हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

LiveLaw News Network

6 March 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (28 फरवरी, 2022 से चार मार्च, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    प्री-ट्रायल स्टेज में भी पोक्सो एक्ट की धारा 29 के तहत अनुमान लागू होता है: जम्मू, कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू, कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा है कि यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो अधिनियम) की धारा 29 के तहत अनुमान की भूमिका प्री-ट्रायल स्टेज में भी होती है।

    जस्टिस जावेद इकबाल वानी की खंडपीठ ने हाईकोर्ट की समन्वय पीठ की ओर से बद्री नाथ बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर, 2020 (6) जेकेजे (एचसी) 255 में प्री-ट्रायल स्टेज में जमानत पर विचार करते हुए अधिनियम की धारा 29 के तहत अनुमान की प्रयोज्यता पर दिए निर्णय से सहमति व्य‌क्त करते हुए ऐसी टिप्पणी की।

    केस शीर्षकः मुबारक अली वानी बनाम केंद्र शासित प्रदेश पुलिस स्टेशन के माध्यम से

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    वादी धारा 151 सहपठित आदेश XX नियम 6ए के तहत अर्जी दायर कर सकता है, जहां मुकदमा निर्णायक रूप से तय किया गया है, लेकिन कोई डिक्री नहीं दी गई थी: मेघालय हाईकोर्ट

    मेघालय हाईकोर्ट ने कहा है कि एक वादी धारा 151 के साथ पठित आदेश XX नियम 6ए के तहत आवेदन दायर कर सकता है, जहां उसके द्वारा दायर किए गए मुकदमे पर निर्णायक रूप से निर्णय तो लिया जाता है, लेकिन उस संबंध में कोई औपचारिक डिक्री नहीं दी गयी थी।

    न्यायमूर्ति एचएस थांगखिव की एकल पीठ ने कहा, "कोर्ट के सुविचारित मत के अनुसार ये प्रक्रियागत मामले हैं। चूंकि कोई डिक्री तैयार नहीं की गई थी, इसलिए याचिकाकर्ता को निचली अदालत के समक्ष सीपीसी के आदेश 20 नियम 6-ए के साथ पठित धारा 151 के तहत दिनांक 04.07.2016 के आदेश के अनुसार डिक्री जारी करने के लिए आवेदन दाखिल करना आवश्यक है।"

    केस का शीर्षक: श्री डेलिकन शादाप और अन्य बनाम श्रीमती दाल नोंगत्री और अन्य

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    सहायक सामग्री के बिना लिखित शिकायतों पर लोक सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार का अपराध दर्ज करना विनाशकारी: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत दर्ज एक मामले में आरोप पत्र और उसके बाद की कार्यवाही को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसी ने आधी-अधूरी सामग्री के आधार पर मुकदमा चलाया और उसी आधार पर मुकदमे को आगे बढ़ाने की अनुमति देना निरर्थकता होगी, जिसका नतीजा यह होगा कि दरअसल आरोपी को बरी कर दिया जाएगा।

    जस्टिस शील नागू और जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव की खंडपीठ सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर एक आवेदन पर विचार कर रही थी, जिसमें पीसी एक्ट की धारा 7 के तहत अपराध के लिए आवेदक के खिलाफ आरोप पत्र और परिणामी कार्यवाही को रद्द करने के लिए अदालत के निर्देश की मांग की गई थी।

    केस शीर्षक: नरेंद्र मिश्रा बनाम मध्य प्रदेश राज्य के माध्यम से पीएस विशेष पुलिस स्थापना लोकायुक्त जबलपुर (एमपी)

