नाबालिग लड़की को उसकी मर्जी के खिलाफ या पिता की इच्छा पर संरक्षण गृह में नहीं रखा जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

11 April 2022 4:09 PM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट


    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि एक नाबालिग लड़की को भी उसकी इच्छा के विरुद्ध या उसके पिता की इच्छा पर एक सरंक्षण गृह में बंद नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस सुरेश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश (पोक्सो अधिनियम), सुल्तानपुर, जिसने एक लड़की/ कथित पीड़िता को सरंक्षण गृह में भेजा था, को नारी निकेतन से उसे बुलाने, उसकी इच्छाओं के बारे में पूछने और उसकी इच्छा को ध्यान में रखते हुए कानून के अनुसार उसकी कस्टडी के संबंध में उचित आदेश पारित करने आदेश दिया।

    कथित पीड़िता/लड़की के पिता ने मामले में आवेदक/अभय प्रताप मिश्रा के खिलाफ पोक्सो अधिनियम की धारा 5/6 और धारा 363, 366, 376 आईपीसी के तहत एफआईआर दर्ज कराई थी। आरोप लगाया गया था कि अवेदक ने उनकी नाबालिग बेटी का अपहरण कर लिया है।

    लड़की/कथित पीड़िता के बरामद होने के बाद धारा 161 सीआरपीसी के तहत उसका बयान दर्ज किया गया, जिसमें उसने कहा कि उसने स्वेच्छा से आवेदक के साथ संबंध बनाए और दोनों ने शादी कर ली।

    इसके अलावा, धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज अपने बयान में (मजिस्ट्रेट के सामने), उसने धारा 161 सीआरपीसी के तहत दर्ज बयान का समर्थन किया। इसके बाद, आवेदक द्वारा अपने पक्ष में लड़की को रिहा करने के लिए एक आवेदन दायर किया गया था, हालांकि निचली अदालत ने आदेश दिया कि पीड़िता को नारी निकेतन, अयोध्या भेजा जाए।

    ट्रायल कोर्ट के आदेश से व्यथित होकर आवेदक ने मौजूदा याचिका दायर की कि ट्रायल कोर्ट ने बिना किसी आधार के आदेश पारित किया और आगे प्रस्तुत किया कि चिकित्सा रिपोर्ट के अनुसार पीड़िता की आयु 18 वर्ष है।

    अपनी दलील के समर्थन में, आवेदक के वकील ने श्रीमती पार्वती देवी बनाम यूपी राज्य 1992 All Cri Case 32 पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया कि पीड़िता की इच्छा के विरुद्ध नारी निकेतन में उसके कारावास को धारा 97 या धारा 171 सीआरपीसी के तहत अधिकृत नहीं किया जा सकता है।

    कोर्ट ने श्रीमती कल्याणी चौधरी बनाम यूपी राज्य और अन्य 1978 क्रिमिनल लॉ जर्नल 103 पर भरोसा किया, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक डिवीजन बेंच ने माना था कि किसी भी व्यक्ति को सरंक्षण गृह में तब तक नहीं रखा जा सकता जब तक कि सप्रेशन ऑफ इम्‍मोरल ट्रैफिक इन वुमन एंड गर्ल्स एक्ट के अनुसार उसे वहां रखने की आवश्यकता न हो या किसी अन्य कानून के तहत उसे ऐसे घर में नजरबंदी की अनुमति हो।

    अदालत ने आगे जोर देकर कहा, "ऐसे मामलों में, अल्पसंख्यक का सवाल अप्रासंगिक है क्योंकि यहां तक ​​कि एक नाबालिग को उसकी इच्छा के विरुद्ध या उसके पिता की इच्छा पर एक सरंक्षण गृह में बंद नहीं रखा जा सकता है।"

    अदालत ने निचली अदालत को पीड़िता को संरक्षण गृह से बुलाने और उसकी इच्छाओं का पता लगाने और फिर पीड़िता की इच्छाओं को ध्यान में रखते हुए कानून के अनुसार उसकी हिरासत के संबंध में उचित आदेश पारित करने का निर्देश दिया।

    केस शीर्षक - अभय प्रताप मिश्रा @ उज्जवल मिश्रा बनाम यूपी राज्य एसीएस/प्रिन्सिपल सेक्रटरी होम के माध्यम से,

    केस उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (All) 171

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

    Next Story