हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

11 Jun 2023 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (05 जून, 2023 से 09 जून, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    एनडीपीएस एक्ट | हिरासत की अवधि बढ़ाने के लिए अभियोजन पक्ष की याचिका के बारे में सूचित नहीं किए जाने पर अभियुक्त की आभासी उपस्थिति प्रासंगिक नहीं रह जाती: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि एनडीपीएस मामले में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश का निर्णय, जिसमें हिरासत जांच की अवधि के विस्तार के लिए आवेदन की अनुमति दी गई हो, अवैध है, क्योंकि अदालत आरोपी को आवेदन को दाखिल करने और उस पर आपत्ति करने के अधिकार के संबंध में सूचित करने में विफल रही है।

    न्यायालय उपरोक्त निर्णय पर अभियुक्तों को 180 दिनों की अवधि के लिए और हिरासत में रखने के लिए धारा 36ए(4) एनडीपीएस अधिनियम के तहत लोक अभियोजक के आवेदन की अनुमति देने के आदेश के खिलाफ याचिका पर विचार करते हुए उक्त निर्णय पर पहुंचा।

    केस टाइटल: सबरीनाथन बनाम केरल राज्य

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    मात्र यह तथ्य कि मानहानिकारक बयान अदालत में पेश दलील में दिया गया था, पुनरावृत्ति के लिए बचाव नहीं हो सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक फैसले में माना कि मात्र यह तथ्य की मानहानिकारक बयान का उल्‍लेख न्यायिक याचिका में किया गया था, मानहानिकारक बयान के दोबारा प्रकाशन को न्यायोचित ठहराने के लिए वैध बचाव नहीं है।

    जस्टिस रियाज चागला ने विस्तृत आदेश में कहा कि न्यायिक कार्यवाही में केवल पढ़े या रिकॉर्ड किए गए दस्तावेजों को ही दोहराया जा सकता है। आदेश में वैक्सीन निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) और उसके सीईओ अदार पूनावाला को मानहानि के मुकदमे में अंतरिम राहत दी गई है।

    टाइटलः सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया प्रा लिमिटेड और अन्य बनाम योहान टेंगरा और अन्य।

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    आरोपी के पास ज्वाइंट ट्रायल की मांग करने का कोई निहित अधिकार नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि अभियुक्त को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 220 के तहत ज्वाइंट ट्रायल की मांग करने का कोई निहित अधिकार नहीं है। न्यायालय ने कहा कि यदि अपराध एक कृत्य का हिस्सा हैं तो उन्हें ज्वाइंट ट्रायल में साथ चलाया जा सकता है।

    जस्टिस के बाबू की एकल पीठ ने सीआरपीसी की धारा 220 (एक से अधिक अपराधों के लिए ट्रायल) के बारे में इस प्रकार कहा, "धारा सक्षम प्रावधान है। यह न्यायालय को एक से अधिक अपराधों पर एक ही ट्रायल में विचार करने की अनुमति देती है। न्यायालय एक साथ सभी अपराधों का एक ही ट्रायल चलाने की कोशिश कर सकता है या नहीं भी कर सकता है। यदि न्यायालय अलग-अलग अपराधों की सुनवाई करता है तो यह कोई अवैधता नहीं है।

    केस टाइटल: जितिन पी वी केरल राज्य

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    अगर पीड़ित की गवाही विश्वसनीय है तो POCSO मामले में गवाहों की अनुपस्थिति अभियुक्तों को बरी करने का आधार नहीं: मेघालय हाईकोर्ट

    मेघालय हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) के तहत यौन उत्पीड़न के मामलों में गवाहों की अनुपस्थिति को ऐसे मामलों में अभियुक्तों को दोषमुक्त करने के औचित्य के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है, अगर पीड़ित की गवाही विश्वसनीय है।

    चीफ जस्टिस संजीब बनर्जी और जस्टिस डब्ल्यू डेंगदोह की खंडपीठ ने इस धारणा को खारिज करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में अपुष्ट आरोपों और अभियुक्तों द्वारा पूर्ण इनकार से पीड़ित के खाते को स्वतः ही बदनाम कर देना चाहिए।

    केस टाइटल: अर्जुन दास बनाम मेघालय राज्य

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    स्थान मध्यस्थता की सीट नहीं होगी, जब समझौता एक अलग स्थान के न्यायालयों पर विशेष अधिकार क्षेत्र प्रदान करता है: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना है कि जब समझौता एक अलग स्थान पर न्यायालय पर विशेष अधिकार क्षेत्र प्रदान करता है, तो वह स्थान मध्यस्थता की सीट नहीं बनेगा। जस्टिस शेखर बी सराफ की पीठ ने कहा कि एक खंड की उपस्थिति जो मध्यस्थता के स्थान के अलावा किसी अन्य स्थान पर न्यायालय को विशेष अधिकार क्षेत्र प्रदान करती है, एक 'विपरीत संकेत' है जो मध्यस्थता के स्थल को सीट बनने से रोकता है।

