प्रतिवादी नंबर तीन (कब्जा करने वाला) के कब्जे में है और अब वह याचिकाकर्ता/सोसाइटी को इस तरह के मकान का कब्जा सौंप देगा। ट्रांजिट किराए का हकदार है, क्योंकि यह ऐसा पक्ष है जिसे कठिनाई में डाल दिया जाता है।"

    केस शीर्षक: मनियर एसोसिएट्स एलएलपी बनाम विजय निवास सहकारी. एच.एस.जी. सोसाइटी. लिमिटेड और अन्य

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    एनआई एक्ट धारा 138 । चेक के ' पुर्न- प्रस्तुतीकरण' के बाद जारी नोटिस के आधार पर शिकायत पर अदालत संज्ञान ले सकती है : उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना है कि न्यायालय दूसरी बार नकदीकरण के लिए चेक की प्रस्तुति के अनुसार जारी नोटिस के आधार पर 'चेक बाउंस' के लिए और इसके बाद के अनादर के लिए निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत दायर एक शिकायत का संज्ञान ले सकता है।

    जस्टिस राधा कृष्ण पटनायक की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा, "... यदि एन आई अधिनियम की धारा 138 का संपूर्ण उद्देश्य व्यापार या अन्य लेनदेन के दौरान की गई अपनी प्रतिबद्धताओं का सम्मान करने के लिए भुगतानकर्ता को मजबूर करना है, कोई कारण नहीं है कि एक व्यक्ति जिसने चेक जारी किया है जिसका अनादर किया गया है और उस पर दिए गए वैधानिक नोटिस के बावजूद भुगतान करने में विफल होने पर अभियोजन के लिए सिर्फ इसलिए प्रतिरक्षा होनी चाहिए क्योंकि चेक धारक इस तरह की चूक के आधार पर शिकायत के साथ अदालत में नहीं पहुंचा था या इस कारण से कि भुगतानकर्ता ने धारक को धन की व्यवस्था करने या किसी अन्य समान स्थिति के कारण मुकदमा ना चलाने का वादा किया था।"

    केस: श्री गदाधर बारिक बनाम श्री प्रदीप कुमार जेना और अन्य

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    किशोर की उम्र निर्धारित करने के लिए लर्निंग ड्राइविंग लाइसेंस और वोटर आईडी कार्ड पर विचार नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि किरोश की आयु का निर्धारण करते समय लर्निंग ड्राइविंग लाइसेंस और वोटर आईडी कार्ड को ध्यान में नहीं रखा जाना चाहिए।

    जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की खंडपीठ ने विशेष न्यायाधीश, पॉक्सो अधिनियम / अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, बुलंदशहर के आदेश को खारिज कर दिया। इस आदेश में नौशाद अली की ओर से उसे किशोर घोषित करने के लिए दायर आवेदन को खारिज कर दिया गया था। नौशाद पर बलात्कार, पेनेट्रेटिव यौन उत्पीड़न के आरोप (पॉक्सो अधिनियम के तहत) के तहत मामला दर्ज है।

    केस टाइटल - नौशाद अली बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. सचिव गृह एवं अन्य के माध्यम से

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    सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण के लिए दावा उन जगहों पर होता हैं,जहां पक्षकार रहते हैं, ''कभी-कभार'' जाने वाली जगहों पर नहीं : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, ग्वालियर पीठ ने हाल ही में कहा है कि सीआरपीसी की धारा 126 के तहत ''निवास'' शब्द की तुलना उस स्थान से नहीं की जा सकती है जहां कोई 'आकस्मिक प्रवास करता है या कभी-कभार जाता है'।

    प्रावधान में बताया गया है कि धारा 125 के तहत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ किसी भी जिले में भरण-पोषण की कार्यवाही की जा सकती हैः (ए) जहां वह रहता है, या (बी) जहां वह या उसकी पत्नी रहती है, या (सी) जहां वह अंतिम बार अपनी पत्नी के साथ रहता था , या जैसा भी मामला हो, नाजायज बच्चे की माँ के साथ रहता था।

    केस का शीर्षक-निर्माण सागर बनाम श्रीमती मोनिका सागर चौधरी व अन्य

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    यदि किसी आरोपी के खिलाफ कोई अतिरिक्त अपराध पाया जाता है तो सीआरपीसी 167 के तहत हिरासत की अवधि की गणना नए सिरे से की जाएगी : राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि डिफ़ॉल्ट/ वैधानिक जमानत लेने का अधिकार एक अपरिहार्य अधिकार की प्रकृति में अभियुक्त को केवल तभी प्राप्त होता है, जब एक उपयुक्त आवेदन को प्राथमिकता देकर इस तरह के उपाय को आरोप पत्र दाखिल होने तक धारा 167 (2) सीआरपीसी के तहत आरोपी व्यक्ति (व्यक्तियों) की हिरासत की कुल अवधि की समाप्ति की तारीख से निर्धारित खिड़की के भीतर प्राप्त किया गया हो।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि किसी आरोपी के खिलाफ जांच अधिकारी द्वारा कोई अतिरिक्त या नया अपराध पाया जाता है, तो अवधि की गणना नए सिरे से की जाएगी, जैसा कि धारा 167 सीआरपीसी के तहत निर्धारित है।

    केस: अखेराज बनाम राजस्थान राज्य

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    अदालत मोटर दुर्घटना के दावे में मुआवजे की राशि बढ़ा सकती है, चाहे कोई भी अपील दायर करेः बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत एक दुर्घटना पीड़ित को दिए गए मुआवजे की राशि के खिलाफ एक बीमा कंपनी द्वारा एक अपील पर विचार किया। दावेदार ने इस अपील के दौरान, उसको दिए गए मुआवजे की अपर्याप्तता का मुद्दा भी उठाया।

    जस्टिस भारती डांगरे की एकल पीठ ने कहा कि हालांकि दावेदार ने मुआवजे में वृद्धि के लिए अपील दायर नहीं की थी, ''मोटर वाहन अधिनियम कानून का एक हितकारी पीस है और उस पीड़ित को कुछ सांत्वना प्रदान करता है, जो दुर्घटना का शिकार होता है या पीड़ित के परिवार को, जब रोटी कमाने वाला विकलांग हो जाता है या उक्त दुर्घटना में दम तोड़ देता है। पीड़ित या उसके परिवार को उनके जीवित रहने और उस कठिनाई को झेलने के लिए मुआवजा देने में न्यायालय का कर्तव्य 'न्यायसंगत' मुआवजा सुनिश्चित करना है, भले ही दावेदार द्वारा इस संबंध में कोई याचिका दायर न की गई हो।''

    केस का शीर्षकः प्रबंधक, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम श्री नीलेश सुरेश भंडारी व अन्य

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