हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

22 Oct 2023 10:00 AM IST

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (16 अक्टूबर 2023 से 20 अक्टूबर 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    जिला अपीलीय अदालत द्वारा दोषसिद्धि, सजा की पुष्टि के बाद ट्रायल कोर्ट सीआरपीसी की धारा 389 के तहत दोषियों को जमानत नहीं दे सकता: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि जिला अपीलीय अदालत द्वारा दोषसिद्धि के फैसले की पुष्टि करने और सजा आदेश जारी करने के बाद, ट्रायल कोर्ट के पास सीआरपीसी की धारा 389 के तहत दोषी व्यक्तियों को जमानत देने का अधिकार नहीं है। जस्टिस अनिल कुमार सिन्हा ने कहा कि हालांकि ट्रायल कोर्ट को सजा को निलंबित करने और जमानत देने का अधिकार है यदि वह संतुष्ट है कि दोषी व्यक्ति दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ अपील पेश करने का इरादा रखता है, यह शक्ति अपील प्रक्रिया तक सीमित है।

    केस टाइटल: शिवजग पासवान बनाम बिहार राज्य

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    [हिंदू विवाह अधिनियम] वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश का पालन करने में पत्नी की विफलता तलाक का आधार: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक जोड़े के विवाह को समाप्त कर दिया है, क्योंकि पति द्वारा दायर एक आवेदन पर ट्रायल कोर्ट द्वारा दाम्पत्य बहाली का आदेश पारित करने के बाद भी पत्नी पति के साथ रहने के लिए तैयार नहीं हुई थी। जस्टिस एसआर कृष्ण कुमार और जस्टिस जी बसवराज की खंडपीठ ने पति द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया और परित्याग के आधार पर तलाक की मांग करने वाली उसकी याचिका को खारिज करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया।

    केस टाइटल: XYZ और ABC

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    केवल ऋण राशि वसूलने की मांग करना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि यदि कोई व्यक्ति कर्ज की वसूली की मांग करता है तो केवल इस कृत्य को आत्महत्या के लिए उकसाने के रूप में नहीं माना जाएगा क्योंकि कोई भी व्यक्ति जिसने ऋण दिया है वह निश्चित रूप से इसे वापस लेना चाहेगा। चीफ ज‌िस्टिस रमेश सिन्हा की पीठ ने शैला सिंह नाम की महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में दर्ज एफआईआर और आरोप पत्र को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

    केस टाइटलः शैला सिंह बनाम छत्तीसगढ़ राज्य

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    अभियोजन पक्ष द्वारा तथ्यों को गलत ढंग से पेश करने के कारण पहली बार खारिज होने पर दूसरी जमानत अर्जी सुनवाई योग्य: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने माना कि जब अभियोजन पक्ष द्वारा गलत तथ्य प्रस्तुत करने के कारण पहली जमानत अर्जी खारिज हो जाती है तो दूसरी अर्जी सुनवाई योग्य होती है। तेलंगाना हाईकोर्ट के नियम अभियोजन पक्ष की गलत बयानी के कारण प्रारंभिक अस्वीकृति के मामलों में दूसरे जमानत आवेदन सुनवाई योग्य हैं।

    केस टाइटल: दारागोनी श्रीनु, विक्रम, महबूबनगर जिला बनाम पीपी. हैदराबाद

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    [NDPS Act] नमूने मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में लिए जाएंगे, केवल अदालत के समक्ष पेश करना एक्ट की धारा 52ए को संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में इस बात पर जोर दिया कि नारकोटिक्स और साइकोट्रोपिक पदार्थ अधिनियम (NDPS Act) की धारा 52 (ए) के अनुसार, नमूने मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में लिए जाने चाहिए और केवल जब्त करने के बाद अदालत के समक्ष नमूने पेश करना पर्याप्त नहीं है। जस्टिस पी धनबल ने इस प्रकार अधिनियम के तहत एक व्यक्ति की दोषसिद्धि रद्द कर दी, क्योंकि अभियोजन एजेंसी एक्ट के तहत और सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन करने में विफल रही है।

    केस टाइटल: एन.उगनचंद कुमावत बनाम पुलिस इंस्पेक्टर

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    दिल्ली कोर्ट ने 'द वायर' के संपादकों से जब्त किए गए इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों की रिलीज को बरकरार रखा, कहा कि दिल्ली पुलिस उनके लिए अनुचित कठिनाई पैदा कर रही है

