राज्य के भीतर केवल गाय रखना और परिवहन करना यूपी गौहत्या अधिनियम के तहत अपराध नहीं होगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Avanish Pathak

4 Jun 2023 7:01 AM GMT

  • राज्य के भीतर केवल गाय रखना और परिवहन करना यूपी गौहत्या अधिनियम के तहत अपराध नहीं होगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश की सीमा के भीतर जीवित गाय/बैल रखना या गाय का परिवहन करना उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम 1955 के तहत अपराध करने, अपराध के लिए उकसाने या अपराध करने का प्रयास करने के बराबर नहीं होगा।

    जस्टिस विक्रम डी चौहान की पीठ ने इस साल मार्च में एक वाहन से 6 गायों की कथित बरामदगी के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए कुंदन यादव नामक व्यक्ति को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की। उस पर यूपी गोवध निवारण अधिनियम, 1964 की धारा 3/5ए/5बी/8 और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 की धारा 11 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

    न्यायालय ने नोट किया कि राज्य की ओर से पेश एजीए ने कोई सामग्री नहीं रखी गई थी, जो यह प्रदर्शित करे कि आवेदक ने उत्तर प्रदेश में किसी भी स्थान पर गाय, सांड या बैल का वध किया था या वध कराया था या वध का प्रस्ताव दिया था या वध का प्रस्ताव दिलाया था।

    कोर्ट ने कहा,

    "उत्तर प्रदेश के भीतर एक स्थान से दूसरे स्थान पर गाय का परिवहन मात्र यूपी अधिनियम संख्या 1, 1956 की धारा 5 के दायरे में नहीं आएगा। उत्तर प्रदेश के भीतर एक स्थान से दूसरे स्थान पर गाय का परिवहन यूपी अधिनियम संख्या एक, 1956 के तहत अपराध करने, अपराध के ‌लिए उकसाने या अपराध करने का प्रयास करने के बराबर नहीं है। उक्त बरामदगी का कोई स्वतंत्र गवाह नहीं है। राज्य की ओर से पेश एजीए ने कोई तथ्य, परिस्थिति या सामग्री नहीं दिखाई है कि राज्य के भीतर किसी भी स्थान से राज्य के बाहर किसी भी स्थान पर है गाय, सांड या बैल का परिवहन किया गया है या परिवहन के लिए प्रस्ताव दिया गया या परिवहन करवाया गया है।"

    न्यायालय ने यह भी नोट किया कि ऐसी कोई सामग्री और परिस्थिति नहीं दिखाई गई है कि किसी गाय या उसकी संतति को कोई शारीरिक चोट लगी हो, जिससे उसके जीवन को खतरा हो जैसे कि उसके शरीर को विकृत करना या किसी ऐसी स्थिति में उसे परिवहन करना, जिससे उसके जीवन को खतरा हो या उसके जीवन को खतरे में डालने के इरादे से उसे भोजन या पानी उपलब्ध नहीं कराया गया है।

    इस संबंध में, अदालत ने कहा कि यह साबित करने के लिए कोई गवाह नहीं था कि आवेदक ने किसी गाय या उसकी संतान को कोई शारीरिक चोट पहुंचाई है, जिससे जीवन को खतरा हो और सक्षम प्राधिकारी की कोई भी रिपोर्ट पेश नहीं की गई थी कि गाय या बैल के शरीर पर चोट लगी थी।

    कोर्ट ने कहा कि राज्य ने यह तर्क नहीं दिया है कि अभियुक्त ने जांच में सहयोग नहीं किया है या जमानत पर रिहा होने पर वह सबूतों या गवाहों के साथ छेड़छाड़ कर सकता है, या वह जनता या राज्य के बड़े हितों में जमानत का हकदार नहीं है।

    उपर्युक्त के मद्देनजर, न्यायालय ने प्रथम दृष्टया माना कि आवेदक दोषी नहीं है और उसे जमानत दे दी।

    संबंधित समाचारों में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम के तहत दर्ज एक आरोपी को यह देखते हुए जमानत दे दी कि अभियोजन पक्ष ने ठोस सबूत के साथ यह प्रदर्शित नहीं किया था कि बरामद पदार्थ बीफ या बीफ उत्पाद था।

    जस्टिस विक्रम डी चौहान की पीठ ने यह भी कहा कि केवल मांस रखने या ले जाने से गोमांस या गोमांस उत्पादों की बिक्री या परिवहन को वध अधिनियम के तहत दंडनीय नहीं माना जा सकता है, जब तक कि पुख्ता और पर्याप्त सबूत के जर‌िए यह नहीं दिखाया जाता है कि बरामद पदार्थ गोमांस है।

    केस टाइटल- कुंदन यादव बनाम यूपी राज्य [CRIMINAL MISC. BAIL Application No. 23297/2023]

    केस साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एबी) 175

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

    Next Story