हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

2 April 2023 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (27 मार्च, 2023 से 31 मार्च, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    सीआरपीसी की धारा 164 या 161 के तहत दर्ज बयान को बचाव पक्ष को क्रॉस एक्जामिनेशन का अवसर दिये बिना ठोस साक्ष्य के रूप में नहीं माना जा सकता: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट के तहत आरोपी को बरी करते हुए दोहराया कि यदि बचाव पक्ष को किसी ऐसे गवाह से क्रॉस एक्जामिनेशन करने के अवसर से वंचित कर दिया जाता है, जिसका बयान सीआरपीसी की धारा 164 या धारा 161 के तहत दर्ज किया गया तो ऐसे बयानों को सबूत नहीं माना जा सकता। जस्टिस आलोक कुमार पांडेय की बेंच ने आर. शाजी बनाम केरल राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, यह आईपीसी की धारा 366 (ए) और 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत सजा के फैसले के खिलाफ दायर आपराधिक अपील से निपट रहा था।

    केस टाइटल: दीपक कुमार बनाम बिहार राज्य आपराधिक अपील (एसजे) नंबर 1011/2022

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    श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद: मथुरा कोर्ट का कोर्ट अमीन को विवादित स्थल का सर्वेक्षण करने का निर्देश, 17 अप्रैल को रिपोर्ट जमा करने को कहा

    उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले की एक अदालत ने एक बार फिर सिविल कोर्ट अमीन (जिन्हें अदालत के अधिकारी भी कहा जाता है) को निर्देश दिया है कि वे श्रीकृष्ण जन्मस्थान-शाही ईदगाह विवाद मामले का दौरा करें और सर्वेक्षण करें और 17.अप्रैल को अदालत के समक्ष एक आख्या रिपोर्ट (नक्शे के साथ) जमा करें। यह आदेश पिछले साल दिसंबर में पारित कोर्ट के आदेश (सिविल जज तृतीय सोनिका वर्मा) के समान है, जिसमें सिविल कोर्ट अमीन को 20 जनवरी तक अमीन रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया गया था।

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    टैंकरों के माध्यम से पानी बेचने वाले कुओं के मालिकों को लाइसेंस प्राप्त करना चाहिए और खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अनुरूप होना चाहिए: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 और खाद्य सुरक्षा और मानक (खाद्य उत्पाद मानक) विनियम 2011 के दायरे में पीने के पानी के रूप में जनता को बेचे जाने वाले कुओं से निकाले गए पानी को लाने के लिए राज्य को सामान्य निर्देश जारी किए।

    जस्टिस अमित रावल की एकल पीठ ने देखा, "कुएं के मालिक और खाद्य संचालकों के हाथों अधिनियम के प्रावधानों के और दुरुपयोग को रोकने के लिए मैं राज्य सरकार के साथ-साथ प्रतिवादी नंबर 2 [खाद्य सुरक्षा अधिकारी, कोच्चि सर्कल] को सामान्य निर्देश जारी करना उचित समझता हूं। अधिनियम, नियमों और विनियमों के तहत निर्धारित मानकों के अनुरूप लाइसेंस प्राप्त करने के लिए आम जनता को टैंकरों के माध्यम से पानी बेचने की प्रथा में लिप्त सभी कुओं के मालिकों और खाद्य संचालकों के लिए नोटिस और व्यक्तिगत नोटिस प्रकाशित करना। यह न्यायालय इस तथ्य के प्रति आशान्वित है कि प्रतिवादी नंबर 1 [भारतीय खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण] कुएं से निकाले गए पानी को लाने और बेचने के उद्देश्य से कुएं से निकाले गए पानी की स्थितियों को मानकीकृत करने के लिए एक अधिसूचना लेकर आएगा।

    केस टाइटल: हिशाम ट्रांसपोर्ट्स बनाम फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया

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    मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना गैर-संज्ञेय अपराधों की जांच को बाद में संज्ञेय अपराधों को जोड़कर नियमित नहीं किया जा सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि एक बार असंज्ञेय अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज होने के बाद जांच के बाद के चरण में संज्ञेय अपराध को शामिल करने का उपयोग कानून को दरकिनार करने के लिए नहीं किया जा सकता। जस्टिस संजय धर की पीठ ने उस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता ने आरपीसी की धारा 316, 323, 109 के तहत अपराधों के लिए एफआईआर सवाल उठाया था।