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    'राजा' जैसे शीर्षक न्यायालयों, सार्वजनिक कार्यालयों आदि में इस्तेमाल नहीं किए जा सकते क्योंकि वे संविधान के अनुच्छेद 14, 18 और 363A के तहत निषिद्ध हैं: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर बेंच ने माना है कि संवैधानिक न्यायालयों, अन्य सभी न्यायालयों, न्यायाधिकरणों, राज्य के सार्वजनिक कार्यालयों आदि में 'राजा', 'नवाब' और 'राजकुमार' जैसे अभिवादन और उपाधियों का उपयोग संविधान के अनुच्छेद 14, 18 और 363A के संदर्भ में प्रतिबंधित है। अदालत ने आदेश दिया कि उक्त प्रतिबंध सार्वजनिक क्षेत्र के साथ-साथ सार्वजनिक दस्तावेजों और सार्वजनिक कार्यालयों में भी लागू होगा।

    केस टाइटल: भगवती सिंह (बाद से मृतक) पुत्र (स्वर्गीय) श्री राजा मानसिंह बनाम राजा लक्ष्मण सिंह पुत्र (स्वर्गीय) श्री राजा मानसिंह और संबंधित मामला

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    सशस्त्र बलों में भर्ती के लिए फिटनेस| मेडिकल बोर्ड की राय प्राइवेट/सरकारी डॉक्टरों की राय पर प्रभावी होगी; जब तक दुर्भावना न हो अनुच्छेछ 226 के तहत कोई हस्तक्षेप नहींः दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि सशस्त्र बलों में चयन के लिए उम्मीदवारों को पूरी तरह से फिट होना चाहिए और उन्हें इस संबंध में संदेह का कोई लाभ नहीं दिया जा सकता है। कोर्ट ने आगे कहा कि सशस्‍त्र बलों के डॉक्टर, जो ड्यूटी की मांगों और उन्हें पूरा करने के लिए आवश्यक शारीरिक मानकों से अच्छी तरह वाकिफ हैं, उनकी चिकित्सा राय को खारिज नहीं किया जा सकता है और वास्तव में, उनकी राय निजी या यहां तक कि सरकारी डॉक्टर की अन्य राय पर प्रबल होगी।

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    अगर आधिकारिक गवाहों के साक्ष्य भरोसे को प्रेरित करते हों तो पक्षदोही हो चुके स्वतंत्र गवाहों की ओर से पुष्टि ना भी हो तो अभियोजन का मामला कमजोर नहीं होगाः कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि कि यदि आधिकारिक गवाहों के साक्ष्य विश्वास को प्रेरित करते हैं तो स्वतंत्र गवाहों द्वारा पुष्टि का ना होना, जो पक्षद्रोही हो गए हैं, अभियोजन मामले को कमजोर नहीं करेगा जस्टिस बिवास पटनायक और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच नकली नोटों की जब्ती से जुड़े एक मामले पर फैसला सुना रही थी।

    कोर्ट ने रेखांकित किया, "यह तय कानून है कि अगर आधिकारिक गवाहों के सबूत स्पष्ट, आश्वस्त और विश्वास को प्रेरित करते हैं तो स्वतंत्र गवाहों से समर्थन की कमी जो पक्षद्रोही हो गए हैं, अभियोजन पक्ष के मामले में सेंध नहीं लगाएंगे। इसलिए, हमारी राय के अनुसार, अपीलकर्ता के पास से 8 लाख रुपये और किशोर आरोपी के पास से 2 लाख रुपये मूल्य के जाली नोटों की जब्ती साबित हुई है।

    केस शीर्षक: हबीबुर रहमान बनाम पश्‍चिम बंगाल राज्य

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    एनडीपीएसः आरोप पत्र दाखिल करने में वैधानिक अवधि से आगे विस्तार आरोपी को सुनवाई का मौका दिए बिना नहीं दिया जा सकता: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने दोहराया है कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (एनडीपीएस एक्ट) के तहत अपराधों से संबंधित मामलों में चार्जशीट दायर करने के लिए वैधानिक अवधि से परे समय बढ़ाने से पहले नोटिस जारी करना और आरोपी को निष्पक्ष सुनवाई प्रदान करना अनिवार्य है।