    दिल्ली की एक अदालत ने मजिस्ट्रेट अदालत के उस आदेश के खिलाफ दिल्ली पुलिस द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें पिछले साल अक्टूबर में बीजेपी नेता अमित मालवीय द्वारा उनके खिलाफ दर्ज कराई गई एफआईआर के संबंध में ली गई तलाशी के दौरान "द वायर" के संपादकों से जब्त किए गए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को रिलीज करने का आदेश दिया गया था।

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    केवल सोशल मीडिया पर किसी पोस्ट को लाइक करना अश्लील सामग्री प्रकाशित या प्रसारित करना नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि सोशल मीडिया पर किसी पोस्ट को लाइक करने मात्र से उक्त पोस्ट को प्रकाशित या प्रसारित करना नहीं माना जाएगा और इसलिए, इस कृत्य पर सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67 लागू नहीं होगी, जो इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री के प्रकाशन या प्रसारण के लिए सजा का प्रावधान करती है। जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने आगे कहा कि आईटी अधिनियम की धारा 67 में आने वाले शब्द "कामुक या स्वार्थी हित के लिए अपील" हैं, जिसका अर्थ यौन रुचि और इच्छा से संबंधित है, और इसलिए, प्रावधान किसी अन्य उत्तेजक सामग्री के लिए किसी भी सजा का प्रावधान नहीं करता है।

    केस टाइटलः मोहम्मद इमरान काजी बनाम यूपी राज्य और अन्य [APPLICATION U/S 482 No. - 31091 of 2023]

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    पीएमएलए की धारा 50 के तहत समन जारी करने की ईडी की शक्ति में गिरफ्तारी की शक्ति शामिल नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुनाया कि पीएमएलए की धारा 50 के तहत किसी व्यक्ति को समन जारी करने की प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की शक्ति में उस व्यक्ति की गिरफ्तारी की शक्ति शामिल नहीं है। जस्टिस अनुप जयराम भंभानी ने कहा कि गिरफ्तारी की शक्ति पीएमएलए की धारा 50 में "स्पष्ट रूप से अनुपस्थित" है, जो ईडी अधिकारियों को किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार देती है, बशर्ते कि वे उसमें उल्लिखित शर्तों को पूरा करते हों।

    केस टाइटल: आशीष मित्तल बनाम प्रवर्तन और अन्य निदेशालय।

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    खेड़ा में मुस्लिम पुरुषों की पिटाई के मामले में गुजरात हाईकोर्ट ने चार पुलिसकर्मियों को अवमानना का दोषी पाया, 14 दिन की जेल की सजा का आदेश दिया

    गुजरात हाईकोर्ट ने गुरुवार को गुजरात पुलिस के 4 अधिकारियों को न्यायालय की अवमानना (सुप्रीम कोर्ट के डीके बसु दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के लिए) का दोषी पाया और उन्हें पिछले साल अक्टूबर में खेड़ा जिले में मुस्लिम पुरुषों को सार्वजनिक रूप से पीटने के लिए 14 दिनों के साधारण कारावास की सजा सुनाई।

    जस्टिस एएस सुपेहिया और जस्टिस गीता गोपी की पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि न्यायालय इस बात से खुश नहीं है कि यह दिन आ गया है जब वह ऐसे आदेश पारित कर रही है जिसमें अधिकारियों को साधारण कारावास से गुजरने के लिए कहा जा रहा है। गौरतलब है कि 16 अक्टूबर को पीड़ितों ने चारों पुलिसकर्मियों से आर्थिक मुआवजा लेने से इनकार कर दिया था।

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    लोक अदालत के अवार्ड को डीम्ड डिक्री, सीपीसी की धारा 96 के तहत आगे की अपील की अनुमति नहीं: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में देखा कि लोक अदालत द्वारा जारी प्रत्येक अवार्ड सिविल कोर्ट डिक्री माना जाता है और यह अंतिम और बाध्यकारी है। इसलिए सीपीसी की धारा 96 के तहत आगे की अपील के लिए दरवाजा बंद कर दिया गया है। जस्टिस वसीम सादिक नरगल ने कहा कि लोक अदालत के फैसले को केवल तभी चुनौती दी जा सकती है जब धोखाधड़ी का आरोप हो या डिक्री का आधार बनने वाला समझौता अमान्य हो।

