एफआईआर रद्द करने की मांग वाली रिट याचिका में आरोपी के बचाव पर विचार नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

2 March 2022 10:44 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट


    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) रद्द करने की मांग वाली रिट याचिका पर विचार करते समय आरोपी के बचाव पर ध्यान नहीं दिया जा सकता।

    जस्टिस अंजनी कुमार मिश्रा और जस्टिस दीपक वर्मा की खंडपीठ ने कालीचरण द्वारा दायर एक याचिका को खारिज करते हुए उक्त टिप्पणी की। इस याचिका में आरोपित एफआईआर रद्द करने की मांग की गई थी। उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302, 120-बी के तहत मामला दर्ज किया गया।

    दरअसल, याचिकाकर्ता कालीचरण पर मृतका को परेशान करने, जिंदा जलाकर उसकी हत्या करने का आरोप लगाया गया। अदालत के समक्ष उसने तर्क दिया कि मृतका को दुर्घटनावश जलने से चोटें आईं। उसके कहने पर उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया और उसकी मृत्यु के बाद शरीर को उसके पिता को सौंप दिया गया।

    न्यायालय के समक्ष यह भी कहा गया कि सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत आवेदन दाखिल करने से पहले मृतका के पिता ने पुलिस अधिकारियों को शिकायत की। शिकायत में याचिकाकर्ता के पक्ष में एक जांच की गई।

    दूसरी ओर, मृतका के पिता की ओर से पेश वकील ने कहा कि दहेज की मांग को लेकर पूर्व में विवाद था और दोनों पक्षों के बीच एक समझौता किया गया। इसके तहत मृतका याचिकाकर्ता के साथ रहने लगी। हालांकि, उसके बाद भी मृतका ने उसे फोन करके सूचित किया कि उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जा रहा है।

    आगे प्रस्तुत किया गया कि जब 14 मार्च, 2021 को पहले पिता ने अपनी बेटी (मृतका) को उसके मोबाइल फोन पर कॉल किया तो याचिकाकर्ता/आरोपी ने कॉल रिसीव किया और उसे सूचित किया कि सब ठीक है।

    हालांकि बाद में 18 मार्च, 2021 को याचिकाकर्ता/आरोपी ने पहले मृतका के पिता को फोन कर मृतका की मौत की सूचना दी। यह तर्क दिया गया कि कथित घटना और उपचार के बारे में पहले मृतका के पिता को कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह कई अस्पतालों में उपचार हुआ।

    इन परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में और पक्षों के वकील को सुनने और प्रथम सूचना रिपोर्ट के अवलोकन पर न्यायालय ने पाया कि एफआईआर में संज्ञेय अपराध के तत्व शामिल हैं।

    इसे देखते हुए कि प्रथम सूचना रिपोर्ट को याचिकाकर्ता के वकील द्वारा प्रस्तुत किए गए सबमिशन के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता । उसके बचाव में दायर याचिका को अदालत ने खारिज कर दिया।

    केस का शीर्षक - कालीचरण बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और दो अन्य

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