    राज्य के तर्कों को खारिज करते हुए, जस्टिस शशिकांत मिश्रा की एकल न्यायाधीश खंडपीठ ने कहा, "... यह स्पष्ट है कि 27.01.2021 को विद्वान विशेष न्यायाधीश ने अभियुक्तों को पेश किए बिना और उन्हें मामले में अपनी बात रखने का अवसर दिए बिना जांच पूरी करने के लिए तीस दिन तक का समय बढ़ाने का आदेश दिया था। यह आदेश अवैध और कानून की नजर में टिकाऊ नहीं है।"

    केस शीर्षक: बीरू सिंह बनाम ओडिशा राज्य

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    एफआईआर रद्द करने की मांग वाली रिट याचिका में आरोपी के बचाव पर विचार नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) रद्द करने की मांग वाली रिट याचिका पर विचार करते समय आरोपी के बचाव पर ध्यान नहीं दिया जा सकता।

    जस्टिस अंजनी कुमार मिश्रा और जस्टिस दीपक वर्मा की खंडपीठ ने कालीचरण द्वारा दायर एक याचिका को खारिज करते हुए उक्त टिप्पणी की। इस याचिका में आरोपित एफआईआर रद्द करने की मांग की गई थी। उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302, 120-बी के तहत मामला दर्ज किया गया।

    केस का शीर्षक - कालीचरण बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और दो अन्य

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    प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण | मजिस्ट्रेट शिकायत का संज्ञान तब तक नहीं ले सकते, जब तक कि शि‌कायत सरकार द्वारा अधिसूचित 'उचित प्राधिकारी' ने दायर नहीं की हैः कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने दोहराया है कि प्री-कॉसेप्‍शन एंड प्री नैटल डालग्नोस्टिक टेक्न‌िक (प्रॉहिबिशन ऑफ सेक्स सेलेक्‍शन) एक्ट, 1994 के सेक्‍शन 28 के तहत, मजिस्ट्रेट कोर्ट किसी शिकायत का संज्ञान नहीं ले सकती, जब तक कि इसे ' केंद्र या राज्य सरकार की ओर से अधिसूचित 'उपयुक्त प्राधिकारी' ने पंजीकृत ना किया हो।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज बेंच ने हाल ही में तालुका स्वास्थ्य अधिकारी द्वारा दायर एक शिकायत के आधार पर धोंडीबा अन्ना जाधव और गोकक स्थित श्री धोंडीडा अन्ना जाधव मेमोरियल अस्पताल चलाने वाले अन्य लोगों के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।

    केस शीर्षक: धोंडीबा अन्ना जाधव बनाम कर्नाटक राज्य

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    [17-करोड़ की धोखाधड़ी का मामला] "निजी लाभ के लिए जनता के धन के दुरुपयोग ने देश को बुरी तरह प्रभावित किया": इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 17 करोड़ रूपये के जनता के धन की धोखाधड़ी के संबंध में आपराधिक कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट ने जोर देकर कहा कि निजी लाभ के लिए सार्वजनिक कार्यालय का दुरुपयोग दायरा और पैमाने पर बढ़ गया है। यह देश को बुरी तरह प्रभावित करता है। इससे होने वाला भ्रष्टाचार राजस्व को कम करता है। आर्थिक गतिविधि को धीमा करता है और आर्थिक विकास को रोकता है।

    जस्टिस राजीव गुप्ता की पीठ दुर्गा दत्त त्रिपाठी द्वारा दायर सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर आवेदन पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता को 17.27 करोड़ रुपये के गबन मामले में आरोपी गया है।

    केस का शीर्षक - दुर्गा दत्त त्रिपाठी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और दुसरी

