किशोर की उम्र निर्धारित करने के लिए लर्निंग ड्राइविंग लाइसेंस और वोटर आईडी कार्ड पर विचार नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

11 April 2022 5:12 AM GMT

  • किशोर की उम्र निर्धारित करने के लिए लर्निंग ड्राइविंग लाइसेंस और वोटर आईडी कार्ड पर विचार नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि किरोश की आयु का निर्धारण करते समय लर्निंग ड्राइविंग लाइसेंस और वोटर आईडी कार्ड को ध्यान में नहीं रखा जाना चाहिए।

    जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की खंडपीठ ने विशेष न्यायाधीश, पॉक्सो अधिनियम / अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, बुलंदशहर के आदेश को खारिज कर दिया। इस आदेश में नौशाद अली की ओर से उसे किशोर घोषित करने के लिए दायर आवेदन को खारिज कर दिया गया था। नौशाद पर बलात्कार, पेनेट्रेटिव यौन उत्पीड़न के आरोप (पॉक्सो अधिनियम के तहत) के तहत मामला दर्ज है।

    संक्षेप में मामला

    नौशाद अली ने विशेष न्यायाधीश, पॉक्सो अधिनियम / अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, बुलंदशहर के आदेश के खिलाफ वर्तमान पुनर्विचार याचिका दायर करके हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। निचली अदालत ने उसके वोटर आईडी पर भरोसा करते हुए कहा कि घटना की तारीख को संशोधनवादी बालिग था, क्योंकि उसकी जन्मतिथि सात अप्रैल, 1994 है।

    संशोधन की मांग कर रहे याचिकाकर्ता (Revisionist) नौशाद के वकील सुरेश कुमार मौर्य ने प्रस्तुत किया कि अली के हाई स्कूल प्रमाण पत्र ने यह स्पष्ट कर दिया कि उसने हाई स्कूल परीक्षा, 2015 हाई स्कूल और इंटरमीडिएट शिक्षा बोर्ड यूपी से उत्तीर्ण की है। इन प्रमाण पत्रों में उसकी जन्म तिथि चार मार्च 2001 के रूप में उल्लिखित है।

    यह भी तर्क दिया गया कि निचली अदालत ने याचिकाकर्ता की उम्र का निर्धारण करते समय किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 94(2) में उल्लिखित दस्तावेजों को ध्यान में नहीं रखा और उसे किशोर घोषित करने से इनकार कर दिया।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    आक्षेपित आदेश का अवलोकन करने के बाद न्यायालय ने पाया कि विशेष न्यायाधीश, पॉक्सो अधिनियम ने याचिकाकर्ता के लर्निंग (ड्राइविंग) लाइसेंस और आईडी कार्ड पर भरोसा करते हुए कानून में घोर त्रुटि की। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि किशोर की उम्र निर्धारित करते समय इनमें से किसी भी दस्तावेज को ध्यान में नहीं रखा जाना चाहिए।

    कोर्ट ने यह भी नोट किया कि जब हाई स्कूल सर्टिफिकेट में संशोधनवादी की उम्र का उल्लेख किया गया है, जो विशेष न्यायाधीश, पॉक्सो एक्ट के समक्ष उपलब्ध है तो उसे केवल हाई स्कूल सर्टिफिकेट को ध्यान में रखते हुए संशोधनकर्ता की उम्र निर्धारित करनी चाहिए थी।

    नतीजतन, यह मानते हुए कि अदालत ने 2015 के अधिनियम में वर्गीकृत नहीं किए गए दस्तावेजों पर भरोसा करते हुए किशोरता के दावे को गलत तरीके से खारिज कर दिया, अदालत ने आक्षेपित आदेश को रद्द कर दिया। साथ ही मामले को पुनर्विचार करने के निर्देश के साथ फिर से निचली अदालत को भेज दिया। कोर्ट ने निचली अदालत से कहा कि पूरे मामले को एक बार फिर से देखें और मामले को नए सिरे से तय करें।

    कोर्ट को यह भी निर्देश दिया गया कि वह संशोधनवादी के हाई स्कूल सर्टिफिकेट को ध्यान में रखे और इसकी वास्तविकता को प्रमाणित करने और मूल्यांकन करने के बाद मामले का फैसला करे। कोर्ट ने कहा कि इस मामले पर आठ सप्ताह की अवधि के भीतर कानून के अनुसार योग्यता के आधार पर सुविचारित आदेश पारित करे।

    उक्त निर्देश के साथ वर्तमान पुनर्विचार याचिका का निपटारा कर दिया गया।

    केस टाइटल - नौशाद अली बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. सचिव गृह एवं अन्य के माध्यम से

    केस साइटेशन: 2022 लाइव कानून (सभी) 170

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