    केस टाइटल: होमविस्टा डेकोर एंड फर्निशिंग प्रा लिमिटेड बनाम कनेक्ट रेसिड्यूरी प्रा लिमिटेड एपी नंबर 358 ऑफ 2020

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    सार्वजनिक संपत्ति क्षति मामला: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से कहा, सांसद रणदीप सुरजेवाला को धारा 207 सीआरपीसी के तहत सुपाठ्य दस्तावेजों की प्रति प्रदान करें

    सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के 23 साल पुराने मामले में कांग्रेस सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला को अंतरिम राहत देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को वाराणसी की निचली अदालत को धारा 207 सीआरपीसी के अनुसार उसे सात दिनों के भीतर आरोप पत्र सहित सभी सुपाठ्य दस्तावेजों की प्रतियां उपलब्ध कराने का निर्देश दिया।

    जस्टिस विक्रम डी चौहान की पीठ ने निचली अदालत को मामले की सुनवाई सात दिनों के लिए स्थगित करने और याचिकाकर्ता को सुपाठ्य प्रतियां उपलब्ध कराने का भी निर्देश दिया। सुनवाई पहले शुक्रवार (9 जून) को होनी थी।

    केस टाइटलः रणदीप सिंह सुरजेवाला बनाम यूपी राज्य और अन्य [अनुच्छेद 227 संख्या - 6850/2023 के तहत मामले]

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    पति का पत्नी के नाम पर संपत्ति हासिल करना जरूरी नहीं कि बेनामी लेनदेन हो: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि संपत्ति की खरीद के लिए पति से उसकी पत्नी को धन का हस्तांतरण बेनामी लेनदेन नहीं माना जा सकता है। जस्टिस तपब्रत चक्रवर्ती और जस्टिस पार्थ सारथी चटर्जी की खंडपीठ ने कहा, "भारतीय समाज में यदि पति अपनी पत्नी के नाम पर संपत्ति प्राप्त करने के लिए प्रतिफल राशि की आपूर्ति करता है तो इस तरह के तथ्य का मतलब बेनामी लेनदेन नहीं है। धन का स्रोत निस्संदेह एक महत्वपूर्ण कारक है, लेकिन निर्णायक नहीं है। प्रतिफल राशि के आपूर्तिकर्ता का इरादा बेनामी होने का दावा करने वाली पार्टी द्वारा सिद्ध किया जाने वाला महत्वपूर्ण तथ्य है।"

    केस टाइटल: शेखर कुमार रॉय बनाम लीला रॉय और अन्य (एफए 109/2018)

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    न्यायपालिका को बदनाम करने के लिए 'पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन': केरल हाईकोर्ट ने सिटिंग जज पर एक दिन में केवल 20 मामलों को लिस्ट करने का आरोप लगाने वाली वकील की याचिका खारिज की

    केरल हाईकोर्ट ने सिटिंग जज पर एक दिन में केवल 20 मामलों को लिस्ट करने का आरोप लगाने वाली एडवोकेट यशवंत शेनॉय की याचिका खारिज की और इसे न्यायाधीशों और न्यायपालिका को बदनाम करने के लिए 'पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन' करार दिया है।

    जस्टिस पी वी कुन्हीकृष्णन की एकल पीठ ने इसे लोकप्रियता के लिए एक तुच्छ रिट याचिका करार देते हुए कहा, “वकील न्यायालय के अधिकारी हैं; वे न्यायपालिका का हिस्सा हैं। यदि वकीलों द्वारा इस प्रकार के मुकदमे दायर किए जाते हैं, तो समाज में क्या संदेश जाएगा? इस अदालत के समक्ष रिट याचिका दायर करने का 21 साल का अभ्यास करने वाले एक वकील ने इस अदालत के एक न्यायाधीश और माननीय मुख्य न्यायाधीश को पार्टी के रूप में पेश किया और बिना किसी आधार के बेबुनियाद आरोप लगाए।“

    केस टाइटल: यशवंत शेनॉय बनाम केरल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस