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    पंजीकरण की आवश्यकता न होने पर, बिक्री विलेख का पंजीकरण उस समय से संचालित होगा, जब से यह संचालित होना शुरू हो जाएगा, न कि पंजीकरण के समय सेः राजस्‍थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर पीठ ने पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 23, 47 और 74 पर भरोसा करते हुए दोहराया कि पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होने पर, बिक्री विलेख का पंजीकरण उस समय से संचालित होगा, जब से यह संचालित होना शुरू हो जाएगा, न कि पंजीकरण के समय से।

    केस शीर्षक: चित्रांशी गोयल बनाम इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड।

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    वाहन की खरीदते समय भुगतान किया गया 'रोड टैक्स' और राजमार्ग पर भुगतान किया गया 'टोल टैक्स' दोहरे टैक्स के समान नहीं : आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि कार खरीदते समय मोटर वाहन अधिनियम के तहत भुगतान किया गया रोड टैक्स और राष्ट्रीय राजमार्ग टोल बूथों पर दिया जाने वाला टोल टैक्स दोहरे टैक्स की श्रेणी में नहीं आएगा।

    केस शीर्षक: डी. विद्या सागर बनाम भारत संघ और चार अन्य

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    पोक्सो अपराध से पैदा हुआ बच्चा सीआरपीसी की धारा 2 (wa) के तहत "पीड़ित": बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने रेप के एक दोषी की उम्रकैद की सजा को घटाकर 10 साल करने का निर्देश दिया है। साथ ही कोर्ट ने दोषी के अवैध कृत्यों से पैदा हुए बच्चे को मुआवजा देने का भी निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि बच्चा भी अपराध का "पीड़ित" है, जैसा कि सीआरपीसी की धारा 2 (wa) के तहत विचार किया गया था। 15 साल की रेप पीड़िता की 2015 में बच्चे को जन्म देने के चार दिन बाद मौत हो गई थी।

    जस्टिस साधना एस. जाधव और जस्टिस पृथ्वीराज के चव्हाण की खंडपीठ ने कहा कि बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है और उन्होंने आरोपी रमेश तुकाराम वावेकर को 2 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया। इसने सचिव, जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण, मुंबई को पीड़ित बच्चे (लड़के) का अभिभावक नियुक्त किया, जो वर्तमान में एक अनाथालय में है।

    केस शीर्षक: रमेश तुकाराम वावेकर बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्‍य

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    घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 19 के तहत साझा घर में निवास का अधिकार अपरिहार्य अधिकार नहीं, जब बहू को सास-ससुर के खिलाफ खड़ा किया गया होः दिल्‍ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 19 के तहत निवास का अधिकार साझा घर में निवास का अपरिहार्य अधिकार नहीं है, खासकर, जब बहू को वृद्ध ससुर और सास के खिलाफ खड़ा किया जाता हो।

    जस्टिस योगेश खन्ना ने कहा, "इस प्रकार, जहां निवास एक साझा घर है, यह मालिक पर अपनी बहू के खिलाफ बेदखली का दावा करने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाता है। पार्टियों के बीच एक तनावपूर्ण संघर्षपूर्ण संबंध यह तय करने के लिए प्रासंगिक होगा कि बेदखली के आधार मौजूद हैं या नहीं।"

    केस शीर्षक: रवनीत कौर बनाम प्रीथपाल सिंह धिंगरा

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    घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पत्नी को दिए गए भरण-पोषण में सीआरपीसी की धारा 127 के तहत वृद्धि नहीं की जा सकतीः कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के तहत अलग हो चुकी पत्नी को देय भरण-पोषण को आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 127 के तहत दायर आवेदन पर बढ़ाया नहीं जा सकता।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने कहा, "सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दिया जाने वाले भरण-पोषण, सीआरपीसी की धारा 127 के तहत दायर आवेदन में भ‌िन्न-‌भिन्न हो सकता है। अनिवार्य यह है कि भरण-पोषण का आदेश सीआरपीसी की धारा 127 के तहत दायर याचिका से पहले होना चाहिए, जिसमें विफल होने पर, सीआरपीसी की धारा 127 के तहत भरण-पोषण बढ़ाने की मांग वाली याचिका उपलब्ध नहीं होती है।"