    केस टाइटल: निकुंज शर्मा बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य और दूसरा

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    सीपीसी का आदेश 23 | मूल वादी के साथ हितों का टकराव नहीं होने पर मुकदमे को आंशिक रूप से वापस लेने पर प्रतिवादी को वादी बनाया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जब वादी आंशिक रूप से मुकदमे को वापस लेता है तो प्रतिवादी को वादी में बदलने की अनुमति दी जाती है, बशर्ते अन्य प्रतिवादियों के खिलाफ प्रतिवादी का हित संपत्ति के संबंध में वादी के हित के समान हो। जस्टिस एमएम साथाये ने मूल वादी के साथ हितों के टकराव होने के बावजूद प्रतिवादी को विभाजन के मुकदमे में वादी के रूप में स्थानांतरित करने की अनुमति देने वाले सिविल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया।

    केस टाइटल - नलिनी @ माधवी मधुकर मुर्कुटे बनाम दीपक मनोहर गायकवाड़ और अन्य।

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    ट्रायल कोर्ट पहले से तय आरोपों को केवल बदल सकता है या उनमें जोड़ सकता है, किसी आरोप को हटा नहीं सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक फैसले में माना कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 216 के तहत एक ट्रायल कोर्ट केवल आरोप को बदल सकता है या पहले से तय किए गए आरोप में जोड़ सकता है। अदालत ने कहा कि वह पहले से तय किए गए आरोप को हटा नहीं सकती है।

    ज‌स्टिस एस विश्वजीत शेट्टी की ‌सिंगल जज बेंच ने कहा, "यदि ट्रायल कोर्ट किसी ऐसे अपराध के लिए आरोप तय करता है, जिसे मुकदमे के दरमियान पर्याप्त सामग्री पेश करके अभियोजन पक्ष ने बनाया नहीं है तो अदालत अभियुक्त को उक्त अपराध के लिए बरी कर सकती है या अदालत अभियुक्त को कमतर अपराधों के लिए दंडित कर सकती है, हालांकि अंतिम निर्णय की घोषणा से पहले आरोप तय करने के बाद अदालत के पास अपनी ओर से तय किए गए किसी भी आरोप को हटाने की कोई शक्ति नहीं है।"

    केस टाइटल: केएम और केसी और अन्य

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    मेडिकल लापरवाही मामले में एक्सपर्ट कमेटी का फैसला डॉक्टर के पक्ष में होने पर नाराजी याचिका की अनुमति नहीं दे सकते: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने माना कि मेडिकल लापरवाही मामले में गठित एक्सपर्ट कमेटी का निष्कर्ष डॉक्टर के पक्ष में होने पर नाराजी याचिका (Protest Petition) पर आगे कार्यवाही करना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

    अदालत ने उपरोक्त आदेश आपराधिक विविध याचिका में पारित किया, जो पूरी आपराधिक कार्यवाही रद्द करने के लिए दायर की गई, जिसमें साहिबगंज के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा याचिकाकर्ता-डॉक्टर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304-ए सपठित धारा 34 के तहत संज्ञान लिए जाने वाले मामले के संबंध में संज्ञान लेने का आदेश भी शामिल है।

    केस टाइटल: डॉ. विजय कुमार बनाम झारखंड राज्य Cr.M.P. नंबर 588/2013

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    एक पेशेवर भिखारी का भी नैतिक और कानूनी दायित्व होता है कि वह अपनी पत्नी का भरण-पोषण करे, जो खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ है : पी एंड एच हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि एक पति का नैतिक और कानूनी दायित्व बनता है कि वह अपनी पत्नी का भरण-पोषण करे जो खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ है, भले ही वह पति एक पेशेवर भिखारी ही क्यों न हो।

    जस्टिस एचएस मदान की पीठ ने तलाक के मामले के लंबित रहने के दौरान पत्नी को मासिक भरण-पोषण के रूप में 5 हजार रुपये देने के निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली पति की याचिका को खारिज करते हुए यह बात कही।