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    गवाह की मुख्य परीक्षा दायित्व को तब तक निर्धारित नहीं कर सकती, जब तक कि विपक्षी पार्टी को जिरह का अवसर न दिया जाए: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने 20 साल पुराने बलात्कार के एक मामले में एक पुलिस अधिकारी को बरी करते हुए कहा है कि किसी भी दायित्व को तय करने के लिए एक गवाह की मुख्य परीक्षा पर विचार नहीं किया जा सकता है, जब तक कि विपरीत पक्ष को मुख्य परीक्षा में उसके द्वारा दी गई जानकारी के संबंध में कथित गवाह से जिरह करने का एक उचित अवसर ना दिया गया हो।

    केस टाइटल: जम्मू और कश्मीर राज्य बनाम दविंदर कुमार व अन्य।

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    'धारा 313, सीआरपीसी औपचारिकता मात्र नहीं, स्पष्टीकरण के लिए अभियुक्त के समक्ष आपत्तिजनक सामग्री पेश नहीं करना, उसके प्रति पूर्वाग्रह पैदा करता है': इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में हत्या की सजा को इस आधार पर खारिज कर दिया कि ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी ठहराने के लिए मृतक के मरने से पहले दिए गए बयान पर भरोसा तो किया था, लेकिन सीआरपीसी की धारा 313 के तहत दर्ज आरोपी के बयान में उसे स्पष्टीकरण के लिए नहीं रखा गया।

    जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस मनीष कुमार निगम की पीठ ने कहा कि अभियुक्त एक महत्वपूर्ण परिस्थिति की व्याख्या नहीं कर सका क्योंकि उसका कभी भी मृत्युकालिक बयान की आपत्तिजनक सामग्री से सामना नहीं हुआ, जो दोषसिद्धि का आधार बना।

    केस टाइटलः रामेश्वर लाल चौहान बनाम यूपी राज्य 2023 लाइव लॉ (एबी) 183 [आपराधिक अपील संख्या - 6920/2017]

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    ग्रेच्युटी की गणना उस तिथि से की जानी चाहिए जिस दिन ग्रेच्युटी देय हो गई, न कि वितरण की तिथि से: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 के तहत देय ग्रेच्युटी की अधिकतम राशि की गणना उस तिथि से की जानी चाहिए जिस दिन ग्रेच्युटी देय हो गई थी, न कि उस तिथि से जब राशि वास्तव में वितरित की गई थी। हाईकोर्ट केरल राज्य आवास बोर्ड के एक सेवानिवृत्त क्षेत्रीय अभियंता की याचिका पर विचार कर रहा था, जिसका DCRG और पिछले महीने का वेतन ऑडिट आपत्तियों के कारण रोक दिया गया था।

    याचिकाकर्ता वर्ष 2002 में सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने पहले अदालत का दरवाजा खटखटाया था और बोर्ड के सचिव को रोकी गई राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। हालांकि, याचिकाकर्ता के अनुसार, धारा 4(3) के तहत ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 में 2010 के संशोधन के आलोक में वह अधिकतम दस लाख रुपये की ग्रेच्युटी का हकदार है।

    केस टाइटल: के. राजेंद्र प्रसाद बनाम केरल राज्य

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    मुस्लिम ससुर के पास बहू की उपस्थिति / कस्टडी की मांग करने वाली हैबियस कॉर्पस याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा कि एक मुस्लिम ससुर के पास अपनी बहू की उपस्थिति/कस्टडी की मांग करने वाली बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं है। मो. हासिम ने अपनी बहू की हिरासत की मांग करते हुए आरोप लगाया था कि वह 2021 से अपने माता-पिता की अवैध हिरासत में है और वे उसे ससुराल नहीं जाने दे रहे हैं।

    कोर्ट ने कहा कि चूंकि हिरासत में लिए गए व्यक्ति का पति अपनी आजीविका कमाने के लिए कुवैत में रह रहा है, इसलिए यह संभव हो सकता है कि जब उसका पति वहां नहीं रह रहा हो तो वो खुद अपने ससुराल नहीं जाना चाहती हो।

    केस टाइटल- आरफा बानो थ्रू. मो. हासिम बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. और 3 अन्य [बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट याचिका संख्या – 148 ऑफ 2023]

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    पति के साथ दूसरी महिला के घर में होने पर किसी भी पत्नी को वैवाहिक घर में रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता: हिमाचल हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने क्रूरता और परित्याग का आरोप लगाने वाली पत्नी के खिलाफ एक पति की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि किसी भी पत्नी को पति के साथ किसी अन्य महिला को रखकर ससुराल में रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस सत्येन वैद्य की पीठ ने कहा, "... प्रतिवादी के पास अलग रहने का न्यायोचित आधार है क्योंकि किसी भी पत्नी को पति के साथ वैवाहिक घर में रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।"