    केस टाइटल: शिवानंद s/o करबासप्पा गुरन्नावर बनाम। बसव्वा @ लक्ष्मी w/o शिवानंद गुरन्नावर

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    सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज गवाह का बयान केवल क्रॉस एक्ज़ामिनेशन के लिए है, साक्ष्य के दायरे में नहीं आता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा, "यह निर्णय की श्रेणी में स्पष्ट है कि सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज गवाह का बयान साक्ष्य के दायरे में नहीं आता। इस तरह के सबूत केवल आमने सामने क्रॉस एक्ज़ामिनेशन के लिए हैं। सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज गवाह का बयान सबूत में पूरी तरह से अस्वीकार्य होने के कारण इस पर विचार नहीं किया जा सकता है।"

    जस्टिस ओम प्रकाश त्रिपाठी और जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता ने यह टिप्पणी विशेष न्यायाधीश, बुलंदशहर द्वारा पारित दोषसिद्धि के आदेश और अपीलकर्ताओं को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302/34 के तहत प्रत्येक पर 10,000/- रुपये के जुर्माने के साथ आजीवन कारावास की सजा के खिलाफ अपीलकर्ताओं द्वारा दायर एक आपराधिक अपील पर सुनवाई के दौरान की।

    केस का शीर्षक : मो. अफजल @ गुड्डू और अन्य बनाम यू.पी. राज्य

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    सहायक सामग्री के बिना चार्जशीट में सुधार सीआरपीसी की धारा 482 के तहत कार्यवाही रद्द करने का आधार है: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट (Andhra Pradesh High Court) ने हाल ही में फैसला सुनाया कि प्राथमिकी (FIR) या सीआरपीसी की धारा 161के तहत बयान में किसी भी सहायक सामग्री के बिना चार्जशीट में जोड़ा गया बयान अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और कार्यवाही को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत रद्द किया जा सकता है।

    केस का शीर्षक: विंती रामकृष्ण, डब्ल्यू.जी.डिस्ट एंड अन्य बनाम पीपी, एचवाईडी

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    [SC/ST Act] पीड़ित के मुकदमे की कार्यवाही रिकॉर्ड करने के अनुरोध को खारिज नहीं किया जा सकता, भले ही यौन अपराध शामिल हो: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने हाल ही में फैसला सुनाया कि जब अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत अपराधों की शिकार मुकदमे की कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्ड करने का अनुरोध करती है, तो अदालत इसे ठुकरा नहीं सकती, भले ही यौन अपराध शामिल हो।

    न्यायमूर्ति कौसर एडप्पागथ ने उल्लेख किया कि अधिनियम की धारा 15 ए (10) जो सभी कार्यवाही की वीडियो-रिकॉर्डिंग की अनुमति देती है, सीआरपीसी की धारा 327 (2) जो यौन अपराधों से जुड़े मामलों के अनुरूप है जो इन-कैमरा ट्रायल का प्रावधान करती है क्योंकि दोनों को पीड़ित के हितों की रक्षा के लिए अधिनियमित किया गया है।

    केस का शीर्षक: केरल राज्य और नौफाल

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    मुद्दा संवैधानिक न्यायालय के समक्ष लंबित है, इसलिए विरोध का अधिकार खत्म नहीं जाताः आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मामले में कहा कि एक याचिकाकर्ता को किसी मुद्दे पर विरोध करने के अधिकार से केवल इसलिए वंचित नहीं किया जाएगा क्योंकि उसने उसी विषय पर एक संवैधानिक अदालत का दरवाजा खटखटाया है।