    केस टाइटल: चीफ इंजीनियर पीडब्ल्यूडी कश्मीर बनाम फहमीदा बेगम पत्नी लेफ्टिनेंट मोहम्मद नसीम खान निवासी पहलिपोरा बोनियार।

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    हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम | पति के दावे के बावजूद मां मृत बेटे की पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी का दावा कर सकती है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि पहले मरे बेटे की मां पैतृक और संयुक्त परिवार की संपत्तियों में बेटे के हिस्से में श्रेणी- I की उत्तराधिकारी बन जाती है, भले ही उसका पति जीवित हो और हिंदू के उत्तराधिकार अधिनियम तहत संपत्ति में हिस्सेदारी का दावा कर सकती है। जस्टिस एचपी संदेश ने टीएन सुशीलम्मा द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया, जिनकी कार्यवाही लंबित रहने के दौरान मृत्यु हो गई थी और प्रथम अपीलीय अदालत के आदेश को पलट दिया, जिसमें कहा गया था पहले मरे बेटे संतोष की मां किसी भी हिस्से की हकदार नहीं है।

    केस टाइटल: टी एन सुशीलम्मा और अन्य और चिराग राघवेंद्र और अन्य

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    यूएपीए | अपीलकर्ता प्राधिकारी धारा 25 के तहत निर्धारित समय सीमा से परे मामले को निर्दिष्ट प्राधिकारी को वापस नहीं भेज सकता: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा है कि एक बार जब अपीलीय प्राधिकारी निर्दिष्ट प्राधिकारी के आदेश में रिजन‌िंग की कमी को पहचान लेता है तो अपीलीय निकाय के लिए यह अनिवार्य है कि वह गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अध‌िनियम की धारा 25(6) के तहत निर्दिष्ट समय सीमा के भीतर आदेश की पुष्टि करे या उसे रद्द करे।

    जस्टिस वसीम सादिक नरगल ने स्पष्ट किया कि अपीलीय प्राधिकारी आदेश की पुष्टि करने या रद्द करने के लिए नामित प्राधिकारी के लिए निर्धारित 60 दिनों से अधिक वैधानिक समय सीमा को संभावित रूप से बढ़ाकर मामले को रिमांड पर नहीं दे सकता है।

    केस टाइटल: जीएम भट बनाम जेके राज्य

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    सरोगेसी | डोनर गैमीट्स के इस्तेमाल पर रोक लगाने वाली अधिसूचना प्रथम दृष्टया विवाहित बांझ जोड़ों के माता-पिता बनने के अधिकार का उल्लंघन करती है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना, जो सरोगेसी कराने के इच्छुक जोड़े के लिए दाता युग्मकों के उपयोग पर रोक लगाती है, प्रथम दृष्टया विवाहित बांझ जोड़े को माता-पिता बनने से वंचित करके उनके कानूनी और मेडिकल रूप से विनियमित प्रक्रियाओं और सेवाओं तक पहुंचने के मूल अधिकारों का उल्लंघन करती है।

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    पत्नी को खाना बनाना नहीं आता, तनावपूर्ण विवाह को सुधारने के लिए पति के नियोक्ता की मदद लेना 'क्रूरता' नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने माना कि पत्नी अपने टूटे हुए वैवाहिक रिश्ते को जोड़ने और उसकी समस्याओं का पता लगाने के बाद उसे सामान्य जीवन में वापस लाने के लिए अपने पति के नियोक्ता की मदद मांग रही है, या उसका खाना पकाने का ज्ञान न होना 'क्रूरता' का कारण बनने के लिए पर्याप्त आधार नहीं हो सकता। डिवीजन बेंच ने पत्नी द्वारा प्राप्त वैवाहिक अधिकारों की बहाली के फैसले के खिलाफ पति की अपील पर उपरोक्त टिप्पणियां कीं। उन्होंने तलाक की उनकी याचिका खारिज करने के आदेश को भी चुनौती दी।

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    अनुकंपा रोजगार में विवाहित और अविवाहित बेटी के बीच अंतर करना "सेक्सिस्ट": कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने पाया कि राष्ट्रीय कोयला वेतन समझौता-VI के खंड 9.3.3 के अनुसार अनुकंपा नियुक्ति के उद्देश्य से 'विवाहित' और 'अविवाहित' बेटियों के बीच अंतर करना अधिकार के बाहर है और अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है। अनुकंपा नियुक्ति के लिए याचिकाकर्ताओं की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इसकी मांग के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक मृत कर्मचारी पर निर्भरता और वित्तीय आवश्यकता है।