    केस टाइटल - XXXX बनाम YYYY

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    निष्कासित सदस्य के खिलाफ संस्थान के आंतरिक समाचार पत्र में मानहानिकारक कार्टून प्रसारित करना आईपीसी की धारा 500 के तहत अपराध आकर्षित करता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में बॉरिंग इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष के खिलाफ लंबित मानहानि की कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया। उन पर आरोप था कि उन्होंने कथित रूप से संस्थान के अन्य सदस्यों को एक न्यूज लेटर भेजा, जिसमें शिकायतकर्ता (संस्थान के एक निष्कासित सदस्य) को बदनाम करने वाले आपत्तिजनक कार्टून प्रसारित किए गए।

    न्यायमूर्ति के नटराजन की एकल पीठ ने अनूप बजाज द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया और कहा, "अपमानजनक बयान और ऐसे बयान के माध्यम से सीधे प्रतिवादी का अपमान करने वाले कार्टून भेजना, आईपीसी की धारा 499 को आकर्षित करता है और इसे आईपीसी की धारा 499 के अपवाद 8 को आकर्षित करने के लिए सार्वजनिक प्राधिकरण द्वारा साफ नीयत से नहीं भेजा गया है।

    केस टाइटल: अनूप बजाज और जयन्ना

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    मजिस्ट्रेट की अनुपस्थिति में पुलिस अधिकारी को दिया गया कबूलनामा हत्या की सजा के लिए आधार नहीं बन सकता: गुवाहाटी हाईकोर्ट

    गुवाहाटी हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महिला को बरी कर दिया, जिसे ट्रायल कोर्ट ने अपने पति की हत्या के लिए दोषी ठहराया था। कोर्ट ने उसे इस आधार पर बरी किया कि बिना पुष्टि के पुलिस के सामने की गई उसकी स्वीकारोक्ति दोषसिद्धि का आधार नहीं हो सकती।

    जस्टिस माइकल ज़ोथनखुमा और जस्टिस मालाश्री नंदी की खंडपीठ ने कहा, "भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 26 हिरासत में किसी व्यक्ति द्वारा किए गए इकबालिया बयान के सबूत पर रोक लगाती है, जब तक कि इकबालिया बयान मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में नहीं किया जाता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि अपीलकर्ता द्वारा दिया गया कथित बयान/संस्वीकृति केवल पुलिस अधिकारियों को दी गई है, उक्त बयान/स्वीकारोक्ति अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 302 के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराने का आधार नहीं हो सकता है, क्योंकि यह मामले में प्रमाण के रूप में अस्वीकार्य है। "

    केस टाइटल: श्रीमती बिजुली बाला राभा बनाम असम राज्य और अन्य।

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    आर्बिट्रल कार्यवाही में प्रति-दावों की राशि को बदलने की मांग करने वाला 'अपेडट आवेदन' 'संशोधन' आवेदन है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी कि जहां पक्षकार ने आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के समक्ष अपने जवाबी दावों को अपडेटशन/संशोधित करने के लिए आवेदन दायर किया है, मुख्य रूप से जवाबी-दावों की राशि को बदलने का इरादा रखता है, उक्त आवेदन प्रभावी रूप से प्रतिदावों में संशोधन के लिए आवेदन है, भले ही इसे 'अपडेटशन आवेदन' कहा गया हो।

    जस्टिस वी. कामेश्वर राव की पीठ मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (एएंडसी एक्ट) की धारा 34 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के उस आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें उसने अपने प्रतिदावों के अपडेटशन/संशोधन की मांग करने वाले पक्षकार के आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया कि इसे देर से दायर किया गया।

    केस टाइटल: एनटीपीसी लिमिटेड बनाम लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड और अन्य।

