वादी धारा 151 सहपठित आदेश XX नियम 6ए के तहत अर्जी दायर कर सकता है, जहां मुकदमा निर्णायक रूप से तय किया गया है, लेकिन कोई डिक्री नहीं दी गई थी: मेघालय हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
4 March 2022 10:52 AM IST
मेघालय हाईकोर्ट ने कहा है कि एक वादी धारा 151 के साथ पठित आदेश XX नियम 6ए के तहत आवेदन दायर कर सकता है, जहां उसके द्वारा दायर किए गए मुकदमे पर निर्णायक रूप से निर्णय तो लिया जाता है, लेकिन उस संबंध में कोई औपचारिक डिक्री नहीं दी गयी थी।
न्यायमूर्ति एचएस थांगखिव की एकल पीठ ने कहा,
"कोर्ट के सुविचारित मत के अनुसार ये प्रक्रियागत मामले हैं। चूंकि कोई डिक्री तैयार नहीं की गई थी, इसलिए याचिकाकर्ता को निचली अदालत के समक्ष सीपीसी के आदेश 20 नियम 6-ए के साथ पठित धारा 151 के तहत दिनांक 04.07.2016 के आदेश के अनुसार डिक्री जारी करने के लिए आवेदन दाखिल करना आवश्यक है।"
तथ्यात्मक पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ताओं द्वारा सहायक उपायुक्त, री भोई जिला, नोंगपोह के न्यायालय के समक्ष वादी के रूप में एक स्वामित्व विवाद स्थापित किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप कार्यवाही के दौरान पक्षों के बीच समझौता हुआ। तत्पश्चात, दिनांक 07.06.2016 को एक समझौता याचिका निचली अदालत के समक्ष दायर की गई थी और पूरे मुकदमे का निपटारा दिनांक 04.07.2016 के आदेश द्वारा किया गया था।
प्रतिवादियों द्वारा समझौते की शर्तों का पालन न करने के कारण, याचिकाकर्ताओं ने समझौता विलेख दिनांक 04.07.2016 के निष्पादन के लिए निचली अदालत का दरवाजा खटखटाया। निचली अदालत ने दिनांक 02.07.2019 और 13.08.2019 के आदेशों के तहत, पार्टियों की संबंधित भूमि का उचित माप करने के लिए स्थानीय निरीक्षण करने और अदालत के समक्ष रिपोर्ट दाखिल करने के वास्ते मध्यस्थ के रूप में कार्य करने के लिए एक अमीन (बेलीफ) नियुक्त किया, जिसने 19.08.2019 को रिपोर्ट दाखिल कर दी।
प्रतिवादियों ने अपने वकील के माध्यम से उक्त निष्पादन मामले में आपत्ति दर्ज कराई और अदालत ने उनकी आपत्ति पर विचार किया और दिनांक 18.02.2020 के आक्षेपित आदेश के तहत वाद का निपटारा करते हुए कहा कि दिनांक 04.07.2016 के समझौता करार के संदर्भ में कोई डिक्री तैयार नहीं की गई थी।
इसने पार्टियों को अपने स्वयं के विवादों को हल करने का निर्देश दिया और द्वारा सीपीसी के आदेश 21 नियम 15 के तहत दायर निष्पादन आवेदन के खिलाफ प्रतिवादियों के आपत्ति आवेदन की अनुमति देकर अपना निर्णय दिया। इस आदेश से व्यथित होकर याचिकाकर्ताओं ने यह पुनरीक्षण याचिका दायर की है।
विवाद:
याचिकाकर्ता के वकील एस.आर. लिंगदोह ने 'एस सतनाम सिंह व अन्य बनाम सुरेंद्र कौर और अन्य' के मामले में दिये गये फैसले का उल्लेख किया, जिसमें यह माना गया था कि इस सवाल का निर्धारण करने के लिए कि न्यायालय द्वारा पारित आदेश एक डिक्री है या नहीं, उसे पांच परीक्षणों को पूरा करना होगा, जो इस प्रकार है :-
(i) एक निर्णय होना चाहिए;
(ii) ऐसा न्यायनिर्णय किसी वाद में दिया गया होगा;
(iii) इसने वाद में विवादित सभी या किसी भी मामले के संबंध में पक्षों के अधिकारों का निर्धारण किया होगा;
(iv) ऐसा निर्धारण निर्णायक प्रकृति का होना चाहिए; तथा
(v) ऐसे निर्णय की औपचारिक अभिव्यक्ति होनी चाहिए।