    केस टाइटल: दीपाली मित्रा और अन्य बनाम कोल इंडिया लिमिटेड एवं अन्य।

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    क्रूरता के घटक के बिना दहेज की मांग आईपीसी की धारा 498ए के तहत अपराध नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि 'क्रूरता' के तत्व के बिना केवल दहेज या किसी संपत्ति या मूल्यवान परिसंपत्ति की मांग आईपीसी की धारा 498 ए के तहत अपराध के दायरे में नहीं आएगी। यह माना गया कि जब मांग और क्रूरता के दोनों तत्व संयुक्त हो जाते हैं, तो आरोपी पर दायित्व तय हो जाएगा।

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    सीआरपीसी की धारा 167(2) : केवल न्यायिक हिरासत की अवधि में बढ़ोतरी के लिए अभियुक्तों को पेश न करने से वे डिफ़ॉल्ट जमानत के हकदार नहीं होंगे : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया है कि न्यायिक हिरासत के विस्तार के समय अभियुक्तों को पेश न करने मात्र से वे सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत स्वचालित रूप से डिफ़ॉल्ट जमानत देने के हकदार नहीं हो जाते हैं।

    जस्टिस दिनेश कुमार पालीवाल की एकल-न्यायाधीश पीठ ने आगे बताया कि जब आरोपी ने आरोपपत्र दाखिल होने से पहले या न्यायिक हिरासत के विस्तार के लिए आवेदन दायर करने से पहले डिफ़ॉल्ट जमानत देने के लिए कोई आवेदन नहीं दिया है तो आरोपी को रिहा नहीं किया जा सकता है।

    केस टाइटल : अब्दुल जमील और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य पुलिस स्टेशन एसटीएफ/एटीएफ भोपाल के माध्यम से

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    सरोगेसी एक्ट 2021 के तहत पहले से ही एआरटी प्रक्रिया से गुजर रहे व्यक्तियों को प्रथम दृष्टया आयु सीमा के कारण अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रथम दृष्टया पाया कि जो व्यक्ति पहले से ही असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (एआरटी) प्रक्रिया से गुजर चुके हैं, उन्हें सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के तहत इच्छुक जोड़ों के लिए निर्धारित आयु सीमा के कारण अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता।

    चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस संजीव नरूला की खंडपीठ ने कहा कि 2021 अधिनियम की धारा 4(iii)(सी)(आई), जो इच्छुक माता-पिता के संबंध में आयु प्रतिबंध लगाती है, को पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं किया जा सकता है।

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    POCSO Act SC/ST Act पर हावी, सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत याचिका सुनवाई योग्य है, जहां आरोपी पर दोनों के तहत Act आरोप लगाए गए हैं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि जहां किसी आरोपी पर POCSO Act के साथ-साथ SC/ST Act के तहत मामला दर्ज किया गया है तो पूर्व का प्रावधान बाद वाले पर लागू होगा और ऐसे आरोपी द्वारा दायर की गई अग्रिम जमानत याचिका सुनवाई योग्य होगी।

    जस्टिस शेखर कुमार यादव की पीठ ने पेशे से शिक्षक दीपक प्रकाश सिंह द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिस पर 14 वर्षीय मानसिक रूप से कमजोर लड़की से बलात्कार करने का आरोप लगाया गया है।

    केस टाइटल- दीपक प्रकाश सिंह @ दीपक सिंह बनाम यूपी राज्य और अन्य [आपराधिक विविध अग्रिम जमानत आवेदन सीआरपीसी की धारा 438 के तहत। क्रमांक-10246/2023]

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    दिल्ली हाईकोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण देने से किया इनकार, कहा- पति-पत्नी योग्य हों और समान रूप से कमाते हैं

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि जहां दोनों पति-पत्नी समान रूप से योग्य हैं और समान रूप से कमाते हैं, वहां हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत पत्नी को अंतरिम गुजारा भत्ता नहीं दिया जा सकता।

    जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अधिनियम के तहत वैवाहिक कार्यवाही के दौरान कोई भी पक्ष विकलांग न हो और केवल धन की कमी के कारण मुकदमा चलाने में वित्तीय अक्षमता का सामना न करना पड़े।