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    आर्बिट्रेशन क्लाज जब सभी विवादों को कवर करता है तो अधिकार क्षेत्र को विशेष विवाद तक सीमित नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि जब आर्बिट्रेशन क्लोज अनुबंध से उत्पन्न होने वाले सभी विवादों को अपने दायरे में शामिल करता है तो आर्बिट्रेटर का दायरा केवल विशेष विवाद को तय करने तक सीमित नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस प्रशांत कुमार और जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता की पीठ ने कहा कि आर्बिट्रेटर की नियुक्ति से पहले उत्पन्न होने वाले सभी विवादों को निर्णय के लिए उसके पास भेजा जा सकता है, क्योंकि नुकसान के लिए दावा जो आर्बिट्रेशन के आह्वान से पहले किया गया, विवाद बन जाता है। अधिनियम, 1996 के प्रावधान का अर्थ और आर्बिट्रेटर के अधिकार क्षेत्र को किसी विशेष विवाद तक सीमित नहीं किया जा सकता।

    केस टाइटल: आगरा विकास प्राधिकरण बनाम बाबा कंस्ट्रक्शन प्रा. लिमिटेड एफएओ नंबर 1033/2021

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    पत्नी का भरणपोषण ना करने या उपेक्षा करने पर घरेलू हिंसा कानून के तहत कोई भरणपोषण नहीं दिया जा सकताः बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जब घरेलू हिंसा के मामले में कोई घरेलू हिंसा नहीं पाई जाती है तो पत्नी को इस आधार पर भरणपोषण नहीं दिया जा सकता है कि पति ने उसकी देखभाल करने इनकार कर दिया और उसकी उपेक्षा की। औरंगाबाद खंडपीठ के जस्टिस एसजी मेहारे ने कहा कि धारा 125 सीआरपीसी में दी गई "पत्नी के भरणपोषण से इनकार और उपेक्षा" की अवधारणा घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 में मौजूद नहीं है।

    केस टाइटलः सुनील व अन्य बनाम जयश्री

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    डीजीएफटी के पास विदेश व्यापार नीति का उल्लंघन करने का कोई अधिकार नहीं, शक्ति केवल केंद्र सरकार के पास है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि केवल केंद्र सरकार ही वस्तुओं या सेवाओं, या प्रौद्योगिकी के आयात या निर्यात को प्रतिबंधित या विनियमित करने का प्रावधान कर सकती है, न कि विदेश व्यापार महानिदेशक (DGFT)। जस्टिस एस.आर. कृष्ण कुमार ने देखा कि केवल केंद्र सरकार ही आधिकारिक राजपत्र में 'अधिसूचना' द्वारा विदेश व्यापार नीति तैयार और घोषित कर सकती है और उस नीति में संशोधन भी कर सकती है। विदेश व्यापार नीति बनाने और संशोधित करने की केंद्र सरकार की शक्ति का प्रयोग DGFT द्वारा नहीं किया जा सकता है। विदेश व्यापार (विनियमन और विकास अधिनियम), 1992 (FTDR अधिनियम) की धारा 3(2) के अनुसार, केवल केंद्र सरकार आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा माल के आयात या निर्यात को प्रतिबंधित या विनियमित करने के लिए प्रावधान कर सकती है। या सेवाओं या प्रौद्योगिकी और केंद्र सरकार की शक्ति का प्रयोग DGFT द्वारा नहीं किया जा सकता है।

    केस टाइटल: एम/एस पतंजलि फूड्स लिमिटेड बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

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    दिल्ली हाईकोर्ट ने जामिया हिंसा मामले में शरजील इमाम और अन्य के खिलाफ आरोप तय किए, ट्रायल कोर्ट का फैसला पलटा

    दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को जामिया हिंसा मामले में शरजील इमाम, सफूरा जरगर, आसिफ इकबाल तन्हा और आठ अन्य को आरोप मुक्त करने के ट्रायल कोर्ट का फैसला रद्द कर दिया और उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के विभिन्न प्रावधानों के तहत आरोप तय किए। 2019 के जामिया हिंसा मामले में आरोपियों को आरोप मुक्त करने के निचली अदालत के आदेश के खिलाफ दिल्ली पुलिस की याचिका पर यह फैसला सुनाया गया।

