'कभी ससुराल वालों के साथ नहीं रही, क्रूरता का सवाल ही नहीं उठता': कलकत्ता हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 498ए के तहत महिला की शिकायत खारिज की

Brij Nandan

9 Jun 2023 8:21 AM GMT

  • कभी ससुराल वालों के साथ नहीं रही, क्रूरता का सवाल ही नहीं उठता: कलकत्ता हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 498ए के तहत महिला की शिकायत खारिज की

    Calcutta High Court

    एक महिला ने अपने ससुराल वालों के खिलाफ दायर घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज कराई थी। उसका गला घोंटने की कोशिश करने का आरोप लगाया था। हालांकि कलकत्ता हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 498ए के तहत महिला की शिकायत खारिज की। कोर्ट ने कहा कि कभी ससुराल वालों के साथ नहीं रही, क्रूरता का सवाल ही नहीं उठता।

    जस्टिस शम्पा दत्त (पॉल) की एकल-न्यायाधीश पीठ ने पाया कि प्रतिवादी ने सीआरपीसी की धारा 164 के अपने बयान में कहा है कि उसने 20.01.2015 को अपना वैवाहिक घर छोड़ दिया था, लेकिन शिकायत के अपने ज्ञापन में उसने दावा किया कि उसके ससुराल वालों ने कोशिश की थी दिनांक 22.01.2015 को उसकी गला घोंटकर हत्या कर दी।

    कोर्ट ने कहा,

    "इस प्रकार, रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री से यह स्पष्ट है कि शिकायतकर्ता की याचिका में शिकायतकर्ता का बयान सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज किए गए उसके बयानों के विपरीत है। यह एक उपयुक्त मामला है जहां शिकायतकर्ता की अंतर्निहित शक्ति है। अदालत/क़ानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए अदालत का प्रयोग किया जाना चाहिए। वर्तमान मामले में आरोपों में कोई दम नहीं है और कोई सामग्री मौजूद नहीं है जिससे प्रथम दृष्टया एक संज्ञेय अपराध में याचिकाकर्ताओं की मिलीभगत का पता चलता है और इस तरह की कार्यवाही यह मामला रद्द करने योग्य है।"

    याचिकाकर्ताओं पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए/406/325/307/376/511/120बी/34 के तहत मामला दर्ज किया गया था। उन्होंने अपने बड़े बेटे, जो शिकायतकर्ता के पति थे, की मृत्यु के बाद दायर की गई शिकायत को रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।

    याचिकाकर्ताओं के अनुसार, मृतक के बाद से उनके बड़े बेटे की शादी 2006 में प्रतिवादी से हुई और तब से वे बर्नपुर, आसनसोल में किराए के मकान में अलग रहने लगे। इस प्रकार, याचिकाकर्ताओं के अनुसार, शादी के बाद प्रतिवादी/शिकायतकर्ता और उनका बड़ा बेटा कभी भी उनके साथ नहीं रहे। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उनके बेटे की मौत आत्महत्या से हुई है और उस समय वह प्रतिवादी के साथ रह रहा था।

    याचिकाकर्ताओं ने आगे कहा कि उनके साथ कोई संपर्क किए बिना, प्रतिवादी ने पुलिस शिकायत दर्ज की।

    जस्टिस शम्पा दत्त (पॉल) ने कहा कि शिकायत के ज्ञापन में और सीआरपीसी की धारा 164(3) के तहत दिए गए बयानों में शिकायतकर्ता के बयानों में स्पष्ट रूप से असंगति है।

    पीठ ने कहा,

    "धारा 164 सीआरपीसी के तहत शिकायतकर्ता के बयान सहित रिकॉर्ड पर सामग्री स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि विपरीत पक्ष/पत्नी कभी भी याचिकाकर्ताओं के साथ नहीं रहती थी और इस प्रकार आईपीसी की धारा 498ए के तहत परिभाषित/निर्धारित क्रूरता के साथ होने का सवाल ही नहीं उठता है। उक्त अपराध को गठित करने के लिए आवश्यक सामग्री वर्तमान मामले में मौजूद नहीं है। इस प्रकार यह देखा गया है कि केस डायरी और चार्जशीट की सामग्री प्रथम दृष्टया अभियुक्तों/याचिकाकर्ताओं के खिलाफ संज्ञेय अपराध का मामला नहीं बनती है जैसा कि आरोप लगाया गया है और अभियुक्तों/याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए कोई सामग्री नहीं है।"

    पीठ ने प्रकाश सिंह बादल बनाम पंजाब राज्य एआईआर 2007 एससी 124 के मामले पर भरोसा किया और दोहराया कि ये देखना होगा कि प्रतिवादी द्वारा लगाए गए आरोपों में दम है या नहीं। याचिकाकर्ताओं के साथ कभी नहीं रहने के कारण उनके दावे में कोई दम नहीं था, प्रतिवादी की शिकायत निराधार पाई गई और इस तरह खारिज कर दी गई।

    कोरम: जस्टिस शम्पा दत्त (पॉल)

    केस साइटेशन: दीपक चटर्जी @ दीपक चटर्जी व अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य (2020 का सीआरआर 261)

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