    केस टाइटल: एक्स वी. वाई

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    Sec. 138 NI Act| चेक राशि चुकाने की कंपनी की देनदारी कार्यालयधारकों में बदलाव से प्रभावित नहीं होती: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने चेक बाउंस मामले में माना कि चेक से जुड़ी राशि चुकाने की कानूनी बाध्यता कार्यालयधारकों में बदलाव से नहीं बदलती है और दायित्व की धारणा का खंडन करने के लिए सबूत का बोझ कंपनी या उसके अधिकारियों पर रहता है।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने कहा कि किसी कंपनी के चेयरमैन या चेक पर हस्ताक्षर करने वाले अन्य अधिकारी एनआई एक्ट की धारा 139 के तहत उत्तरदायी होते हैं, जब तक कि वे यह साबित करने के लिए सबूत पेश नहीं कर सकते कि चेक कानूनी रूप से लागू लोन या देनदारी के भुगतान के लिए जारी नहीं किए गए थे।

    केस टाइटल: राजीव और अन्य और भारतीय स्टेट बैंक

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    धारा 138 एनआई एक्ट| अदालतों को आरोपी को सजा सुनाते समय शिकायतकर्ता को "चेक अमाउंट के अनुरूप" मुआवजा देना चाहिए: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि आपराधिक अदालतों को चेक के अनादरण के लिए एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत कार्यवाही में किसी आरोपी को दोषी ठहराते समय शिकायतकर्ता को मुआवजा देने के महत्व पर भी विचार करना चाहिए।

    जस्टिस सीएस डायस ने आरोपी पर लगाया गया जुर्माना बढ़ा दिया, ताकि शिकायतकर्ता को सीआरपीसी की धारा 357 के तहत मुआवजा प्रदान किया जा सके। कोर्ट ने कहा कि अधिनियम की धारा 138 के तहत लगाया गया जुर्माना चेक राशि के अनुपात में होना चाहिए और यह चेक राशि के दोगुने से अधिक नहीं होना चाहिए।

    केस टाइटलः शशिकुमार वी उषादेवी

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    विवाह समझौते के तहत साथ रह रहे जोड़े पति-पत्नी नहीं, धारा 498 के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकताः केरल हाईकोर्ट

    एक मृतक महिला के खिलाफ क्रूरता के आरोप में आईपीसी की धारा 498 ए के तहत दोषी करार दिए गए एक व्यक्ति और उसके परिजनों को केरल हाईकोर्ट ने बरी कर दिया। कोर्ट का निष्कर्ष था कि दोनों पक्ष विवाह समझौते के आधार पर पति और पत्नी के रूप में एक साथ रह रहे थे, जबकि उनका विवाह संपन्न नहीं हुआ था।

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    इनडोर पेशेंट और आउटडोर पेशेंट के बीच भेदभाव करके मेडिकल प्रतिपूर्ति से इनकार नहीं कर सकते: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने माना कि किसी पेशेंट को "इनडोर" या "आउटडोर" के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए या नहीं, इसका निर्धारण संबंधित अस्पताल में उपस्थित डॉक्टरों के विशेषज्ञ निर्णय पर निर्भर करता है। न्यायालय ने आगे इस बात पर जोर दिया है कि यदि मेडिकल पेशेवर रोगी को "इनडोर पेशेंट" के रूप में अस्पताल में भर्ती किए बिना उपचार प्रदान करने का निर्णय लेते हैं तो केवल "आउटडोर पेशेंट" के रूप में वर्गीकृत उपचार के आधार पर प्रतिपूर्ति से इनकार करना उचित नहीं है। ऐसा उपचार व्यय में अंतर को उचित वर्गीकरण नहीं माना जा सकता।

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    निठारी हत्याकांड : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुरेंद्र कोली को 12 मामलों में, मोनिंदर पांडेर को 2 मामलों में बरी किया, मौत की सज़ा रद्द की

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को 2005-2006 के नोएडा सिलसिलेवार हत्या मामले (निठारी कांड) से संबंधित 12 मामलों में मुख्य संदिग्ध सुरिंदर कोली को बरी कर दिया । सभी 12 मामलों में उसे ट्रायल कोर्ट द्वारा मौत की सजा सुनाई गई थी।

    वहीं, एक अन्य संदिग्ध मोनिंदर सिंह पंढेर को भी कोर्ट ने उन दो मामलों में बरी कर दिया है, जिनमें उसे ट्रायल कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी।

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