    केस टाइटल: राज्य बनाम मो. कासिम व अन्य।

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    आर्बिट्रेटर पक्षकारों के ऑथोराइजेशन के अभाव में इक्विटी के सिद्धांतों को लागू नहीं कर सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने दोहराया है कि पृथक्करणीयता का सिद्धांत आर्बिट्रल निर्णयों पर तब तक लागू हो सकता है, जब तक कि आपत्तिजनक हिस्से को अलग किया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि यदि पृथक्करणीयता के सिद्धांत को लागू करके निर्णय को आंशिक रूप से अलग कर दिया जाता है तो यह आर्बिट्रेटर की त्रुटियों में संशोधन या सुधार की राशि नहीं होगी।

    केस टाइटल: जॉन पीटर फर्नांडिस बनाम सरस्वती रामचंद्र घनते (मृतक के बाद से) और अन्य।

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    एमवी एक्ट| बीमाकर्ता इस आधार पर देयता से बच नहीं सकता है कि मृतक मालिक के कानूनी उत्तराधिकारी दावा याचिका के पक्षकार नहीं थे: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि बीमाकर्ता दावेदारों को मुआवजे का भुगतान करने के अपने दायित्व से इस आधार पर बच नहीं सकता है कि मृतक मालिक के कानूनी उत्तराधिकारियों को दावा याचिकाओं में पक्षकार नहीं बनाया गया था।

    जस्टिस संजय धर की पीठ ने अपीलों के एक समूह की सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिसमें अपीलकर्ता बीमा कंपनी ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण, जम्मू की ओर से पारित अवॉर्ड को चुनौती दी थी।

    केस टाइटल: इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम ओम प्रकाश।

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    आदेश XXI रूल 11 सीपीसी | मध्यस्थता अवॉर्ड की निष्पादन कार्यवाही में निर्णित ऋणी को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने निष्पादन कार्यवाही में वाणिज्यिक न्यायालय, बेंगलुरु के एक आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के प्रधान सचिव और आयुक्त की गिरफ्तारी का आदेश दिया गया था। जस्टिस श्रीनिवास हरीश कुमार ने 15 फरवरी 2023 के आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यह "स्पष्ट रूप से अवैध" है।

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    सीनियर सिटीजन एक्ट की धारा 23 - ट्रांसफरी द्वारा बुनियादी सुविधाएं देने के अंडरटेकिंग को ट्रांसफर डीड का हिस्सा माना जा सकता है: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में भरण-पोषण ट्रिब्यूनल के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसने अस्सी साल की उम्र के ट्रांसफर करने को ट्रांसफरी के पक्ष में किए गए गिफ्ट डीड को इस आधार पर रद्द करने की अनुमति दी कि ट्रांसफरी ने दिए गए विशिष्ट अंडरटेकिंग के विपरीत ट्रांसफर करने वाले को रखरखाव प्रदान करने में विफल रहा और उसे परेशान किया।

    जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा, "घोषणा याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए वचन के रूप में है, जिसमें विशिष्ट शर्त है कि याचिकाकर्ता प्रतिवादी नंबर 6 की बुनियादी सुविधाओं और बुनियादी भौतिक आवश्यकताओं की देखभाल करेगा। इसलिए घोषणा/वचन को निरंतरता के रूप में लिया जाना चाहिए और गिफ्ट डीड का हिस्सा और पार्सल होना चाहिए।

    केस टाइटल: अमर नाथ दत्ता बनाम पश्चिम बंगाल राज्य व अन्य।

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    राज्य खाद्य सुरक्षा आयुक्त के पास गुटका, पान मसाला के निर्माण और बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का कोई अधिकार नहीं: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि खाद्य सुरक्षा आयुक्त, आंध्र प्रदेश खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 (एफएसएसए, 2006) की धारा 30 (2) (ए) के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए तम्बाकू पान मसाला के निर्माण और बिक्री पर रोक लगाने के लिए अधिसूचना जारी करने के लिए न तो अधिकृत है और न ही कोई अधिकार क्षेत्र है।

    चीफ जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस डी.वी.एस.एस. सोमयाजुलु ने कहा कि जब तंबाकू और तंबाकू उत्पादों पर सीधे संसद द्वारा प्रतिबंध नहीं लगाया गया तो एफएसएसए, 2006 के तहत अधिकारी अप्रत्यक्ष रूप से ऐसा नहीं कर सकते हैं, क्योंकि यह सीधे संसद द्वारा किए जाने का इरादा नहीं है।

    केस टाइटल- दासा शेखर बनाम द स्टेट ऑफ ए.पी.