उनकी दलील है कि मौजूदा विवाद परीक्षणों पर खरा उतरा है, क्योंकि, पार्टियों के अधिकारों का निर्धारण करने वाले मुकदमे में ऐसा निर्णय था, जो निर्णायक प्रकृति का था और औपचारिक अभिव्यक्ति याचिका के रूप में थी। साथ ही, दोनों पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित और कोर्ट द्वारा मंजूर समझौते की शर्तों का विवरण उसमें दिया गया था।
उन्होंने इस प्रकार तर्क दिया कि, आक्षेपित आदेश स्पष्ट रूप से अनियमित और कानून में खराब है। कोर्ट ने प्रतिवादियों की आपत्तियों को स्वीकार किया और कहा कि निष्पादित करने के लिए कोई डिक्री नहीं थी, जिससे याचिकाकर्ता की प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया गया।
उल्लेखनीय है कि नोटिस और कई स्थगनों के बावजूद, प्रतिवादी उपस्थित नहीं हुए। इसलिए कोर्ट ने उनके खिलाफ एकतरफा कार्रवाई करने का फैसला किया।
कोर्ट की टिप्पणियां:
कोर्ट ने सीपीसी के आदेश XXIII नियम 3 के तहत मुकदमे के समझौते से संबंधित प्रावधान का संज्ञान लिया। इसने कहा कि प्रावधान इस बात पर विचार करता है कि कोर्ट द्वारा समझौते को दर्ज करने के बाद (जैसा कि तत्काल मामले में दिनांक 04.07.2016 के आदेश के तहत किया गया था) यह एक डिक्री पारित करने के लिए आगे बढ़ेगा। हालाँकि, वर्तमान मामले में भले ही समझौता विलेख निचली अदालत की संतुष्टि के लिए था और उक्त समझौते के संदर्भ में स्वामित्व वाद का निपटारा किया गया था, लेकिन कोई औपचारिक डिक्री तैयार नहीं की गई थी।
कोर्ट ने 'सर शोभा सिंह एंड संस प्राइवेट लिमिटेड बनाम बनाम शशि मोहन कपूर (मृतक)' के मामले पर भरोसा किया। इसी तरह के एक प्रश्न पर, सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि डिक्री की प्रमाणित प्रति के बिना दायर किए जाने पर भी एक निष्पादन आवेदन अनुरक्षणीय होगा, और यह निष्पादन संबंधी न्यायालय को निष्पादन याचिका स्वीकार करने और योग्यता के आधार पर उठाई गई आपत्तियों को तय करने का अधिकार देता है।
उस मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह भी देखा कि जब तक औपचारिक डिक्री पारित नहीं की जाती है, तब तक आदेश को संहिता के आदेश XX नियम 6ए (2) के आधार पर इस अंतराल अवधि के दौरान एक डिक्री के रूप में माना जाना था।
दूसरे शब्दों में, इस तथ्य के होते हुए भी कि डिक्री पारित नहीं की गई थी, फिर भी संहिता के आदेश XX नियम 6ए(2) में रेखांकित सिद्धांत के आधार पर, आदेश का प्रभाव निष्पादन के प्रयोजनों के लिए या किसी अन्य उद्देश्य के लिए डिक्री के वास्तविक पारित होने की तारीख तक था। इसने निष्पादन संबंधी न्यायालय को निष्पादन आवेदन पर विचार करने और प्रतिवादी द्वारा उठाई गई आपत्तियों को योग्यता के आधार पर तय करने का अधिकार दिया।
उपरोक्त मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित आदेश को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने परिणामस्वरूप निचली अदालत के आक्षेपित आदेश को रद्द कर दिया। इसने यह भी निर्देश दिया कि डिक्री तैयार करने और उसकी प्रमाणित प्रति दाखिल करने पर निष्पादन आवेदन को निष्पादन न्यायालय द्वारा लिया जाएगा। डिक्री तैयार करने में नीचे की अदालत द्वारा कोई आपत्ति स्वीकार नहीं की जाएगी क्योंकि यह केवल एक औपचारिकता है जिसे समझौते के संदर्भ में पूरा किया जाना है।
केस का शीर्षक: श्री डेलिकन शादाप और अन्य बनाम श्रीमती दाल नोंगत्री और अन्य
केस नंबर: सीआरपी नंबर 30/2020
निर्णय की तिथि: 03 मार्च 2022
कोरम: न्यायमूर्ति एच. एस. थांगखिव
साइटेशन : 2022 लाइव लॉ (मेघालय) 6
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