    केस टाइटल: नैन सुख बनाम सीमा देवी

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    आईपीसी की धारा 498A के तहत पत्नी की शिकायत केवल इसलिए रद्द नहीं की जा सकती क्योंकि यह पति द्वारा तलाक की मांग के बाद दायर की गई है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक पति द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के तहत अपनी पत्नी द्वारा दर्ज की गई शिकायत को रद्द करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है, क्योंकि उसने उसे विवाह के विघटन के लिए सौहार्दपूर्ण समाधान की मांग करने वाला कानूनी नोटिस भेजा था।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा, "कानून की घोषणा नहीं हो सकती है जैसा कि याचिकाकर्ता की ओर से पेश विद्वान वकील ने तर्क दिया है कि एक बार पति द्वारा तलाक का नोटिस भेजे जाने के बाद, पत्नी द्वारा दर्ज की गई शिकायत अपना महत्व खो देती है। यदि इस तर्क को स्वीकार कर लिया जाता है, तो इसका सभी शिकायतों पर भयानक प्रभाव पड़ेगा। इसलिए, यह सबमिशन केवल खारिज करने के लिए नोट किया गया है, क्योंकि यह मौलिक रूप से त्रुटिपूर्ण है।"

    केस टाइटल: प्रमोद आरएस और कर्नाटक राज्य

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    दोषी ठहराए जाने के बाद सजा कैसे चलेगी, यह निर्दिष्ट करने में ट्रायल कोर्ट की विफलता का मतलब यह नहीं कि सजा लगातार चल रही है : राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने माना कि सजा कैसे चलेगी, इस पर ट्रायल कोर्ट द्वारा निर्देश की अनुपस्थिति का मतलब यह नहीं है कि अदालत ने सजा को लगातार चलाने का इरादा किया है। एनडीपीएस मामले से निपटने के दौरान, जहां ट्रायल कोर्ट यह उल्लेख करने में विफल रहा कि जिन अभियुक्तों को एनडीपीएस एक्ट की धारा 8/15 के तहत 14 साल के सश्रम कारावास और धारा 8/18 के तहत 10 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई, वे कैसे पूरी होंगी।

    केस टाइटल: सोहनलाल व अन्य बनाम राजस्थान राज्य एस.बी. आपराधिक विविध। आवेदन नंबर 13/2023

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    महिला के शरीर के ऊपरी हिस्‍से की नग्नता को डिफ़ॉल्ट रूप से यौन या अश्लील नहीं माना जाना चाहिए: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने फैसले में कहा कि एक महिला के नग्न शरीर के चित्रण को हमेशा यौन या अश्लील नहीं माना जाना चाहिए। उक्त टिप्पण‌ियों के साथ कोर्ट ने एक मां को उसके अर्ध-नग्न शरीर पर पेंटिंग करने वाले अपने बच्चों का वीडियो बनाने से संबंधित एक आपराधिक मामले से बरी कर दिया।

    महिला के स्पष्टीकरण पर ध्यान देते हुए कि वीडियो पितृसत्तात्मक धारणाओं को चुनौती देने और महिला शरीर के अति-यौनकरण के खिलाफ एक संदेश फैलाने के लिए बनाया गया था, हाईकोर्ट ने कहा कि वीडियो को अश्लील नहीं माना जा सकता है।

    केस टाइटल: XXX बनाम केरल राज्य

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    संरक्षकता के लिए कार्यवाही, नाबालिग की कस्टडी केवल फैमिली कोर्ट के समक्ष दायर होगी: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी व्यक्ति की संरक्षकता या किसी नाबालिग की कस्टडी या उस तक पहुंच के संबंध में कार्यवाही फैमिली कोर्ट के समक्ष दायर की जानी चाहिए और इसे जिला अदालत या किसी अधीनस्थ सिविल कोर्ट के समक्ष दायर नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस एच पी संदेश की सिंगल जज बेंच ने कहा, "फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 8 क्षेत्राधिकार के अपवर्जन और लंबित कार्यवाही के संबंध में बहुत स्पष्ट है, जहां किसी भी क्षेत्र के लिए एक फैमिली कोर्ट स्थापित किया गया है।

    केस टाइटल: नसीम बानो और अन्य और शाबास खान और अन्य

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    [मृत प्रतिवादी के कानूनी उत्तराधिकारियों को शामिल करना] जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने आदेश एक नियम 10 और आदेश 22 नियम 4 सीपीसी के बीच अंतर स्‍पष्‍ट किया