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    ईपीएफ एक्ट | एक्ट की धारा 7-ओ के तहत प्री-डिपॉजिट में छूट देने वाले ट्रिब्यूनल के तर्कपूर्ण आदेश में तब तक हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता जब तक कि स्पष्ट रूप से अवैध न हो: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि ईपीएफ एक्ट की धारा 7ए के तहत अनिवार्य राशि जमा करने के लिए कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम की धारा 7-ओ के तहत छूट की मांग करने वाले आवेदन पर सुनवाई करते हुए ट्रिब्यूनल के तर्कपूर्ण आदेश में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है, जब तक कि उक्त आदेश या तो क्षेत्राधिकार के बिना है या स्पष्ट रूप से अवैध है।

    केस टाइटल: मैसर्स बायो वेद एक्शन रिसर्च कंपनी बनाम क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त-द्वितीय, शिमला

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    सार्वजनिक शांति भंग करने के लिए उकसावे के बिना अपमान के सामान्य आरोप आईपीसी की धारा 504 को आकर्षित नहीं करेंगे: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में देखा कि किसी व्यक्ति का अपमान करने से ही भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 504 की सामग्री को संतुष्ट नहीं करेगी, बल्कि अपमान इस तरह का होना चाहिए कि अपमानित व्यक्ति सार्वजनिक शांति भंग करने या उसे उकसाने को मजबूर हो जाए।

    जस्टिस संजय धर ने ये टिप्पणियां उस याचिका पर सुनवाई के दौरान कीं, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ताओं ने उनके खिलाफ दायर शिकायत को चुनौती दी, जिसमें आरपीसी की धारा 504 और 506 (1) के तहत अपराध करने का आरोप लगाया गया, जिसे न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के न्यायालय के समक्ष लंबित बताया गया। याचिकाकर्ताओं ने मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश को भी चुनौती दी, जिसके तहत उनके खिलाफ प्रक्रिया जारी की गई।

    केस टाइटल: जिया लाल बनाम यूटी ऑफ जम्मू-कश्मीर और अन्य

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    मेडिकल ऑथोरिटी की ओर से 'निर्णय की त्रुटि': गुवाहाटी हाईकोर्ट ने असम सरकार को हिरासत में मौत पीड़ित की पत्नी को पांच लाख रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया

    गुवाहाटी हाईकोर्ट ने हाल ही में असम सरकार को एक महिला को मुआवजे के रूप में 5 लाख रुपये की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया। इस महिला के पति की जेल में मृत्यु हो गई, क्योंकि उसकी मेडिकल कंडिशन के संबंध में मेडिकल ऑथोरिटी की ओर से निर्णय की त्रुटि के कारण उसे समय पर उचित और पर्याप्त चिकित्सा सुविधा प्रदान नहीं की गई थी।

    जस्टिस अचिंत्य मल्ला बुजोर बरुआ और जस्टिस रॉबिन फुकन की खंडपीठ ने कहा: "यह देखा गया है कि याचिकाकर्ता के मृत पति के मौलिक अधिकार यानी जीवन के अधिकार, जिसमें जेल अधिकारियों की हिरासत में रहने के दौरान पर्याप्त और उचित मेडिकल इलाज प्राप्त करने और देने का अधिकार भी शामिल है, उसका उल्लंघन किया गया। इस हद तक कि यद्यपि उनकी अंतर्निहित मेडिकल कंडिशन ने संकेत दिया कि कुछ लक्षण थे जो मेडिकल कंडिशन कार्डियोमेगाली पर भी लागू होते हैं, यह मेडिकल ऑथोरिटी की ओर से मेडिकल निर्णय की त्रुटि थी जिन्होंने 23.08.2016, 24.08.2016 और 25.08.2016 को उसकी जांच की थी और वे उसके कार्डियोमेगाली की मेडिकल कंडिशन का पता नहीं लगा पाए और उसे बेहतर इलाज के लिए तुरंत रेफर करने नहीं कर सके।"

    केस टाइटल: शहर बानो बनाम असम राज्य और 9 अन्य।

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