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के समक्ष हाल ही में एक रिट याचिका में, ज‌स्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस बीएस भानुमति ने कहा, "शिकायतों के निवारण के लिए एक संवैधानिक अदालत का दरवाजा खटखटाना वास्तव में एक नागरिक को उसी विषय-वस्तु के संबंध में विरोध करने से वंचित नहीं करेगा। हम ऐसा इसलिए कहते हैं कि जब न्यायालय विवाद को देख रहा होगा, तो वह मामले की जांच केवल कानूनी लेंस से करेगा, जो न्यायनिर्णयन के तय मापदंडों के आधार पर होगा; जबकि, विरोध का मकसद किसी मुद्दे पर सरकार का ध्यान खींचना होता है।"

    शीर्षक: केवी कृष्णैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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    आरोपी के खिलाफ अस्पष्ट आरोप के आधार पर दी गई जमानत रद्द नहीं की जा सकती: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि अगर किसी ठोस सबूत के बिना आरोपी के खिलाफ अस्पष्ट आरोप हैं तो दी गई जमानत को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 439 (2) के तहत रद्द नहीं किया जा सकता है।

    पूरा मामला- आरोपी को मिली जमानत रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 439 (2) के तहत आपराधिक याचिका दायर की गई थी। यह डबल मर्डर का मामला है। एक मृतक की पत्नी ने उक्त अपराध में आरोपी को दी गई उक्त जमानत को इस आधार पर रद्द करने के लिए याचिका दायर की कि दो पूर्व जमानत आवेदनों के खारिज होने के बाद जमानत देने के लिए परिस्थितियों में कोई बदलाव नहीं हुआ है।

    केस का शीर्षक: वड्डू लक्ष्मीदेवम्मा @ लक्ष्मी देवी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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    [मोटर दुर्घटना] "बीमा कंपनी लाइसेंस की वैधता के मुद्दे को अपील में नहीं उठा सकती, अगर यह ट्रिब्यूनल के समक्ष दलील नहीं दी गई थी": जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक बीमा कंपनी द्वारा दायर एक अपील को खारिज कर दिया, जिसमें उसने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए निर्णय को इस आधार पर चुनौती दी थी कि आपत्तिजनक वाहन चालक द्वारा चलाया जा रहा था, जिसके पास वैध ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था।

    न्यायमूर्ति रजनीश ओसवाल की खंडपीठ ने कहा कि अपीलकर्ता-बीमा कंपनी ने ट्रिब्यूनल के समक्ष अपनी आपत्तियों में लाइसेंस की वैधता के संबंध में कुछ भी दलील नहीं दी थी और इसलिए, इसे अपील में उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

    केस का शीर्षक - ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम नरिंदर कुमार एंड अन्य

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    शादी के झूठे वादे पर बलात्कार- विवाहित, शिक्षित महिला को शादी से पहले यौन संबंध बनाने के परिणामों के बारे में अच्छी तरह से पता होना चाहिए : राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर बेंच ने शादी के झूठे वादे के आधार पर बलात्कार करने से संबंधित एक मामले में कहा है कि शादीशुदा शिक्षित महिला को (प्रत्येक मामले के तथ्यों के आधार पर) शादी से पहले किसी पुरुष के साथ संभोग करने के परिणामों से अच्छी तरह वाकिफ होना चाहिए।

    अदालत ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के तहत एक महिला की सहमति को केवल तभी तथ्यों की गलतफहमी के आधार पर गलत ठहराया जा सकता है, जहां इस तरह की गलतफहमी शारीरिक संबंध स्थापित करने के लिए उसके आत्मसमर्पण का आधार थी। अदालत ने आगे कहा कि वादे के उल्लंघन को झूठा वादा नहीं कहा जा सकता है। एक झूठा वादा स्थापित करने के लिए, वादा करने वाले का इसे करते समय अपने शब्दों पर कायम रहने का कोई इरादा नहीं होना चाहिए।

    केस का शीर्षक- राधाकृष्ण मीणा बनाम राजस्थान राज्य, पीपी के माध्यम से

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