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट आदेश-1 नियम-10 (2) और आदेश-22 नियम-4 सीपीसी के दायरे और विस्तार में अंतर करते हुए एक फैसले में आदेश-1 नियम-10 (2) न्यायालय को किसी व्य‌क्ति को, जिसे वाद में पक्षकार के रूप में शामिल किया गया है, को जोड़ने, स्थानापन्न करने या खारिज करने में सक्षम बनाता है, जबकि आदेश-22 नियम-4 के तहत वादी को मृतक प्रतिवादी के कानूनी उत्तराधिकारियों/प्रतिनिधियों को रिकॉर्ड पर लाना आवश्यक बनाता है।

    केस टाइटल: हकीम दीन बनाम अकबर नूर व अन्य।

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    जब अग्रिम जमानत के आवेदन पर जोर नहीं दिया जाता है तो अंतरिम जमानत रद्द हो जाती है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जिस व्यक्ति को जमानत बांड निष्पादित करने के बाद अंतरिम जमानत दी गई, वह यह बताने के लिए अंतरिम जमानत आदेश पर भरोसा नहीं कर सकता कि मुख्य जमानत अर्जी निरर्थक हो गई है। न्यायालय ने कहा कि मुख्य आवेदन पर जोर न दिए जाने पर खारिज किए जाने के परिणामस्वरूप याचिकाकर्ता को जमानत देने का अंतरिम आदेश रद्द हो जाएगा और निष्पादित जमानत बांड का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।

    केस टाइटल: मुकेश @ नंदू बनाम केरल राज्य

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    जेजे अधिनियम- 'किशोर सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत ले सकता है; जमानत पर रहते हुए धारा 14/15 के तहत पूछताछ की जा सकती है': इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (डिवीजन बेंच) ने हाल ही में कहा कि 'किशोर सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत ले सकता है। एकल न्यायाधीश द्वारा किए गए एक संदर्भ का जवाब देते हुए चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस समित गोपाल की पीठ ने कहा, - एफ.आई.आर. के बाद कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे को अधिनियम, 2015 की धारा 1(4), सीआरपीसी की धारा 438 के आवेदन को बाहर नहीं करती है क्योंकि अधिनियम 2015 में Cr.P.C के विपरीत कोई प्रावधान नहीं है।

    केस टाइटल - मोहम्मद जैद बनाम टेट ऑफ यूपी और अन्य संबंधित मामलों के साथ 2023 LiveLaw (AB) 176

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    कंसेंट फॉरेन अवॉर्ड न्यूयॉर्क कन्वेंशन के तहत लागू करने योग्य है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि कंसेंट फॉरेन अवॉर्ड न्यूयॉर्क कन्वेंशन/A&C अधिनियम, 1996 के भाग II के तहत लागू करने योग्य है। जस्टिस यशवंत वर्मा की पीठ ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि कंसेंट आर्बिट्रेशन अवार्ड न्यूयॉर्क कन्वेंशन के रूब्रिक के अंतर्गत नहीं आता है।

    न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि कन्वेंशन के तहत मान्यता प्राप्त होने वाला आर्बिट्रेशन अवार्ड अधिनिर्णय पर आधारित होना चाहिए, क्योंकि आर्बिट्रेशन अवार्ड में ट्रिब्यूनल द्वारा अधिनिर्णय शामिल होता है और कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान पक्षकारों द्वारा किए गए निपटान समझौते को शामिल करने वाला कोई अवार्ड के समान नहीं होगा।

    केस टाइटल: नूवोपिग्नोन इंटरनेशनल एसआरएल बनाम कार्गो मोटर्स प्राइवेट लिमिटेड और एएनआर, ओएमपी (ईएफए) (कॉम) 11/2021

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    राज्य के भीतर केवल गाय रखना और परिवहन करना यूपी गौहत्या अधिनियम के तहत अपराध नहीं होगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश की सीमा के भीतर जीवित गाय/बैल रखना या गाय का परिवहन करना उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम 1955 के तहत अपराध करने, अपराध के लिए उकसाने या अपराध करने का प्रयास करने के बराबर नहीं होगा।

    जस्टिस विक्रम डी चौहान की पीठ ने इस साल मार्च में एक वाहन से 6 गायों की कथित बरामदगी के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए कुंदन यादव नामक व्यक्ति को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की। उस पर यूपी गोवध निवारण अधिनियम, 1964 की धारा 3/5ए/5बी/8 और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 की धारा 11 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

    केस टाइटल- कुंदन यादव बनाम यूपी राज्य [CRIMINAL MISC. BAIL Application No. 23297/2023]

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